अधिगम स्थानान्तरण के सिद्धान्त की विवेचना करें ।

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प्रश्न – अधिगम स्थानान्तरण के सिद्धान्त की विवेचना करें ।
(Discuss the theories of Transfer of Learning.)
उत्तर – सीखने के स्थानान्तरण के सम्बन्ध में मनौवैज्ञानिकों की रुचि अत्यन्त प्रारम्भ से रही है तथा उन्होंने स्थानान्तरण के सम्बन्ध में कुछ आधारभूत तथ्यों की खोज की है, इन्हीं के सामान्यीकरण से प्राप्त निष्कर्षों को स्थानान्तरण के सिद्धान्त कहते हैं । प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख निम्नवत् है—
  1. मानसिक शक्तियों का सिद्धान्त (Theories of Mental Faculties) — इस सिद्धान्त का प्रतिपादन शक्ति मनोविज्ञान (Mental Faculty) के आधार पर किया गया है शक्ति मनोविज्ञान मनुष्य की मानसिक शक्तियों (अवलोकन, स्मृति, कल्पना एवं तर्क आदि ) को एक-दूसरे से भिन्न और स्वतंत्र मानता है । शक्ति मनोविज्ञान के अनुसार यदि किसी विषय या कौशल में शिक्षण-प्रशिक्षण से इन शक्तियों का विकास कर दिया जाता है तो ये किसी अन्य विभाग अथवा कौशल के सीखने में सहायक होती है ।
    इस सिद्धान्त के अनुसार सीखने के स्थानान्तरण में विषयवस्तु का नहीं, इन मानसिक शक्तियों का स्थानान्तरण होता है। उदाहरणार्थ यदि गणित के शिक्षण से बालकों में तर्क शक्ति का विकास कर दिया जाता है तो यह तर्क अन्य विषयों के अध्ययन में सहायक होती है । परन्तु वर्तमान में शक्ति मनोविज्ञान में विश्वास नहीं किया जाता । अब मनोवैज्ञानिक यह नहीं मानते कि मनुष्य की ये मानसिक शक्तियाँ एक-दूसरे से अलग हैं और किसी विषय के शिक्षण अथवा कौशल के प्रशिक्षण से किसी विशेष मानसिक शक्ति या शक्तियों का विकास होता है। अब तो यह माना जाता है कि मन की सभी शक्तियाँ एक साथ क्रियाशील होती हैं, यह दूसरी बात है कि कब कौन-सी मानसिक शक्ति अधिक अथवा कम क्रियाशील होती है। यही कारण है कि अधिगम के स्थानान्तरण के सन्दर्भ में इस सिद्धान्त को मान्यता नहीं दी जाती है ।
    विलियम जेम्स ने सन् 1890 में सर्वप्रथम सिद्धान्त का खण्डन किया था। उन्होंने स्मृति योग्यता के सम्बन्ध में प्रयोग किए तथा पाया कि स्मरण करने के अभ्यास से स्मरण करने की योग्यता में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती
     है ।
    थार्नडाइक ने भी सन् 1924 में अपने अध्ययन में पाया कि लैटिन या फ्रैंच सीखने वाले विद्यार्थी शरीर विज्ञान पढ़ने वाले विद्यार्थी से योग्य नहीं थे ।
    वेजमैन ने भी सन् 1945 में अपने प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि स्थानान्तरण पर पाठ्यविषयों की उत्कृष्टता का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता ।
  2. समरूप तथ्यों का सिद्धान्त (Theory of Indentical Elements) — इस सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादकों में थार्नडाइक का नाम सबसे ऊपर है । उनके बाद वुडवर्थ ने भी इस सिद्धान्त का समर्थन किया और तत्वों के स्थान पर अवयवों शब्द का प्रयोग किया । इस कारण इस सिद्धान्त को समरूप अवयवों का सिद्धान्त भी कहा जाता है । इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक परिस्थिति में अधिगम या प्रशिक्षण का स्थानान्तरण उस सीमा तक हो सकता है जहाँ तक दोनों समान या समरूप तत्त्व उपस्थित रहते हैं । जितने अधिक तत्व दोनों परिस्थितियों में समरूप होंगे, स्थानान्तरण भी उतना ही अधिक होगा । जैसे—गणित के क्षेत्र में किए जाने वाले अध्ययन की भौतिक शास्त्र में स्थानान्तरण होने की संभावनाएँ उतनी ही अधिक होंगी जितनी कि दोनों विषयों में चिन्ह, सूत्र, समीकरण और गणनाओं में रूप समान तत्त्व उपस्थित होंगे। इसी प्रकार टाइप सीखने के कौशल का हारमोनियम बजाने में स्थानान्तरण सम्भव हो सकता है। क्योंकि दोनों कार्यों में दृष्टि और गलियों के संचालन में पूरा तालमेल रहता है ।
    इस प्रकार सीखने सम्बन्धी दो अनुभवों में विषय सामग्री, कौशल, अभिवृत्ति, सीखने की विधि, उद्देश्य, आदतों तथा रुचियों के रूप में जितनी अधिक समानता पायी जाती है, उनमें स्थानान्तरण की सम्भावना उतनी ही अधिक देखने को मिलती है ।
  3. सामान्यीकरण का सिद्धान्त (Theory of Generalization) — इस सिद्धान्त को प्रकाश में लाने का श्रेय चार्ल्स जुड़ को है। इस सिद्धान्त में नवीन परिस्थितियों के समरूप तत्त्वों के स्थान पर सामान्यीकरणों के स्थानान्तरण की बात सामने रखी । अपने कुछ अनुभवों के आधार पर एक व्यक्ति कोई सामान्य सिद्धान्त पर पहुँच जाता है। दूसरी परिस्थितियों में कार्य करते हुए अथवा सीखते हुए वह अपने निकाले हुए इन्हीं निष्कर्षों अथवा सिद्धान्तों को प्रयोग में लाने की चेष्टा करता है । इस तरह सामान्यीकरण के स्थानान्तरण से अभिप्राय पहले की परिस्थितियों में अर्जित किए हुए सिद्धान्त तथा नियमों का दूसरी परिस्थितियों में ज्ञान तथा कौशल के अर्जन अथवा कार्यों को करने के समय उपयोग में लाने से है ।
    क्रो एवं क्रो के अनुसार – “किसी परिस्थिति में विशेष कुशलताओं के विकसित होने, विशिष्ट तथ्यों का ज्ञान होने और विशेष आदतों अथवा अनुभूतियों की प्राप्ति का किन्हीं दूसरी परिस्थितियों में तब तक स्थानान्तरण नहीं होता जब तक कि अर्जित ज्ञान, कौशल और आदतों को ठीक प्रकार से व्यवस्थित कर उन परिस्थितियों से सम्बन्धित न कर दिया जाए जिनमें कि उनका उपयोग किया जा सकता हो ।”
    इस प्रकार यह सिद्धान्त अधिक-से-अधिक स्थानान्तरण सम्पन्न करने के लिए अनुभवों को भली-भाँति संगठित करने और उनका समीकरण किए जाने पर जोर देता है ।
    जुड का प्रयोग — मनोवैज्ञानिक जुड ने सामान्यीकरण के स्थानान्तरण मूल्य को परखने के लिए तीर चलाने का परीक्षण किया। कक्षा 5 तथा 6 के समान बुद्धि लब्धि वाले विद्यार्थियों के दो समूह बनाए । एक समूह को प्रयोगात्मक समूह माना और दूसरे समूह को नियंत्रित समूह । प्रयोगात्मक समूह को अपवर्तन के नियमों का प्रशिक्षण दिया गया, दूसरे समूह को प्रशिक्षण नहीं दिया गया । पानी के अंदर 12 इंच नीचे एक वस्तु रखी गई । दोनों समूहों के बालकों को उस वस्तु पर तीर से निशाना लगाने को कहा गया । जुड ने पाया कि दोनों समूह समूह का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। जबकि प्रयोगात्मक समूह को अपवर्तन के नियमों की सैद्धान्तिक जानकारी दी गई थी, इससे प्रमाणित हुआ कि केवल सैद्धान्तिक अनुदेशन प्रभावकारी नहीं होता । दोबारा जुड ने परीक्षण की स्थिति में थोड़ा सा परिवर्तन किया । इस बार वस्तु को पानी के अन्दर 4 इंच नीचे रखा गया। दोनों समूहों को अभ्यास करने के लिए बराबर मौके दिए गए । परीक्षण में पाया गया कि प्रयोगात्मक समूह ने सैद्धान्तिक प्रशिक्षण और अभ्यास का लाभ उठाते हुए नियंत्रित समूह से बेहतर प्रदर्शन किया । इससे सिद्ध होता है कि सैद्धान्तिक के साथ-साथ प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिए जाने पर सामान्यीकरण का मूल्य बढ़ जाता है ।
  4. सामान्य एवं विशिष्ट अंश का सिद्धान्त (Theory of ‘G’ and ‘S’ Factor)— इस सिद्धान्त के प्रतिपादक मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन हैं। इनके मतानुसार प्रत्येक विषय को सीखने के लिए बालक को सामान्य (G) और विशिष्ट (S) योग्यता की आवश्यकता होती है । सामान्य योग्यता या बुद्धि का प्रयोग सामान्यतः जीवन के प्रत्येक कार्य में होता है, किन्तु विशिष्ट बुद्धि का प्रयोग विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है। सामान्य योग्यता व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थितियों में सहायता देती है। इसलिए सामान्य योग्यता या तत्त्व का ही स्थानान्तरण होता है, विशेष तत्त्व का नहीं । इतिहास, भूगोल, साहित्य आदि विषयों का सम्बन्ध सामान्य योग्यता से होता है, किन्तु चित्रकला, संगीत आदि विषयों का सम्बन्ध विशिष्ट योग्यता से है।
  5. पूर्णाकार सिद्धान्त ( Gestalt Theory ) – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन गैस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने किया है जिनमें कोहलर मुख्य हैं । गैस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य किसी भी विषय अथवा कौशल को सीखने में अपनी सूझ का प्रयोग करता है और किसी भी विषय अथवा कौशल के सीखने में उसकी इस सूझ का विकास होता है, उसके स्वरूप में विकास होता है और उसकी गति विकसित होती है । इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किसी दूसरे विषय अथवा कौशल के सीखने में यह सूझ ही स्थानान्तरित होती है, तथ्यों का ज्ञान अथवा कौशल विशेष की तकनीकी नहीं। यहाँ सूझ को थोड़े व्यापक रूप में प्रयोग किया गया है। इसमें तथ्यों को अर्थपूर्ण ढंग से समझने की शक्ति निहित है। कोहलर ने वनमानुषों पर किए गए प्रयोगों में पाया कि एक बार उसमें समस्या समाधान की सूझ उत्पन्न होने पर वह अन्य समस्याओं का समाधान अपेक्षाकृत कम समय में कर सका ।

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