अधोलिखित पद्य की सप्रसंग व्याख्या करें

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प्रश्न – अधोलिखित पद्य की सप्रसंग व्याख्या करें
अनिष्टादिष्टलाभेऽपि, न गतिर्जायते शुभा ।
यत्रास्ते विषसंसर्गोऽमृतं, तदपि मृत्यवे ।।
उत्तर – प्रस्तुत नीतिपरक श्लोक ‘पीयूषम्’ पाठ्यपुस्तक के ‘व्याघ्रपथिककथा’ पाठ से लिया गया है। यह पाठ नारायण पंडित-रचित हितोपदेश नामक नीतिकथा ग्रंथ के मित्रलाभ नामक भाग का अंश है। इसके माध्यम से मनुष्य को यह शिक्षा दी गई है कि जहाँ पर अमंगल की आशंका होती है वहाँ नहीं जाना चाहिए, क्योंकि लाभ वहीं होता है, जहाँ अनुकूल वातावरण हो। अनुकूल परिवेश अथवा अनुकूल पात्र न रहने पर जीवन नष्ट होने की आशंका बनी रहती है। नारायण पण्डित ठीक ही कहते हैं कि अनिष्ट से इष्ट (लक्ष्य) प्राप्ति होने पर भी परिणाम ठीक नहीं होता है, क्योंकि विषयुक्त अमृत पीने से भी मृत्यु हो जाती है।

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