अध्यापक के प्रमुख कार्य एवं उत्तरदायित्व का वर्णन करें ।

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प्रश्न – अध्यापक के प्रमुख कार्य एवं उत्तरदायित्व का वर्णन करें । 
उत्तर – अध्यापक के प्रमुख कार्य तथा उत्तरदायित्व (Main Roles and Responsibilities of the Teacher) – अध्यापक का मौलिक कार्य बालकों के अधिगम अनुभवों को इस प्रकार पहल देना, निर्देशित तथा मार्गदर्शित करना है कि वे अपनी क्षमतानुसार अपना बौद्धिक, सौन्दर्यात्मक, चारित्रिक, शारीरिक एवं भावात्मक विकास करके समाज के उपयोगी सदस्य बन सकें ।
अध्यापाक के मुख्य उत्तरदायित्व इस प्रकार हैं –
(i) छात्रों का चारित्रिक विकास ।
(ii) प्रभावशाली शिक्षण अधिगम ।
(iii) पाठ्यक्रम का विकास एवं संचालन ।
(iv) छात्रों के व्यक्तिगत अन्तरों का निराकरण तथा विकास |
(v) कक्षा प्रबन्ध ।
(vi) छात्र तथा अन्य अभिलेखों का रखना ।
(vii) पाठान्तर क्रियाओं का आयोजन ।
(viii) छात्रों का शैक्षिक तथा व्यावसायिक मार्गदर्शन ।
(ix) छात्रों के कार्य का मूल्यांकन ।
(x) विद्यालय में मानवीय सम्बन्ध स्थापित करना ।
(xi) प्रभावी सामुदायिक सम्बन्ध |
(xii) विभागीय नियमों का पालन करना ।
(xiii) अपना व्यावसायिक विकास करना ।
(xiv) सम्पूर्ण विद्यालीय व्यवसाय में निर्माणात्मक भागीदारी निभाना |
यहाँ पर कुछ प्रमुख उत्तरदायित्वों पर चर्चा की जा रही है :
I. छात्रों का चारित्रिक विकास (Character Development of Students)
(i) आदर्शवादी वातावरण का निर्माण करना ।
(ii) छात्रों के पारस्परिक सहयोगपूर्ण सम्पर्क में विधिवत् मैत्रीपूर्ण सहायता प्राप्त करना ।
(iii) दूसरों के अधिकारों, सुविधाओं तथा विचारों के प्रति छात्रों के मन में मान की भावना उत्पन्न करना ।
(iv) ऐसी सामुदायिक परिस्थितियों का उत्पन्न करना जिससे छात्रों में उपयुक्त नेतृत्व और भाईचारे के गुण विकसित हो सकें ।
(v) कक्षा एवं विद्यालय के वातावरण में इस प्रकर व्यवहार का स्तर बनाना जो कि समाज के स्वीकृत व्यवहार के अनुरूप हों ।
(vi) सदाचार एवं नैतिक समस्याओं पर चर्चा एवं उनसे सम्बन्धित ज्ञान शक्ति के विकास से नैतिक स्तर के तर्क की समझ छात्रों में उत्पन्न करना ।
(vii) प्रत्येक छात्र की विचार एवं कार्य करने की वैयक्तिकता को प्रोत्साहित करना ।
II. प्रभावी शिक्षण अधिगम विधि (Effective Teaching-learning Methodology)
(i) इस प्रकार की शिक्षण सामग्री और विधि का चयन करना जोकि सीखने की क्रिया में सुविधा प्रदान करे और सीखने की भावना को उत्तेजित करे ।
(ii) छात्रों की आवश्यकता, पृष्ठभूमि एवं योग्यता के अनुसार अध्यापन ।
(iii) वार्तालाप, प्रदर्शन, दृश्य एवं मौखिक प्रदर्शन, कविता पाठ, प्रयोग, विशेष योजना और क्षेत्र भ्रमण आदि किसी उपयुक्त विधि से पढ़ाना ।
(iv) विभिन्न शिक्षण पद्धतियों का विश्लेषण एवं मूल्यांकन करना जिससे सीखने की क्रिया में सुधार किया जा सके ।
(v) छात्रों की रुचि एवं ध्यान को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना जिससे शिक्षण प्रभावी वातावरण में किया जा सके ।
(vi) पढ़ाई गई सामग्री का उपयोग इस प्रकार करना जिससे अवबोध का ऐसा आदर्श स्थापित हो जाये कि उसका प्रयोग भविष्य में दूसरे क्षेत्रों में किया जा सके ।
(vii) छात्रों का समीक्षात्मक विचारों के लिए मार्गदर्शन करना ।
(viii) उपयुक्त कार्य, अध्ययन- निपुणता एवं आदतों का विकास करना ।
(ix) छात्रों को पाठ-योजना क्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना ।
(x) छात्रों की आवश्यकताओं एवं अभिरुचियों पर आधारित किसी एक विषय या कौशल के लिए किसी सीमा के अन्तर्गत विस्तृत रूपरेखा एवं उद्देश्यों का निर्माण करना ।
(xi) यह आश्वस्त कर लेना कि शिक्षण आरम्भ होने से पूर्व ही उद्देश्यपूर्ण और निर्देशित अध्यापन हेतु उपयुक्त तैयारी कर ली गई है ।
III. पाठ्यक्रम का विकास एवं संचालन (Development and Implementation of Curriculum)
(i) वर्तमान पाठयक्रम की विषयवस्तु के अध्ययन और उसके सुधार हेतु कार्यक्रम में भाग लेना ।
(ii) पढ़ाए जाने वाले विषय के उद्देश्य, क्षेत्र और पद्धतियों को निर्धारित करना ।
(iii) छात्रों के लिए अध्यापन कार्यक्रम को समृद्ध बनाने हेतु आवश्यकता होने पर दत्त कार्य (Assignment) बनाना ।
(iv) अपने विषय-का दूसरे विषयों शिक्षण अधिगम से सह-सम्बन्ध स्थापित करना ।
IV. छात्रों के वैयक्तिक भेदों सन्दर्भ में प्रावधान करने की व्यवस्था (Provision for Meeting the Individual In differences of Students)
(i) सीखने हेतु तत्परता की स्थापना के लिए बाल मनोविज्ञान के आधारभूत ज्ञान का उपयोग करना ।
(ii) अध्यापन एवं सीखने की क्रियाओं के सुधार हेतु प्रत्येक छात्र की पृष्ठभूमि एवं विद्यालय से बाहर के वातावरण के बारे में जानने का प्रयत्न करना ।
(iii) प्रत्येक छात्र में वैयक्तिक वृद्धि और आदर्श की भावना का विकास करना ।
V. कक्षा का प्रबन्ध (Class Management)
(i) कक्षा की भौतिक सामग्री की रक्षा हेतु छात्रों को उत्तरदायित्व सौंपना ।
(ii) सीखने की परिस्थितियों के सुधार हेतु सामग्रियों एवं उपकरणों का विकास, निर्माण करना और प्रदर्शन करना ।
(iii) कक्षा कक्ष का स्वास्थ्यपूर्ण और सुरक्षित दशा में रखना तथा उचित प्रकाश और वातायन की सुविधा प्रदान करना ।
(iv) आवश्यक अभिलेख जैसे उपस्थिति पंजिका आदि को तैयार करना और नियमित रूप से आरक्षित रखना ।
VI. छात्रों के कार्यों का मूल्यांकन करना (Evaluation of Students’ Work)
(i) छात्रों के ज्ञान प्राप्ति के स्तर एवं गुणों का मूल्यांकन करने के लिए उपयुक्त परीक्षा की खोज एवं संचालन करना ।
(ii) अध्यापन एवं सीखने की विधियों के सुधार हेतु परीक्षा परिणामों की समीक्षा करना और छात्रों की उन्नति या अवनति का रिकार्ड तैयार करना ।
(iii) छात्रों के गृहकार्य और अन्य प्रकार के कार्यों का मूल्यांकन करना ।
(iv) छात्रों के मूल्यांकन करने में विशेषज्ञों का सहयोग प्राप्त करना ।
VII. अभिभावक एवं सामुदायिक सम्बन्ध
(Relation with the parents and the Community)
(i) अभिभावक शिक्षक संघ एवं इसी प्रकार की अन्य क्रियाओं में भाग लेना ।
(ii) सामुदायिक कार्यों में भाग लेना ।
(iii) छात्रों की उन्नति एवं व्यवहार से सम्बन्धित विषयों पर माता-पिता से वार्तालाप करने हेतु निश्चित समय पर उनसे मिलना ।
(iv) माता-पिता तथा उनके बच्चों के प्रति साहनुभूतिपूर्ण तथा सहायतापूर्ण व्यवहार करना ।
(v) माता-पिता से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना और छात्रों की उन्नति, समस्याओं और आवश्यकताओं के बारे में उन्हें सूचित करते रहना ।
(vi) अपने वैयक्तिक व्यवहार को समुदाय में इस प्रकार प्रकट करना कि समाज की दृष्टि में विद्यालय एवं अध्यापकों का मान बढ़े ।
VIII. वृत्तिक अथवा व्यावसायिक विकास ( Professional Development)
(i) शिक्षा में होने वाले परिवर्तनों से जानकारी रखना ।
(ii) शिक्षण में नए अनुसन्धानों से परिचित रहना ।
(iii) प्रमुख व्यावसायिक संगठनों तथा अपने विषय से सम्बन्धित संगठनों का सदस्य बनना ।
(iv) अपने सहयोगी अध्यापकों एवं अन्य सहयोगियों के प्रति नैतिकतापूर्ण व्यवहार करना ।
(v) अपने विषय सम्बन्धी पुस्तकों, पत्रिकाओं, समाचारपत्रों तथा अन्य स्रोतों से परिचित रहना ।
(vi) अपने ज्ञान विस्तार हतु सम्मेलनों, गष्ठियों एवं कार्यशालाओं में भाग लेते रहना ।
(vii) अपने विषय तथा सामान्य नवीन एवं विकसित ज्ञान से परिचित रहने के लिए चलचित्र, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी का प्रयोग करना ।
IX. सम्पूर्ण प्रभावी विद्यालय व्यवस्था तथा वातावरण निर्माण में उचित भागेदारी निभाना (Appropriate Participation in Providing Overall Effective Management and Environment)
(i) विद्यालय के सम्पूर्ण उत्तरदायित्व को स्वीकार करना ।
(ii) सभी सहयोगियों को पूर्ण सहयोग देना ।
(iii) शिक्षण सुधारों में भागीदार बनना ।
(iv) विद्यालय के सभी कार्यक्रमों तथा नियमों में दक्षता प्रदर्शित करना ।
(v) विद्यालय के सभी क्षेत्रों में विकास हेतु निष्ठा से कार्य करना ।
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