अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धान्त की विवेचना करें |
प्रश्न – अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धान्त की विवेचना करें |
उत्तर- अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री का निर्माण कुछ मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित होता है, जो इसके कार्यात्मक या व्यावहारिक सिद्धान्त भी है। ये कार्यात्मक सिद्धान्त हो अभिक्रमित अधिगम की प्रक्रिया की व्यवस्था करते हैं। अभिक्रमित अनुदेशन के पाँच मूलभूत सिद्धान्त है, जो इस प्रकार है
1. छोटे पदों का सिद्धान्त (Principle of Small Steps)2. सक्रिय अनुक्रिया का सिद्धान्त (Principle of Active Responding)3. तुरन्त पुष्टि का सिद्धान्त (Principle of Immediates Confirmation)4. स्वतः गति का सिद्धान्त (Principle of Self-pacing)5. छात्र परीक्षण का सिद्धान्त (Principle of Student Testing)
- छोटे पदों का सिद्धान्त (Principles of Small Steps) – इस सिद्धान्त की यह धारणा है कि पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे पदों में अध्ययन करने से छात्र उसे सरलता से सीखता है तथा इस प्रकार पाठ्य-वस्तु पर स्वामित्व प्राप्त कर लेता है। इसीलिए अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री को पाठ्य-वस्तु के छोटे-छोटे पदों में व्यवस्थित करके एक क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। तकनीकी भाषा में इन छोटे-छोटे पदों को फ्रेम (Frame) के नाम से जाना जाता है । प्रत्येक पद में छात्रों की अनुक्रिया के लिए रिक्त स्थान दिया जाता है, जिससे उन्हें अपनी अनुक्रिया लिखनी होती है । इसके साथ (तुरन्त बाद) सही अनुक्रिया भी दी गई होती है, जिसका पता छात्र को अनुक्रिया करने के बाद में लगता है ।
- सक्रिय अनुक्रिया का सिद्धान्त (Principle of Active Responding)-इस सिद्धान्त के अनुसार छात्र अधिगम के समय जितना अधिक सक्रिय रहता है, उतना अधिक वह सीखता है । अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री में छोटे-छोटे पदों को पढ़ने के पश्चात् रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए छात्र को समुचित अनुक्रिया करनी होती है। अनुक्रिया के लिए छात्र की सक्रियता आवश्यक होती है। अधिगम का एक प्रमुख सिद्धान्त यह है कि शिक्षार्थी करके (Learning by doing) अधिक सीखता है। अभिक्रमित अनुदेशन के इस सिद्धान्त में सीखने की इसी धारणा का अनुसरण किया जाता है ।
- तुरन्त या शीघ्र पुष्टि का सिद्धान्त (Principle of Immediate Confirmation)-इस सिद्धान्त का विकास इस धारणा के अन्तर्गत हुआ है कि छात्रों की अनुक्रियाओं की जाँच अर्थात् सही एवं गलत की पुष्टि साथ-साथ करने से छात्र अधिक सीखते हैं । अतः अभिक्रमित सामग्री के पदों को पढ़ते समय तत्पर होकर छात्र जो अनुक्रिया करते हैं, उनकी जाँच भी उसी समय करनी होती है। छात्र को सही अनुक्रिया की जानकारी तुरन्त होने से उसे नवीन ज्ञान प्राप्त होता है तथा आगे बढ़ने के लिए पुनर्बलन भी मिलता है । अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री में इसी उद्देश्य से पद की सही अनुक्रिया भी दी जाती है, जिससे छात्र अपनी अनुक्रिया की स्वयं जाँच करके पुष्टि करता है।
- स्वतः अध्ययन गति का सिद्धान्ते (Principle of Self Pacing ) – इस सिद्धान्त के अनुसार, यदि शिक्षार्थी को अपनी गति से सीखने का अवसर दिया जाता है, तब वह अधिक सीखता है । यह सिद्धान्त व्यक्तिगत भिन्नता की अवधारणा पर आधारित है। अभिक्रमिक अनुदेशन सामग्री में प्रत्येक छात्र एक पद को पढ़कर अनुक्रिया करता है तथा स्वयं उसकी जाँच करता है। अनुक्रिया के सही होने की पुष्टि होने पर वह अगले पद पर जाता है । इस कार्य में शिक्षार्थी को पूरी स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है, जिससे वह अपनी क्षमताओं एवं अध्ययन गति के अनुसार पदों का अध्ययन करता है। इस प्रकार व्यक्तिगत भिन्नता की समस्या का स्वयमेव समाधान हो जाता है ।
- छात्र परीक्षण का सिद्धान्त (Principle sof Students Testsing) – इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षक अथवा अभिक्रमित सामग्री निर्माता अपने छात्रों का समय-समय पर परीक्षण करता है । इसके अन्तर्गत प्रत्येक छात्र अभिक्रमित सामग्री के अध्ययन के बाद अपनी अनुक्रियाओं का आलेख तैयार करता है। शिक्षक इस आलेख की जाँच करता है। इससे छात्र की कमजोरियों का पता चलता है । इसकी सहायता से अभिक्रमित सामग्री में सुधार एवं परिवर्तन किया जाता है। इस प्रकार अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री का निर्माण छात्रों की अनुक्रियाओं के आधार पर किया जाता है ।
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