अभिभावक-बालक संबंध के निर्धारकों की विवेचना करें।

प्रश्न – अभिभावक-बालक संबंध के निर्धारकों की विवेचना करें। 
उत्तर – अभिभावक – बालक सम्बन्ध को प्रभावित करने वाले अनेक निर्धारक तत्त्व हैं, इनमें से कुछ प्रमुख निर्धारक तत्त्वों का वर्णन अग्र प्रकार से है-
1. अभिभावक अभिवृत्तियाँ (Parental Attitudes ) — अभावक – बालक सम्बन्ध हुत कुछ अभिभावकों की अभिवृत्तियों से प्रभावित और निर्धारित होते हैं। कई बार यह देखा है कि अभिभावकों में बालकों के प्रति अभिवृत्तियों का निर्माण बालकों के उत्पन्न होने 1 पहले ही हो जाता है। एस. क्लेवन (S. Clavan, 1968) ने अपने अध्ययनों में देखा कम आयु वाले अभिभावक अपने बालकों के प्रति उत्तरदायित्वों का निर्वाह उस प्रकार और उतना अच्छी तरह नहीं करते हैं जितना कि अधिक आयु वाले अभिभावक करते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि अभिभावक अपने नए उत्तरदायित्व के साथ समायोजन नहीं कर पात हैं।
कुछ संरक्षकों में अपने बालकों के प्रति अति संरक्षण (Over-protections) की अभिवृत्ति होती है। यदि यह अभिवृत्ति अभिभावकों में अधिक दिनों तक चलती है, तो बालक में अनेक प्रकार के विशिष्ट-लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे- बेचैनी, उत्तेजना, शीघ्र परेशान होने की प्रवृत्ति, ध्यान लगाने की कम योग्यता, दूसरों पर आश्रित होना, दूसरों से शीघ्र प्रभावित होना, अपनी योग्यताओं पर विश्वास न होना आदि। बालकों की यह सभी विशेषताएँ अभिभावक – बालक सम्बन्धों को बिगाड़ सकती हैं। कुछ अभिभावक अपने बच्चों को अधिक छूट या अनुमति (Permissiveness) देने वाले होते हैं। जब अभिभावक इस प्रकार के होते हैं तो बच्चों के नियन्त्रण से बाहर हो जाने की सम्भावना अधिक होती है साथ-ही-साथ अभिभावक बालक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना भी अधिक होती है (W. Boroson, 1970 ) ।
कुछ अभिभावक अपने बच्चों का तिरस्कार (Rejection) करने वाले होते हैं। अभिभावकों का तिरस्कार बालकों के आत्म-सम्मान (Self-esteem) को चोट पहुँचाने वाला होता है। अध्ययनों (A.G Nikelly, 1967; D. Baumrind, 1971) में यह देखा गया है कि अभिभावकों का तिरस्कार बालकों में अनेक विशिष्ट लक्षण उत्पन्न कर सकता है, जैसे-आक्रामकता, निर्दयता, झूठ बोलने की प्रवृत्ति, कुसमायोजन, समाज विरोधी व्यवहार, असहायता की भावना, कुण्ठा तथा अधिक दिखावा करने की प्रवृत्ति आदि। अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि बालकों में उपर्युक्त प्रकार के उत्पन्न लक्षण पारिवारिक सम्बन्धों विशेष रूप से अभिभावक – बालक सम्बन्धों में मनुमटाव उत्पन्न करने में बहुत अधिक सहायक होते हैं।
कुछ अभिभावक प्रभुत्वशाली प्रवृत्ति के होते हैं। यह प्रभुत्वशाली प्रवृत्ति के अभिभावक (Dominating Parents) प्राय: कठोर स्वभाव (Strict Nature) वाले होते हैं। यह अपने बालकों के साथ प्रभुत्वशाली अभिवृत्ति अपनाते हैं और अपने बच्चों को अधिक नियन्त्रण में रखते हैं। अभिभावकों की प्रभुत्वशाली अभिवृत्ति के कारण बालकों में अनेक विशिष्ट लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे अति संवेदनशीलता अधिक शर्मीलापन, हीनता की भावना, शीघ्र भ्रमित होने वाले हो जाते हैं। इस प्रकार के विशिष्ट लक्षणों वाले बच्चों और अभिभावकों में सम्बन्ध मधुर नहीं होते हैं। कुछ अभिभावक जब अपने बालकों पर बिल्कुल नियन्त्रण या प्रभुत्व नहीं रखते हैं तो बालक कहना नहीं सुनते हैं, बालकों का व्यवहार उत्तरदायित्वपूर्ण नहीं होता है, वे लापरवाह हो जाते हैं। बालकों में जब यह गुण विकसित होते हैं, तब उनके अभिभावकों के साथ सम्बन्ध बिगड़ने की बहुत अधिक सम्भावना हो जाती है।
2. अभिभावकों का पक्षपात ( Parental Favouritism)—अधिकांश अभिभावक बालकों के साथ समानता का व्यवहार नहीं कर पाते हैं। होता यह है कि वह अपने कुछ बच्चों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं तथा कुछ बालकों पर अधिक ध्यान और स्नेह नहीं दे पाते हैं। एन. बेले (N. Bayley, 1960) ने अपने एक अध्ययन में देखा कि माँ अपने बेटे का बेटियों की अपेक्षा अधिक पक्ष लेती है तथा पिता अपनी बेटी का बेटों की अपेक्षा अधिक पक्ष लेता है। इसके अतिरिक्त पहले बच्चे को भी माँ अधिक स्नेह करती है और अधिक पक्ष लेती है। जैसे-जैसे बालकों की आयु बढ़ती जाती है बालकों का पक्ष लेने की माता-पिता की प्रवृत्ति भी बढ़ती चली जाती है। बच्चों का पक्ष लेने सम्बन्धी माता-पिता का अन्तर परिवार में कभी भी देखा जा सकता है।
वय:सन्धि अवस्था के बाद लड़कियों में पिता के प्रति विरोधी भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। फलस्वरूप वय: सन्धि अवस्था में और अधिक आयु की लड़कियों के पिता के साथ उतने अच्छे सम्बन्ध नहीं रह जाते हैं। इस अवस्था में लड़कियों के माँ के साथ अपेक्षाकृत अधिक अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं, माता-पिता उस बच्चे का भी पक्ष लेते हैं जो नियमित रूप. स्कूल जाता है, जिसकी अच्छी आदतें होती हैं या जो परिवार में अधिक लोकप्रिय होता है। कई बार माता-पिता अपने उस बच्चे का भी अधिक पक्ष लेते हैं जिसमें कोई शारीरिक दोष या मानसिक दुर्बलता होती है। जब माता-पिता अपने कई बच्चों में से कोई एक या कुछ का तो फेवर करते हैं तथा अन्य का नहीं, तो इस अवस्था में अन्य बालकों के साथ सम्बन्ध बिगड़ने की पूर्ण सम्भावना होती है।
3. परिवार का आकार ( Family Size)-आजकल विकासशील और विकसित देशों में न्यूक्लियर परिवार (Nuclear Family) ही अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं। इन परिवारों में बालकों का विकास ही अच्छा नहीं होता है, बल्कि इन परिवारों में अभिभावक और बालक सम्बन्ध अन्य परिवारों की अपेक्षा अच्छे होते हैं। इस दिशा में हुए अध्ययनों में यह देखा गया है कि बड़े परिवारों की अपेक्षा छोटे परिवारों में पारस्परिक सम्बन्ध अधिक अच्छे होते हैं। परिवार के आकार के प्रति अभिभावकों की अभिवृत्ति भी अभिभावक बालक सम्बन्ध को प्रभावित करती है। यह देखा गया है कि यदि अभिभावक बड़ा परिवार चाहते हैं यदि परिवार बड़ा होता है तो अभिभावक बालक सम्बन्ध मधुर होते हैं, परन्तु यदि अभिभावक छोटा परिवार पसन्द करते हैं और किसी कारणवश उनका परिवार बड़ा हो जाता है, तो अभिभावक – बालक सम्बन्ध बिगड़ने की सम्भावना अधिक होती है।
परिवार में नए बच्चों के उत्पन्न होने का अन्तर भी अभिभावक – बालक सम्बन्धों को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए माता-पिता की इच्छा है कि पहले और दूसरे बच्चे में अन्तर अधिक हो और यदि यह अन्तर अधिक रहता है तो परिवार का वातावरण अच्छा बना रहता है और अभिभावक-बालक सम्बन्ध भी अच्छे बने रहने की सम्भावना होती है। यदि यह अन्तर माता-पिता की इच्छा के विपरीत हो जाता है, तो परिवार का संवेगात्मक जीवन बिगड़ जाता है फलस्वरूप अभिभावक – बालक सम्बन्ध भी बिगड़ जाता है।
भिन्न-भिन्न आकार के परिवारों में अभिभावक-बालक सम्बन्ध भिन्न-भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार मध्यम आकार का परिवार सर्वश्रेष्ठ होता है । इस परिवार में माता-पिता के अतिरिक्त तीन या चार बच्चे होते हैं। पारिवारिक और अभिभावक – बालक सम्बन्धों की दृष्टि से यह परिवार कई प्रकार से श्रेष्ठं होता है। अध्ययनों में यह देखा गया है जिस परिवार में एक ही बालक होता है उस परिवार के अभिभावक अति संरक्षण (Over-protecting) प्रकृति वाले होते हैं। इन अध्ययनों (D. T. Hayes, 1952; H. L. Koch, 1960) में यह भी देखा गया है कि अकेला बच्चा अपने अभिभावकों को प्रतिरूप (Model) मानता है, वह अपनी आयु के अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक परिपक्व होता है। उसका परिवार और समूह में सामाजिक समायोजन अच्छा होता है। इस प्रकार के बालक में भाई-बहनों की ईर्ष्या उत्पन्न नहीं हो पाती है। ऐसा बच्चा अपने माता-पिता से अधिक घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होता है। उसे अपने माता-पिता से स्नेह भी अधिक प्राप्त होता है। बहुधा इस प्रकार के बच्चे चुपचाप रहने वाले तथा Extra-curricular activities में कम भाग लेते हैं (J. H. S. Bossard & E.S. Bolls. 1960)।
हरलॉक (1978) ने इस प्रकार के बच्चों का वर्णन करते हुए लिखा है कि “Because of the widespread belief that only children are pampared and spoiled, it has generally been accepted that there are more instances of problem behaviour among them than among non-only children.”
छोटे परिवारों में अभिभावक अपने बच्चों के साथ अधिक समय देते हैं। बच्चों को समान और अधिक सुविधाएँ मिलने की सम्भावना होती है, अतः इस बात की भी सम्भावना होता है कि अभिभावक सम्बन्ध मधुर रहें। छोटे परिवारों में बहुधा दो या तीन बच्चे होते हैं। इन परिवारों में बहुधा प्रजातान्त्रिक वातावरण होता है। अनुशासन भी उन परिवारों में अधिक होता है। इन परिवारों में अभिभावक बालक सम्बन्ध बहुत अच्छा होता है, परन्तु बहुधा इस प्रकार के परिवार सुनियोजित नहीं हुआ करते हैं। बहुधा ऐसे परिवारों में बड़े बच्चों को अनेक उत्तरदायित्व के कार्य और अनुशासन सम्बन्धी कार्यों का भार दिया जाता है। अतः ऐसे परिवारों में अभिभावक-बालक सम्बन्ध सब बालकों के साथ एक प्रकार के नहीं होते हैं।
4. परिवार का सामाजिक-आर्थिक स्तर (Socio-Economic Status of Family) अभिभावक – बालक सम्बन्ध को परिवार का सामाजिक-आर्थिक स्तर कारक भी महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। मध्यम श्रेणी परिवार के अभिभावक बालकों से परिवार के लिए अनेक आशाएँ रखते हैं। उदाहरण के लिए बच्चों से यह आशा की जाती है कि वह सामाजिक अनुरूपता स्थापित करेंगे अर्थात् बच्चे समाज के नियमों, मूल्यों और व्यवहार प्रतिमानों के अनुसार व्यवहार करेंगे। बालकों को इस बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि वह कोई ऐसा कार्य न करें जिससे कि परिवार की बदनामी या आलोचना हो । यदि बालक इस प्रकार का व्यवहार करते हैं कि परिवार की बदनामी होती है तो बालक-अभिभावक सम्बन्ध मनमुटावपूर्ण हो जाते हैं। कई बार बालक- अभिभावक सम्बन्ध इसलिए भी बिगड़ जाते हैं कि अभिभावक हर समय बालकों पर दबाव डालते रहते हैं कि बालक सामाजिक अनुरूपता (Social Conformity) स्थापित करें। जब बालकों के परिवार का सामाजिक आर्थिक स्तर उनके मित्रों के परिवारों के सामाजिक आर्थिक स्तर से निम्न होता है, तब बालक अपने माता-पिता पर शर्म महसूस कर सकता है। यदि बालक के परिवार का सामाजिक-आर्थिक-स्तर उच्च है, तो बालक अपने परिवार, माता और पिता पर गर्व का अनुभव करता है। यह शर्म और गर्व के अनुभव भी अभिभावक – बालक सम्बन्ध को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं।
5. माता-पिता का व्यवसाय (Parental Occupation) — अभिभावक और बालक सम्बन्धों को प्रभावित करने वाला यह एक महत्त्वपूर्ण कारक है। पिता के व्यवसाय का परिवार के बच्चों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। अधिक आयु के बच्चों की सामाजिक प्रतिष्ठा बहुत कुछ पिता के व्यवसाय से निर्धारित होती है। कुछ अध्ययनों (R. Rodman, et al., 1969, J. H. S. Bossard & E. S. Boll, 1966) में यह देखा गया है जो बालक अपने पिता के व्यवसाय को बताने पर शर्म का अनुभव करते हैं उन बच्चों में पिता के प्रति विपरीत अभिवृत्तियाँ निर्मित होती हैं, फलस्वरूप अभिभावक – बालक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। माँ का व्यवसाय भी बालकों के व्यवहार को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। यदि माँ किसी व्यवसाय में होती है, तो छोटे बच्चों को अकेले रहना पड़ता है जिससे उनमें अकेलेपन और अप्रसन्नता की भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। यह भावनाएँ उस समय और तीव्र हो जाती हैं जब बालक के दूसरे साथियों की माँ घर में रहकर उनका पालन-पोषण करती है और उन्हें स्नेह देती है। इस अवस्था में बालक अभिभावक सम्बन्ध मधुर नहीं होते हैं ।
6. टूटे परिवार ( Broken Homes)- जब परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तलाक मिलती है या परिवार के बड़े-बूढ़े अथवा पिता अधिक दिनों के लिए परिवार से बाहर रहते हैं तो इन अवस्थाओं में चल रहे परिवार टूटे परिवार कहलाते हैं। टूटे परिवार के सदस्य अक्सर बाबा, नाना के परिवारों के साथ या अन्य रिश्तेदारों के परिवारों के साथ रह सकते हैं। बहुधा ऐसे परिवारों में आर्थिक समस्याएँ अधिक जटिल होती हैं। यह भी अवस्था हो सकती है कि परिवार में माँ न हो और बच्चें का पालन-पोषण पिता को करना पड़ रहा हो अथवा पिता न हो और बच्चों का पालन-पोषण माँ को अकेले ही करना पड़ रहा हो। इन सभी परिस्थितियों में अभिभावक – बालक सम्बन्ध सामान्य नहीं होते हैं उनके धनात्मक या ऋणात्मक दिशा में विकृत अवश्य दिखाई देती है। माँ की मृत्यु के पश्चात् पिता पुनर्विवाह कर सकता है, यह नई या सौतेली माँ अभिभावक-बालक सम्बन्धी को बदल सकती है।
7. दोषपूर्ण बच्चे (Defective Children)— परिवार के बच्चे जब कुसमायोजित होते हैं या जब उनमें कोई शारीरिक या मानसिक दोष पाया जाता है। इस प्रकार के बच्चों की देखभाल के लिए माता-पिता को अपेक्षाकृत अधिक समय देना पड़ता है। जब माता-पिता अपने इन बच्चों की तुलना अन्य सामान्य बालकों से करते हैं तो उनमें दुःख और निराशा की भावनाएँ उत्पन्न हो जाती है। बाद में यही भावनाएँ अभिभावक – बालक सम्बन्धों को बिगाड़ने में सहायक होती हैं। इन दोषपूर्ण बालकों पर माता-पिता को समय के साथ-साथ धन भी अधिक खर्च करना पड़ता है। कुसमायोजन वाले बच्चे कभी-कभी आक्रामक व्यवहार अपनाते हैं। कभी दूसरों को परेशान करते हैं, छेड़छाड़ करते या चिढ़ाते हैं तथा कई बार चीजों की तोड़फोड़ भी करते हैं। इन सभी अवस्थाओं अभिभावक-बालक सम्बन्धों के बिगड़ने की पूर्ण सम्भावना रहती है। कुछ कुसमायोजित बच्चे अन्तर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते हैं, यह दूसरों से अपना काम करवाने के अधिक आकांक्षी और अधिक मतलबी होते हैं, फलस्वरूप कुसमायोजित होते हैं। इस परिस्थिति में भी अभिभावक-बालक सम्बन्ध तनावपूर्ण होते हैं।
8. माता और पिता का प्रत्यय (Concept of Mother and Father)— बालक में निर्मित माता और पिता का प्रत्यय भी अभिभावक और बालक सम्बन्धों को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। बच्चें के लिए माँ वह स्त्री है जो उनकी देखभाल करती है, उन्हें प्यार करती है, उनकी शैतानी को सहन करती है, उनके सभी कार्य करती है तथा संकट के समय उनकी सहायता करती है। बालक और माँ के सम्बन्धों में बिगाड़ उस समय प्रारम्भ हो जाता है। जब माँ बालक में माँ के बने प्रत्ययों के अनुसार व्यवहार नहीं करती है। एक मध्यमवर्गीय बालक के लिए पिता वह व्यक्ति होता है जो बच्चों को शीघ्र समझ लेता है, बच्चों को शिक्षा देता है, बच्चों के विकास के लिए समय-समय पर निर्देश देता है। बच्चों के लिए और बच्चों के साथ अनेक कार्य करता है। बालकों में पिता के प्रति बने यह प्रत्यय यदि वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से मेल नहीं खाते हैं, तो बालक और पिता के पारस्परिक सम्बन्ध मनमुटावपूर्ण या तनावपूर्ण हो जाते हैं। कुछ बच्चों में माता-पिता के यह प्रत्यय स्पष्ट हो सकते हैं और अन्य में अस्पष्ट हो सकते हैं। प्रत्यय जितने ही अधिक स्पष्ट होते हैं और वास्तविक जीवन से जितने ही अधिक भिन्न होते हैं, बालक – अभिभावक सम्बन्ध बिगड़ने की उतनी अधिक सम्भावना होती है।
9. एक संरक्षक के लिए वरीयता (Preference for one Parent) – बालकों में यह देखा गया है कि कुछ बालक माँ को वरीयता देते हैं तो अन्य बालक पिता को वरीयता देते हैं। उदाहरण के लिए यदि बालक अपनी माँ को वरीयता देता है, तो वह निश्चय ही अपने पिता को कम पसन्द करेगा, इसी प्रकार यदि वह अपने पिता को वरीयता देता है, तो वह अपनी माँ को कम पसन्द करेगा। पहली स्थिति में पिता-पुत्र के सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना होती है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि बालक अपने संरक्षकों को वरीयता अनेक कारणों से देता है।
> कुछ प्रमुख प्रभावित करने वाले कारक निम्न प्रकार से हैं –
(1) यदि एक संरक्षक बालक के साथ अधिक समय व्यतीत करता है और दूसरा कम तो निश्चय ही बालक अधिक समय व्यतीत करने वाले संरक्षक को वरीयता देगा।
(2) संरक्षकों में जो बालक के साथ अधिक खेलता, हँसता और बोलता है, बालक उस संरक्षक को अधिक वरीयता देता है।
(3) बालक की अधिक देखभाल करने वाले संरक्षक को बालक की वरीयता प्राप्त होती है।
(4) बालक को जिस संरक्षक से अधिक स्नेह प्राप्त होता है, उसको वह अधिक वरीयता देता है।
(5) बालक पर जो संरक्षक नियन्त्रण अधिक रखते हैं अथवा दण्ड अधिक देते हैं, बालक उसको कम, वरीयता देता है।
(6) बालकों से जो संरक्षक जरूरत से अधिक आशाएँ रखते हैं, बालक उसको कम वरीयता देते हैं।
(7) माता-पिता में से बालक का जो अधिक पक्ष लेते हैं, उन्हें बालक अधिक वरीयता देता है।
(8) बाल्यावस्था में बालक माता-पिता में से जिसको अधिक सम्मानित और उच्च होता हुआ देखता है, उनको वह अधिक वरीयता देता है।
(9) माता-पिता में जो अधिक आदर्श होता है बालक उसको अधिक वरीयता देता है।
10. जन्म क्रम (Ordinal Position)— अभिभावक – बालक सम्बन्ध बालक के जन्म-क्रम से भी प्रभावित होते हैं। अध्ययनों में यह देखा गया है कि माता-पिता पहले बालक के प्रति अच्छी अभिवृत्ति ही नहीं रखते हैं बल्कि पहले बालक को वरीयता अधिक देते हैं। पहले बालक में परिपक्वता, अनुरूपता और आश्रितता अधिक होती है। पहले बालक के बाद के जो बालक होते हैं, उनके साथ ही माता-पिता का व्यवहार अच्छा होता है लेकिन बाद के बच्चे पहले बच्चे की अपेक्षा अपने आपको तिरस्कृत समझते हैं। अतः बालक- अभिभावक सम्बन्ध तिरस्कार की भावना के कारण बिगड़ सकते हैं। अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि पहला बच्चा यदि लड़की है, तो वह माँ की सहायक बनती है, उसको अधिक वरीयता देती है। इसी प्रकार पहला बच्चा यदि बालक है, तो वह पिता का सहायक बनता है, पिता उसको अधिक वरीयता देता है।
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