कक्षा शिक्षण में संसाधन के रूप में बहुभाषिकता का उपयोग करने के क्या उद्देश्य हैं ?

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प्रश्न – कक्षा शिक्षण में संसाधन के रूप में बहुभाषिकता का उपयोग करने के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर – भाषा शिक्षण इतना सहज नहीं है जितना ये सतही तौर पर दिखाई देता है। विशेषकर, प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। इस स्तर पर मातृभाषा के शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य उल्लेखनीय हैं —
1. शुद्ध उच्चारण पर बल – मातृभाषा शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य यह है कि बच्चे विभिन्न ध्वनियों का शुद्ध उच्चारण करें। इसके लिए शिक्षक का कर्त्तव्य बनता है कि वह सर्वप्रथम बच्चों को स्वर तथा व्यंजनों के उच्चारण स्थान का समुचित परिचय दे और फिर उनको शुद्ध उच्चारण करने की पद्धति से अवगत कराए। इस सम्बन्ध में बच्चों को सुर, ताल, बालाघात, आरोह अवरोह आदि का उचित ज्ञान दिया जाना चाहिए। शुद्ध उच्चारण से ही बच्चे पाठ्यक्रम के स्तर की भाषा को भली-भाँति बोल सकेंगे। इस संदर्भ में डॉ. उमा मंगल ने लिखा भी है— “ ध्वनियों का ज्ञान, शब्दों का ज्ञान, स्वराघात व बलाघात का ज्ञान, ध्यानपूर्वक सुनने की आदत का निर्माण, मुहावरों व लोकोक्तियों का ज्ञान, विभिन्न पाठ से सम्बन्धित एवं पाठान्तर क्रियाओं में सक्रिय सहयोग लेने के लिए प्रेरित करना आदि।
2. शब्द – भण्डार में वृद्धि – मातृभाषा शिक्षण का दूसरा उद्देश्य है कि विद्यार्थियों के शब्द-भण्डार में वृद्धि करना। इससे विद्यार्थी पाठ्यक्रम की शब्दावली को पढ़कर सही अर्थ ग्रहण करने में समर्थ होते हैं। इसी सन्दर्भ में डॉ. उमा मंगल लिखती हैं—“ बच्चों के शब्द एवं सूक्ति भण्डार की वृद्धि करना, विराम चिह्नों का ज्ञान । शुद्ध उच्चारण के साथ लिखी हुई भाषा का सस्वर एवं मौन वाचन करना और वाचन करते हुए अर्थ ग्रहण करना, पठित सामग्री में सूक्तियों, मुहावरों एवं लोकोक्तियों का संग्रह करना, पठित सामग्री का केन्द्रीय भाव समझना, उचित हाव-भाव, आरोह-अवरोह एवं यति गति के अनुसार वाचन की योग्यता विकसित करना तथा पठित सामग्री पर चिंतन-मनन करने की योग्यता का विकास करना आदि। “
3. अभिव्यक्ति कौशल का विकास–मातृभाषा शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है विद्यार्थियों में अभिव्यक्ति कौशल को विकसित करना। यदि बच्चे अपने मनोगत भावों और विचारों को मातृभाषा के द्वारा प्रभावशाली ढंग से व्यक्त नहीं कर पाएँगे तो मातृभाषा का शिक्षण व्यर्थ कहा जाएगा। परन्तु यदि बच्चों में समुचित अभिव्यक्ति कौशल व्यक्त हो जाता हैं तो भाषा पर उनका धीरे-धीरे अधिकार होने लगता है। इस सन्दर्भ में डॉ. उमा मंगल पुनः लिखती हैं—“शुद्ध उच्चारण के साथ बोलने का अभ्यास, बोलते समय शब्दों, सूक्तियों, मुहावरों और लोकोक्तियों का शुद्ध प्रयोग, उचित गति, स्वर एवं प्रवाह के साथ बोलने तथा शिष्टाचार के नियमों का पालन करते हुए अवसर के अनुकूल भाषा का प्रयोग करना, मधुर वाणी का प्रयोग करना, प्रश्नों का ठीक-ठीक उत्तर देना, तर्कसंगत सार्थक बात कहने की योग्यता विकसित करना, क्रमबद्ध रूप से उचित प्रवाह के साथ पूर्ण बात करने योग्य बनाना आदि। “
4. लिखित रूप में अभिव्यक्ति योग्यता का विकास – मातृभाषा शिक्षण द्वारा छात्रों में लिखित रूप से अभिव्यक्ति योग्यता का विकास करना भी एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। भाषा का लिखित रूप मानव के भावों और विचारों को स्थायित्व प्रदान करना है और आने वाली पीढ़ी को सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान प्रदान करना है इसलिए लिखित अभिव्यक्ति कौशल का विशेष महत्त्व है। इस सन्दर्भ में डॉ. उमा मंगल लिखती हैं—“ बच्चों को लिपि का पूर्ण विराम ज्ञान देना, सुन्दर – सुडौल लेख का अभ्यास कराना, वर्ण विन्यास का ज्ञान कराना, चिह्नों एवं व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराना, विभिन्न लेखन शैलियों का ज्ञाना कराना, शब्दों, सूक्तियों, मुहावरों एवं लोकोक्तियों का उचित प्रयोग करना सिखाना, उचित गति एवं सावधानी से लिखने का अभ्यास कराना, पठित सामग्री का भाव पल्लवन करना, संक्षिप्तीकरण करना, क्रमपूर्वक विचारों को व्यक्त करना आदि।’
5. स्वयं रचना करने की प्रेरणा देना–मातृभाषा शिक्षण का अन्य उद्देश्य है – विद्यार्थियों को स्वयं रचना करने की प्रेरणा देना ताकि वे कविता अथवा निबन्ध आदि के द्वारा अपने मौलिक विचार व्यक्त कर सकें। शिक्षक मातृभाषा शिक्षण द्वारा ही बच्चों की प्रतिभा को विकसित होने का अवसर दे सकता है। अक्सर देखने में आया है कि जिन बच्चों को उचित प्रेरणा मिल जाती है वे आगे चलकर सफल कवि अथवा लेखक बन जाते हैं। अतः शिक्षक का कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने विद्यार्थियों को स्वयं निबन्ध तथा कहानी लिखने की प्रेरणा दे।
डॉ. उमा मंगल लिखती हैं—“मौलिक विचारों को उपर्युक्त भाषा-शैली में व्यक्त करना, बच्चों से पत्र, कविता, कहानी, संवाद आदि लिखवाना । मौलिक विचारों को प्रोत्साहन देना, विभिन्न लेखन प्रतियोगिता का आयोजन करना, विभिन्न लेखन शैलियों का ज्ञान देना एवं जीवनी, आत्मकथा, घटना एवं सार लेखन का अभ्यास कराना आदि । “
स्पष्ट है कि मातृभाषा शिक्षण द्वारा हम बच्चों की सृजनात्मक प्रतिभा को विकसित कर सकते हैं और उन्हें एक अच्छा लेखक या कवि बनने की प्रेरणा दे सकते हैं।
6. विद्यार्थियों में साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न करना- मातृभाषा शिक्षण द्वारा छात्रों में साहित्य के प्रति रुचि तथा आकर्षण उत्पन्न किया जा सकता है। उदाहरण के रूप में, मातृभाषा हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाएँ हैं। इनमें काव्य, नाटक, निबंध, एकांकी, उपन्यास, कहानी, आलोचना, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, जीवनी आदि का उल्लेख किया जाता है। भाषा शिक्षण में विद्यार्थियों को मातृभाषा की इन विधाओं की ओर आकर्षित करना नितान्त आवश्यक है। इस सन्दर्भ में डॉ. उमा मंगल स्पष्ट लिखती हैं— “उचित ताल, लय एवं आरोह के साथ काव्य पाठ करना, साहित्य की विभिन्न विधाओं का रसास्वाद करना; कविताएँ कंठस्थ करना; काव्यांशों व गद्यांशों को कण्ठस्थ कराना; व्याख्या कराना एवं मौखिक – लिखित अभिव्यक्ति के समय उद्धृत करना आदि ।” अतः स्पष्ट है कि मातृभाषा द्वारा छात्रों में साहित्य के प्रति उत्कृष्ट रुचि या आकर्षण पैदा करना प्रमुख उद्देश्य है।
7. शुद्ध लिपि और वर्तनी का ज्ञान प्रदान करना – मातृभाषा शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि बच्चों को शुद्ध लिपि और वर्तनी का ज्ञान करवाया जाए। इसके
Language Across the Curriculum
लिए जमकर अभ्यास करना चाहिए और साथ ही साथ श्रुतिलेख पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जब तक शुद्ध लेख लिखने का उच्चारण नहीं करवाया जाता तब तक बच्चों की लिखित भाषा पर पकड़ मजबूत नहीं होती।
8. मूल्यांकन करने की क्षमता प्रदान करना- मातृभाषा शिक्षण का एक अन्य उद्देश्य यह है कि शिक्षार्थियों को रचना करने की योग्यता प्रदान की जाए। ऐसा करने से बच्चे रचना विशेष के गुण-दोषों को जान सकेंगे और उसका सही विवेचन-विश्लेषण कर सकेंगे। बच्चों की रचना के भावपक्ष और कलापक्ष दोनों से अवगत कराया जाए ताकि रचना को पढ़कर वे स्वयं उसका मूल्यांकन करने में समर्थ हो सकें। इस सन्दर्भ में डॉ. उमा मंगल का कहना है—“पद्य, निबन्ध, कहानी, नाटक एवं उपन्यास आदि को पढ़कर उसकी भाषा-शैली का विश्लेषण करना, विभिन्न भाषा- गुणों (ओज, प्रसाद, माधुर्य), शब्द-शक्तियों (अभिधा, लक्षणा, व्यंजना) विभिन्न रीतियों (वैदर्भी, पांचाली, गौड़ी) रस, अलंकार एवं छन्द आदि को पहचानना एवं विश्लेषण करना; विभिन्न तत्त्वों एवं तथ्यों के आधार पर सामग्री का प्रामाणिकता व उपयुक्ता बताना, विभिन्न आलोचनात्मक शैलियों का प्रयोग एवं विभिन्न साहित्यिक रचनाओं का तर्क एवं न्यायसंगत मूल्यांकन करना आदि ।’ “
9. उपरोक्त उद्देश्यों के अतिरिक्त मातृभाषा शिक्षण के कुछ गौण उद्देश्य भी हैं –
(i) बच्चों में यह योग्यता विकसित करना कि वे निर्धारित पाठ्यक्रम की शब्दावली तथा उनके समकक्ष स्तर की शब्दावली को समझ सकें तथा उनका अर्थ ग्रहण कर सकें।
(ii) बच्चों को सस्वर वाचन तथा मौन वाचन में दक्ष बनाना ताकि वे पाठ्यक्रम का समुचित अध्ययन कर सकें।
(iii) बच्चों में यह योग्यता विकसित करना कि वे निर्धारित ज्ञान को ग्रहण कर सकें और उसे समझ सकें।
(iv) बच्चों में यह योग्यता विकसित करना कि वे पाठ्य विषयों के तथ्यों को याद कर लें अथवा सहज रूप से ग्रहण कर लें।
(v) बच्चों में यह योग्यता विकसित करना कि वे छोटे-छोटे वाक्यों का निर्माण कर सकें।
(vi) बच्चों में यह योग्यता विकसित करना कि वे उन प्रश्नों का उत्तर दे सकें जो उनके स्तर के हों जो उनसे पूछे जाएँ।
(vii) बच्चों की वाचन गति को विकसित करना मातृभाषा शिक्षण का एक अन्य उद्देश्य है। यह वाचन शुद्ध, प्रवाहपूर्ण तथा प्रभावोत्पादक होना चाहिए।
(viii) मातृभाषा शिक्षण का एक अन्य उद्देश्य है – बच्चों में पढ़ने की आदत डालना और उन्हें लेखन की कला में प्रवीण बनाना।
(ix) मातृभाषा शिक्षण देते समय कविता पाठ का वाचन बच्चों से सस्वर करवाना चाहिए। इससे उन्हें उचित लय तथा ताल का ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
(x) पढ़े हुए तथ्यों को बच्चे वार्तालाप अथवा नाटकीय ढंग से प्रस्तुत कर सकें, इस बात का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे भावाभिव्यक्ति में सक्षम हो सकेंगे।
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