पाठ्यक्रम से क्या तात्पर्य है ? पाठ्यक्रम की परिभाषा दीजिए।
उत्तर – ‘पाठ्यक्रम’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘करीक्यूलम’ (Curriculum) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। ‘करीक्यूलम’ शब्द लैटिन भाषा से अंग्रेजी में लिया गया है तथा यह लैटिन शब्द ‘कुर्रेर’ से बना है। ‘कुर्रेर’ का अर्थ है ‘दौड़ का मैदान’। दूसरे शब्दों में करीक्यूलम’ वह क्रम है जिसे व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है। अतः पाठ्यक्रम वह साधन है, जिसके द्वारा शिक्षा व जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति होती है। यह अध्ययन का निश्चित एवं तर्कपूर्ण क्रम है, जिसके माध्यम से शिक्षार्थी के व्यक्तित्व का विकास होता है तथा वह नवीन ज्ञान एवं अनुभव को ग्रहण करता है । शिक्षा के अर्थ के बारे में दो धारणाएँ हैं- पहला प्रचलित अथवा संकुचित अर्थ और दूसरा वास्तविक या व्यापक अर्थ । संकुचित अर्थ में शिक्षा केवल स्कूली शिक्षा या पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित होती है, तदनुसार संकुचित अर्थ में पाठ्यक्रम भी केवल विभिन्न विषयों के पुस्तकीय ज्ञान तक ही सीमित है, परन्तु विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के अन्तर्गत वह सभी अनुभव आ जाते हैं जिसे एक नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ियों से प्राप्त करती है। साथ ही विद्यालय में रहते हुए शिक्षक के संरक्षण में विद्यार्थी जो भी क्रियाएँ करता है, वह सभी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आती हैं तथा इसके अतिरिक्त विभिन्न पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाएँ भी पाठ्यक्रम का अंग होती हैं अत: वर्तमान समय में ‘पाठ्यक्रम’ से तात्पर्य उसके विस्तृत स्वरूप से ही है ।
पाठ्यक्रम के अर्थ को और अच्छी तरह समझने के लिए हमें शिक्षा के विकास पर भी एक दृष्टि डालनी आवश्यक है । आदिकाल में शिक्षा का स्वरूप पूर्णतया अनौपचारिक होता था अर्थात् शिक्षा किसी विधि एवं क्रम से बँधी हुई नहीं थी। उस समय बालाकों की शिक्षा उनके परिवार एवं समाज की जीवनचर्या के मध्य चलती रहती थी तथा बालक उसमें भागीदार बनकर प्रत्यक्ष अनुभव एवं निरीक्षण के माध्यम से तथा अपने बड़ों एवं पूर्वजों के अनुभव सुनकर शिक्षा प्राप्त करता था, किन्तु सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव के ज्ञान राशि के संचित कोष में निरन्तर वृद्धि होती गई तथा मनुष्य के जीवन में जटिलताएँ एवं विविध ताएँ आती गई । परिणामस्वरूप व्यक्ति के पास समय और साधन का अभाव होने लगा तथा उसकी शिक्षा अपूर्ण रहने लगी । अतः प्रत्येक विकासशील समाज ने अपने बालकों को समुचित शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से इसे विधिवत् एवं क्रमबद्ध बनाने के प्रयास प्रारम्भ किये । विद्यालायों का उद्भव तथा उनकी स्थापना इन्हीं प्रयासों का परिणाम है । इस प्रकार समाज जो उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण ज्ञान अपने बालकों को समुचित ढंग से नहीं दे पा रहा था उसने उसकी जिम्मेदारी अनुभवी विद्वानों को सौंप दी । इन विद्यालयों द्वारा बालकों को जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने तथा उन्हें समुचित ढंग से शिक्षा प्रदान करने हेतु जो ज्ञानराशि निश्चित एवं निर्धारित की गई तथा की जाती है उसे ही ‘पाठ्यक्रम’ का नाम दिया गया है । इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि पाठ्यक्रम अध्ययन का ही एक क्रम है, जिसके अनुसार चलकर विद्यार्थी अपना विकास करता है। अतः यदि शिक्षा की तुलना दौड़ से की तो पाठ्यक्रम उस दौड़ के मैदान के समान है जिसे पार करके दौड़ने वाले अपने निश्चित लक्ष्य तक पहुँच जाते हैं ।
पाठ्यक्रम की परिभाषां (Definition of curriculum) : विद्यालयों का प्रमुख कार्य बालकों को शिक्षा प्रदान करना होता है और इसको पूर्ण करने के लिए वहाँ पर जो कुछ किया जाता है उसे ‘पाठ्यक्रम’ का नाम दिया गया है। इसीलिए ‘पाठ्यक्रम’ को परिभाषित करते हुए एक विद्वान ने इसे व्हाट आफ एजूकेशन (What of Education) कहा है। प्रथम दृष्टि में यह परिभाषा बहुत अधिक सरल एवं स्पष्ट प्रतीत होती है, परन्तु इस ‘व्हाट’ की व्याख्या करना तथा कोई निश्चित उत्तर प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य है। इस सम्बन्ध में अमेरिका के ‘नेशनल एजूकेकशन एसोसिएशन’ ने अपनी टिप्पणी इस प्रकार की है –
“विद्यालयों का कार्य क्या है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर कई बार अनेक ढंग से दिया जा चुका है फिर भी बार-बार उठाया जाता है। कारण स्पष्ट है । यह एक ऐसा शाश्वत प्रश्न है जिसका अन्तिम रूप से कभी दिया भी नहीं जा सकता है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक समाज एवं प्रत्येक पीढ़ी की बदलती हुई प्रकृति एवं आवश्यकताओं के अनुसार बदलता रहता है। ”
इसी प्रकार शिक्षा के इतिहास से भी इस बात की पुष्टि होती है कि समय के साथ-साथ पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन होते रहे हैं तथा इसमें कभी व्यापकता और कभी संकीर्णता आती रही है, परन्तु शिक्षाविदों को जब इस बात का आभास मिला कि विद्यालयों में शिक्षित युवक सदैव अपने भावी जीवन में सफल नहीं हो पाते हैं तब यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जीवन की तैयारी के लिए पढ़ना-लिखाना ही सब कुछ नहीं है। मनोविज्ञान के विकास ने भी इस धारणा को बल प्रदान किया कि मात्र अध्ययन-अध्यापन पर ही पूरा रखना बालकों के विकास की दृष्टि से न केवल एकांगी है, बल्कि अन्य प्रवृत्तियों के समुचित विकास के अभाव में हानिप्रद भी हो सकता है | इस दृष्टिकोण का प्रभाव विद्यालयों के कार्यक्रमों पर पड़ा और उनमें व्यापकता आनी प्रारम्भ हुई। अतः विद्यालयों में पाठ्य-विषयों के साथ-साथ ऐसी प्रवृत्तियों का समावेश भी किया जाने लगया, जिनसे बालकों में बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ स्वास्थ्य, सौन्दर्यबोध, सृजनात्मकता तथा अन्य मानवीय एवं सामाजिक गुणों का समुचित विकास भी हो सके । इस प्रकार विभिन्न उतार-चढ़ाव के पश्चात् वर्तमान शताब्दी में पाठ्यक्रम की व्यापकता की दृष्टि से अनेक विद्वानों ने इसको अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने का प्रयास किया है।
बबिट महोदय के अनुसार, “उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और चौबीस घण्टे की जा रही समस्त क्रियाएँ पाठ्यक्र के अन्तर्गत आ जाती है।” एक अन्य विद्वान ले के अनुसार ‘पाठ्यक्रम का विस्तार वहाँ तक है, जहाँ तक जीवन का।”
परन्तु इन विचारों को पाठ्यक्रम की समुचित परिभाषा मानना तर्कसंगत नहीं लगता है, क्योंकि पाठ्यक्रम का सम्बन्ध शिक्षा के औपचारिक अभिकरण विद्यालय से है तथा विद्यालय ही पाठ्यक्रम की सीमा भी है। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम को विद्यालय के घेरे में ही परिभाषित करना उचित लगता है।
बाल्टर एस. मनरो के शब्दकोश के अनुसार, “पाठ्यक्रम को किसी विद्यार्थी द्वारा लिये जाने वाले विषयों के रूप में परिभाषित नहीं किया जाना चाहिये । पाठ्यक्रम की कार्यत्मक संकल्पना के अनुसार इसके अन्तर्गत वह सब अनुभव आ जाते हैं जो विद्यालयों में शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं। ”
इस संकल्पना के अनुसार पाठ्यक्रम विकास के अन्तर्गत प्रयुक्त किये जाने वाले अनुभवों के आयोजन में पाठ्यक्रम को व्यवस्थित करने उसे क्रियान्वित करने तथा उसका मूल्यांकन करने सम्बन्धी पक्ष सम्मिलित होते हैं।
ब्लांडस के शिक्षा कोश के अनुसार, “पाठ्यक्रम को क्रिया एवं अनुभव के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए न कि अर्जित किये जाने वाले ज्ञान और संकलित किये जाने वाले तथ्यों के रूप में विद्यालय जीवन के अन्तर्गत विविध प्रकार के कलात्मक शारीरिक एवं बौद्धिक अनुभव तथा प्रयोग सम्मिलित रहते हैं। ”
राबर्ट एम. डब्ल्यू ट्रेवर्स ने अपनी पुस्तक ‘इन्ट्रोडक्सन टु रिसर्स’ में पाठ्यक्रम की गत्यात्मकता पर बल देते हुए लिखा है, “एक शताब्दी पूर्व पाठ्यक्रम की संकल्पना उस पाठ्य – सामग्री का बोध कराती थी जो छात्रों के लिए निर्धारित की जाती थी, वर्तमान पाठ्यसमय में परन्तु पाठ्यक्रम की संकल्पना में परिवर्तन आ गया है। यद्यपि प्राचीन संकल्पना अभी भी पूर्णरूपेण लुप्त नहीं हुई है, लेकिन अब माना जाने लगा है कि पाठ्यक्रम की संकल्पना के छात्रों की ज्ञान वृद्धि के लिए नियोजित सभी स्थितियाँ, घटनाएँ तथा उन्हें उचित रूप में क्रमबद्ध करने वाले सैद्धन्तिक आधार समाहित रहते हैं। ”
सी. वी. गुड द्वारा सम्पादित शिक्षा कोष में पाठ्यक्रम की तीन परिभाषाएँ दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं-
- “ अध्ययन के किसी प्रमुख क्षेत्र में उपाधि प्राप्त करने के लिए निर्धारित किये गये क्रमबद्ध विषयों अथवा व्यवस्थित विषय-समूह को पाठ्यक्रम के नाम से अभिहित किया जाता है । “
- “किसी परीक्षा को उर्तीण करने अथवा किसी व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए किसी शिक्षालय द्वारा छात्रों के लिए प्रस्तुत विषय-सामग्री की समर्ग योजना को पाठ्यक्रम कहते हैं । “
- “व्यक्ति को समाज में समायोजित करने के उद्देश्य से विद्यालय के निर्देशन में निर्धारित शैक्षिक अनुभवों का समूह पाठ्यक्रम कहलाता है । “
कनिंघम के अनुसार, “पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में एक साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श ( उद्देश्य) के अनुसार अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में ढाल सके । ”
“The curriculum is a tool in the hands of the artist (teacher) to mould his material (the pupil) according to his ideals (objectives) in his studio (the school).” —Cunningham
डीवी के अनुसार, “ सीखने का विषय या पाठ्क्रम; पदार्थों, विचारों और सिद्धान्तों का चित्रण है जो निरन्तर उद्देश्यपूर्ण से साधन या बाधा के रूप में आ जाते हैं । ”
“Subject matter of learning or curriculum is identical with all the objects, ideas and principles which enter as ovsources or obstacles into the continuous intentional persent of a course of action,” – Dewey
सैमुअल के अनुसार, “पाठ्यक्रम में शिक्षार्थी के वे समस्त अनुभव समाहित होते हैं जिन्हें वह कक्षा-कक्ष में, प्रयोगशाला में, पुस्तकालय में, खेल के मैदान में, विद्यालय में सम्पन्न होने वाली अन्य पाठ्येतर क्रियाओं द्वारा तथा अपने अध्यापकों एवं साथियों के साथ विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त करता है । ”
होर्नी के शब्दों में, “पाठ्यक्रम वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता है । यह सीखने । . की क्रियाओं तथा शान्तिपूर्वक “ अध्ययन करने से कहीं अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास तथा क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं । इस प्रकार यह शिक्षार्थी के स्नायुमण्डल में होने वाले गतिवादी एवं संवेदनात्मक तत्वों को व्यक्त करता है। समाज के क्षेत्र में यह ‘उस सबकी अभिव्यक्ति करता है जो कुछ जाति ने संसार के सम्पर्क में आने से किये हैं।
” माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार, “पाठ्यक्रम का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो विद्यालयों में परम्परागत रूप से पढ़ाये जाते हैं, बल्कि इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी सम्मिलित होती है, जिनकों विद्यार्थी विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, खेल के मैदान तथा शिक्षक एवं छात्रों के अनेक अनौपचारिक सम्पर्कों से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है । ”
बेन्ट और क्रोनेनबर्ग के अनुसार, “पाठ्यक्रम पाठ्य-वस्तु का सुव्यवस्थित रूप है जो बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तैयार किया जाता है। ”
फ्रोबेल के मतानुसार, “पाठ्यक्रम सम्पूर्ण मानव जाति के ज्ञान एवं अनुभव का प्रतिरूप होना चाहिए । ”
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