पैमलो के अभिप्रेरण सिद्धान्त की विवेचना करें ।

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प्रश्न – पैमलो के अभिप्रेरण सिद्धान्त की विवेचना करें ।
(Discuss the Maslow’s theory of motivation.)

उत्तर – गोल्डस्टीन महोदय ने अपनी ‘Organismic Theory of Motivation’ में कहा है कि अगर देखा जाए तो वास्तव में केवल एक ही प्रमुख मानवीय प्रेरक होता है जिसे हम ‘आत्म-अनुभूति’ प्रेरक कहते हैं। बाकी सभी प्रेरक जैसे— भूख, प्यास, शक्ति, सम्मान, ज्ञान इच्छा तथा दूसरे प्राथमिक तथा सामाजिक प्रेरक इसी ‘आत्म-अनुभूति प्रेरक’ को प्राप्त करने के माध्यम हैं ।

लेकिन मैसलो ने अपने इस अभिप्रेरणा सिद्धान्त में आवश्यकताओं के वर्गीकरण तथा क्रम की व्याख्या की है। उनका विचार है कि अभिप्रेरणा में आवश्यकताओं की अनुभूति तथा सन्तुष्टि निहित होती है । वे मानते हैं कि मानवीय प्रेरक एक क्रम में व्यवस्थित होते हैं तथा ये संख्या में पाँच होते हैं। जिस समय विशेष में जो प्रेरक सबसे अधिक उत्तेजना रखता है वह पूमरे व्यवहार पर छा जाता है । इस प्रेरक के शान्त होने पर दूसरी श्रेणी का प्रेरक जागृत होता है और फिर वह हमारे पूरे व्यवहार पर छा जाता है । इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है। सबसे अन्त में पाँचवा प्रेरक प्रभावी होता है !

मैसलो ने जो पाँच प्रेरक बताए हैं, वे इस प्रकार हैं—

(1) मनोदैहिक प्रेरक (Physiological Motives)
(2) सुरक्षा प्रेरक (Safety Motives)
(3) प्रेम एवं लगाव प्रेरक (Love and Affection Motive)
(4) आत्म-सम्मान प्रेरक (Self-esteem Motive)
(5) आत्म-अनुभूति (स्वीकृति) प्रेरक (Self-Actualization Motive)

मैसलो ने उपरोक्त प्रेरकों को उनके महत्त्व के क्रम में निम्न त्रिभुजाकार आकृति के माध्यम से स्पष्ट किया है—

  1. मनोदैहिक या शारीरिक प्रेरक (Physiological Needs) — वे प्रेरक जो व्यक्ति में बुनियादी आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न होते हैं, मनोदैहिक प्रेरक कहलाते हैं, जैसे—भूख, प्यास, नींद, सेक्स, मलमूत्र त्याग आदि । इनकी पूर्ति के अभाव में व्यक्ति का शारीरिक संतुलन विगड़ जाता है तथा उसके अस्तित्व को खतरा उत्पन्न हो जाता है। व्यक्ति भूखा होने पर कहीं से भी खाना प्राप्त करने का प्रयास करेगा। जब तक इन प्राथमिक आवश्यकताओं की संतुष्टि नहीं होती तब तक उच्च स्तर की आवश्यकताओं को निम्न • स्तर का ही समझा जाता है इसीलिए इनकी संतुष्टि होना आवश्यक होता है तभी उच्च स्तर की आवश्यकताएँ उत्पन्न होती हैं । अतः इन मूलभूत प्रेरकों की सन्तुष्टि अत्यन्त आवश्यक है ।
  2. सुरक्षा प्रेरक ( Safety Needs) — अपनी मनोदैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद व्यक्ति अपने जीवन की सुरक्षा के प्रति प्रेरित हो उठता है तथा ऐसे सभी सम्भव उपाय करता है जिससे उसके जीवन को कोई खतरा न हो । अतः, यह प्रेरक व्यक्ति को किसी सम्भावित संकट से जूझने के लिए पूरी तरह तैयार रखने में सहायक होता है। युवकों की अपेक्षा बालकों में इस आवश्यकता को अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । इसके उदाहरण हैं— जीवित रहना, सुरक्षित रहना तथा आदेश देना आदि। ये आवश्यकताएँ सभी जीवों में पायी जाती हैं ।
  3. प्रेम एवं स्नेह प्रेरक (Need of Belongingness ) – जब व्यक्ति अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर लेता है तो वह समाज में प्रेम, स्नेह, सहानुभूति की अपेक्षा करता है । वह इसी भावना तहत अपने निकट सम्बन्धियों, पड़ोसियों, मित्रों तथा दूसरे लोगों से मधुर सम्बन्ध कायम करता है । वह चाहता है कि वह दूसरे लोगों को स्नेह दे तथा वे भी उसे स्नेह दें । वह ‘Live and let live’ के सिद्धान्त में विश्वास रखता है। अर्थात्, या तो व्यक्ति किसी का हो जाय अथवा किसी को अपना बना ले । यही जीवन का सत्य है।
  4. आत्म-सम्मान प्रेरक (Esteem Needs) – समाज में मधुर सम्बन्धों के साथ-साथ व्यक्ति अपने अहं तथा आत्म सम्मान को भी बचाए रखने का प्रयास करता है। इसके लिए, वह हर सम्भव प्रयास करता है, क्योंकि आत्मसम्मान की रक्षा में ही उसके जीवन की सार्थकता है। अपमान की जिन्दगी वह एक क्षण भी बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह एक उच्च स्तरीय आवश्यकता है। इसके लिए व्यक्ति शक्ति ग्रहण करना चाहता है, स्वामित्व चाहता है, नेतृत्व करना चाहता है तथा स्वतन्त्र रहना चाहता है। इस प्रकार की आवश्यकता की संतुष्टि न होने पर व्यक्ति में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है।
  5. आत्म-अनुभूति प्रेरक (Need of Self-Actualization) — अन्त में व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा होती है कि वह समाज के हित में कुछ योगदान कर सके ताकि लोग उसे में मरने के बाद भी जाने । यह योगदान आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक तथा आध्यात्मिक किसी भी रूप में हो सकता है। वह समाज का पथ-प्रदर्शक बनना चाहता है जिससे समाज का हित हो । मैसलो के अनुसार, आत्म-अनुभूति की आवश्यकता का अर्थ है कि — “एक संगीतज्ञ को संगीत प्रस्तुत करना चाहिए, कलाकार को चित्रकारी करनी चाहिए तथा कवि को कविता लिखनी चाहिए यदि वह आत्म संतुष्टि चाहता है। अर्थात, एक व्यक्ति को वही होना चाहिए जो वह हो सकता है । “

मैसेलो ने प्रथम तीन प्रकार की आवश्यकताओं को निम्न स्तर तथा अन्तिम दो को उच्च स्तर ही आवश्यकतायें माना है।

संक्षेप में, ये सभी प्रेरक एक दूसरे से एक कड़ी के रूप में जुड़े हैं तथा व्यक्ति को निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रखते हैं ।

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