प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर छात्रों की विशेषताओं एवं पाठ्यक्रम पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – प्राथमिक स्तर में प्रवेश करते समय बच्चे का शारीरिक विकास अपेक्षाकृत धीमा होता है। वे पतले और लंबे होने लगते हैं और उनकी शारीरिक माँसपेशियाँ मजबूत होने लगती हैं और वे नए-नए कौशल सीखने लगते हैं, जिनके कारण वे अपने साथियों के साथ प्रभावी प्रतियोगिता करने लगते हैं। इस अवधि के दौरान कम वजन वाले तथा कुपोषित बच्चों का शारीरिक, सामाजिक और संज्ञानात्मक विकास बाधित होने लगता है। इसी प्रकार मोटे, भारी वजन वाले बच्चों में भी बचपन से ही भारीपन के कारण समस्याएँ उत्पन्न होने लगती हैं। यह बच्चे की आर्थिक-सांस्कृतिक व्यवस्था और उसके विकास पर निर्भर है, जो बच्चे में विभिन्न कौशलों की संप्राप्ति पर बल देती है, जिसके कारण बच्चा एक बेहतर सामंजस्य की स्थिति में सामने आता है। बच्चे की विचारधारा तर्कशक्ति के मौलिक नियमों से नियंत्रित होती है। यहाँ बच्चे के निकटस्थ विकास जेड. पी. डी. (Zone Proximal Development—ZPD) के क्षेत्र की अवधारणा का महत्त्व उद्घाटित होता है। जेड. पी. डी. का अभिप्राय बच्चे के वास्तविक विकास के स्तर तथा विकास के अनुकूलतम स्तर के बीच के अंतराल का सूचक है। बच्चा जो स्वतंत्र रूप से सीख सकता है तथा यदि उसे सहायता अथवा मार्गदर्शन दिया जाए तो उसका किस स्तर तक विकास होगा यह इन दोनों के बीच का अंतर है । यदि उसके वास्तविक विकास के स्तर की बजाय उसकी व्यक्तिगत क्षमता पर ध्यान केन्द्रित किया जाए तो बच्चे की संज्ञानात्मक क्षमता में अभिवृद्धि होती है । जेड.पी. डी. की संकल्पना में कहा गया है कि सामाजिक प्रभाव का बच्चे की मानसिक योग्यता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है तथा मार्गदर्शन प्रदान करने से उसका विकास सृदृढ़ होता है । आत्मकेन्द्रित वाक् से (जो बच्चे के व्यवहार पर आत्मनियंत्रण करती है तथा जो सामान्यतः मौखिक होती है), बच्चे की आंतरिक वाक्शक्ति का विकास होता है। इसमें पने आपसे बात करना शामिल है। इस अवधि के दौरान बच्चा कुछ कहने से पहले इसका अभ्यास करता है कि वह क्या कहने जा रहा है। अपने हम उम्र साथियों के साथ मिलकर बच्चा प्रतिदिन के झगड़ों से निपटता और काल्पनिक खेलों के द्वारा भय से निपटना सीखता जाता है । वे आतुरता और हिंसा का मुकाबला करने के लिए काल्पनिक खेलों में भी लग जाते हैं | दूसरे बच्चों के साथ मिल-जुलकर उनमें आपसी सहयोग तथा आदान-प्रदान की भावना भी उत्पन्न होती है ।
उच्च प्राथमिक स्तर की विशेषताएँ तथा पाठ्यक्रम – उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चों में बहुत से शारीरिक परिवर्तन होते हैं क्योंकि यह समय उनके बचपन और जवानी के बीच की जैवकीय संक्रमण की अविध होती है । मानसिक स्तर पर, बच्चा किसी विशिष्ट समस्या से छुटकारा पाने के लिए सभी काल्पनिक परिस्थितियों के सम्बन्ध में तार्किक रूप से सोचने का प्रयास करने लगता है । बच्चा काल्पनिक समस्याओं तथा निरपेक्ष विचारों (एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दो अलग-अलग मार्गों से पहुँचने की मानसिक विचारधारा) का सामना करने की योग्यता धीरे-धीरे प्राप्त करने लगता है। बच्चे अपनी-अपनी पहचान बनाने में जुट जाते हैं । पहचान बनाने की प्रक्रिया में बच्चा अपने विचारों के साथ-साथ दूसरों के विचारों तथा सामाजिक दृष्टिकोण को समझने लगता है। आपसी सहयोग की भावना का धीरे-धीरे महत्त्व बढ़ने लगता है । इस दौरान बच्चे अपने अभिरुचि में बार-बार उतार-चढ़ाव तथा विचारों के विरोधाभास का अनुभव करने लगते हैं ।
माध्यमिक स्तर की विशेषताएँ तथा पाठ्यक्रम – माध्यमिक स्तर पर, उच्च प्राथमिक स्तर के दौरान स्पष्ट की गई विकास की विशेषताएँ बच्चे में सुदृढ़ हो जाती हैं। उनमें अमूर्त संकल्पनाओं पर विचार करने, सामाजिक पहचान बनाने तथा अपने साथ समूहों के महत्त्व को जानने की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है।
बच्चों में सामाजिक मेल-मिलाप को प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है। प्रभावशाली अधिगम और बौद्धिक विकास लिए यह आवश्यक है कि शिक्षार्थी अपने मित्रों से सहयोग करें, उनके साथ अपने अनुभवों और खोज को बाँटे तथा वैचारिक विरोधाभास पर बहस करें ।
बच्चें के लिए इस तरह का पाठ्यक्रम तैयार की जानी चाहिए कि इससे शिक्षार्थी के संपूर्ण संज्ञानात्मक ढाँच में निरंतर विकास को प्रोत्साहन मिले। इसके लिए कार्यों की विविध ता, सामग्री और प्रत्येक शिक्षार्थी के लिए उपयुक्त संज्ञानात्मक संरचना के सापेक्ष समस्याओं से निपटने का प्रावधान करने की आवश्यकता होती है। शिक्षार्थी के समक्ष ऐसी वस्तुएँ और विचार प्रस्तुत करने चाहिए जिनसे उनकी कार्य साधन और अनुभव करने की क्षमता विकसित हो तथा जो उसे सार्थक संवेदनशील अनुभव और वास्तविक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करें । उन्हें सृजन, प्रस्तुतीकरण, ध्वनि, गन्ध तथा गतिशीलता की संवेदनशीलता को जाग्रत करने के लिए प्रोत्साहित करें । तन्मयता तथा विकास के स्तर से संगत वस्तुओं तथा घटनाओं के सम्बन्ध पर औपचारिक रूप से विशेष बल दिए जाने की आवश्यकता है ।
बौद्धिकता के अतिरिक्त विशिष्टताएँ तथा पाठ्यचर्या – बौद्धिकता के अतिरिक्त अन्य विशिष्टताएँ भी पाठ्यचर्या तैयार करने के लिए महत्त्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान कर सकती हैं, जिनमें छात्र राष्ट्रीय लक्ष्यों और सामाजिक, सांस्कृतिक प्राथमिकताओं के संदर्भ में अपना विकास कर सकता है तथा शिक्षार्थी के संपूर्ण व्यक्तित्व के पूर्ण विकास को गतिशीलता प्रदान की जा सके । उसके बचपन, बाल्यकाल, युवावस्था के दौरान हुए विकास के आधार पर उसकी शारीरिक, सामाजिक तथा भावनात्मक विशेषताओं और उसके दृष्टिकोण तथा अभिरुचि पर सावधानीपूर्वक ध्यान देना चाहिए, जब शिक्षार्थी के लिए पाठ्यचर्या का उद्देश्य निर्धारित करने तथा उसकी पाठ्यचर्या की विषय-वस्तु तथा कार्यनीतियाँ निर्धारित की जा रही हों और उसे पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तरों पर पढ़ाया जा रहा हो ।
छात्र के विश्वास के विकास, आदतें तथा दृष्टिकोण जो बच्चों के शारीरिक विकास, भावनात्मक परिपक्वता तथा समुचित सामाजिक अभिविन्यास से सम्बन्धित हैं, वह बच्चे की पूर्व प्राथमिक तथा प्राथमिक शिक्षा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा निर्माणकारी समय है जो बच्चे के विद्यालय में प्रवेश के बाद प्रारंभ होता है । इस तथ्य को पाठ्यचर्या निर्धारकों तथा इस पर कार्य करने वाले व्यक्तियों को गंभीरतापूर्वक समझना होगा ताकि शिक्षार्थी को समुचित अधिगम अनुभव प्रदान किए जा सकें ।
पूर्व-प्राथमिक, उच्च प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा का संपूर्ण समय छात्र की शारीरिक संवृद्धि तथा संबद्ध आवश्यकताओं, प्रवृत्ति तथा प्रेरणा व प्रोत्साहन के साथ-साथ चलता है । पूर्व-प्राथमिक तथा प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते समय बच्चा यद्यपि शारीरिक रूप से नाजुक होता है, किन्तु उसे अपने विद्यालय में तथा बाहर समुचित शारीरिक क्रियाकलापों को जारी रखने की आवश्यकता पड़ती है जिनसे इस दौरान उसके मनोशारीरिक समन्वय का विकास करने, उसे शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने तथा उसकी भावी शारीरिक सृदृढ़ता को सुनिश्चित करने और उसकी कार्यक्षमता का विकास करने में सहायता प्रदान की जा सके इस अवधि के दौरान यह सबसे महत्त्वपूर्ण है कि बच्चे को समुचित ज्ञान प्रदान किया जाए, उसकी आदतों तथा दृष्टिकोण का विकास इस प्रकार से किया जाए कि वह अपनी साफ-सफाई रखे और चिकित्सा विशेषज्ञों से उसे नियमित मार्गदर्शन मिलता रहे ।
उच्च प्राथमिक स्तर के अंत तक आते-आते अथवा माध्यमिक स्तर के दौरान उसे तरुणावस्था के साथ शारीरिक विशिष्टताओं पर भी व्यापक रूप से विचार करने की भी विशेष आवश्यकता है। छात्रों में हो रहे शारीरिक परिवर्तनों तथा उससे सम्बन्धित विचारों तथा रुचि के साथ-साथ सुसंगत शिक्षा, सूचना व मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता पहले से ही महसूस कर ली जानी चाहिए ।
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