प्रारम्भिक कक्षाओं की हिन्दी की पाठ्यचर्या का महत्त्व बताइए।
प्रश्न – प्रारम्भिक कक्षाओं की हिन्दी की पाठ्यचर्या का महत्त्व बताइए।
उत्तर – पाठ्यचर्या का महत्त्व
शिक्षा प्रक्रिया के तीनों अंगों में से पाठ्यचर्या एक प्रमुख अंग है। पाठ्यचर्या शिक्षक और शिक्षार्थी को जोड़ने वाली कड़ी है। पाठ्यचर्या ही वह साधन है जो शिक्षक को दिशा-निर्देश देता है। पाठ्यचर्या के महत्त्व को हम निम्नलिखित रूप में देख सकते हैं-
- बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक शिक्षा के अन्तर्गत बालंक के सर्वांगीण विकास में पाठ्यचर्या की अपनी महत्ता होती है। बालक के बौद्धिक, शारीरिक, संवेगात्मक आदि के विकास में पाठ्यचर्या एक प्रेरणा प्रदान करती है।
- सभ्यता और संस्कृति के विकास में सहायक – पाठ्यचर्या के माध्यम से ही बालक को अपनी सभ्यता और संस्कृति के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है। किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत होता है। अतः आने वाली पीढ़ियों में सभ्यता में और संस्कृति के हस्तान्तरण का प्रमुख साधन पाठ्यचर्या ही हो सकता है।
- नैतिक चरित्र के विकास में सहायक – बालकों के नैतिक गुणों को विकसित करने के लिए पाठ्यचर्या एक उपयुक्त साधन है। नैतिक चरित्र के साथ-साथ बालकों में मित्रता, त्याग, सहयोग, सहानुभूति आदि गुणों के विकास में भी पाठ्यचर्या का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।
- सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियों में सहायक – प्रत्येक बालक में कुछ-न-कुछ सृजनात्मक एवं रचनात्मक शक्ति होती है। इन शक्तियों का उचित दिशा में किस प्रकार विकास किया जा सकता है ? इसमें पाठ्यचर्या एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है।
- विभिन्न परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में सहायक – बालक जक से अपनी शिक्षा शुरू करता है, तो उसे विभिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, शिक्षा समाप्त करने के बाद भी अनेक प्रकार की समस्याएँ, परिस्थितियाँ उसके जीवन में आती हैं। इन परिस्थितियों से सामना करने एवं सामंजस्य स्थापित करने में पाठ्यचर्या शुरू से ही बालक की सहायता करती है ।
- जनतन्त्रीय भावना के विकास में सहायक -आज विश्व के अनेक देशों में जनतन्त्रीय शासन व्यवस्था है। जनतन्त्रीय शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक होता है कि वहाँ के नागरिकों में भी जनतन्त्रीय गुण हो । इन गुणों का विकास करने के लिए पाठ्यचर्या ही एक उचित साधन है।
- भविष्य निर्माण में सहायक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक के भविष्य का निर्माण करना है। पाठ्यचर्या ही वह साधन है जो बालक के भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। पाठ्यचर्या साध्य तक पहुँचाने का साधन है।
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