मंद बुद्धि बालक से क्या तात्पर्य है ? मंद बुद्धि बालकों हेतु शिक्षा व कक्षा-कक्ष शिक्षण पर प्रकाश डालें ।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – मंद बुद्धि बालक से क्या तात्पर्य है ? मंद बुद्धि बालकों हेतु शिक्षा व कक्षा-कक्ष शिक्षण पर प्रकाश डालें ।
(What do you mean by Mental Retarted Child? Throw light on the education and class-room teaching for mentally retarted children.)
उत्तर – मन्द-बुद्धि बालक मूढ होता है । इसलिए उसमें सोचने, समझने और विचार करने की शक्ति होती है । इस सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं –
  1. क्रो एवं क्रो के अनुसार जिन बालकों की बुद्ध-लब्धि 70 से कम होती है, उनको मन्द-बुद्धि बालक कहते हैं ।
  2. स्किनर के अनुसार प्रत्येक कक्षा के छात्रों को एक वर्ष में शिक्षा का एक निश्चित कार्यक्रम पूरा करना पड़ता है। जो छात्र उसे पूरा कर लेते हैं, उनको ‘सामान्य छात्र’ कहा जाता है । जो छात्र उसे पूरा नहीं कर पाते हैं, उनको मन्द – बुद्धि छात्र की संज्ञा दी जाती है । विद्यालय में यह धारणा बहुत लम्बे समय से चली आ रही है और अब भी है ।
  3. आधुनिक समय में मन्द-बुद्धि बालकों से सम्बन्धित उपर्युक्त धारणा में अत्यधिक परिवर्तन हो गया है। इस पर प्रकाश डालते हुए पोलक व पोलक ने लिखा है”मन्द-बुद्धि बालक को अब क्षीण – बुद्धि बालकों के समूह में नहीं रखा जाता है, जिनके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है । अब हम यह स्वीकार करते हैं कि उनके व्यक्तित्व के उतने ही विभिन्न पहलू होते हैं, जितने सामान्य बालकों के व्यक्तित्व के होते हैं । “

मन्द-बुद्धि बालक की विशेषताएँ (Characteristics of Mentally Retarded Child) — विभिन्न लेखकों ने मन्द-बुद्धि बालक की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख किया है । हम उनमें से मुख्य मुख्य का वर्णन कर रहे हैं, यथा—

(अ) क्रो एवं क्रो के अनुसार
1. दूसरों को मित्र बनाने की अधिक इच्छा
2. दूसरों के द्वारा मित्र बनाए जाने की कम इच्छा ।
3. विद्यालय में असफलताओं के कारण निराशा ।
4. संवेगात्मक और सामाजिक असमायोजन |
(ब) स्किनर के अनुसार
5. सीखी हुई बात को नई परिस्थिति में प्रयोग करने में कठिनाई ।
6. व्यक्तियों और घटनाओं के प्रति ठोस और विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ ।
7. मान्यताओं के सम्बन्ध में अटल विश्वास ।

मन्दितमना बालकों हेतु शिक्षा व कक्षा-कक्ष शिक्षण (Education and Classroom Teaching For Mentally Retarded Children) — मन्दितमना बालकों को शिक्षा देते समय अनेक समस्याएँ आती हैं परन्तु यदि हमें मन्दितमना बालकों के शिक्षण को प्रभावकारी एवं सफल बनाना है तो निम्न तत्त्वों पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है —

  1. कक्षा का आकार ( Size of Class) – मन्दितमना बालक बहुत धीमी गति से सीखते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षक उन बालकों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दें । अतः, मन्दितमना बालकों की कक्षा में बालकों की संख्या जहाँ तक हो सके सीमित रखनी चाहिए । एक कक्षा में दस से बीस बालक से अधिक नहीं होने चाहिए ।
  2. आधुनिक उपकरण (Modern Equipment) — मन्दितमना बालकों की कक्षाएँ हवादारी एवं सुसज्जित होनी चाहिए । चूँकि ये बालक अमूर्त सम्प्रत्ययों को समझने में असमर्थ होते हैं, अत: उनके लिए आधुनिक शिक्षण सहायक सामग्रियों की व्यवस्था करनी चाहिए । शैक्षिक फिल्म, श्रवण सहायता यंत्र, वाद्य यंत्र, टी.वी. आदि की व्यवस्था करना आवश्यक है ।
  3. विशिष्ट पाठ्यक्रम ( Special Curriculum) — मन्दितमना बालकों के लिए विशेष रूप से साधारण, सरल, रुचिकर और भावोत्तेजक पाठ्यक्रमों का निर्माण आवश्यक है । इसकी सुविधा मन्दितमना बालकों को देनी चाहिए व इस पाठ्यक्रम को बहुत सावधानी के साथ पदानुक्रमित करना चाहिए । इसमें व्यावहारिक एवं व्यावसायिक कार्यों को अधिक स्थान मिलना चाहिए ।
  4. शिक्षणा विधियाँ (Methods of Teaching) — मन्दितमना बालकों के लिए जो शिक्षण विधियाँ प्रयुक्त की जाएँ वह सरल, रुचिकर एवं व्यक्ति उन्मुख होनी चाहिए । इन शिक्षण विधियों में निम्न विशेषताएँ होनी चाहिए—
    1. शिक्षण विधियाँ ऐसी होनी चाहिए जिसमें बार-बार अभ्यास व दुहराने की प्रक्रिया हो ।
    2. शिक्षण विधियाँ सरल और अधिक व्यवहारिक होनी चाहिए तथा उन्हें लम्बी सैद्धान्तिक चर्चाओं से बचाना चाहिए ।
    3. समाज विज्ञान, साहित्य और इतिहास पढ़ाते समय रुचिकर घटनाओं और चरित्रों पर विशेष ध्यान देना चाहिए और सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक विवेचन से बचना चाहिए ।
    4. भूगोल, नागरिकशास्त्र की शिक्षा के समय बालकों का ध्यान अपने गली, मोहल्लों, तहसील, शहर, प्रान्त और देश की मूर्त स्थितियों पर करना चाहिए । विदेशों का भूगोल और संस्कृति के विषय में पढ़ाकर समय नष्ट करना व्यर्थ है ।
  5. पूर्वाग्रह से बचना (Avoidance of Prejudice) — मन्दितमना बालकों के प्रशिक्षकों के लिए आवश्यक है कि वह मन्दितमना बालकों के विषय में जो पूर्वाग्रह जैसे—पागल, मूर्ख, बीमार आदि होते हैं, उनसे मुक्त रहें। इसके साथ यह बात भी याद रखनी चाहिए कि दूसरे बालक भी उन्हें न चिढ़ाएँ । शिक्षक को यह सोचना चाहिए कि ये ऐसे बालक हैं जिन्हें सामान्य बालकों की अपेक्षा हमारी अधिक सहानुभूति, सहायता और मार्ग-दर्शन की आवश्यकता है।
  6. शिक्षक गण ( Teaching Staff) — मन्दितमना बालकों की शिक्षा की दिशा के लिए ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता होती है जिन्हें इस कार्य के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया हो । उन शिक्षकों में सामान्य योग्यताओं के अतिरिक्त उनमें सहानुभूति, सेवा और कार्य के प्रति दृढ़ आस्था का होना अति आवश्यक है। मनोविज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान विशेष कर विशिष्ट बालकों के मनोविज्ञान का ज्ञान उन्हें होना चाहिए । इस तरह के विशेष शिक्षकों के लिए विशिष्ट प्रकार के प्रशिक्षण के लिए आवश्यक धन और व्यवस्था की कठिनाइयों को शीघ्रातिशीघ्र दूर करना चाहिए ।

आज के युग में यह सब लोग जानते हैं कि विश्व के प्रत्येक देश में मन्दितमना बालकों की संख्या काफी बढ़ी है। यदि हम इन बालकों को समुचित शिक्षण व प्रशिक्षण दें तो ये अपने आपको प्रसन्न एवं सुरक्षित अनुभव करेंगे और तब उनसे यह आशा की जा सकती है कि ये व्यक्ति भी एक अच्छे और स्वावलम्बी नागरिक के रूप में विकसित हो सकते हैं, और यह समाज के लिए बोझ नहीं बने रहेंगे। इसके विपरीत यदि इनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया तो वे कुण्ठित और अपराधी व्यक्ति के रूप में विकसित होंगे । अतः, इसके लिए समाज व देश का यह कर्त्तव्य है कि इन लोगों के लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था कराए ।

मानसिक मन्दिता बालक के शारीरिक, शैक्षिक, सामाजिक, व्यावसायिक एवं सांवेगिक आदि सभी क्षेत्रों में विकास को किसी न किसी स्थति एक निश्चित रूप से प्रभावित करती है । मन्दता की पहचान एवं निदान के पश्चात् बालक को उसकी मन्दता के स्तर व प्रकृति के अनुरूप शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से विशेष शिक्षा की व्यवस्था निम्नांकित रूपों में की जा सकती है।

  1. आवासीय विद्यालय (Residential Schools) — दुःसाध्य रूप से मन्दितमना बालकों को घर अथवा सामान्य विद्यालयों में शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान करना पूर्णतया असंभव होता है । अतः, इन्हें सुसज्जित अस्पताल – विद्यालय में ही रखा जाना चाहिए जहाँ पर इनकी देखभाल करने के लिए योग्य परिचायिकाएँ तथा चिकित्सक नियुक्त होते हैं, क्योंकि ये बालक अपने स्वयं के दैनिक कार्यों को भी नहीं कर पाते हैं, इन्हें सम्पूर्ण जीवन ऐसी संस्थाओं में भी व्यतीत करना होता है ।
    कुछ विद्वान परीक्षण एवं शिक्षा ग्रहण करने योग्य (Trainable an deducable) मन्दितमना बालकों के लिए भी पृथक् विद्यालयों की व्यवस्था को उचित मानते हैं । इस प्रकार की व्यवस्था बालकों के समायोजन की दृष्टि से तो उत्तम होती है, किन्तु अन्य क्षेत्रों में बालकों के विकास एवं प्रगति को अवरुद्ध करती है। बालक का सामान्य बालकों से सम्पर्क टूट जाता है और जो अनेक क्रियाएँ वह अनुकरण से सीख सकता है, नहीं सीख पाता । अतः आवासीय विद्यालयों की व्यवस्था अत्यधिक मन्दता वाले बालकों के लिए ही उचित रहती है ।
  2. विशेष विद्यालय ( Special Schools) — विशेष विद्यालयों की व्यवस्था अत्यधिक मन्दता वाले तथा प्रशिक्षण मन्दितमना बालकों के लिए आवासीय विद्यालय व्यवस्था में अधिक व्यावहारिक एवं उपयोगी मानी जाती है। इसमें बालक एक निश्चित अवधि के लिए ही विद्यालय जाता है, शेष समय वह अपने परिवारीजनों तथा साथियों के सम्पर्क में ही व्यतीत करता है । इस प्रकार वह विशेष शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी प्रगति करता है। इन विद्यालयों में मन्दितमना बालकों की आवश्यकता, योग्यता स्तर तथा आयु के अनुरूप पृथक् प्रकार का कक्षा विभाजन होता है । बालकों की विद्यालयीय-आयु में छूट रखी जाती है । इसके अतिरिक्त विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों, परिचायिकाओं एवं समाज सेवियों की सेवाएँ इन विद्यालयों को उपलब्ध रहती हैं ।
  3. विशेष कक्षा ( Special Classes ) – सामान्य विद्यालयों में न्यून मन्दितमना बालकों के लिए पृथक् रूप से विशेष शिक्षा की व्यवस्था, विशेष कक्षाओं के रूप में की जा सकती है। ऐसे विद्यालयों में जहाँ मन्दितमना बालकों की संख्या अधिक नहीं होती है बालक केवल कुछ समयावधि के लिए विशेष कक्षा में अपनी योग्यता के अनुरूप शिक्षण एवं प्रशिक्षण पाते हैं। शेष समय वे औसत बालकों के साथ ही सामान्य कक्षाओं में रहते हैं । यह व्यवस्था अनुशासन की दृष्टि से दोषपूर्ण रहती है ।
    मन्दितमना बालकों की संख्याअधिक होने पर सामान्य विद्यालयों में ही उनके लिए पूर्णरूप से पृथक् समजातीय कक्षा की व्यवस्था सर्वोत्तम शिक्षा व्यवस्था मानी जाती है । इसमें समान वर्ष आयु एवं मानसिक आयु वर्ग के बालक एक ही कक्षा में पूरी अवधि के लिए रहते हैं । इस प्रकार शिक्षक के द्वारा समान कार्यक्रम निर्धारित करना एवं समान गति से समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षण सामग्री व पाठ्यक्रम को व्यवस्थित करना सरल हो जाता है तथा बालक की उसकी योग्यता के अनुरूप विकास उत्तम गति से होता है ।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *