मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के उपाय या उद्देश्य का वर्णन कीजिए |

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के उपाय या उद्देश्य का वर्णन कीजिए |
(Describe the measures or aims of mental hygine.) 
उत्तर- मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के उपाय या उद्देश्य
(Measures or Aims of Mental Hygience)
1. रोकथाम सम्बन्धी उपाय (Preventive Measures)
(क) रोकथाम के जैविक उपाय (Biological Preventive Measures) — इस रोकथाम के अन्तर्गत आवश्यक है कि व्यक्ति के शारीरिक रोगों की समय-समय पर परीक्षा की जाये, साथ ही साथ मानसिक रोगों की समय-समय पर डाक्टरी परीक्षा आवश्यक है। इस प्रकार की डाक्टरी परीक्षाओं से समय-समय पर उत्पन्न होने वाले शारीरिक, मानसिक और स्नायुविक रोगों का, चाहे वह साधारण हैं अथवा गम्भीर, उनका पता लग जाने से उनका तुरन्त उपचार सम्भव है। इस दिशा में रोकथाम करते समय यह जानना भी आवश्यक है कि व्यक्ति का वंशानुक्रम क्या है और वंशानुक्रम के प्रभावों, जो उनकै व्यवहार और व्यक्तित्व में विकार उत्पन्न कर रहे हैं, की रोकथाम भी आवश्यक है।
(ख) रोकथाम के मनोवैज्ञानिक उपाय (psychological Preventive Measures)—मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिये यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति के जीवन मूल्यों, अभिवृत्तियों, समायोजन के तरीकों, संवेगात्मक अभिव्यक्ति के तरीकों का व्यक्ति को पर्याप्त ज्ञान हो और इनका उसमें पर्याप्त मात्रा में विकास हो । इसके साथ-साथ उसकी अनेक मानसिक योग्यताओं और शारीरिक क्षमताओं आदि का विकास भी सामान्य रूप से चले। इन तमाम चीजों के सामान्य विकास की अवस्था में बहुत कुछ सम्भावना है कि व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। मनोवैज्ञानिक उपायों में कुछ प्रमुख उपाय निम्न प्रकार से हैं-
  1. बालक का लालन-पालन – व्यक्ति का लालन-पालन सहानुभूति और प्रेममय वातावरण में होना चाहिए, साथ ही साथ बालक को उपयुक्त एवं उपयुक्त सामाजिक -पिता को विभिन्न प्रकार के भोजन वातावरण में रखना चाहिए। लालन-पालन में उसके माता-1 देने के तरीकों एवं स्वच्छता और शिक्षा आदि का भी सही ढंग से ख्याल रखना चाहिए।
  2. किशोरावस्था की पूर्व शिक्षा – मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह भी आवश्यक है कि पूबर्टी अवस्था के प्रारम्भ होते ही उसके संरक्षकों को चाहिए कि वह इस अवस्था की उसकी आवश्यकताओं को समझें और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुविधाएँ उपलब्ध करायें। यह पहले बताया जा चुका है कि इस अवस्था में किशोरों में अनेक ऐसे शारीरिक परिवर्तन होते हैं जिनका सम्बन्ध उसके मानसिक जीवन और व्यवहार से है अतः इस अवस्था में किसी भी प्रकार के विकारों के उत्पन्न होते ही उनकी रोकथाम और उनका निराकरण सरलता से किया जा सकता है।
  3. संवेगात्मक अभिव्यक्ति – बाल्यावस्था से ही इस बात का प्रशिक्षण आवश्यक कि विभिन्न समयों पर वह उपयुक्त ढंग से संवेगों की अभिव्यक्ति करना सीखे। क्रोध, भय, प्रेम और शोक आदि संवेगों का नियन्त्रण किस प्रकार से करें, उनकी अभिव्यक्ति किस प्रकार से करें आदि बातों का ज्ञान बालक को उसकी आयु के व्यक्तित्व में वैयक्तिकता का अभिप्राय व्यक्तित्व में अन्तर से व्यक्तित्व की मात्रा के अन्तर से नहीं है। व्यक्तित्व के मान में अन्तर का अर्थ व्यक्तित्व केन्द्र में अंन्तर और साथ-साथ व्यक्तिशील गुणों में अन्तर के बढ़ने के साथ-साथ करना आवश्यक है जिसे उसमें इन सबका विकास उपयुक्त और पर्याप्त रूप से हो सके।
  4. मानव जीवन का सन्तुलन – कुछ मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक सन्तुलन कारक को अधिक महत्त्व दिया है। मानसिक सन्तुलन एक व्यक्ति तभी ठीक से बना सकता है जब वह अपने चारों ओर के वातावरण के समस्याओं से समझौता करे अथवा समायोजन करे। मानसिक स्वास्थ्य के लिए मानव जीवन में संतुलन आवश्यक ह । सन्तुलित व्यवहार के आधार पर एक व्यक्ति अपने चारों ओर के वातावरण में प्रभावपूर्ण समायोजन कर सकता है। मानव में उपयुक्त सन्तुलन के लिए आवश्यक है कि उसे बाल्यावस्था से ही इस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाये कि वह सन्तुलन को तथा सन्तुलन बनाये रखने के उपायों को आयु बढ़ने के साथ-साथ सीखता जाये ।
  5. आत्म-सम्मान की तृप्ति (Gratification of Self respect) – मानव जीवन में सन्तुलन बनाये रखने के लिए और मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति के आत्म-सम्मान की तृप्ति समय-समय पर होती रहे। बालक को इस प्रकार की शिक्षा देनी भी आवश्यक है कि आत्म-सम्मान को जब आघात पहुँचे तब वह अपने आपको किस प्रकार बचाये। इसके लिए मानसिक मनोरचनाओं का ज्ञान आवश्यक है।
  6. समायोजन – व्यक्ति को घर, स्कूल, मित्र-मण्डली, पड़ोस, परिचितों, आदि के साथ समायोजन करना होता है। इसके साथ-साथ वह अपने व्यवसाय, अपनी पत्नी और अपने बच्चों आदि के साथ समायोजन करता है। जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में वह किस प्रकार प्रभावपूर्ण समायोजन करे कि उसका जीवन सुख और शान्तिपूर्ण ढंग से व्यतीत होता रहे, इसकी शिक्षा भी व्यक्ति को देना और कुसमायोजन जैसी परिस्थितियों से बचना और निबटना भी उसके लिए सीखना आवश्यक है। आजकल के भ्रष्टाचारी, गरीबी और बेरोजगारी के वातावरण में समायोजन करना और प्रसन्नतापूर्वक जीवन व्यतीत करना यद्यपि कठिन है फिर भी मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के ज्ञान के आधार पर ऐसी परिस्थितियों का सामना करना सरल हो जाता है।
(ग) रोकथाम के सामाजिक उपाय (Social Preventive Measures)—मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत समस्या ही नहीं है, बल्कि एक गम्भीर सामाजिक समस्या भी है। अतः मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए अथवा मानसिक विकारों और स्नायुविक विकरों की रोकथाम के व्यक्तिगत उपायों के साथ-साथ सामाजिक उपाय भी किए जाने आवश्यक है।
1. उपचारात्मक उपाय ( Curative Measures)
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान में विभिन्न मानसिक और स्नायुविक रोगों की रोकथाम के उपाय और प्रविधियों का वर्णन ही नहीं है, बल्कि इनके उपचारात्मक पक्ष का भी वर्णन मिलता है। विभिन्न मानसिक रोगों के उपचार की क्या और किस प्रकार से व्यवस्था की जाये तथा इन रोगों को किस प्रकार से दूर किया जाये इन सबका वर्णन इससे किया गया है। अपने देश में मानसिक अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या बहुत कम है। इस दिशा में अधिक सुविधाओं की आवश्यकता है, क्योंकि मानसिक और स्नायुविक रोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
2. संरक्षणात्मक उपाय (Preservative Measures)
मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान में इस बात पर बल दिया गया है कि मानसिक स्वास्थ्य का किस प्रकार से संरक्षण किया जाये या मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार बनाये रखा जाये । मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान में उन विभिन्न उपायों और विधियों का वर्णन है जिनकी सहायता से एक व्यक्ति अपने मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य और प्रभावपूर्ण बनाये रख सकता है।
बालकों के मानसिक स्वास्थ्य में उन्नति के उपाय 
(Measures to Improve Mental Health in Children)
  1. बालकों को अच्छे वातावरण (Good Environment) में रखना चाहिए।
  2. बालकों से स्नेह और सहानुभूति (Love & Sympathy) पूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
  3. बालकों का शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health) ठीक रखना चाहिए ।
  4. बालकों के चरित्र (Character) निर्माण की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  5. बालकों को अच्छी नागरिकता (Good Citizenship) की शिक्षा देनी चाहिए।
  6. बालकों को धार्मिक और नैतिक (Religious & Moral) शिक्षा देनी चाहिए।
  7. उपयुक्त समय पर उनको सेक्स की शिक्षा देनी चाहिए।
  8. विद्यालय की उनकी शिक्षा उनकी रुचि और क्षमता (Interest & Capacity) के अनुसार होनी चाहिए।
  9. उन्हें स्वस्थ मनोरंजन ( Healthy Recreation) के साधन उपलब्ध होने चाहिए ।
  10. संरक्षक और बालक तथा बालक और अध्यापक के मध्य सम्बन्ध होने चाहिए।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *