राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तथा नई शिक्षा नीति, 1986-1992 पर प्रकाश डालें ।

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प्रश्न – राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तथा नई शिक्षा नीति, 1986-1992 पर प्रकाश डालें ।
(Throw light on the national curriculum and new education policy, 1986-1992.)

उत्तर – राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण – एक ऐतिहासिक कदम (Formation of National Policy of Education— An Historical Step) — इसमें कोई संदेह नहीं है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण एक ऐतिहासिक कदम था क्योंकि देश के प्रथम बार व्यापक परिचर्चा के पश्चात् तथा विभिन्न सामाजिक वर्गों के परामर्श से शिक्षा नीति की रचना हुई तथा संसद से स्वीकृति मिली । देश की भावी शिक्षा किन आधारों पर होगी, इस सम्बन्ध में दिशा निर्देश दिए गए । इसी में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की परिकल्पना की गई ।

राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यक्रम (Curriculum in National system of Edeucation)—राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाग 8 ‘शिक्षा की विषय-वस्तु और प्रक्रिया को एक नया मोड़ क्षेत्र’ (Education process and Examination Reform) में पाठ्यचर्चा निर्माण के लिए नीति-निदेशक तत्त्व दिए गए हैं ।

नई शिक्षा नीति में पाठ्यक्रम सम्बन्धी निम्नलिखित दिशा-निर्देशों अथवा सिद्धान्तों को ध्यान में रखा गया है—

  1. पाठ्यक्रम संविधान में दर्शाए गए मूल्यों पर आधारित हो ।
  2. पाठ्यक्रम समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता तथा प्रजातन्त्र को बढ़ावा देने वाला हो ।
  3. पाठ्यक्रम देश की सांस्कृतिक परंपराओं तथा आधुनिक तकनीक की खाई को पाटने वाला हो ।
  4. पाठ्यक्रम में मूल्यों की शिक्षा का प्रावधान हो ।
  5. 1968 की भाषा नीति को अपनाया जाए ।
  6. पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा की व्यवस्था हो ।
  7. पाठ्यक्रम में कार्य-अनुभव, गणित-शिक्षण एवं विज्ञान शिक्षण को दृढ़ किया जाए ।
  8. पाठ्यक्रम में संकीर्ण विचारों की कोई भी बात नहीं होनी चाहिए ।
  9. खेल और शारीरिक शिक्षा को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया जाए ।
  10. पाठ्यक्रम में व्यावसायिक विषयों पर विशेष बल दिया जाए ।
  11. एक ओर पाठ्यक्रम (Core Curriculum) हो जो सभी छात्रों के लिए अनिवार्य हो ।

नई शिक्षा नीति में पाठ्यक्रम की विशेषताएँ अथवा मुख्य तत्त्व (Characteristics of curriculum or main elements in NPE) — राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में पाठ्यक्रम के निम्नलिखित तत्त्व दिए गए हैं-

  1. तकनीकी तथा सांस्कृतिक खाई को पाटना (Bridging the Gulf between Technology and Cultural Traditions ) – औपचारिक शिक्षा पद्धति और देश की समृद्ध तथा विविधतापूर्ण सांस्कृतिक परम्पराओं के बीच विद्यमान खाई को पाटना होगा । आधुनिक तकनीकी के नशे में नई पीढ़ी की जड़ें भारत के इतिहास और संस्कृति से कट नहीं जानी चाहिए । हर कीमत पर संस्कृति विहीनता, मानव गुण-विहीनता और अलगाव से बचना होगा । शिक्षा को परिवर्तन उन्मुख प्रौद्योगिकियों और देश की सांस्कृतिक परंपराओं के सांतत्य (Continuity) के बीच संश्लेषण (Synthesis) का कार्य करना होगा और शिक्षा इसे बखूबी कर सकती है ।
    शिक्षा की पाठ्यचर्या तथा प्रक्रियाओं को विविध प्रकार से सांस्कृतिक विषय-वस्तु के जरिए समृद्ध बनाया जाएगा। बच्चों में सौन्दर्य समन्वय और परिमार्जन की भावना विकसित की जाएगी । समाज के साधन सम्पन्न व्यक्तियों को, उनकी औपचारिक शैक्षिक योग्यता पर ध्यान दिए बिना, शिक्षा की सांस्कृतिक समृद्धि में योगदान देने के लिए आमंत्रित किया जाएगा जिसमें अभिव्यक्ति की साहित्यिक और मौखिक परम्पराएँ शामिल होंगी। सांस्कृतिक परंपराओं को कायम रखने तथा उन्हें आगे ले जाने के लिए परंपरागत तरीकों से पढ़ाने वाले शिक्षकों की भूमिका को सुदृढ़ किया जाएगा तथा इस कार्य को मान्यता दी जाएगी।
  2. मूल्य शिक्षा का विकास (Promotion of Values)— सारभूत मूल्यों के गिरते हुए स्तर के प्रति बढ़ती हुई चिन्ता और समाज में बढ़ती हुई कटुता से यह जरूरी हो गया है कि पाठ्यचर्या में पुनर्समायोजन लाया जाए ताकि शिक्षा को सामाजिक, नीतिपरक और मूल्य पैदा करने के लिए एक सशक्त साधन बनाया जा सके ।
  3. सार्वभौमिक भावना का निर्माण (Inculcation of Eternal Values)—हमारे सांस्कृतिक और विराट समाज में शिक्षा के जरिए विकसित किए जाने वाले मूल्यों में सार्वभौमिक भावना होनी चाहिए और इनसे हमारे लोगों में एकता और एकीकरण की भावना विकसित होनी चाहिए। इस प्रकार की मूल्य शिक्षा रूढ़िवाद, धार्मिक कट्टरता, हिंसा, अंधविश्वास और भाग्यवाद को समाप्त करेगी ।
    इस निर्णायक भूमिका के अतिरिक्त, मूल्य शिक्षा की एक गहन और ठोस विषय-व -वस्तु हमारी विरासत, राष्ट्रीय और सार्वभौमिक उद्देश्य और विचारों पर आधारित हो । इसमें इस पहलू पर मुख्य रूप से जोर दिया जाना चाहिए ।
  4. भाषाएँ (Language)–1968 की शिक्षा नीति में भाषाओं के विकास पर विस्तृत रूप से विचार किया गया था। इसके अनिवार्य उपबन्धों पर अब विचार करने की जरूरत नहीं है और ये आज भी पहले की तरह आवश्यक हैं, तथापि 1968 की नीति के इस भाग का कार्यान्वयन अनियमित रहा है। इस नीति को और अधिक तेजी और सार्थकता से कार्यान्वित किया जाएगा ।
  5. मीडिया तथा शैक्षिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग (Use of Media and Educational Technology)—शैक्षिक प्रौद्योगिकी को औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही क्षेत्रों में लाभदायक सूचना और शिक्षकों के प्रशिक्षण तथा पुनः प्रशिक्षण के प्रसार के लिए लाया जाएगा ताकि गुणवत्ता को सुधारा जा सके, कला और संस्कृति की जागरूकता को प्रखर किया जा सके और अपनाए जाने योग्य मूल्य पैदा किए जा सकें। उपलब्ध व्यवस्थापन का अधिक से अधिक लाभ उठाया जाएगा । जिन गाँवों में विद्युत नहीं पहुँची है वहाँ बैटरी अथवा सौर-ऊर्जा व्यवस्था से कार्यक्रम चलाए जाएँगे ।
    सांस्कृतिक रूप से संगत शैक्षिक कार्यक्रमों का निर्माण शैक्षिक प्रौद्योगिकी का एक महत्त्वपूर्ण भाग होगा और देश में उपलब्ध सभी संसाधनों का इस कार्य के लिए उपयोग किया जाएगा ।
    माध्यम का बच्चों तथा प्रौढ़ों के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कहीं-कहीं तो इसने हिंसा आदि को बढ़ावा दिया है और इस प्रकार इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है । उत्कृष्ट शैक्षिक उद्देश्यों को निरुत्साहित करने वाले रेडियो और दूरदर्शन कार्यक्रमों को रोका जाएगा । फिल्मों और अन्य माध्यमों में भी इस प्रकार की प्रवृत्तियों को रोकने के लिए कदम उठाए जाएँगे । बच्चों हेतु अच्छी फिल्मों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक सक्रिय अभियान चलाया जाएगा ।
  6. कार्य – अनुभव (Work-Experience) — कार्य अनुभव, जो सार्थक शारीरिक श्रम पर आधारित हो और अध्ययन प्रक्रिया का एक अभि- अंग हो और समाज के लिए लाभदायक सामग्री अथवा सेवाओं का विकास करने वाला शिक्षा के सभी स्तरों पर एक अनिवार्य भाग समझा जाता है और यह सुगठित तथा अच्छे कार्यक्रमों द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा ।
  7. शिक्षा और पर्यावरण (Education and Environment)– पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने की बहुत जरूरत है। इसमें बच्चे से लेकर सभी आयु वर्गों तथा समाज के सभी क्षेत्रों के लोग शामिल होने चाहिए । इसे पूरी शैक्षिक प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा ।
  8. गणित शिक्षण (Teaching of Mathematics ) – गणित को एक ऐसा साधन समझा जाना चाहिए जो बच्चों को सोचने-समझने के लिए, विश्लेषण करने के लिए और तर्कसंगत विचार करने के लिए प्रशिक्षित कर सके । एक विशिष्ट विषय होने के अतिरिक्त यह किसी भी ऐसे विषय के प्रति संबद्ध होना चाहिए जिसमें विश्लेषण तथा तर्कबुद्धि की जरूरत हो ।
  9. कम्प्यूटर शिक्षा (Computer Literacy) — स्कूलों में कम्प्यूटर आरम्भ करने के साथ-साथ शैक्षिक संगणना और कारण तथा प्रभाव के सम्बन्धों को समझ के जरिए अध्ययन का आर्विभाव और प्रवर्तनों के पारस्परिक प्रभाव से गणित को उपयुक्त रूप से पुनर्गठित किया जाएगा । इसे आधुनिक प्रौद्योगिकी की योजनाओं के साथ जोड़ने के लिए सही ढंग से पुनः तैयार किया जाएगा ।
  10. विज्ञान शिक्षा ( Science Dducation) — विज्ञान शिक्षा को सुदृढ़ किया जाएगा ताकि बच्चों में जिज्ञासा की भावना, सृजनात्मकता, उद्देश्यपरकता, प्रश्न पूछने का साहस और सौन्दर्य-भाव जैसी योग्यताएँ और मूल्य विकसित किए जा सकें।
    विज्ञान शिक्षा कार्यक्रमों को इस तरह तैयार किया जाएगा ताकि छात्र समस्या का समाधान खोजने और निर्णय लेने की कुशलता प्राप्त कर सकें और स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग तथा दैनिक जीवन की अन्य बातों के साथ विज्ञान का सम्बन्ध खोज सकें। विज्ञान शिक्षा को औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र से बाहर के लोगों तक पहुँचाने का भरसक प्रयत्न किया जाएगा ।
  11. खेल और शारीरिक शिक्षा ( Sports and Physical Education) — खेल और शारीरिक शिक्षा अध्ययन प्रक्रिया का एक अभिन्न भाग है और इसे कार्य के मूल्यांकन में शामिल किया जाएगा । शारीरिक शिक्षा खेलों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की अवस्थापना (Infrastructure) शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में तैयारी की जाएगी ।
  12. पाठ्यक्रम का व्यवसायीकरण (Vocationalisation of Curriculum)– प्रस्तावित पाठ्यक्रम में सुनियोजित (Planned) और व्यापक रूप में व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत करना महत्त्वपूर्ण है ।

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