राष्ट्रीय समाकलन तथा आवश्यक समाकलन में अध्यापक की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर – भले ही हमारे आर्थिक उद्देश्य बहुत उच्च हों, भले ही हमारा पाठ्यक्रम बहुत सोच-विचार के पश्चात् प्रगतिशील बनाया गया हो, भले ही पाठ्य पुस्तकों की विषय-सामग्री राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक एकता के विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो, परन्तु यदि अध्यापक राष्ट्रीय समाकलन के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण तथा उत्साह नहीं दिखाता तो बाकी सब व्यर्थ प्रतीत होता है ।
राष्ट्रीय समाकलन सम्बन्धी जानकारी तथा इस सन्दर्भ में उचित मूल्य निर्माण करने का उत्तरदायित्व केवल सामाजिक विषय पढ़ाने वाले अध्यापक का ही नहीं है, अपितु सभी अध्यापक इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। अनेक प्रकार की शैक्षिक क्रियाएँ हैं जिनमें वे भाग ले सकते हैं ।
सभी अध्यापक दो प्रकार से राष्ट्रीय समाकलन के मूल्यों के विकास में योगदान दे सकते हैं—
नोट—अध्यापक की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका पर पहले प्रकाश डाला गया है। वे सभी तथ्य इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण हैं ।
राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन में अध्यापक निम्नलिखित प्रकार से योगदान दे सकते हैं—
- राष्ट्रीय भावात्मक समाकलन के प्रति विश्वास और उत्साह (Faith and Enthusiam in National Integration)-अध्यापकों में राष्ट्रीय भावना और सहयोग के प्रति विश्वास और उत्साह होना चाहिए, ताकि वे छात्रों तथा अभिभावकों के मन में यह भावना उत्पन्न कर सकें ।
- राष्ट्रीय भावना के सन्दर्भ में पाठ्यक्रम का अर्थ अथवा अभिप्राय समझना (Explanation of Curriculum in the Context of National Integration)विभिन्न विषय पढ़ाते समय अध्यापकों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जाति, धर्म, रंग और दूरी लोगों के आपसी सम्बन्धों में बाधक न बनें। अतः हमें एक-दूसरे के भावों का आदर करना चाहिए ।
- अध्यापक एक सजीव आदर्श के रूप में (Teacher as a Living Model)— अध्यापकों को अपने विचारों तथा व्यवहार से छात्रों के सम्मुख राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन के सजीव आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए ।
- पक्षपातरहित व्यवहार (Fair Treatment) — छात्रों के हृदयों को पक्षपात से दूषित नहीं करना चाहिए । अध्यापकों को तथ्यों की व्याख्या पक्षपातरहित रूप से करनी चाहिए ।
- सामाजिक ज्ञान पढ़ाते समय अध्यापकों के कर्त्तव्य (Role of Social Studies Teacher) — अध्यापकों को चाहिए कि वे छात्रों को मिथ्या प्रचार से सचेत करें जिससे उनमें पक्षपात जैसी भावना जन्म न ले सके । उन्हें तर्क द्वारा निर्णय करने का भी प्रशिक्षण देना चाहिए ।
- बच्चों के मानसिक स्तर को उठाना (Raising the Mental Standard of Children)—वास्तव में द्वेष की भावना दिमाग में उपजती है । द्वेष है, जिसे मनोविज्ञान में एक रोग कहा गया है। इसलिए सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के लिए आवश्यक है कि अध्यापक छात्रों की ओर अधिक ध्यान दें और स्कूल के पाठ्यक्रम द्वारा उनके मानसिक विकास को स्वस्थ बनाएँ ।
- दूसरे राज्यों का भ्रमण (Inter State Visits) — दूसरे राज्यों के भ्रमण और अध्ययन के लिए अध्यापकों को अवकाश, आर्थिक और अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ और अध्यापकों के आदान-प्रदान की भी व्यवस्था की जाए ।
- पाठ्यक्रम (Curriculum) – सभी स्तरों पर राष्ट्रीय पक्षों पर विशेष बल दिया जाना चाहिए जिससे छात्रों को देश के भौगोलिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का पर्याप्त ज्ञान हो, सामाजिक ज्ञान में विश्व तथा देश की महान् विभूतियों एवं महान् ग्रन्थों का वर्णित होना चाहिए ।
- पाठान्तर क्रियाएँ (Co-curricular Activities) — राष्ट्रीय दिवसों एवं पर्वों को सामूहिक मानना, खेलकूद, शिक्षा यात्रा, राष्ट्रीय कैडेट कोर जैसी सैनिक शिक्षा, स्काउटिंग, विभिन्न भागों के विद्यार्थियों के सम्मिलित कैम्प आदि पाठान्तर क्रियाओं का आयोजन किया जाना चाहिए । (पूर्व में दिए गए कार्यक्रमों का आयोजन करना)
- राष्ट्रीय गान एवं राष्ट्रीय ध्वज का आदर (Respect for National Anthem and Flag) — विद्यार्थियों में राष्ट्रगीत ठीक से गाने तथा इसके गायन के समय उचित सम्मान की आदत डालनी चाहिए । इसी प्रकार राष्ट्रध्वज का सम्मान करना सिखाना चाहिए तथा उसके विकास का इतिहास बताना चाहिए ।
- प्रात:सभा (Morning Assembly) – प्रातः सभा में बच्चों को देश की एकता पर भाषण दिए जाएँ। बच्चे वर्ष में कम-से-कम दो बार यह शपथ लें ।
- शिविरों का आयोजन करना (Organisation of Camps) — समय-समय पर विद्यालय में कक्षा अध्यापक तथा अन्य अध्यापक मिलकर वर्ष में दो-तीन बार इस प्रकार से शिविरों का आयोजन करें कि विभिन्न वर्गों के छात्र इन शिविरों में भाग लें, ऐसा करने से उनमें आपसी मेल-मिलाप की भावनाओं का विकास होगा। वे एक साथ रहने की कला (Art of Living Together) में प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे ।
स्कूल से बाहर अध्यापकों का कार्य (Role of Teachers Outside the School)– समाज के अन्य बुद्धिमान और शिक्षित व्यक्ति की भाँति अध्यापक स्कूल से बाहर भी कार्य कर सकते हैं। अध्यापक अन्य लोगों की अपेक्षा बालकों और वयस्कों को मानसिक रूप से तैयार कर सकते हैं, जिससे वे सामाजिक जीवन के उत्सुक बन सकें । समुदाय के उत्सवों में सक्रिय भाग लें । प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम में रुचि तथा उत्साह दिखाएँ ।
संक्षेप में राष्ट्रीय समाकलन के विकास तथा पोषण में अध्यापक के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं –
- ‘एकता में शक्ति है’ इस प्रकार का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए दृष्टान्त देना ।
- देशभक्ति के गीतों पर बल देना ।
- सभी धर्मों अथवा वर्गों के त्योहार मानना तथा इनमें भाग लेने के लिए छात्रों को प्रेरित करना ।
- छात्रों को राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीयगान तथा राष्ट्रीय चिन्हों के प्रति आदर करना सिखाना ।
- सभी बच्चों के साथ एक जैसा बर्ताव करना अर्थात् ऊँच-नीच, अमीर-गरीब की दृष्टि से न देखना ।
- समुदाय की सेवा के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करना ।
- आरम्भ से ही छात्रों के मन में इस प्रकार की भावनाएँ भरना कि हम भारतीय पहले हैं, बाद में पंजाबी, गुजराती, बंगाली अथवा हिन्दू, मुस्लिम आदि ।
- स्वयं के आचरण द्वारा आदर्श प्रस्तुत करना ।
प्रजातान्त्रिक अन्त:क्रिया प्रत्यय दो शब्दों से बना हैं अर्थात् प्रजातान्त्रिक तथा अन्त:क्रिया । अतः संक्षेप में हमें इनका अर्थ जान लेना चाहिए, जिससे प्रजातान्त्रिक अन्तःक्रिया के अर्थ तथा महत्त्व का ज्ञान हो सके।
प्रजातान्त्रिक का अर्थ उस पद्धति से है जिसमें सभी सदस्य समान माने जाते हैं और सहयोग के आधार पर कार्य होता है। एक-दूसरे के कल्याण में रुचि होती है। एक-दूसरे की भावनाओं का आदर होता है। जाति-पाँति तथा ऊँच-नीच की भावना सदस्यों में नहीं होती है । प्रत्येक सदस्य की गरिमा की पहचान होती है । विचारों की भिन्नता को सामूहिक लाभ पर प्राथमिकता नहीं दी जाती है, यद्यपि सभी को अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता रहती है। प्रजातान्त्रिक एक दृष्टिकोण है। प्रजातान्त्रिक को केवल राजनीति से ही नहीं जोड़ा जाना चाहिए। यह तो एक प्रकार से ‘इकट्ठे मिल-जुल रहने की कला है।’
अन्तःक्रिया का अर्थ उस प्रभाव से है जो दो या दो से अधिक व्यक्ति अर्थपूर्ण सम्बन्ध से बँध जाते हैं, जिनके परिणामस्वरूप उनका स्वभाव संशोधित हो जाता है |
अतः प्रजातान्त्रिक अन्तः क्रिया में विद्यालय से कई वर्गों का परस्पर सम्बन्ध रहता है । अतः अध्यापक का दूसरे अध्यापक अथवा अध्यापकों से अन्तः क्रिया अध्यापक तथा अध्यापकों की प्रधानाचार्य से, अध्यापक की छात्रों से, कर्मचारियों आदि की अन्तःक्रियाएँ । समाज में सभी वर्गों का परस्पर मेल-मिलाप भावात्मक एकता को बढ़ावा देता है ।
प्रजातान्त्रिक अन्तःक्रिया द्वारा राष्ट्रीय समाकलन के सुसाध्यीकरण हेतु संवैधानिक प्रावधान – ऊपर के सन्दर्भ में संविधान में नीचे दिए प्रावधान दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं—
धारा 14- विधि के समक्ष समानता (Equality Before Law) |
धारा 15 – धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिबन्ध (Prohibition of Discrimination on the Ground of Religion, Race, Caste, Sex of Place of Birth) |
धारा 16— लोक नियुक्तियों में अवसर की समानता (Equality of Opportunity in Matters of Public Appointments)
धारा 17 – अस्पृश्यता का अन्त (Abolition of Untouchability)।
धारा 19—वाक स्वतन्त्रता आदि के बारे में कुछ अधिकारों का संरक्षण (Protection of Certain Rights Relating to Speech etc.)
धारा 20 – प्राण तथा दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण (Protection of Life and Personal Liberty)।
धारा 21–प्राथमिक शिक्षा का अधिकार (Right to Elementary Education)।
धारा 26 से 28 – धर्म सम्बन्धी स्वतन्त्र अधिकार (Right Relation to Freedom of Religion) ।
धारा 29 से 30- अल्पसंख्यकों को संरक्षण (Protection of Minorities)। इसी प्रकार राज्य की नीति के निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) में बहुत प्रावधान हैं जो राष्ट्रीय समाकलन के लक्ष्य में प्रजातान्त्रिक अन्त:क्रिया द्वारा सहायता देते हैं |
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