राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन से क्या तात्पर्य है ? इसकी आवश्यकताएँ तथा महत्त्व की विवेचना करें ।
उत्तर – राष्ट्रीय समाकलन, राष्ट्रीय एकता तथा भावात्मक शब्दावली का प्रयोग प्रायः समान अर्थ में लिया जाता है। कुछ विद्वान इनमें कुछ अन्तर भी देखते हैं। राष्ट्रीय समाकलन को राज्यों की एकता के सन्दर्भ में देखा जाता है। राष्ट्रीय अखण्डता शब्दावली का भी प्रयोग किया जाता है। भारत में 28 राज्य तथा 7 केन्द्र शासित प्रदेश है। भारत को एक राष्ट्र के रूप में देखा जाता है । जब देश स्वतन्त्र हुआ तो उस समय लगभग 600 छोटी-छोटी रियासतें थीं। रियासतों के अपने संविधान थे। वे अपने अलग-अलग नियम बनाते थे। देश में एक समान कानून नहीं थे। सरदार पटेल उस समय जो भारत के गृहमन्त्री तथा उपप्रधानमन्त्री थे, उन्होंने इन रियासतों के अलग अस्तित्व को समाप्त करके उन्हें राष्ट्र का अभिन्न अंग बनाया ।
भावात्मक समाकलन भारत के प्रति भारतवासियों की भावनाओं से सम्बन्ध है अर्थात् देश के प्रति देश प्रेम की भावनाएँ एक प्रकार से राष्ट्रीय समाकलन के उद्देश्य है तथा भावात्मक समाकलन उसकी प्रस्थिति का साधन, इसे क्रियात्मक रूप में देखा जा सकता है। राष्ट्रीय समाकलन, भावात्मक समाकलन तथा राष्ट्रीय एकता के बारे में मुख्य विचार निम्नलिखित हैं—
- पं. जवाहरलाल नेहरू के विचार – भारत के सर्वप्रथम प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा, “राजनीतिक एकता तो हमने प्राप्त कर ली, परन्तु मैं और अधिक गहराई में जाकर कुछ और प्राप्त करना चाहता हूँ और वह है भारतीय जनता में भावात्मक एकता ताकि वह दृढ़ राष्ट्रीय इकाई में बँध जाए और साथ-साथ अपनी विचित्र विभिन्नता को भी कायम रखे ।”
जवाहरलाल नेहरू जी ने भावात्मक एकता का अर्थ इस प्रकार बताया है – ‘भावात्मक एकता अथवा भावात्मक समाकलन से मेरा तात्पर्य है— हमारे मनों और दिलों की एकता, पृथकता की भावना का त्याग ।”
- डॉरॉथी थॉम्पसन (Dorothy Thompson) के विचार में, “राष्ट्रीय समाकलन ऐसी भावना है जो देश के नागरिकों को एक सूत्र में बाँधती है । “
- राष्ट्रीय समाकलन ( एकता ) सम्मेलन रिपोर्ट (National Intergation Conference Report, 1946) ने राष्ट्रीय समाकलन के अर्थ की इस प्रकार व्याख्या की है, “राष्ट्रीय समाकलन ऐसी मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से लोगों के हृदयों में एकता, घनिष्ठता तथा सन्निकटता की भावनाओं का विकास किया जाता है । इसके द्वारा लोगों में नागरिकता तथा राष्ट्र के प्रति वफादारी की भावना भरी जाती है।”
- प्रो. हुमायूँ कबीर (Prof. Humayun Kabir) ने राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन पर प्रकाश डाला है, “राष्ट्रीय समाकलन अथवा एकता किसी एक जाति, भाषा, धर्म या भूगोल पर आधारित नहीं होती है और न ही इनके समूह पर आधारित है बल्कि यह राष्ट्र के प्रति अपनत्व की भावना है।”
- डॉ. सम्पूर्णानन्द (Dr Sampurnanand) के अनुसार, “राष्ट्रीय एकता मनोवैज्ञानिक और शैक्षिक प्रक्रिया है। इसमें जनसाधारण के प्रति एकता, पारस्परिक निर्भरता, सामान्य नागरिकता की भावना और राष्ट्र के प्रति भक्ति-भावना सन्निहित है ।”
- विनोबा भावे (Vinoba Bhave) के शब्दों में, “भावात्मक एकता, भाई-चारे और राष्ट्र प्रेम की वह दृढ़ भावना है जो एक देश के सभी निवासियों को अपनी व्यक्ति, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, धार्मिक और भाषायी भिन्नताओं को भुलाने में सहायता देती है । “
- राष्ट्रीय भावात्मक समिति, 1961. (Emotional Integration Committee, 1961) के अनुसार, “राष्ट्रीय समाकलन का तात्पर्य एक ऐसे मानसिक दृष्टिकोण का निर्माण करना है जो सभी व्यक्तियों को इस बात के लिए प्रेरित करे कि वे समुदाय की अपेक्षा अपने देश के प्रति अधिक निष्ठा रखें तथा दलीय स्वार्थों की अपेक्षा देश के कल्याण को सर्वोच्च महत्त्व दें।”
सारांश — संक्षेप में राष्ट्रीय समाकलन तथा भावनात्मक समाकलन का अर्थ है, नागरिकों में राष्ट्र के प्रति देश प्रेम तथा आत्मीयता की भावना का विकास करना । इसका अर्थ है कि देश का नागरिक भले ही किसी धर्म को मानने वाला हो, देश के किसी भी भाग में रहता हो, कोई भी भाषा बोलता हो, किसी भी प्रकार के वस्त्र पहनता हो आदि, वह देश के प्रति आत्मीयता तथा वफादारी की भावना रखता है। दूसरे शब्दों में वह ‘मैं’ (I) के स्थान पर ‘हम’ (We) को महत्त्व देता है । ”
राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन की आवश्यकता तथा महत्त्व – भारत अनेक राज्यों में बँटा हुआ है। यहाँ पर विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं । अनुमान के अनुसार लगभग 3000 बोलियाँ हैं । यहाँ पर विभिन्न जातियाँ तथा उपवर्ग हैं | सात मुख्य धर्म हैं। प्रत्येक धर्म में अनेक सम्प्रदाय हैं, अनेक राजनीतिक दल हैं, जिनके विभिन्न दृष्टिकोण हैं । आर्थिक विभिन्नताएँ हैं । अमीरी तथा गरीबी में अन्तर है । क्षेत्रीय आकांक्षाएँ हैं । इन सबको एक सूत्र में पिरोना आवश्यक है । इनका ताल-मेल आवश्यक है । एक साथ विचार करने की तथा कार्य करने की अत्यन्त आवश्यकता है। राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन के माध्यम से ही देश की प्रगति, एकता तथा अखण्डता कायम रह सकती है। भारत को स्वतन्त्र, संगठित तथा प्रजातान्त्रिक देश बने रहने के लिए समस्त नागरिकों में राष्ट्रीय समाकलन तथा भावात्मक समाकलन का विकास बहुत जरूरी है । इस सन्दर्भ में भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के शब्द आज भी उतने ही सार्थक हैं जितने कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय । उन्होंने कहा, “हमें संकुचित, संकीर्ण, प्रान्तीय, साम्प्रदायिक तथा जातिवादी भावों को नहीं अपनाना चाहिए क्योंकि हमारे सामने बहुत बड़ा लक्ष्य है । हम, भारत गणतन्त्र के नागरिकों को समाकलन निर्माण का कार्य करना है। हमें इस महान देश को शक्तिशाली राष्ट्र बनाना है। साधारण शब्दों में शक्तिशाली नहीं, अपितु विचार, कार्य, संस्कृति तथा मानवता की शान्तिपूर्वक दृष्टि से इसे शक्तिशाली बनाना है।”
संक्षेप में कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय समाकलन की निम्न कारणों से आवश्यकता है—
- देश की अखण्डता को कायम रखने के लिए (For Maintaning National Integrity),
- शक्तिशाली राष्ट्र के निर्माण के लिए (For Building a Mighty Nation),
- देश में शान्ति कायम रखने के लिए (For Maintaining Peace in the Country),
- नागरिकों के राष्ट्र निर्माण में सहयोग के लिए (For Enlistng the Co operation of the people in Building a Strong Nation),
- बाहरी खतरों से देश की सुरक्षा के लिए (For Defending the Nation from Foreign Dangers),
- जातिवाद आदि दीवारों को तोड़ने के लिए (For Breaking the Walls of Casteism etc.),
- लोकतन्त्र के संरक्षण के लिए (For Defending Democracy),
- भारतीय धरोहर के संरक्षण के लिए (For Protecting the National Heritage),
- राष्ट्रीय आर्थिक विकास के लिए (For Economic Development of the Nation),
- नागरिकों में सेवा-भाव का विकास करने के लिए (For Inculculating Spint of Service in the People),
- देश में समरसता कायम रखने के लिए (For Maintaining Harmony in the Country),
- सामाजिक प्रगति के लिए (For Social Progress),

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