वाक्य संरचना क्या है ? बताइए तथा भाषा की दृष्टि से होने वाली वाक्य रचना का वर्णन कीजिए ।
शब्द, पद और विभक्ति – शब्द जब तक किसी वाक्य का अंग नहीं बन जाता, तब तक वह ‘शब्द’ ही रहता है । जब शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है, वह ‘पद’ कहलाता है। वाक्य में प्रयुक्त होने पर शब्द की आकृति और रूप में परिवर्तन किया जाता है । इस परिवर्तन के सहायक शब्दांश को व्याकरण में ‘विभक्ति’ कहते हैं ।
वाक्य – विन्यास – वाक्य – विन्यास – हमें यह बतलाता है कि वाक्य में प्रयुक्त शब्दों का परस्पर सम्बन्ध क्या है, वे एक-दूसरे पर कहाँ और किस सीमा तक आधारित हैं, और वे किस क्रम से प्रयोग में लाए गए हैं वाक्य-विन्यास के तीन प्रधान तत्व हैं—
(i) अन्वय, (ii) अधिकार, (iii) क्रम ।
दो शब्दों में पारस्परिक वचन, कारक, लिंग, पुरुष और काल की समानता रहती है, वह ‘अन्वय’ कहलाती है । ‘अधिकार’ शब्दों का वह सम्बन्ध है, जिससे किसी एक शब्द के प्रयोग से दूसरा (सर्वनाम अथवा संज्ञा) किसी विशेष कारक में प्रयुक्त हो। किसी वाक्य में शब्दों की रचना, उनके अर्थ और सम्बन्ध के विचार से की जाती है, इसे ‘क्रम’ कहते हैं ।
वाक्य-रचना – शब्दों के अर्थ और प्रयोग को ध्यान में रखकर जो उनका संगठन किया जाता है उसे ‘वाक्य-रचना’ कहते हैं ।
भाषा की दृष्टि से वाक्य – रचना
- अर्थपूर्ण शब्द का प्रयोग – जिन शब्दों का प्रयोग वाक्यों में किया जाय, वे इतने अर्थपूर्ण होने चाहिए कि वक्ता अथवा लेखक के अभिप्राय को पूर्ण रूप से पाठक अथवा श्रोता तक पहुँचा सकें और उन्हें सुनकर या पढ़कर समझने में कोई कठिनाई न हो ।
- सरल शब्दों का प्रयोग– वाक्यों में शब्दों का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाय कि वे इतने सरल हों कि श्रोता अथवा पाठक उन्हें सुनकर या पढ़कर अर्थ का अनर्थ कर डालें।
- भाव और अर्थ के अनुसार शब्दों का प्रयोग – शब्दों का प्रयोग वाक्य में करते समय वक्ता या लेखक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ये शब्द उनके भाव और विषय का ठीक-ठीक प्रतिपादन करने में समर्थ हैं या नहीं ।
- उचित पदइ-प्रयोग– वाक्य में समुचित पदों का समावेश ही समुचित अर्थ का बोधक हो सकता है । केवल पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए व्यर्थ के पदों का समावेश करने से वाक्य अशक्त तथा शिथिल हो जाता है। वाक्य-रचना में पदों की पुनरुक्ति नहीं होनी चाहिए। पद-पुनरुक्ति-एक भारी दोष है । वाक्य-रचना में पद-क्रम पर भी विशेष ध्यान दिया जाय। जिस पद की जहाँ पर आवश्यकता है, उसका प्रयोग वहीं पर होना उचित है ।
- कर्ण – कटु शब्दों का त्याग – वाक्य में कर्ण-कटु शब्दों का जितना अभाव होगा और श्रुत – मधुर तथा उच्चारण-सुलभ पदों का जितना बाहुल्य रहेगा, वह वाक्य उतना ही सुन्दर होगा । अपवाद रूप में केवल वीर तथा रौद्र रस में ही कर्ण-कटु शब्दों का प्रयोग क्षम्य हो सकता है ।
- अप्रचलित शब्दों का त्याग–वक्ता अथवा लेखक को ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो अप्रचलित हों । ऐसा करने का भाव स्पष्टीकरण तथा अर्थ-बोध में कठिनाई आ सकती है ।
- वाक्य में ‘उपमा’ का प्रयोग – यदि वक्ता या लेखक वाक्य में उपमा अलंकार का प्रयोग करना चाहता है तो उसे उपमेय और अपमान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उपमेय और अपमान में सादृश्यता होनी चाहिए ।
- वाक्य में लाघवत्व – लाघवत्व भाषा का विशेष गुण है । इससे भाषा में सौन्दर्य आ जाता है, यथा— “शिवाजी जनपालक थे, शक्तिशाली थे, बलवान् थे और महान् थे।”
- भाषा-प्रवाह-वाक्य में एक महान् गुण ‘भाषा – प्रवाह’ है। यदि भाषा में प्रवाह होगा तो रोचकता बनी रहेगी और श्रोता सुनते-सुनते तथा पाठक पढ़ते-पढ़ते ऊबेगा नहीं।
- पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग– वाक्य में पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। एक शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्द होते हुए भी उनके भाव में अन्तर रहता है। उदाहरणस्वरूप, ‘वन’ के अनेक पर्यायवाची शब्द हैं; जैसे—जंगल, कानन आदि। हमें ‘कानन’ शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए जहाँ हमारा अभिप्राय ‘घने जंगल’ से हो अन्य स्थानों पर नहीं ।
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