विकास एवं वृद्धि से क्या तात्पर्य है ? विवेचना कीजिए
उत्तर – विकास से तात्पर्य केवल बढ़ना ही नहीं है। हरलॉक (E.B. Herlock, 1974) ने विकास को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तनों से है। विकास की परिभाषा क्रमिक सम्बद्धतापूर्ण परिवर्तनों की प्रगतिपूर्ण श्रृंखला के रूप में दी जा सकती है।” (Development refers to qualitative changes. It may be defined as a progressive series of orderly, coherent charges.) अर्थात् वे व्यवस्थित तथा समनुगत परिवर्तन जो परिपक्वता प्राप्ति में सहायक हों, विकास है। व्यवस्थित शब्द का अर्थ है कि इन परिवर्तनों में कोई-न-कोई क्रम अवश्य होगा और प्रत्येक परिवर्तनों में कोई न कोई क्रम अवश्य होगा और प्रत्येक परिवर्तन अपने पूर्व के परिवर्तन पर निर्भर रहेगा। समनुगत शब्द का आशय है कि सभी परिवर्तनों में सामंजस्य बना रहेगा।
गेसल का विचार है कि विकास केवल प्रत्यय या धारणा ही नहीं है। विकास का निरीक्षण किया जा सकता है, मूल्यांकित व मापा जा सकता है। यद्यपि त्रिकास का मापन शारीरिक एवं व्यावहारिक दोनों दृष्टियों से किया जा सकता है परन्तु विकासात्मक क्षमताओं की दृष्टि से व्यावहारिक मापन सबसे महत्त्वपूर्ण है। (Development is more than a concept. It can be observed appraised and to some extent even “measured” in three major manifestation (i) anatomic, (ii) psychologic, (iii) behavioral… Behaviour signs, however, constitute a most comprehnsive index of developmental status and development potentials.)
विकास की विशेषताएँ (Characterstics of Development)
यों तो विकास की बहुत सारी विशेषताएँ है परन्तु कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार की हैं : –
- विकास प्रगतिशी श्रृंखला के रूप में घटित होता है।
- विकास में क्रमिक परिवर्तन पाए जाते हैं। परिवर्तनों में निरंतरता पाई जाती है जो अविराम गति से चलती जाती है। विकास किसी भी विकास – अवस्था में सामान्य नहीं होता।
- क्रमिक परिवर्तन एक-दूसरे के साथ किसी-न-किसी रूप से सम्बन्धित रहते हैं।
- कुछ मनोवैज्ञानिकों ( Carmichael, 1968; Herlock, 1974 etc.) के अनुसार यह परिवर्तन मात्रात्मक (quantitative) होते हैं तथा अन्य प्राचीन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ये गुणात्मक (qualitative) होते हैं ।
- विकास परिवर्तनों की गति भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न होती है। विकास की गति गर्भकालीन अवस्था में सर्वाधिक और परिपक्वावस्था (Maturation) के बाद मन्द हो जाती है।
- विकास के फलस्वरूप व्यक्ति में अनेक नई विशेषताएँ और क्षमताएँ उत्पन्न होती है।
वृद्धि का अर्थ (Meaning of Growth)
कुछ मनोवैज्ञानिक विकास और विवृद्धि शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में करते हैं, किन्तु वास्तव में ये भिन्न हैं। विकास के अनुपात में विवृद्धि संकुचित प्रत्यय है। हरलॉक (Herlock, 1974) ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है, “Growth refers to quantitative changes increase in size and structure” गर्भ धारण करने के बाद ही गर्भस्थ शिशु की विवृद्धि होने लगती है जिसके फलस्वरूप शरीर की रचना एवं आकार में वृद्धि होती है और यह विवृद्धि परिपक्वावस्था तक शरीर के विभिन्न अंगों में स्पष्टतया देखी जा सकती है। विभिन्न अंगों से हमारा तात्पर्य यहाँ बाह्य एवं आंतरिक अंगों से है। मस्तिष्क की विवृद्धि के साथ-साथ बालक में सीखने, स्मरण तथा तर्क आदि की अधिक क्षमता आती जाती है। जैसा कि स्पष्ट है कि हरलॉक ने विवृद्ध को मात्रात्मक एवं विकास को गुणात्मक माना है किन्तु कारमाइकेल (1968) ने विकास को भी मात्रात्मक माना है। अतः दोनों को पृथक समझना कठिन है। विकास एवं विवृद्धि में कुछ मौलिक अन्तर हैं : –
- विकास का प्रारम्भ विवृद्धि से पहले होता है।
- विवृद्धि केवल परिपक्वावस्था तक होती है किन्तु विकास की क्रिया जीवन-पर्यन्त चलती रहती है।
- विवृद्धि से संरचना (structure ) में परिवर्तनों का बोध होता है तथा विकास से कार्यों (fuctioning) का बोध होता है।
- विवृद्धि के परिवर्तन सदैव रचनात्मक होते हैं, दूसरी ओर विकास द्वारा हुए परिवर्तन रचनात्मक भी हो सकते हैं और विनाशात्मक भी।
प्रारम्भिक विकास का महत्त्व (Importances of Early Development)
विकासवादी मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि विकास की सही प्रक्रिया एवं प्रतिमान बच्चों को समझने के लिए अत्यावश्यक है। प्रत्येक बच्चे का प्रारम्भिक विकास बाद के विकास की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इस तथ्य का वैज्ञानिक स्वरूप सबसे पहले फ्रायड ने अपने प्रारंभिक अध्ययनों में किया। किन्तु बाद के कुछ अध्ययनों (Baker, Gibson, Hess, Zax) के द्वारा यह बात साबित की जा सकी कि जो बच्चे शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था (infancy and childhood) में कुसमायोजित होते हैं, आगे चलकर उनकी शैक्षणिक एवं भाषा विकास तथा समायोजन अच्छा नहीं रहता। अभिवृत्ति एवं मूल्यों के विषय में किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि इनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन होता है। व्यक्ति की अभिवृत्तियाँ एवं मूल्य जिस प्रकार के बन जाते हैं, आगे जाकर उम्र वृद्धि के साथ-साथ और होती जाती है। जीवन के विकास के साथ-साथ इनमें बदलाव नहीं होता।
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