विद्यालय के भौतिक स्थान एवं महत्वपूर्ण तत्व की विवेचना करें ।
- शान्त व मुक्त वातावरण हो ।
- विद्यालय भवन ऐसे स्थान पर हो जहाँ छात्रों को शुद्ध वायु तथा प्रकाश मिल सके ।
- यथासम्भव किसी सड़क के पास, किन्तु हटकर होना चाहिए ।
- ऐसे स्थान पर हो जिसके समीप खेल का मैदान उपलब्ध हो सके ।
- विद्यालय का स्थान समतल हो ।
- ऐसे स्थान पर हो जहाँ पर सुगमता से आने-जाने के साधन उपलब्ध हो सकें ।
- विद्यालय भवन की भूमि विकसित होनी चाहिए और उसे नालियों, पानी के निकास का प्रबंध, बिजली की व्यवस्था तथा अन्य जनसामान्य सेवाओं की सुविधा प्राप्त हो ।
- ऐसा स्थान हो जहाँ पर बाग लगाया जा सके ।
- स्कूल भवन सघन आबादी वाले क्षेत्र से दूर होना चाहिए क्योंकि वहाँ अधिक शोर रहता है।
- स्कूल औद्योगिक क्षेत्र से बाहर होना चाहिए क्योंकि ऐसे क्षेत्र में गंदगी ज्यादा रहती है।
- स्कूल का अनाज मण्डी, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, श्मशान भूमि, अदालत अथवा किसी कार्यालय के पास होना हानिकारक है।
- स्कूल के परिवेश में लोगों की भीड़, गन्दी नालियों का पानी, गन्दे तालाब, कीचड़ से भरा पड़ोस तथा पशु क्षेत्र जैसी अस्वास्थ्यप्रद बातें नहीं होनी चाहिए ।
- स्कूल क्षेत्र में बाढ़ अथवा किसी नहर के टूट जाने का भय नहीं होना चाहिए ।
- स्कूल का स्थान ऊँचा नीचा नहीं होना चाहिए ।
- स्कूल के आसपास जल का इकट्ठा होना (Waterlogging) अच्छा वातावरण उत्पन्न करने में बाधक होगा।
- अव-भूमि (Sub-soil) लवणमय न हो ताकि खेल के मैदान में घास अच्छी प्रकार लगाई जा सके ।
- सौन्दर्य पर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अन्तर्गत स्कूल की बनावट, आकार तथा रंग आदि बातों का समावेश है। ऐसा होने से छात्रों के सम्मुख सदा अच्छे दृश्य रहेंगे।
- दोहरे भवन में आने-जाने की सुविधा हो । बरामदा चौड़ा होना चाहिए । सीढ़ियाँ इस प्रकार से बनाई जायें कि अधिक भीड़ न हो जबकि छात्र एक क्लास से दूसरी क्लास में जायें ।
- मूत्रालय और शौचालय ऐसे स्थान पर होने चाहिए जहाँ स्कूल के सारे भागों से सुगमतापूर्वक जाया जा सके और वे इस प्रकार से बनाये जायें कि भद्दा दृश्य उपस्थित न करें ।
- स्थान इतना विस्तृत हो कि भवन के बढ़ने के लिए गुंजायश हो ।
- बरामदा अवश्य होना चाहिए ।
- छोटे बच्चों के लिए हमेशा नीचे के कमरे होने चाहिए ।
- जहाँ अधिक भूमि उपलब्ध हो वहाँ पर भवन एक ही मंजिल का बनाया जाये । एक मंजिल का भवन उत्तम है।
- कक्षा के कमरों तथा बरामदों आदि की बनावट स्थानीय बातों पर निर्भर है ।
- भारत के अधिकांश भागों में भवन का मुख दक्षिण की ओर होना चाहिए ।
- कक्षा में केवल एक ही द्वार होना चाहिए और कमरे एक-दूसरे में नहीं खुलने चाहिए ।
विभिन्न भौतिक तत्वों की पर्याप्तता तथा उपयोग (Adequacy and Utilisation of Different Physical Elements) – कमरे की नाप – साधारणतया एक विद्यार्थी के लिए 10 से 12 वर्ग फीट स्थान होना चाहिए । इसके अनुसार कक्षा का कमरा 400 वर्ग फीट के लगभग होना चाहिए | इसकी लम्बाई तथा चौडाई दोनों 20 फीट होनी चाहिए । कमरे की ऊँचाई इतनी हो कि पर्याप्त मात्रा में वायु कमरे के भीतर आ सके । साधारणतया कमरे की ऊँचाई 15 फीट से अधिक न हो क्योंकि बहुत ऊँचे कमरे में हवा कठिनाई से आती है।
प्रकाश – इसमें सन्देह नहीं कि अच्छे प्रकाश में छात्रों की शारीरिक शक्ति की बचत होती है । वे थकावट कम अनुभव करते हैं। अच्छे प्रकाश में छात्रों की दृष्टि ठीक रहती है | अच्छा प्रकाश वातावरण को रोचक बना देता है। काम करने में उत्साह का अनुभव होता है । अतः यह आवश्यक है कि कमरे में यथोचित प्रकाश का प्रबंध इतना हो कि छात्र 12 इंच की दूरी से साधारण टाइप की पुस्तक पढ़ सके । अच्छे प्रकाश के लिए अग्रलिखित उपाय किये जाने चाहिए ।
- कमरे में प्रकाश का प्रबंध इस प्रकार किया जाना चाहिए कि प्रकाश बायीं ओर से आये । दायीं ओर से प्रकाश आने पर लिखते समय हाथ की छाया कागज पर पड़ती है। सामने से रोशनी आने से आँखों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। पीछे से रोशनी आने से शरीर की छाया पड़ती है, अतः यह रोशनी भी हितकर नहीं है ।
- यदि कमरे किसी कारण वश अन्धकारमय हों तो इनमें कृत्रिम प्रकाश का प्रबंध किया जाना चाहिए । यदि ट्यूब प्रकाश किया जा सके तो सबसे उत्तम होगा ।
- कमरे में कई खिड़कियाँ हों ।
- दीवारों पर रंग भी ऐसा हो कि आँखों पर अच्छा प्रभाव पड़े। गहरे रंगों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए । हल्के रंग से दीवारों को रँगा जाये ।
खिड़कियाँ – कमरे में कई खिड़कियाँ होनी चाहिए । इनके द्वारा प्रकाश तथा वायु का आगमन होता है । खिड़कियों का क्षेत्रफल फर्श के क्षेत्रफल के एक-चौथाई से लेकर एक छठे तक हो सकता है । खिड़कियों का निचला भाग फर्श से साढ़े तीन अथवा चार फुट की ऊँचाई पर होना चाहिए। खिड़कियाँ कमरे के दोनों ओर हों, खिड़कियों के शीशे भी सादे होने चाहिए । आवश्यकता पड़ने पर खिड़कियों पर पर्दे डाल लिये जाने चाहिए । खिड़कियों में जाली लगी हुई हों ताकि उनके खोले जाने पर कीड़े और धूल आदि भीतर प्रवेश न करें ।
वातायन (रोशनदान ) – प्रकाश के साथ हवा का भी आगमन होता है। प्रकाश और हवा के आने-जाने के लिए कमरे में कई निर्गम स्थान होने चाहिए । रोशनदान खुले रहने से गंदी वायु बाहर जायेगी। रोशनदानों पर बाहर की ओर जाली लगवा दी जाये ताकि कबूतर आदि न आ सकें । जहाँ तक सम्भव हो कमरे की छत पर पंखे लगे हों ।
कर स्कूल भवन तथा स्कूल सामग्री की सुरक्षा तथा रख-रखाव ( Safety and Mainterance of School Building and Materials) – स्कूल भवन तथा पदार्थों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि प्रधानाचार्य अध्यापक वर्ग में से किसी को संरक्षक नियुक्त दें | अच्छा होगा यदि अध्यापकों एवं छात्रों की मिली-जुली कोई समिति बना दी जाये जो समय-समय पर सहायता प्रदान करें । प्रायः देखा गया है कि राजकीय स्कूलों में स्कूल भवन तथा सामग्री की देखभाल की तथा उचित उपयोग की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता । समय-समय पर सब चीजों का निरीक्षण होता रहना चाहिए । प्रतिवर्ष सफाई होनी चाहिए ।
साधारणतया स्कूल में निम्नलिखित दुर्घटनाओं का भय रहता है :
(i) अग्निकाण्ड, (ii) सहसा किसी भाग का पतन, (iii) बिजली-ज्वलन, (iv) पानी का अस्वास्थ्यप्रद बहाव, (v) बाढ़ अथवा जल का इकट्ठा होना, (vi) मधुमक्खियों का छत्ता, (vii) वृक्षों का गिरना ।
समयानुसार आग बुझाने वाले साधनों और सूचना देने वाले साधनों का निरीक्षण अत्यन्त जरूरी है ।
स्कूल भवन की सजावट स्कूल क्षेत्र को प्राकृतिक दृश्य प्रदान करने तथा उसे सौन्दर्ययुक्त बनाने के लिए योजना बनाई जानी चाहिए और छात्रों को उसे क्रियान्वित करने के लिए निर्देशन दिया जाना चाहिए ।
निम्नलिखित बातें की जानी चाहिए :
- स्कूल के प्रांगण का समतल बनाना ।
- स्कूल भवन के चारों ओर सुन्दर झाड़ियाँ लगाना ।
- वाटिकाओं में हरी घास लगाना, फूलों की क्यारियों, गमलों, लताओं तथा वृक्षों से उसे सजाना ।
- आने – जाने के लिए निर्दिष्ट मार्गों का ईंटों द्वारा अंकन तथा पीथिका में तारकोल अथवा ईंटों का फर्श लगाना ।
- कमरों को सुन्दर चित्रों, नक्शों तथा कलाकृतियों से सुसज्जित करना ।
- विशेष स्थानों पर नोटिस बोर्ड, नाम तख्तियाँ, समाचार – फलक आदि लटकाकर उन्हें साफ रखना ।
- स्कूल भवन तथा समग्री की सफाई का उचित प्रबंध करना ।
- समय पर सफेदी का प्रबंध करना ।
- कीड़े-मकोड़ों को मारने के लिए दवाई छिड़कना ।
- समय-समय पर मरम्मत करवाना ।
- जहाँ तक सम्भव हो स्कूल भवन एक मंजिल का हो ।
- भवन की योजना विस्तारपूर्ण हो
- भवन के कमरे यथासम्भव पक्के होने चाहिए ।
- भवन निर्माण हेतु स्थान, भूमि, क्षेत्र वायु, प्रकाश तथा अन्य सम्बन्धित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए ।
- योजना वैज्ञानिक हो और आधुनिक भवन निर्माण कला के नियमों को ध्यान में रखा जाये ।
- स्कूल भवन का रेखाचित्र अत्यन्त सरल किन्तु कलात्मक हो ।
- भवन निर्माण में स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग अवश्य करना चाहिए ।
- स्कूल भवन के निर्माण में काम में लाये जाने वाले द्रव्य उच्च स्तर तथा स्थायी प्रकृति के हों ।
- स्कूल की स्थिति इस प्रकार हो कि छात्र को घर से स्कूल तक एक किलोमीटर से अधिक न चलना पड़े ।
- स्नानागार एवं मल – मूत्र – त्याग स्थान का प्रबंध अत्यन्त आवश्यक है ।
- पानी पीने का उचित प्रबंध होना चाहिए ।
- स्कूल के खेलने का मैदान समीप ही होना चाहिए ।
- जहाँ तक सम्भव हो स्थानीय समुदाय से धनराशि की सहायता ली जाये ।
- सभी भौतिक सामग्री विभागीय मापदण्डों के अनुसार होनी चाहिए ।
- भौतिक सामग्री की खरीद वित्तीय नियमों के अनुसार होनी चाहिए ।
- सामग्री की खरीद के लिए विद्यालय में तथा शिक्षा विभाग में समितियों का गठन होना चाहिए ।
- सामग्री संबंधी पूरा रिकार्ड रखा जाना चाहिए ।
- सामग्री की मरम्मत आदि की व्यवस्था समय पर की जानी चाहिए ।
- सामग्री के रख-रखाव का उत्तरदायित्व सौंपा जाना चाहिए ।
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