विभिन्न आयोगों की व्यवसायीकरण पर संस्तुतियाँ प्रस्तुत करें ।
उत्तर – I. माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1952-53 तथा शिक्षा का व्यवसायीकरणम.‘यमिक शिक्षा आयोग ने अनुभव किया कि शीघ्र परिवर्तित होते देश के सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक ढाँचे में मैकॉले की चलाई हुई शिक्षा पद्धति बेकार – सी हो गई है और आज की परिस्थिति में यह मेल नहीं खाती है । स्वतन्त्र भारत में जन कल्याण का लक्ष्य सामने रखा गया है, अत: इसकी प्राप्ति के लिए शिक्षा का नवीन ढाँचा ही सहायक सिद्ध हो सकता है ।
यह सर्वविदित है कि टैक्निकल क्षेत्र में कार्य करने वालों की अत्यन्त कमी है । हमारे बहुत-से ऐसे उद्योग-धन्धे हैं जिनके चलाने के लिए निपुण कारीगर नहीं मिलते तथा उनके अभाव से हमारे उद्योग-धन्धे उन्नति नहीं कर सकते । दूसरी ओर पुस्तकीय विषय पढ़कर महाविद्यालयों से निकलने वाले छात्रों की कोई कमी नहीं, बल्कि वे बिना काम के हजारों की संख्या में आवारा घूमते दिखाई देते हैं तथा समाज के लिए एक प्रकार के ‘अभिशाप’ बन गए हैं। आज इस बात की अत्यन्त आवश्यकता है कि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले युवक तैयार किए जाएँ |
आयोग ने कहा है—“छात्रों में श्रमनिष्ठा की मनोवृत्ति के निर्माण के साथ-साथ शिक्षा के सभी स्तरों पर प्राविधिक कौशल एवं योग्यता को विकसित किया जाना चाहिए जिससे देश में औद्योगिक विकास हो सके।” आयोग ने प्रस्ताव किया है—” हस्तकला एवं उत्पादन कार्य पर सभी विद्यालयों में पर्याप्त बल दिया जाना चाहिए। साथ ही माध्यमिक स्तर पर विभिन्न पाठ्यक्रम आरम्भ किए जाएँ जैसे—कृषि, प्राविधिक, व्यापारिक एवं अन्य व्यावहारिक पाठ्यक्रम ।”
माध्यमिक शिक्षा आयोग की व्यावसायिक शिक्षा सम्बन्धी सिफारिशें निम्नलिखित हैंबहुउद्देश्यीय विद्यालयों की स्थापना – आयोग ने संस्तुति की कि एक ही स्कूल में कई प्रकार के पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाए । व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को चलाने के लिए उद्योग-धन्धों से तालमेल स्थापित किया जाए। छात्रों के मार्गदर्शन के लिए शैक्षिक एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएँ ।
जिन विद्यार्थियों ने इस प्रकार के पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिए हों, उन्हें पोलीटैक्निक अथवा टैकनोलॉजिकल कॉलेजों में उच्च विशेष पाठ्यक्रम लेने का अवसर दिया जाए।
कृषि शिक्षा-सभी राज्य देहाती स्कूलों में खेतीबाड़ी की शिक्षा को विशेष सुविधा प्रबन्ध करें तथा इस प्रकार के पाठ्यक्रम में हॉर्टीकल्चर की शिक्षा सम्मिलित हो |
(क) प्रोलीटेक्नीकों में पूर्णकालिक अध्ययन की सुविधाओं के विस्तार के अलावा इस स्तर पर सैंडविच या पत्राचार के पाठ्यक्रम द्वारा व्यवस्थित किए गए अंशकालिक व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का विकास किया जाए ।
(ख) कृषि तथा इंजीनियरी पोलीटैक्नीकों को जो रोजगार में लग गए हैं, उन लोगों की प्रवीणता को उन्नत करने के लिए या जो पहले से ही योग्यता प्राप्त कर चुके हैं उनकी योग्यता बनाए रखने या उनको पुनः शिक्षित करने के लिए छोटे-छोटे संक्षिप्त रूप में बनाए गए स्तर पाठ्यक्रम चलाने चाहिए ।
(ग) औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में पढ़ाए जाने वाले बहुत से पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए कक्षा 10 पूरा करने की योग्यता की अपेक्षा की जाती है । इन सुविधाओं का तेजी से विस्तार किया जाए ।
(घ) स्वास्थ्य, वाणिज्य, प्रशासन, छोटे पैमाने के उद्योगों और सभी सेवाओं में तरह-तरह के दूसरे पाठ्यक्रम विकसित किए जाने चाहिए, जिनकी अवधि प्रमाण-पत्र या डिप्लोमा की योग्यता के लिए छः महीने से तीन साल तक की हो सकती है। ये पहले से ही रोजगार में लगे लोगों को अंशकालिक या पत्राचार के आधार पर भी पढ़ाए जा सकते हैं ।
“कार्यक्रम के महत्त्व और भारी पैमाने पर उसके चलाए जाने की दृष्टि में यह अत्यावश्यक है कि राज्य शिक्षा विभागों में शिक्षा अनुभाग खोले जाएँ और उनको इस तरह के पूर्णकालिक या अंशकालिक पाठ्यक्रमों को आयोजित करने पर पूरा-पूरा प्रभार सौंपा जाए । ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने से अनुभवों को जनशक्ति की जरूरतों को ध्यान में रखना चाहिए और व्यावसायिक मार्गदर्शन के तंत्र और सामान्यतः उद्योगों और मालिकों के साथ निकट का सहयोग रखते हुए काम करना चाहिए । ”
स्कूल स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा के विकास के लिए केन्द्रीय अनुदान – केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को केन्द्र आयोजित क्षेत्र में विशेष अनुदान देने की व्यवस्था करे । माध्यमिक स्कूलों में व्यवसायीकरण के लिए दिए गए अनुदानों ने ही संयुक्त राज्य अमेरिका में माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण को प्रेरणा दी थी और यह अनुभव भारत के लिए महत्त्वपूर्ण पाठ देने वाला है ।
- अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा – आयोग ने विभिन्न स्तरों, पर अंशकालिक व्यावसायिक शिक्षा पर भी बल दिया ।
- लड़कियों के लिए विशेष पाठ्यक्रम — जो लड़कियाँ 14 वर्ष की आयु के आसपास स्कूल छोड़ देती है, उनके लिए गृह विज्ञान या सिलाई, कला और शिल्प, मुर्गी पालन, दुग्धशाला, आदि जैसे घरेलू उद्योगों में पूर्णकालिक या अंशकालिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाए। ये पाठ्यक्रम अल्पकालीन, पूरे समय के लिए या अंशकालिक और लम्बे अरसे तक चलने वाले हो सकते हैं ।
- तकनीकी शिक्षा – मल्टीपरपज स्कूल के पास एक भाग के रूप में अथवा अलग से तकनीकी स्कूल पर्याप्त संख्या में स्थापित किए जाएँ ।
बड़े-बड़े शहरों में केन्द्रीय तकनीकी संस्थाएँ खोली जाएँ जो कि कई स्थानीय स्कूलों की आवश्यकताओं को पूरा करें ।
जहाँ तक संभव हो तकनीकी स्कूल सम्बन्धित उद्योग के निकट स्थित हों तथा सम्बन्धित उद्योग के सहयोग से कार्य करें ।
‘ औद्योगिक शिक्षा कर’ के नाम से उद्योगों पर कुछ कर लगाया जाना चाहिए तथा इस प्रकार प्राप्त आय को तकनीकी शिक्षा के विकास में लगाना चाहिए ।
II. कोठारी शिक्षा आयोग तथा माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा (Kothari Commission on Vocationalisation at the Secondary Stage) — कोठारी आयोग । देश में उत्पादन बढ़ाने के लिए माध्यमिक शिक्षा को प्रबल व्यावसायिक मोड़ देना आवश्यक समझा । साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर कृषि और शिल्प शिक्षा पर अधिक जोर देने की संस्तुति की । आयोग का विचार था कि वर्तमान भारतीय परिस्थिति में शिक्षा के व्यवसायीकरण का विशेष महत्त्व है क्योंकि प्रचलित शिक्षा प्रणाली युवकों को सरकारी नौकरियों तथा बाबूगीरी पेशे के लिए तैयार करती है ।
व्यावसायिक शिक्षा का आयोजन (Organisation of Vocational Education ) –
- अवर माध्यमिक स्तर (Lower Secondary Stage) —
- औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में ऐसे यक्रम हैं, जिनमें प्राथमिक स्कूल को पूरा कर लेने वाले छात्र जा सकते हैं । यदि इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश की आयु बढ़ाकर 14 कर दी जाए, तो जो छात्र प्राथमिक स्कूलों को पूरा कर चुके हैं, उनमें से बहुत से औद्योगिक प्रशिक्षण के इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकेंगे ।
- उद्योगों में नौकरी के लिए छात्रों को तैयार करने वाली तकनीकी स्कूलों में कार्यक्रमों की जो व्यवस्था है, वे इस स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की दूसरी श्रेणी बन जाते हैं ।
- कक्षा 7 या कक्षा 8 के बाद जो बहुत से छात्र स्कूल छोड़ देते हैं, वे घर के कारोबार में लग जाएँ और कुछ छोटे पैमाने पर अपना ही उद्योग या व्यापार शुरू करने के विचार से स्कूल छोड़ देंगे । उनको योग्यता प्राप्त करने या अपनी प्रवीणता बढ़ाने के अंशकालिक आधार पर बहुत सारे पाठ्यक्रम उपलब्ध होने चाहिए ।
- देहाती लड़कों का बहुत बड़ा अनुपात परिवार के खेत में काम करने चला जाएगा। उनके लिए आगे शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी, जो उनको अपने पेशे की अपनी कार्यकुशलता और सामान्य में समर्थ बनाएगी ।
- लड़कियों का बहुत बड़ा अनुपात तो तुरन्त ही या कुछ समय के बाद स्कूल छोड़ देगा और शादी कर लेगा । उनको गृह-विज्ञान और सामान्य शिक्षा में आगे शिक्षा दी जानी चाहिए ।
- उच्चतर माध्यमिक स्तर (Higher Secondary Stage) — इस स्तर पर तरह-तरह के व्यावसायिक पाठ्यक्रम उपलब्ध रहेंगे ।
व्यावसायिक शिक्षा के निर्धारित लक्ष्य-आयोग ने 1966 में सुझाव दिया कि 1986 तक निम्न माध्यमिक स्तर पर पढ़ने वाले 20 प्रतिशत छात्र और कक्षा 11 और 12 में पढ़ने वाले 50 प्रतिशत छात्र अवश्य ही व्यावसायिक पाठ्यक्रम को अपनाएँ ।
III. आदिशेषय्या राष्ट्रीय समीक्षा समिति 1978 (Adiseshiah Report ) – राष्ट्रीय समीक्षा समिति का गठन – शिक्षा मन्त्रालय, भारत सरकार ने अक्टूबर 197 में श्री एस, आदिशेषय्या, उपकुलपति, मद्रास विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया । इस राष्ट्रीय शिक्षा समिति ने अपनी रिपोर्ट ‘सीखना – करने को— सीखते हुए तथा कार्यरत समाज के लिए’ (Learning to Do— Towards a Learning Society) शीर्षक से मार्च 1978 में भारत सरकार को प्रस्तुत की।
इस समिति का कार्यक्षेत्र 10+2 पाठ्यक्रम के सुधार हेतु विशेषकर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण हेतु समस्याओं का अध्ययन करके सुझाव देना था।
+2 समीक्षा समिति की महत्त्वपूर्ण सिफारिशें
उच्चतर माध्यमिक शिक्षा का महत्त्व – इस स्तर की शिक्षा का विशेष महत्त्व है क्योंकि छात्रों की लगभग आधी संख्या के लिए औपचारिक शिक्षा का यह अन्तिम बिन्दु है । इस स्तर पर सीखने के अनुभव विद्यार्थियों की जीविका के लिए और उनके जीवन के ध्येय निर्माण में विशेष महत्त्व रखते हैं यह स्तर छात्रों के व्यक्तित्व के निर्माण हेतु स्कूली शिक्षा एवं महाविद्यालय के बीच सेतु का काम देता है। यह किशोर अवस्था, बाल्यकाल तथा प्रौढकाल के बीच का समय है । सम्भवतः यही ऐसी अवस्था है जिसमें अनेक प्रकार के क्षेत्रों— आध्यात्मिक एवं बौद्धिक विकास के मार्ग खुलते हैं। व्यक्तित्व की विशेष रुचियों, क्षमताओं आदि का सृजन एवं दमन होता है ।
उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के लक्ष्य राष्ट्रीय विकास में योगदान के लिए इस स्तर के निम्नलिखित उद्देश्य है ।—बेरोजगारी को रोकने में सहायता देना । निराश्रितता को रोकने में सहायता देना । ग्रामीण विकास में सहायता देना। प्रौढ साक्षरता में सहायता देना ।
उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के दो प्रकार के पाठ्यक्रम–(i) सामान्य शिक्षा पाठ्यक्रम, (ii) व्यावहारिक पाठ्यक्रम ।
सामाजिक दृष्टि से लाभदायक उत्पादन कार्य—+2 समिति ने इस पर बहुत दिया क्योंकि यह क्रियात्मक है। इसे स्थानीय आवश्यकतानुसार अपनाने की संस्तुति की है यह भी कहा है कि उसे पाठ्यक्रमों के विषयों से जोड़ा जाए और यह कार्य उचित निर्देशन में योजनानुसार किया जाए ।
सामान्य आधार पाठ्य – विवरण – इन पाठ्य-विवरणों के निम्नलिखित लक्ष्य हैं—
- छात्रों को ग्राम विकास तथा स्वयं रोजगार की आवश्यकता का अनुभव कराना।
- छात्रों को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व की जानकारी देना ।
- छात्रों में लघु तथा कुटीर उद्योगों के चलाने की कुशलताओं एवं प्रबन्धकीय योग्यताओं का विकास करना ।
- बेरोजगार, क्षमता से निम्न रोजगार, अविकसित तथा पिछड़ी आर्थिक अवस्था में की अन्तर्दृष्टि बढ़ाने हेतु योग्य बनाना ।
व्यावसायिक वैकल्पिक विषय-निम्नलिखित विशेष बातों पर बल देने के लिए कहा गया है—
- प्रयोगात्मक कार्य पर लगभग आधा समय लगाया जाए ।
- स्वयं रोजगार तत्त्व पर विशेष ध्यान दिया जाए ।
- कृषि तथा इससे सम्बन्धित व्यवसायों के पाठ्यक्रम बनाए जाएँ|
- व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का समय साधारणतः दो वर्ष होना चाहिए ।
शिक्षा के व्यवसायीकरण करने की प्रक्रिया को प्रबल बनाने के लिए सुझाव—
(1) व्यावसायिक सर्वेक्षण करना । (2) ग्रामीण क्षेत्रों में व्यावसायिक स्कूलों की स्थापना करना । (3) वर्तमान व्यावसायिक पाठ्यक्रमों तथा संस्थाओं से पूरा लाभ उठाना । (4) शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श की उचित व्यवस्था करना । (5) अध्यापकों को उचित प्रशिक्षण का प्रबंध करना । (6) उचित पाठ्य पुस्तकों का निर्माण । (7) राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा परिषद् का गठन करना । (8) अप्रेन्टिस शिक्षण की उचित व्यवस्था करना ।
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