विविध उपबंध
विविध उपबंध
आपातकालीन उपबंध
संविधान के आपात उपबंधों में दो प्रकार की आपात स्थितियों की परिकल्पना की गई है अर्थात (1) युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण राष्ट्रीय आपात और (2) वित्तीय आपात। तीसरे प्रकार की स्थिति वह स्थिति है जो किसी राज्य विशेष में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने से पैदा होती है और वहां राष्ट्रपति का शासन आवश्यक हो जाता है।
राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा : यदि मंत्रिमंडल के निर्णय की लिखित संसूचना प्राप्त होने के बाद राष्ट्रपति को लगे कि ऐसी स्थिति है जिससे युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत अथवा उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तब वह समूचे भारत या उसके किसी भाग में आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
आपातकाल में संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य की कार्यपालिका शक्तियों के प्रयोग के संबंध में किसी राज्य को निदेश दिए जाने पर हो जाता है ।
संघ के प्राधिकारियों को विधि द्वारा शक्तियां प्रदान करने और उन्हें कर्तव्य सौंपने का अधिकार है।
आपातकाल के समाप्त होने पर राष्ट्रपति के आदेश का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा : संघ का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह बाह्य आक्रमण तथा आंतरिक अव्यवस्था से अपने राज्यों की रक्षा करे और सुनिश्चित करे कि हर राज्य की सरकार संविधान के अनुसार चलाई जाए। यदि किसी राज्यपाल से रिपोर्ट मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति यह अनुभव करे कि उस राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता या संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है, तो वह उद्घोषणा जारी करके सरकार का कोई भी कार्य तथा शक्ति अपने हाथ में ले सकता है ।
दो मास की समाप्ति पर हर उद्घोषणा समाप्त हो जाएगी, यदि उसका अनुमोदन दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा न कर दिया जाए। संसद के अनुमोदन के बाद भी कोई उद्घोषणा एक बार में 6 मास से अधिक समय तक और कुल एक वर्ष से अधिक समय तक जारी नहीं रह सकती। आपातकाल में जब चुनाव हों तो यह अवधि अधिक से अधिक तीन वर्ष हो सकती है।
वित्तीय आपात : संविधान में राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि वह उद्घोषणा द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा कर सकता है। यदि उसे विश्वास हो जाए कि भारत या उसके राज्य क्षेत्र में वित्तीय संकट है। एक बार यदि संसद उसका अनुमोदन कर दे तो उद्घोषणाओं के विपरीत उसे वापस न लिये जाने तक जारी रखा जा सकता है ।
भाषा संबंधी उपबंध
भारत में रहने वाले नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा। किसी भी नागरिक को भाषा, धर्म आदि के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता ।
हर राज्य का स्थानीय अधिकारी भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों की शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधाओं की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा। यह भी कहा गया है कि इस विषय में राष्ट्रपति किसी भी राज्य को आवश्यक निर्देश दे सकता है।
विधानमंडलों की भाषा : संसद का कार्य हिंदी अथवा अंग्रेजी में किया जाएगा। लेकिन जो सदस्य हिंदी या अंग्रेजी में ठीक से अपनी बात नहीं कह सकता, उसे उसकी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति मिल सकेगी। अतः संसद के दोनों सदनों में यह प्रबंध किया गया है कि प्रमुख प्रादेशिक भाषाओं में किए गए भाषणों का साथ-साथ भाषांतरण हिंदी और अंग्रेजी में हो। लेकिन अधिकांश समय प्रत्येक सदन की समूची कार्यवाही हिंदी अथवा अंग्रेजी में होती है ।
संघ की राजभाषा : हमारे संविधान में देवनागरी लिपि वाली हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया और कहा गया कि अंकों का रूप भारतीय अंक का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
प्रादेशिक भाषाएं और संपर्क भाषा: किसी राज्य का विधानमंडल, उस राज्य में इस्तेमाल होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए स्वीकार कर सकता है। लेकिन दो या दो से अधिक राज्यों को छूट होगी कि वे अपने बीच पत्र आदि के लिए हिंदी के प्रयोग के बारे में सहमत हो जाएं।
लोक शिकायतों की भाषा : हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह किसी शिकायत को दूर कराने के लिए संघ या राज्य के के किसी अधिकारी को, संघ में या राज्य प्रयुक्त किसी भाषा में आवेदन दे सकता है। अतः कोई भी सरकारी विभाग, एजेंसी या अधिकारी किसी आवेदन को लेने से इस आधार पर मना नहीं कर सकता कि वह राजभाषा में नहीं है ।
हिंदी का विकास : संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार और विकास करे जिससे वह भारत की मिलीजुली संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। आवश्यकता होने पर अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे ।
लक्ष्य यह है कि हिंदी का प्रचार-प्रसार एवं विकास किया जाए और धीरे-धीरे शासकीय प्रयोजनों के लिए और संपर्क भाषा के रूप में उसका प्रयोग किया जाए।
आठवीं अनुसूची : हिंदी के अलावा हमारा संविधान अन्य भाषाओं को तथा उनके विकास की आवश्यकता को मान्यता प्रदान करता है। इस समय अर्थात् जनवरी 2005 तक, आठवीं अनुसूची में भारत की 22 भाषाएं शामिल हैं। ये हैं: असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, बोडो, डोगरी, संथाली, मैथिली और उर्दू ।
अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां
संविधान में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को विशेष संरक्षण दिया गया है । संविधान में अनुसूचित जनजातियों की परिभाषा नहीं दी गई है। इन्हें किसी राज्य के राज्यपाल की सलाह से उस राज्य के संबंध में राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई अधिसूचना से पहचाना जाएगा।
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