वृद्धि एवं विकास के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की विवेचना करें ।

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प्रश्न – वृद्धि एवं विकास के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की विवेचना करें ।
(Discuss the Psychological aspects of growth and development.)
उत्तर- किशोरावस्था के प्रारम्भ होते ही बालक की लम्बाई, चौड़ाई और शारीरिक अनुपात में परिवर्तन होने लग जाते हैं तथा उसमें सेक्स की दृष्टि से भी परिपक्वता प्रारम्भ हो जाती है । इन परिवर्तनों का ऊपर वर्णन किया जा चुका है। इन सभी परिवर्तनों का किशोर के मानसिक जीवन पर तथा विशेष रूप से आत्म-संगठन (Self-Consistency) पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इन सब परिवर्तनों से किशोर के समायोजन में कठिनाई पड़ती है । यह कठिनाई समय बीतने के साथ-साथ दूर हो जाती है। किशोरावस्था के शारीरिक परिवर्तनों की चेतना बालक को रहती है, इसी चेतना के फलस्वरूप उसमें आत्म-चेतना (Self-awareness) जाग्रत होती है । इस आत्म-चेतना के फलस्वरूप ही वह शारीरिक आकर्षण और सामाजिक बन्धनों को बढ़ाने लगता है। वह यह समझता है कि वह विपरीत लिंग के लोगों का ध्यान- सरलता से आकर्षित कर सकता है। अपने शारीरिक आकर्षण को बढ़ाने के लिए वह विभिन्न फैशन वाले वस्त्र पहिनता, फैशनेबुल ढंग से बालों को सँवारता है तथा आवश्यकतानुसार अन्य साधनों का भी सहारा लेता है। इन सब प्रयासों के बाद वह यह समझने लग जाता है कि वह अन्य व्यक्तियों के ध्यान का केन्द्र है। अपने किसी भी कार्य में प्रौढ़ों के हस्तक्षेप को वह अनावश्यक ही नहीं समझता है बल्कि वह उसके लिए असहनीय भी होता है । वह अपने दैनिक जीवन की सभी गतिविधियों में स्वतन्त्र रहना चाहता है ।
इस अवस्था में दोषपूर्ण शारीरिक विकास भी हो सकते हैं । इस प्रकार के विकास बालक में हीनता की भावना उत्पन्न करते हैं। इन भावानाओं की अधिकता की अवस्था में बालक अन्तर्मुखी प्रवृत्ति अपना सकता है । बहुधा यह देखा गया है कि जिन बालकों का शारीरिक विकास शीघ्र होता है तथा यौन परिपक्वता भी शीघ्र आती है, ऐसे बालक अवांछित व्यवहार करते देखे गये हैं। इसी प्रकार जिन बालकों में शारीरिक और यौन सम्बन्धी परिपक्वता देर से उत्पन्न होती है, वे अपने समूह के सामने लज्जा और संकोच जैसे लक्षणों का प्रदर्शन करते हैं। ऐसे किशोर और किशोरियाँ सामाजिक कार्यक्रमों और खेलकूद आदि में खुलकर भाग नहीं ले पाते हैं। फलस्वरूप धीरे-धीरे वे लज्जावान, संकोची, एकांतवासी, असाहसिक और अन्तर्मुखी बन जाते हैं । अध्ययनों (J. Dwyer & J. Mayer, 1967), में यह देखा गया है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अपनी शारीरिक विकास में अधिक रुचि रखती हैं और अधिक सम्बन्धित होती हैं। अतः लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में उपर्युक्त लक्षणों के उत्पन्न होने की सम्भावना अधिक होती है ।
1. मासिक धर्म के मनोवैज्ञानिक पहलू (Psychological Aspect of Mensturation) 
मासिक धर्म सेक्स सम्बन्धी परिपक्वता का संकेत है अर्थात् जिस बालिका में मासिक-धर्म प्रारम्भ हुआ है वह स्वयं अपने बच्चे पैदा करने की शक्ति रखती है। मासिक-धर्म का प्रथम अनुभव बालिका के लिए यदि सुखद होता है तो वह इस संकेत के उत्पन्न होने के बाद समायोजन में आने वाली कठिनाइयों का सफलता से सामना कर सकती है। दूसरी ओर यदि यह अनुभव कटु होते हैं तो उसे इनमें उत्पन्न समायोजन समस्याओं के समाधान में कठिनाई होती है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि लड़कियाँ मासिक-धर्म के प्रारम्भ होने को शान्तिपूर्वक लेती हैं तथा कुछ को इस बात का घमण्ड हो जाता है कि उनका समाज में स्तर मासिक धर्म के होने से बढ़ गया है। जिन समाजों में मासिक-धर्म के साथ खतरनाक और शर्म जैसे मूल्य जुड़े हुए हैं, उन समाजों की लड़कियाँ मासिक-धर्म के प्रारम्भ होने से डरती ही नहीं हैं बल्कि वे इससे घृणा भी करती हैं। एक बालिका की उसके मासिक-धर्म के प्रति क्या अभिवृत्ति होगी, यह बहुत कुछ इस बात से भी निर्धारित होता है कि उसके मित्र और परिवारीजन मासिक धर्म के प्रति क्या अभिवृत्ति रखते हैं । इन लोगों की यदि धनात्मक अभिवृत्ति है तो धनात्मक अभिवृत्ति का निर्माण होगा और यदि ऋणात्मक अभिवृत्ति है तो ऋणात्मक अभिवृत्ति का निर्माण होगा। कुछ अध्ययनों ( D. P. Ausubel, 1954; S. L. Israel 1967; H. Osofsky, 1968) में यह देखा गया कि मासिक धर्म के प्रति ऋणात्मक प्रतिक्रियाएँ बालिकाओं में उस समय उत्पन्न हो जाती हैं जब मासिक धर्म से कोई शारीरिक कष्ट होता है। इन अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि जब किशोरावस्था के प्रारम्भ में मासिक-धर्म नियमित रूप से होते नहीं हैं तब अनेक लड़कियों में इसके कारण सिरदर्द, पीठ का दर्द तथा नसों में ऐंठन (Cramps) जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। किशोरावस्था के अन्त तक मासिक धर्म नियमित रूप से होने लग जाते हैं। मासिक धर्म से उत्पन्न होने वाली इस प्रकार की कठिनाइयों को उस समय सरलता से दूर किया जा सकता है जब बालिकाओं के संरक्षक सामान्य अभिवृत्ति का प्रदर्शन करें तथा उपर्युक्त डॉक्टरी सहायता प्रदान करें। परिवार में माँ, बड़ी बहिन या भाभी आदि मासिकधर्म को सुखद बनाने में बहुत अधिक सहायता कर सकती हैं।
2. वीर्य स्खलन (Nocturnal Emission)
जिस प्रकार लड़कियों में मासिक धर्म कठिनाई उत्पन्न करता है ठीक उसी प्रकार वीर्यस्खलन लड़कों को चिन्तित कर सकता है और अचम्भे में डाल सकता है। इसे परिभाषित करते हुए मूसेन और उनके साथियों (1974) ने लिखा है कि Nocturnal emission is the ejaculation of the seminal fluid during sleep. कुछ अध्ययनों (A. Kinsey et al., 1948; W. R. Reevy, 1961) से यह स्पष्ट हुआ है कि 83% किशोर अपने जीवन में कभी न कभी वीर्य स्खलन का अनुभव वयःसन्धि अवस्था के दो साल के अन्दर अवश्य करते हैं। बहुधा यह भी देखा गया है कि इस प्रकार के वीर्य स्खलन के समय किशोर-किशोरियाँ उत्तेजक स्वप्न भी देखते हैं। इन अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अपने वीर्य स्खलन की चिन्ता कम रहती है। जब इस सम्बन्ध में लड़के उपर्युक्त शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं तब वह भी वीर्य स्खलन से भय खाने लगते
 हैं ।
3. शीघ्र बनाम विलम्ब परिपक्वता (Eerly Vs. Late Maturation)
कुछ अध्ययनों (M. C. Jones & N. Bayley, 1950; M. C. Jones, 1958) में यह देखा गया है कि जिन किशोरों में शारीरिक विकास शीघ्र होता है, वे किशोर अधिक आत्म-विश्वासी तथा सामाजिक मानदण्डों के अनुसार व्यवहार करने वाले होते हैं; दूसरी ओर जिनमें शारीरिक परिपक्वता देर से आती है, वे बालक अधिक बेचैन और ऐसा व्यवहार करने वाले होते हैं, जो दूसरों का ध्यान आकर्षित करे, यह अधिक बातूनी, कम लोकप्रिय, कम नेतृत्व के गुण वाले होते हैं। एक अन्य अध्ययन (P. H. Mussen & M. C. Jones, 1957) अध्ययन के अनुसार जिन बालकों में शारीरिक परिपक्वता देर से आती है, वे अनुपयुक्तता की अधि क भावना, ऋणात्मक आत्म-प्रत्यय, तिरस्कार की भावनाओं, प्रभुत्व की भावनाओं और आश्रितता की भावनाओं वाले होते हैं। उनमें आत्म-नियन्त्रण और उत्तरदायित्व की भी कमी होती है । ये दूसरों के समर्थन और मदद के आकांक्षी होते हैं। एक अन्य अध्ययन (D. Weatherley, 1965) जो कॉलेज के विद्यार्थियों पर था, में यह देखा गया कि विलम्ब परिपक्वता वाले बालकों में अपराध हीनता, विषाद की भावना वाले तथा अधिक चिन्ता और सहानुभूति प्राप्त करने वाले होते हैं ।

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