व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें। अथवा, अर्थव्यवस्था की संरचना से आप क्या समझते हैं? इन्हें कितने भागों में बाँटा गया है ?
प्रश्न – व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें। अथवा, अर्थव्यवस्था की संरचना से आप क्या समझते हैं? इन्हें कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर – व्यावसायिक बैंक हमारे देश की वित्तीय संस्थाओं में से एक प्रमुख संस्था है। हमारे देश में व्यावसायिक बैंक विभिन्न प्रकार के कार्यों के द्वारा समाज एवं राष्ट्र की सेवा करते हैं। व्यावसायिक बैंकों के प्रमुख कार्यों का वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है
(i) जमा राशि को स्वीकार करना : व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करना है। समाज के लोगों या संस्थाओं द्वारा व्यावसायिक बैंकों में राशि जमा किया जाता है। इसी जमा राशि के आधार पर व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को कर्ज देकर लाभ प्राप्त करते हैं। व्यावसायिक बैंक चार प्रकार से जमा राशि स्वीकार करते हैं। वे हैं – (i) स्थायी जमा, (ii) चालू जमा, (iii) आवर्ती जमा और (iv) संचयी जमा।
(ii) ऋण प्रदान करना : व्यावसायिक बैंकों के पास जो राशि जमा के रूप में आता है, इसमें से एक निश्चित राशि नकद कोष में रखकर बाकी रुपये बैंक द्वारा दूसरे व्यक्तियों को उधार दे दिया जाता है। ये बैंक उत्पादक कार्यों के लिए ऋण देते हैं और उचित जमानत की माँग भी करते हैं। ये बैंक निम्न प्रकार से ऋण प्रदान करते हैं– (i) अभियाचित एवं अल्पकालिक ऋण, (ii) नकद साख, (iii) अधिविकर्ष, (iv) विनिमय बिलों को भुनाना, (v) ऋण एवं अग्रिम।
(iii) सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य : व्यावसायिक बैंक अन्य बहुत-से कार्यों का संपादन करते हैं, जिन्हें सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहते हैं। वे कार्य हैं – (i) यात्री चेक एवं साख प्रमाण-पत्र जारी करना, (ii) लॉकर की सुविधा प्रदान करना, (iii) ATM एवं क्रेडिट कार्ड सुविधा प्रदान करना, (iv) व्यापारिक सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्रीकरण ।
(iv) एजेंसी संबंधी कार्य : आधुनिक समय में व्यावसायिक बैंक ग्राहकों की एजेंसी के रूप में सेवा करते हैं। इसके अंतर्गत बैंक (क) चेक, बिल व ड्राफ्ट का संकलन, (ख) ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण, (ग) ब्याज, ऋण की किस्त, बीमे की किस्त का भुगतान, (घ) प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय तथा (ङ) ड्राफ्ट तथा डाक द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ करती हैं।
अथवा,
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की संरचना उस देश में होने वाली आर्थिक क्रियाओं पर निर्भर करता है। किसी भी अर्थव्यवस्था में कृषि, उद्योग, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार आदि क्रियाएँ संपादित की जाती हैं। वहाँ के निवासी अपनी आजीविका अर्जन के लिए विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में लगे रहते हैं। उदाहरण के लिए कृषक कृषि कार्य करता है और कृषि उत्पादों को बाजारों में बेचकर अपने आवश्यक वस्तुओं को खरीदते हैं। इसी प्रकार उद्यमी व्यक्ति अपनी पूँजी लगाकर औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना करते हैं और लाभ कमाते हैं। देश के कुछ ऐसे भी वर्ग के लोग हैं जो अपनी सेवा प्रदान करते हैं और उसका मूल्य प्राप्त करते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था की संरचना का अर्थ विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में इसका विभाजन है। अर्थव्यवस्था की संरचना को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(i) प्राथमिक क्षेत्र : जब प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन किया जाता है तो इसे हम प्राथमिक क्षेत्र के नाम से पुकारते हैं। इसे प्राथमिक क्षेत्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अन्य निर्मित किये जाने वाले वस्तुओं का आधार है। प्राथमिक क्षेत्र के अन्तर्गत कृषि, डेयरी, मछली पालन और वन्य उत्पाद आदि आते हैं।
(ii) द्वितीयक क्षेत्र : द्वितीयक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है। द्वितीयक क्षेत्र के अन्तर्गत कृषि क्षेत्र या प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के द्वारा निर्मित की जाती है। उदाहरण के लिए गन्ने से चीनी और गुड़ तैयार करना ।
(iii) तृतीयक क्षेत्र : तृतीयक क्षेत्र जिसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है, प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र के विकास में मदद करते हैं। इसके अंतर्गत बैंक, बीमा, परिवहन, संचार, व्यापार एवं अन्य सेवाएँ आती हैं।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here