शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।

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प्रश्न – शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर – बालक का शारीरिक विकास विविध तत्त्वों से प्रभावित होता है जो निम्नांकित रूप से वर्णित हैं:-
1. वंशानुक्रम (Heredity)—प्राणी के विकास में वंशानुगत शक्तियों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। डिंकमेयर (D.C. Kinkmeyer, 1965) ने कहा कि, “वंशानुगत कारक वे जन्मजात विशेषताएँ हैं जो बालक में जन्म के समय से ही पाई जाती हैं। ” व्यक्ति के रंग, रूप, लम्बाई, शारीरिक अनुपात सभी कुछ वंशानुक्रम से प्रभावित होते हैं।
2. भौतिक वातावरण (Physical environment) — इसके अंतर्गत सभी बाह्य शक्तियाँ एवं परिस्थितियाँ आती हैं जो व्यक्ति के शारीरिक विकास को प्रभावित करती है। यदि इनका अभाव हो तो शिशु का विकास उसी प्रकार असम्भव होगा जैसे कि बिना धूप, सर्दी या अत्यधिक धूप, सर्दी, बारिश आदि के कारण पौधों का विकास नहीं हो पाता।
3. आहार (Nutrition) — बालक के उत्तम विकास के लिए पौष्टिक आहार अत्यंत जरूरी है। बच्चों की पाचन शक्ति अधिक और पेट बहुत छोटा होता है। इस कारण भोजन जल्दी-जल्दी पच जाता है और उसे भूख बहुत लगती है। शरीर विकासशील होने के कारण .भी पौष्टिक तत्त्वों की बहुत जरूरत होती है। अतः उनके लिए पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज लवण एवं विटामिन युक्त भोजन का प्रबंध होना चाहिए अन्यथा इनकी कमी से उसका शारीरिक विकास रूक जाएगा।
4. अन्तः स्त्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands) — इन ग्रंथियों द्वारा सांवित रस भी बालक के विकास को बहुत प्रभावित करते हैं। उदाहरणस्वरूप हड्डियों का विकास पराथायरायड ग्रंथि (Parathyroid gland) के स्त्राव पर निर्भर करता है। इसी प्रकार लड़के एवं लड़कियों में उनके यौन ( Sex) के लिए उचित गुण भी जनन-ग्रंथियों में स्राव पर निर्भर करता है।
5. बुद्धि (Intelligence ) – बालक के विकास ( शारीरिक एवं मानसिक ) को प्रभावित करने वाले कारकों में बुद्धि का अहम स्थान हैं। बालक की प्रत्येक क्रिया जैसे चलना, उठना, बैठना, दौड़ना आदि गत्यात्मक व्यवहार जल्द परिलक्षित होते हैं तथा उनका स्वास्थ्य एवं आकृति भी अन्य मंदबुद्धि बच्चों से अच्छा होता है।
6. यौन ( Sex ) – हम पहले पढ़ चुके हैं कि जन्म के समय लड़के लड़कियों की अपेक्षा कुछ लंबे होते हैं। वय: संधि की अवस्था में लड़कियों का विकास लड़कों की अपेक्षा जल्द शुरू होता है। साथ ही लड़कियाँ हर तरह से लड़कों की अपेक्षा जल्द परिपक्वता प्राप्त करती है। इस तरह के सभी अध्ययन इस बात को दर्शाते हैं कि यौन का भी शारीरिक विकास पर प्रभाव पड़ता है।
7. संवेगात्मक व्यवधान ( Emotional disturbances ) – बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास उसकी संवेगात्मक परिस्थितियों से भी प्रभावित होता है। हरलॉक (1978)
का कहना है कि, “बालक में जब लगातार कुछ समय तक संवेगात्मक व्यवधान होता है तो यह व्यवधान उसके पिट्यूटरी (pitutary gland) से निकलने वाले हारमोन को अवरूद्ध कर देता है जिससे बालक की लंबाई अवरूद्ध हो जाती है।” अतएव कहा जा सकता है कि संवेगात्मक व्यवधान शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं।
8. विटामिन (Vitamins) — दाँतों एवं हड्डियों के विकास के लिए कैल्शियम के साथ-साथ विटामिन ‘D’ की भी जरूरत होती है। उसकी आंतरिक क्रियाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए विटामिन ‘B’- Complex की भी जरूरत होती है। इस प्रकार ये सारे विटामिन शारीरिक विकास को प्रभावित करते
हैं ।
9. पारिवारिक प्रभाव (Familial Influence)—परिवार का वातावरण से सम्बन्धित कारकों के अन्तः क्रियाएँ बालक की शारीरिक और मानसिक विकास को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। हरलॉक (1974) के अनुसार, “प्रत्येक आयु पर वातावरण का प्रभाव लम्बाई की अपेक्षा वजन पर अधिक पड़ता है।” (At every age, environment has a greater influence on weight than on height. )” परिवार का मनोवैज्ञानिक वातावरण एवं स्थिति भी शारीरिक विकास पर उतना ही असर डालती हैं।
10. सामाजिक आर्थिक स्तर (Socio-economic Status ) – यह बात अनेक अध्ययनों में उभरकर सामने आई है कि निम्न आर्थिक-सामाजिक स्तर वाले परिवारों के बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास, अच्छी स्थिति वाले परिवारों की अपेक्षा हीन होता है। अच्छे आर्थिक स्तर से सामाजिक स्तर (आज के समाज में विशेषकर) उन्नत होता है और इन दोनों के प्रभावस्वरूप बच्चे को उसके विकास के लिए हर सुविधा उपलब्ध हो पाती है। यदि ऐसा न हो तो शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास प्रभावित होगा, यह सुनिश्चित है।
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