शिक्षा के सार्वभौमीकरण से आप क्या समझते हैं ? शिक्षा के क्षेत्र में असमानता दूर करने के लिए उठाये गये कदमों की समीक्षा करें ।
उत्तर – शिक्षा के सार्वभौमीकरण से तात्पर्य शिक्षा के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जुड़ाव से है । विश्व के सभी देश के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं लेकिन सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सीखाते हैं। यदि विश्व सुरक्षित रहेगा तभी उसके देश सुरक्षित रहेंगे। विश्व के बदलते हुए परिदृश्य को देखने से ज्ञात होता है कि 21वीं सदी की शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए जिससे सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हो । इसलिए 21वीं सदी की शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बालक के दृष्टि को संकुचित राष्ट्रीयता से विकसित करके विश्वव्यापी बनाना होना चाहिए ।
वर्तमान में सार्वभौमिक शिक्षा का सम्प्रत्यय हमारे प्राचीन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा का ही दूसरा रूप है । ईश्वर एक है, सभी धर्म एक है : सम्पूर्ण मानव जाति एक है । हमें सम्पूर्ण मानव जाति को एक मानकर कार्य करना होगा ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् शिक्षा को विकास और आधुनिकीकरण के मार्ग में मुख्य सहायक मानते हुए शिक्षा के व्यापक प्रसार और शैक्षिक असमानता को दूर करने के बहुत सारे प्रयास किए गए हैं जिन्हें निम्न रूप में देख सकते हैं –
- संविधान द्वारा सबको समानता का अधिकार प्रदान करते हुए सभी नागरिकों हेतु समान मौलिक अवसर की व्यवस्था की गई है । 86वें संविधान संशोधन का अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 21 (क) जोड़कर 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए मौलिक अधिकार के रूप में अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया गया है । इसी संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 45 में राज्यों को 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया। साथ ही 11वें मूल कर्त्तव्य को छोड़कर प्रत्येक माता-पिता व अभिभावक को बच्चों के सम्यक पालन-पोष्ण व शिक्षण के कर्तव्याधीन बनाया गया ।
- विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों जैसे गाँव की बेटी पढ़ाओ योजना, महिला समस्या योजना, शिक्षाकर्मी योजना, सर्वशिक्षा अभियान, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए सीनियर सेकेण्डरी तक फीस माफी 50% तक महिला शिक्षकों की नियुक्ति, मुक्त पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराना आदि के माध्यम से शैक्षिक असमानता को कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं ।
- राष्ट्रीय शिक्षा संशोधन नीति 1992 से शैक्षिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के शैक्षिक विकास के लिए गहन क्षेत्रीय और मदरसा आधुनिकीकरणा कार्यक्रम चलाया जा रहा है । साथ ही अल्पसंख्यकों के शैक्षिक विकास हेतु ‘मौलाना आजाद फाउण्डेशन’ और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम’ के माध्यम से धन आबंटन किया जाता है । मुस्लिमों को अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल करके शैक्षिक असमानता को खत्म करने का प्रयास किया गया है ।
- भिन्न-भि स्तरों पर आरक्षण के माध्यम से शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश को सुनिश्चित किया गया है जिससे कमजोर वर्गों को भी शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हो सकें ।
- हाल ही में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है । इस रूप में सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े समूहों में शिक्षा के प्रसार को व्यापक करने का प्रयास करने का प्रयास किया जा रहा है ।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वर्तमान भारत में शैक्षिक क्षेत्र में विद्यमान असमानता को दूर करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं परंतु शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त यह असमानता अभी भी सरकार द्वारा किये जा रहे शिक्षा के सार्वभौमिकरण की दिशा में किये जा रहे प्रयासों में बाधक बनी हुई है ?
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