सीखने के मनोविज्ञान में प्रेरणा के महत्त्व एवं उपयोग पर प्रकाश डालें ।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – सीखने के मनोविज्ञान में प्रेरणा के महत्त्व एवं उपयोग पर प्रकाश डालें ।
(Throw light on the Importance and uses of motivation in the psychology of learning.)
उत्तर – सभी प्रकार की शिक्षा तथा अधिगम में प्रेरणा का सार्थक महत्त्व है। शिक्षा का अर्थ शिक्षण नहीं है बल्कि इसका अर्थ बालक को इस योग्य बनाना है कि वह स्वयं सीख सके। इसलिए प्रेरणा की सफलता उन कथनों, प्रोत्साहनों, बलों आदि पर निर्भर करती है जो छात्र को सीखने के लिए तत्पर करते हैं। दूसरे शब्दों में, शिक्षा की समस्या वस्तुतः बालक को अभिप्रेरित करने की ही समस्या है। एक अच्छी तरह से अभिप्रेरित बालक अधिक एकाग्रता रखता है, वह अपने प्रत्येक कार्य को पूरे मन से तल्लीनता के साथ करता है तथा प्रत्येक क्रिया में अधिकाधिक सफलता प्राप्त करता है । इसी प्रकार, अनुशासन की समस्या भी छात्र को सही दिशा में अभिप्रेरित करने की ही समस्या है । चरित्र निर्माण तथा संतुलित व्यक्तित्व का विकास भी प्रेरणा में सही प्रकार के निर्देशन पर ही निर्भर करता है । इस दृष्टि से यदि जीवन के उच्च आदर्शों एवं गुणों को चालक बलों के रूप में प्रयोग किया जाए तो व्यक्तित्व को शिखर की ऊँचाइयों की ओर मोड़ना सहज हो जाता है। इसी प्रकार, हमारी सभी शिक्षण विधियाँ भी प्रभावहीन सिद्ध हो जाती हैं यदि छात्र पहले से ही प्रेरित नहीं है । ये तभी प्रभावी बन पाती हैं जब हम छात्र को भली प्रकार प्रेरित कर लेते हैं । इसीलिए एन्डरसन कहते हैं —
“Learning will proceed best if motivated.”

प्रत्येक मनुष्य जो किसी लक्ष्य की ओर अग्रसर है, उसकी तमाम क्रियाओं में प्रेरणा एक महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है। अगर देखा जाए तो सभी प्रकार के अधिगम में कोई न कोई लक्ष्य निहित होना चाहिए और तभी हम कह सकते हैं कि सभी अधिगम प्रेरणाप्रद होती हैं। अतः, यह आवश्यक है कि जहाँ कहीं भी अधिगम हो रहा है यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि इसमें प्रेरणा का पर्याप्त अंश है, क्योंकि चालक की तीव्रता, लक्ष्य प्राप्त करने की बेचैनी और उत्सुकता तथा ऐसी दूसरी चीजें अधिगम प्रक्रिया की प्रभावशीलता के अन्तर को स्पष्ट करती हैं। अध्यापक का यह कर्त्तव्य है कि वह प्रभावी अधिगम की परिस्थितियों में सुधार लाये । यह सब कार्य वह प्रेरणा के प्रभावी प्रयोग से ही कर सकता है। प्रेरणा के अन्तर्गत प्रोत्साहनों में हेर-फेर, लक्ष्यों के चयन में सावधानी, उचित वातावरण का निर्माण, भावनात्मक रुचि में वृद्धि आदि बातें सम्मिलित हैं। एक सफल शिक्षण का रहस्य यह है कि वह उन साधनों की खोज करे जिनके प्रभाव में छात्र वही करने के लिए विवश हो जो अध्यापक उससे कराना चाहता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि प्रेरणा के बल पर हम उन सिद्धान्तों या तरीकों की खोज करना चाहते हैं जो बालक को उसी प्रकार का अधिगम करने की दिशा में अग्रसर करे जो स्कूल उससे अपेक्षा करता है, क्योंकि जिस प्रकार मनुष्य ईश्वर के हाथ की कठपुतली है उसी प्रकार प्रेरणा व्यक्ति का बाहरी आवरण है । इसीलिए मर्सेल कहते हैं—“ प्रेरणा यह तय करती है कि व्यक्ति कितना सही सीखेगा तथा कितने समय तक सीखता रहेगा । ”

इसी प्रकार केली का भी विचार है कि, “सीखने की कुशल कला में प्रेरणा एक केन्द्रीय कारक है । सभी प्रकार के अधिगम में किसी न किसी प्रकार की प्रेरणा का होना आवश्यक है । ”

निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर सीखने में प्रेरणा के महत्त्व को और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है—

  1. व्यवहार को नियन्त्रित करना (Controlling the Behaviour) — बालक स्वाभाविक रूप से ही नटखट, शरारती तथा उद्दण्ड होता है। अपनी इस प्रकृति के कारण वह कभी-कभी कक्षा में अनेक प्रकार की अवांछनीय क्रियाएँ करता है जो अध्यापक का सिरदर्द बन जाती हैं । ऐसी स्थिति में बालकों के इस प्रकार के व्यवहार को नियन्त्रित करने के लिए अध्यापक को सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए । प्रशंसा, निन्दा, पुरस्कार, दण्ड आदि कृत्रिम प्रेरकों का बुद्धिमानी से प्रयोग करके शिक्षक बालकों के व्यवहार को नियन्त्रित, निर्देशित तथा परिवर्तित कर सकता है तथा उनकी ऊर्जा को सही दिशा प्रदान कर सकता है।
  2. रूचि का विकास (Development of Interests, Hobbies, etc.) – व्यक्ति का व्यक्तित्व अनूठा है । वह असीम खजाने से भरा होता है। ठीक इसी प्रकार बालक रूपी नन्हा पौधा भी अनेक गुणों से परिपूर्ण होता है । आवश्यकता होती है उन अन्तर्निहित क्षमताओं के प्रस्फुटन की । कल्पनाओं और सृजनात्मकता का अनूठा संगम होता है उसका बचपन । आवश्यकता होती है उसे उकेरने और तराशने की। यह सब कार्य अध्यापक आन्तरिक अभिप्रेरणा का प्रयोग करके कर सकता है। ऐसा करके वह छात्र में पढ़ने के प्रति रुचि ही उत्पन्न नहीं करता बल्कि उसकी विविध रुचियों एवं विशेषताओं का विकसित होने के अवसर भी प्रदान करता है ।
  3. ध्यान केन्द्रित करने में सहायक ( Helps in Concentration)—अपने शरारती स्वभाव के कारण बालक का ध्यान किसी बात पर अधिक समय तक केन्द्रित नहीं रह पाता. है । ऐसी स्थिति में उसकी एकाग्रता बनाए रखने में प्रेरणा का महत्त्वपूर्ण हाथ रहता है। शिक्षक, रुचिकर एवं उपयुक्त साधनों का प्रयोग करके छात्रों का अवधान पाठ की ओर केन्द्रित कर सकता है। छात्र, प्रेरणा के परिणामस्वरूप ही पाठ्यवस्तु में ध्यान देता है और उसे शीघ्र आत्मसात कर लेता है । क्रो व क्रो का विचार है—“शिक्षक बालकों को प्रेरित करके उन्हें अपने ध्यान को पाठ्यवस्तु पर केन्द्रित करने में सहायता दे सकता है। “
  4. मानसिक विकास में सहायक (Helps in Mental Development) — शिक्षक प्रेरकों का प्रयोग करके छात्रों को ज्ञानार्जन के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इससे छात्रों में ज्ञान प्राप्ति के लिए अभिलाषा उत्पन्न होती है जो उनके मानसिक विकास में सहायक होती है। जिस प्रकार किसी कठिन प्रत्यय को समझाने के लिए अध्यापक छात्र जीवन से या दैनिक जीवन से सम्बन्धित अनेकों उदाहरणों का सहारा लेते हैं ठीक उसी प्रकार छात्र भी पुरस्कार के लालच में, अध्यापक का प्रशंसा बनने की इच्छा में अथवा कक्षा में सबसे आगे निकलने की आकांक्षा में शिक्षण अधिगम क्रिया में बढ़-चढ़कर भाग लेता है जो निःसन्देह उसके मानसिक विकास में सहायक सिद्ध होती है। वह कठिन से कठिन प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करता है । इसीलिए क्रो व क्रो लिखते हैं— “अभिप्रेरक, छात्र को उसकी सीखने की क्रियाओं में प्रोत्साहन देते हैं।”
  5. लक्ष्य प्राप्ति में सहायक (Helps in Gaining Goal)– प्रत्येक व्यक्ति का जीवन में कोई न कोई लक्ष्य अवश्य होता है। ठीक उसी प्रकार शिक्षा की व्यवस्था भी किसी न किसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर की जाती है। लक्ष्य प्राप्ति में अभिप्रेरणा का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। अभिप्रेरणा, निर्धारित लक्ष्य की ओर अग्रसर होने के लिए सदैव प्रेरित करती रहती है। अतः अध्यापक को चाहिए कि वह बालकों को उनके लक्ष्य की ओर आकर्षित करके उन्हें उसकी प्राप्ति के लिए अभिप्रेरणा प्रदान करे। इसके लिए पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, अनुशासन आदि पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है ।
  6. चरित्र निर्माण में सहायक ( Helps in Character Building ) – चरित्र हमारे जीवन की आधारशिला है। चरित्र निर्माण का तात्पर्य, छात्र छात्राओं में अच्छी आदतों, अच्छे गुणों और अच्छे आदर्शों का विकास करना है। शिक्षक इन्हें प्राप्त करने के लिए छात्रों को प्रेरित कर सकता है। इस दृष्टि से शिक्षक का स्वयं का चरित्र भी छात्रों के लिए अनुकरणीय होता है तथा वह स्वयं में ही एक प्रेरक होता है। किसी ने कहा भी है कि – “Teacher is the best motivator.”
    अतः उसे स्वयं में ही एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। अध्यापक को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके पास केवल दो आँखें हैं जबकि उसके ऊपर सम्पूर्ण का की आँखें टिकी हैं जो उसके प्रत्येक व्यवहार का सूक्ष्म निरीक्षण कर रही हैं ।
  7. अनुशासन की दृष्टि से (From Discipline Point of View) आज छात्रों में अनुशासन सम्बन्धी समस्या गम्भीर होती जा रही है। अनुशासनहीनता का प्रमुख कारण है कि छात्रों में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा का पूर्ण अभाव है। अतः, छात्रों को अनुशासनप्रिय बनाने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक उन्हें अच्छे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करे। अनुशासनहीनता को समाप्त करने के लिए पुरस्कार, दण्ड आदि कृत्रिम प्रेरकों का कम प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि इनका प्रभाव अस्थायी रहता है तथा इनके स्थान पर स्वाभाविक व आन्तरिक अभिप्रेरणा का प्रयोग करना चाहिए जिससे छात्रों में स्व-अनुशासन की भावना का विकास हो सके ।
  8. पाठ्यक्रम में सुधार (Improvement in Curriculum)- पाठ्यक्रम का परीक्षा प्रणाली से सीधा सम्बन्ध है । अतः, पाठ्यक्रम निर्माण करते समय पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाना चाहिए । संक्षेप में, इसे छात्रों की रुचि, आयु, योग्यता, क्षमता आदि के अनुरूप बनाया जाना चाहिए । साथ ही, परीक्षा प्रणाली में भी पारदर्शिता आनी चाहिए तथा निबन्धात्मक एवं वस्तुनिष्ठ प्रणाली का गुण-दोषों के आधार पर मूल्यांकन करके इन्हें परीक्षा प्रणाली में यथोचित स्थान दिया जाना चाहिए । पाठ्यक्रम निर्माण की दृष्टि ‘लकीर का फंकीर’ बना रहना उचित नहीं । समय की माँग के अनुरूप इसमें पुराने के धान पर अनुसंधान आधारित नवीन प्रत्ययों को स्थान दिया जाना चाहिए। ऐसा होने पर ही त्र को पढ़ने की प्रेरणा मिल सकती है तथा पाठ्यक्रम भी उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने सहायक सिद्ध हो सकता है ।
  9. अध्यापन विधियों में सुधार (Improvement in Teaching Methods ) – ात्रों को ज्ञानार्जन के लिए अभिप्रेरणा प्रदान करना अध्यापन विधि का प्रमुख ध्येय होता । अतः, शिक्षक को ऐसी अध्यापन विधि का प्रयोग करना चाहिए जो छात्रों को पढ़ने के लए प्रेरित कर सके । इस दृष्टि से अध्यापन विधि का मनोरंजन एवं रुचिकर होना अत्यन्त आवश्यक है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिक्षण में किण्डरगार्टन, मान्टेसरी आदि द्धतियों तथा दृश्य-श्रव्य सामग्री का उपयोग दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।
कक्षा शिक्षण के अन्तर्गत अध्यापक को प्रेरणा का किस प्रकार प्रयोग करना चाहिए, स सम्बन्ध में M. K. Thomson ने निम्नलिखित बिन्दु बताए हैं –
  1. शिक्षक को एक शक्तिशाली प्रेरक का बल प्रयोग में लाना चाहिए ।
  2. उसे छात्रों को शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना वाहिए ।
  3. उसे अधिक से अधिक प्रेरकों का प्रयोग करना चाहिए ।
  4. उसे छात्र के सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर ध्यान देना चाहिए ।
  5. शिक्षक को स्वयं भी जोशीला होना चाहिए ।
  6. उस विशेष रूप से सामुदायिकता व ‘प्रतिष्ठा की चाह’ जैसी उत्तेजनाओं का प्रयोग करना चाहिए ।
  7. उसे स्वयं में ही एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। अध्यापक स्वयं में ही एक सशक्त प्रेरणा है ।
  8. प्रेरकों में लक्ष्य निहित होते हैं । इसलिए लक्ष्य जितना अधिक स्पष्ट होगा, कार्य के पीछे प्रेरणा भी उतनी ही अधिक शक्तिशाली होगी। लक्ष्य को व्यापक और स्पष्ट बनाने वाला प्रत्येक प्रयास प्रभावी प्रेरणा की दिशा में एक सार्थक कदम सिद्ध होगा।
  9. उसे छात्र अभिव्यक्ति के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने चाहिए ।
  10. प्रेरणा के अन्तर्गत व्यक्तिगत विभिन्नताएँ — आयु, वंशानुक्रम तथा अधिगमप्रक्रिया के कारण होती हैं । अध्यापक को इन्हें भी ध्यान में रखना चाहिए ।

उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि अभिप्रेरणा, शिक्षा प्रक्रिया का प्रमुख आधार और सीखने का शक्तिशाली साधन है। अभिप्रेरणा का प्रयोग करके शिक्षक छात्रों को उनके लक्ष्य तक सफलतापूर्वक पहुँचा सकता है, उनकी क्रियाओं को सही दिशा प्रदान करके उनके व्यवहार में वांछित परिवर्तन कर सकता है । अतः शिक्षा या सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा के महत्त्व को किसी भी दशा में अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन, देखने में आता है कि विद्यालयों में अध्यापक इस शब्द की अनदेखी करते हैं और यही कारण है कि शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है और छात्रों के व्यवहार में भी शालीनता दिखाई नहीं देती । कुप्पूस्वामी ने ठीक ही लिखा है—” हमारे विद्यालयों में सीखने के लिए वास्तविक और स्थायी प्रेरकों को प्रदान किये जाने के प्रयास की आवश्यकता है । ”

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *