सृजनात्मकता के स्तर एवं सृजनात्मकता में निहित योग्यताओं का वर्णन करें।

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प्रश्न – सृजनात्मकता के स्तर एवं सृजनात्मकता में निहित योग्यताओं का वर्णन करें।
(Describe the levels and abilities Involoved in Creativity.)
उत्तर – टेलर (Taylor, 1959) के अनुसार सृजनात्मकता के निम्नांकित पाँच स्तर होते हैं —
  1. अभिव्यंजक सृजनात्मकता ( Expressive Creativity)- इस प्रकार की सृजनात्मकता में कौशल (Skills), मौलिकता (Originality) तथा उत्पादों की गुणवत्ता इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं होती जितनी कि सृजन करने की प्रक्रिया।
  2. उत्पादक सृजनात्मकता (Productive Creativity) — इसमें कलात्मक या वैज्ञानिक उत्पाद शामिल किये जाते हैं जहाँ स्वतन्त्र क्रियाओं को नियन्त्रित या सीमित करने तथा परिष्कृत उत्पादों का निर्माण करने के लिए प्रविधियाँ विकसित करने की प्रकृति होती है।
  3. आविष्कारशील सृजनात्मकता (Innovative Creativity)– इसमें अन्वेषक या जाँच-पड़ताल करने वाला व्यक्ति सामग्री, विधि, माध्यम और प्रविधियों का प्रयोग करने में अपनी निपुणता प्रदर्शित करता है।
  4. नवाचारात्मक सृजनात्मकता (Modified Creativity)—नवाचारात्मक सृजनात्मकता के अन्तर्गत रूपान्तरण द्वारा सुधार निहित होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति परिस्थिति विशेष के सन्दर्भ में अपनी सृजनात्मकता में परिवर्तन ला सकता है।
  5. आविर्भावात्मक सृजनात्मकता (Originative Creativity) — पूर्णत: नये नियमों या मान्यताओं का विकास, जिनके आधार पर कला, लेखन, संगीत, विज्ञान आदि के नये सम्प्रदाय पोषित किये जाते हैं, आविर्भावात्मक सृजनात्मकता के अन्तर्गत आते हैं।
सृजनात्मकता में निहित योग्यताएँ 
(Abilities (Elements) Involved in Creativity)
विलियम (William) महोदय ने एक शिक्षक को कक्षा परिस्थितियों के अन्तर्गत समाविष्ट अनेक प्रकार की क्रियाओं के सम्बन्ध में एक स्पष्ट तथा सुव्यंस्थित विश्लेषण प्रस्तुत किया है जिससे कि सृजनात्मक चिन्तन जैसी योग्यता का विकास संयोग पर न छोड़ दिया जाये और न ही इस योग्यता की उपेक्षा की जा सके। उसके अनुसार, सृजनशीलता में निम्न आठ योग्यताओं का समावेश रहता है।
(1) प्रवाह चिन्तन (Fluent Thinking) –
Who thinks of the most ideas, flow of thought.
परीक्षार्थी द्वारा दिये गये प्रत्युत्तरों की संख्या के आधार पर प्रवाह का मापन किया जाता है। इसके चार प्रारूप हैं— प्रत्ययमूलक, अभिव्यक्तिपरक, साहचर्यात्मक तथा शब्द प्रवाह। प्रत्ययमूलक में विचारों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित किया जाता है, जैसे, किसी दी हुई कहानी का शीर्षक बताना। अभिव्यक्ति परक प्रवाह का तात्पर्य ऐसे नवीन विचारों की उत्पत्ति से है जो किसी अवस्था (System) का निर्माण कर सकें। उदाहरणार्थ, चार शब्दों का एक ऐसा वाक्य बनाइए जिसमें प्रत्येक शब्द का पहला अक्षर दिये गये क्रमानुसार हो
W…………c …………… e ………n
अर्थात् (We can eat nuts तथा Willie comes every night etc.)
साहचर्यात्मक प्रवाह के अन्तर्गत किसी शब्द से सम्बन्धित अधिकाधिक समान सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं, जैसे, समानार्थी या विलोम शब्द । शब्द प्रवाह में हमारा सम्बन्ध केवल शब्दों से होता है। उदाहरणार्थ, ऐसे शब्द लिखिए जिनका प्रारम्भ (‘lar’) अक्षर से हो अथवा जिनका अन्त (‘lar’) अक्षर पर हो अथवा ऐसे शब्द लिखिए जिनके प्रारम्भ और अन्त में ‘d’ अक्षर आये।
(2) लचीला चिन्तन (Flexible Thinking) 
Number of different approaches, variety of ideas.
लचीलापन अथवा लचकता एक प्रकार से प्रत्युत्तरों की विविधता का माप है। इससे यह पता चलता है कि व्यक्ति के प्रत्युत्तर कितनी विविध दिशाओं से सम्बन्धित हैं। यह चिन्तन दो प्रकार का होता है – आकृति स्वतः स्फूर्त लचकता (Figural Spontaneous flexibility) तथा आकृति दत्तक लचकता (Figural adaptive flexibility)। पहले प्रकार के अन्तर्गत घन विचलन (Cube fluctuation), पवन चक्की सुधार तथा दृष्टिपटलीय प्रतिस्पर्धा – उत्क्रमण (Retinal rivalry reversals) आते हैं तथा द्वितीय प्रकार के चिन्तन के अन्तर्गत माचिस की समस्याएँ II तथा III आती हैं ।
घन विचलन में अस्तष्ट घन के परिप्रेक्ष्य में परिवर्तनों की संख्या बताई जाती है। पवन चक्की सुधार में घूमती हुई आयताकार पत्ती की परछाई को देखते हुए एक भ्रम से दूसरे में होने वाले परिवर्तनों की संख्या बताई जाती है। दृष्टिपटलीय प्रतिस्पर्धा-उत्क्रमण में. त्रिविमदर्शी (Stereosocope) द्वारा एक आँख में नीला तथा दूसरी में पीला प्रकाश किये जाने पर अभ्यर्थी को उत्पक्रमणों की संख्या बतानी होती है। माचिस की समस्याएँ II तथा III में अभ्यर्थी को माचिस के ऐसे तीन या चार नमूने बताने होते हैं, जिनमें से निश्चित संख्या में दियासलाईयाँ हटाने पर निश्चित संख्या में आयत, त्रिकोण या वर्ग शेष रह
जायें ।
(3) मौलिक चिन्तन (Original Thinking)
Unusual responses, clever ideas.
मौलिकता से तात्पर्य है कि अभ्यर्थी के प्रत्युत्तर सामान्य एवं प्रचलित उत्तरों से कितने भिन्न हैं। इस प्रकार मौलिकता का ज्ञान असाधारण (Uncommon) उत्तरों से होता है। किसी वस्तु के नये-नये उपयोग बताना, दूरस्थ साचर्य ( Remote association) स्थापित करना, अधिक वैयक्तिक प्रत्युत्तर, मौलिकता को व्यक्त करता है। मौलिकता के अन्तर्गत कहानी के कथानकों के लिये चतुर शीर्षक (Clever title) लिखना, वस्तुओं और क्रियाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीकों को बताना तथा कुछ परिवर्तनों के दूरगामी परिणामों (Remote consequences) को लिखना आदि आता है।
(4) विस्तृत चिन्तन (Elaborate Thinking)
Embellishing upon an idea; production of detailed steps.
विस्तृत चिन्तन से तात्पर्य विचारों की विस्तृत व्याख्या से है। अभ्यर्थी से कहा जा सकता है कि दी हुई रेखाओं में कुछ जोड़कर सार्थक चित्र बनाइये अथवा किसी खेल की योजना में आवश्यक चरणों का जितना विस्तृत वर्णन को सके, कीजिये । विस्तृतीकरण (Elaboration) जितना अधिक होता है, उतने ही अंक भी अधिक होते हैं। विस्तृत चिन्तन के अन्तर्गत विशदीकरण योजना तथा आकृति उत्पादन मुख्य हैं।
(5) जटिन चिन्तन (Complex Thinking) –
Ability to handle involved details; likes to toy with intricate idesa. जटिल चिन्तन के अन्तर्गत अभ्यर्थी सरल समस्याओं को हल करने में रुचि नहीं रखता। उसे चुनौतीपूर्ण कार्यों को करने में आनन्द आता है। जोखिम उठाना जैसे उसका स्वभाव ही बन गया हो। यही कारण है कि प्रतिभाशाली छात्र कभी-कभी शिक्षक के शिक्षण से सन्तुष्ट नहीं हो पाते क्योंकि, शिक्षक अपनी पाठ-योजना एक सामान्य विद्यार्थी को ध्यान में रखकर बनाता है न कि पिछड़े हुए बालक या प्रतिभाशाली । प्रतिभाशाली या सृजनशील बालक यह सोचता है कि अध्यापक जो कुछ पढ़ा रहा है वह उसे पहले ही से आता है या उसे आसानी से पुस्तकों से भी सीखा जा सकता है या अध्यापक को ज्ञान उसके मानसिक स्तर से नीचा है और इसी भावना के तहत वह शिक्षक को इधर-उधर की बातों में उलझाने का प्रयास करता है।
(6) जोखिम उठाने की प्रवृत्ति (Risk Taking Tendency)
Tries out adventurous tasks, venture to guess.
सृजनशील बालकों में जोखिम उठाने की प्रवृत्ति आमतौर पर देखने को मिलती है। ये बाधाओं से हार मानना नहीं चाहते बल्कि, किसी भी प्रकार उन पर विजय प्राप्त करके ही रहते हैं। उत्तेजनापूर्ण कार्यों को करने में इन्हें आनन्द आता है। इनका जीवन दर्शन होता है, ‘No risk, no gain.’ अतः किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने में जी-जान से जुट जाते हैं तथा जब तक उस कार्य में सफलता नहीं मिल जाती है, पीछे मुड़कर नहीं देखते। मार्ग में मिलने वाली असफलताओं को ये सफलता की मंजिल में पड़ाव समझते हैं।
(7) जिज्ञासा (Curiosity) –
Examines thing and ideas, capacity to wander about things which may lead somewhere, imagination, fredom experienced, building thought models of a situation.
जिज्ञासा से तात्पर्य प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति से है। डे (Day) ने अपने अध्ययन में पाया कि सृजनात्मकता एवं जिज्ञासा एक दूसरे से अधिक सम्बन्धित हैं। सृजनात्मकता के लिये उच्च स्तर की जिज्ञासा अति आवश्यक है। सृजनशील बालक के ज्ञान का विस्तार असीमति होता है। उसकी यह इच्छा बराबर बनी रहती है कि आज विश्व में क्या गतिविधियाँ चल रही हैं, अनुसन्धान के क्षेत्र में नवीन उपलब्धियाँ क्या हैं, मानव विकास की प्रक्रिया वातावरण से किस प्रकार अनुबन्धित है आदि। अपने चारों ओर घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने की जिज्ञासा, उसके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग बन जाती है और इसी के परिणामस्वरूप वह नई-नई चीजों का सृजन करता है।
(8) पुन: परिभाषा (Re-definition)–
यह विचारों को पुनः व्यवस्थित करने की योग्यता है। इसमें अभ्यर्थी को पुरानी वस्तुओं के कल्पनात्मक उपयोग बनाने होते हैं जिससे नवीन लक्ष्यों के अनुरूप इनका प्रयोग किया जा सके। उदाहरणार्थ-अभ्यर्थी से यह बताने के लिये कहा जा सकता है कि दिये गये चित्र में उस वस्तु का नाम बताइये जो किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिये प्रयोग की गई हो या की जाती हो। इसके तीन प्रारूप हैं—आकृति पुनः परिभाषीकरण (Figural Redefinition), प्रतीकात्मक पुनःपरिभाषीकरण (Symbolic Redefinition) तथा शब्दार्थ-विषयक पुनः परिभाषीकरण (Semantic Redefinition ) । पहले प्रकार में, छिपी हुई आकृति, छद्मावरण का ढूँढना, छिपा हुआ चित्र, दूसरे प्रकार में, छद्मावरण शब्द, शाब्दिक पुनर्गठन तथा तीसरे प्रकार में, समग्र पुनर्गठन (Gestalt transformation), वस्तु संश्लेषण तथा समग्र चित्र आदि सम्मिलित हैं।

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