स्कूल में पुस्तकाल के कार्य की विवेचना करें ।

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प्रश्न – स्कूल में पुस्तकाल के कार्य की विवेचना करें । 
उत्तर –
  1. यह बच्चों का शब्द – ज्ञान बढ़ाता है तथा कक्षा-कार्य में सहायता देता है । इससे गृह-कार्य करने में भी सहायता मिलती है ।
  2. पुस्तकालय बच्चों को स्कूल की अन्यान्य गतिविधियों तथा कार्यक्रमों के लिए भी तैयार करता है। बच्चे ज्ञान अर्जित करते हैं, जिससे वे स्कूलों में समय-समय पर होने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में सफलतापूर्वक तथा उत्साहपूर्वक भाग ले सकते हैं। शिक्षालय पत्रिका के लिए लेख लिख सकते हैं, भाषण दे सकते हैं तथा परिसंवादों में भाग ले सकते हैं ।
  3. ‘प्रयोजन प्रणाली’ (Project Method) तथा ‘डाल्टन प्रणाली’ (Dalton Plan) उसी अवस्था में सफल हो सकती है, यदि स्कूल में एक अच्छा सुव्यवस्थित पुस्तकालय हो ।
  4. पुस्तकालय बच्चों को इस बात में अभ्यस्त करता है कि वे पुस्तकें पढ़ें तथा उनसे अच्छे उदाहरण ग्रहण करके अपने जीवन को महान् बनायें ।
  5. पुस्तकें बच्चों के सम्मुख ज्ञान का एक विस्तृत तथा समृद्ध भण्डार प्रस्तुत करती हैं जिनसे बच्चों के दृष्टिकोण विस्तृत होते हैं, बौद्धिक विकास होता है और वे इस योग्य बनते हैं कि बड़े होकर स्वयं अच्छी पुस्तकें लिख सकें ।
  6. पुस्तकालय बच्चों में स्वच्छता का स्वभाव डालता है तथा उन्हें पुस्तकों के उचित उपयोग की शिक्षा देता है ।
  7. पुस्तकालय बच्चों को नियमितता तथा अनुशासन की शिक्षा देता है, क्योंकि बच्चों को नियत समय पर पुस्तकें ले जानी और लौटानी पड़ती हैं ।
  8. यह बच्चों की साहित्यिक क्षुधा को शान्त करता है। बच्चों के लिए मनोरंजक पुस्तकें जुटाता है। बच्चे खाली समय में उपयोगी पुस्तकें पढ़ते हैं तथा अपना समय गँवाने या अनुपयोगी पुस्तकें पढ़ने से बचते हैं। ‘स्टील’ के शब्दों में यह कहा जा सकता है कि “व्यायाम से शरीर को जो लाभ होता है, वही लाभ अध्ययन से मस्तिष्क को प्राप्त होता है। “
  9. पुस्तकालय बच्चों में मौन-पठन का स्वभाव डालता है।
  10. पुस्तकालय, अध्यापक तथा छात्र दोनों के लिए बौद्धिक विकास का अद्भुत स्रोत है । कक्षा में पढ़ाने के लिए इसमें अध्यापकों को कथा प्रसंग की सारी सामग्री उपलब्ध होती है।
  11. पुस्तकालय खाली समय का सदुपयोग सिखाता है, अन्यथा बच्चे खाली समय में स्कूल में अनुशासनहीनता सीखते हैं।
  12. मनोरंजक कार्य-पुस्तकालय केवल शिक्षा कार्य में सहायता ही नहीं देता अपितु बच्चे के अन्यान्य कार्यक्रमों तथा शिक्षालय से बाहर की रुचियों के परिष्कार में भी हाथ बँटाता है। पुस्तकालय में बच्चे के स्वभावगत तथा रुचि के अनुसार पदार्थों का होना भी आवश्यक है। पुस्तकालय में अभिनय सम्बन्धी, स्काउटिंग – सम्बन्धी तथा विभिन्न रुचियों कुछ अनुसार पुस्तकों का होना आवश्यक है। कुछ लोगों का तो यह विचार है कि बच्चे को पढ़ते रहना चाहिए, उसमें से आनन्द ग्रहण करना चाहिए वह क्या पढ़ता है, इसकी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं । पुस्तकालय का काम मनोरंजक पुस्तकों द्वारा आनन्द प्राप्त करने की आदत डालता ही है। बहुत से मनोरंजक और शैक्षिक महत्व के प्रयोजनों में भी पुस्तकालय बहुत सहायता करते हैं। वास्तव में आधुनिक शिक्षा पद्धति के अनुसार ‘कार्य’ तथा ‘मनोररंजन’ में कोई भेद नहीं रह गया। जिस स्कूल में पुस्तकालय की सुविधाएँ कम होती हैं, वहाँ प्रयोजन कार्य अधिक नहीं हो सकता। यदि शिक्षालय के पुस्तकालय में ‘मनोरंजक अध्ययन’ से सम्बन्धित पुस्तकों का अभाव होगा तो वह पुस्तकालय बहुत अच्छा या बहुत उपयोगी नहीं होगा।

हमारा अनुरोध है कि पुस्तकालय बच्चों को पुस्तक परिचय करावाएँ, उन्हें पुस्तकों के उपयोग का अवसर दें, उन्हें पुस्तकों की देखभाल तथा उनसे प्यार करना सिखायें, बच्चें की खोज प्रवृत्ति के अनुसार उसे मनोरंजक सामग्री जुटायें, कक्षा में पढ़ाये गये विषयों से सम्बन्धित सहायक पुस्तकों को पढ़ने का अवसर दें, पुस्तकों के उपयोग तथा प्रयोग पर प्रारम्भिक ज्ञान दें, व्यक्तिगत तथा समूहगत योजनाओं को सफल बनाने में सहायता दें, साधारण उत्तरदायित्वों के कार्य करने की शिक्षा दें तथा अन्ततः वे बच्चे को इस योग्य बना दें कि किशोरावस्था तथा यौवनावस्था में वे सुविधापूर्वक तथा सफलतापूर्वक बड़े-बड़े तथा सार्वजनिक पुस्तकालयों का प्रयोग कर सकें ।

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