स्मृति के प्रकार की विवेचना करें ।
इन तीनों स्मृतियों का वर्णन निम्नलिखित हैं –
1. संवेदी स्मृति (Sensory Memory ) — संवेदी स्मृति को संवेदी सूचना भण्डार कहते हैं । उद्दीपन से ज्ञानेन्द्रिय के उत्तेजित होने पर जो सूचना प्राप्त होती है वह एक या दो सेकण्ड तक ही ठहर पाती है, धारित सामग्री यदि अल्पकालीन स्मृति में प्रवेश नहीं पाती हैं तो वह क्षय-प्रक्रिया के कारण SIS से तुरन्त बाहर हो जाती है, क्योंकि क्षय- प्रक्रिया बहुत थोड़े समय के अन्दर समाप्त हो जाती है ।
नाईसर ने संवेदी स्मृति अर्थात संवेदी रजिस्टर के दो प्रकारों का उल्लेख किया है, जिन्हें प्रतिमा संबंधी-स्मृति तथा प्रतिध्वनिक स्मृति कहते हैं । इनका उल्लेख नीचे अलग-अलग किया जाता है—
प्रतिमा संबंधी स्मृति (Iconic Memory) — प्रतिमा संबंधी स्मृति उस संवेदी स्मृति को कहते हैं, जिसमें किसी दृष्टि उद्दीपन के हटा लेने के बाद भी उसकी प्रतिमा मानस पर एक दो सेकंड के लिए बनी रहती है। इस स्मृति के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं। इनमें पोसनर एवं कीले, साकीट, वीकेलग्रेन एवं ह्विटमैन, मैके कलोस्की एवं वैटकिंस, ऐनडरसन आदि मुख्य हैं ।
प्रतिमा संबंधी स्मृति के अस्तित्व को प्रमाणित करने की दिशा में स्परलिंग का अध्ययन अधिक महत्त्वपूर्ण है । उन्हें अपने प्रयोग में प्रयोज्यों को तीन कतारों में विभाजित कर चार तरह के अक्षरों को पचास मिली सेकंड तक दिखलाया और इसके बाद उन अक्षरों को बतलाने के लिए कहा गया । देखा गया कि प्रयोज्यों को केलव 4-5 अक्षरों का सही प्रत्याह्वान में सफलता मिली । इसे सम्पूर्ण रिपोर्ट विधि की संज्ञा दी गई । फिर इसी तरह के प्रयोग को आंशिक रिपोर्ट विधि से उन्हीं प्रयोज्यों पर किया गया । देखा गया कि प्रयोज्य सभी अक्षरों का सही-सही प्रत्याह्वान करने में सफल हुए। इस अन्तर की व्याख्या करते हुए स्परलिंग ने बताया कि आंशिक रिपोर्ट विधि के उपयोग से प्रतिमा संबंधी स्मृति का अस्तित्व प्रमाणित होता है। लेकिन, मैकक्लौस्की एवं वैटेमैन (1978) तथा ऐनडरसन (1993) के अनुसार प्रतिमा संवेदी स्मृति के स्थानीकरण के संबंध में स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो सकी है।
प्रतिमा संबंधी स्मृति की विशेषताएँ (Characteristics of Iconic Memory)– प्रतिमा संबंधी स्मृति के स्थानीकरण की स्थिति स्पष्ट नहीं होने के बावजूद इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ अवश्य ही स्पष्ट हैं—
- प्रतिमा संबंध स्मृति की पहली विशेषता यह है कि इसमें दृष्टि प्रतिमा की उपस्थिति पायी जाती है ।
- प्रतिमा संबंधी स्मृति की दूसरी इसका अल्प सत्ताकाल है। सामान्यतः प्रतिमा संबंधी स्मृति लगभग 250 मिली सेकंड तक ठहरती है । रेबर एवं रेबर ( 2001 ) के अनुसार इसका सत्ताकाल प्राय: 2 सेकंड तक होता है ।
- प्रतिमा स्मृति की एक विशेषता यह है कि अभ्यास से यह तुरंत समाप्त हो जाती है । अतः, इस पर अभ्यास का प्रतिकूल प्रभाव देखा जाता है।
- प्रतिमा स्मृति की एक विशेषता यह है कि इसका स्वरूप असहचारी होता है । सामान्यत: साहचर्य स्थापित करने में स्मृति उन्नत बन जाती है, परन्तु प्रतिमा स्मृति में साहचर्य का प्रतिकुल प्रभाव देखा जाता है ।
- प्रतिध्वनिक स्मृति के संबंध में किए गए प्रयोगों की अपेक्षा प्रतिमा संबंधी स्मृति के संबंध में किए गए प्रयोग अधिक स्पष्ट तथा ठोस हैं ।
- प्रतिध्वनिक स्मृति के सत्ताकाल के संबंध में मनोवैज्ञानिकों के बीच सहमति का अभाव है । इसके विपरीत प्रतिमा संबंधी स्मृति की सत्ताकाल के संबंध में मनोवैज्ञानिकों के बीच सहमति अधिक है। प्रतिध्वनिक स्मृति कितने समय तक ठहरती है, यह निश्चित रूप से कहना कठिन है। लेकिन, प्रतिमा संबंधी स्मृति के संबंध में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वह स्मृति लगभग 250 मिली सेकण्ड तक ठहरती है ।
- प्रतिमा संबंधी स्मृति का स्वरूप अधिक स्पष्ट होता है जबकि प्रतिध्वनिक स्मृति का स्वरूप अभी भी बहुत अस्पष्ट है ।
- प्रतिध्वनिक स्मृति की अपेक्षा प्रतिमा संबंधी स्मृति का शोध मूल्य कहीं अधिक है।
2. अल्पकालीन स्मृति (Short Term Memory, STM) – अल्पकालीन स्मृति का तात्पर्य ऐसी स्मृति से है जो बहुत थोड़े समय के लिए होती है। ऐसी स्मृति कुछ सेकण्ड बाद समाप्त हो जाती है। उसकी क्षमता भी सीमित होती है । अल्पकालीन स्मरण को प्राथमिक स्मरण भी कहते हैं । चैपलिन के अनुसार, “अल्पनकालीन स्मृति उसे कहते हैं जिसका सत्ताकल छोटा होता है और जिसकी क्षमता सीमित होती है । ”
इसी प्रकार रेबर एवं रेबर के अनुसार ” अल्पकालीन स्मृति की क्षमता अपेक्षाकृत सीमित होती है— लगभग सात एकांशों की क्षमता होती है । ”
इसे एक उदाहरण द्वारा और भी स्पष्ट किया जा सकता है। कभी-कभी हमें किसी ऐसे व्यक्ति से टेलीफोन पर सम्पर्क स्थापित करना होता है, जिसके टेलीफोन नम्बर की जानकारी हमें नहीं होती है। ऐसी हालत में निदेशिका में उस व्यक्ति के टेलीफोन नम्बर को देखकर हम टेलीफोन करना चाहते ही हैं कि पीछे से कोई पुकार बैठता है और हम उसकी ओर मुड़ जाते हैं । इसी बीच टेलीफोन नम्बर भुला जाता है और फिर निदेशिका देखने की आवश्यकता आ पड़ती है। इस घटना पर ध्यान देने से पता चलता है कि निदेशिका देखने के बाद टेलीफोन नम्बर का जो स्मरण हुआ वह बहुत थोड़े समय के लिए ठहरा और लुप्त हो गया । यही स्मृति अल्पकालीन स्मरण है ।
अल्पकालीन स्मरण की विशेषताएँ (Characteristics of STM) – अल्पकालीन स्मरण की कई विशेषताएँ हैं, जिनके आधार पर इसे पहचाना जा सकता है—
- अल्पकालीन स्मरण की एक विशेषता अल्प-सत्ताकाल है। यह स्मरण बहुत थोड़े समय तक ठहरता है । कितने समय तक यह स्मरण ठहरता है, इस सम्बन्ध में मतभेद है । फिर भी, सभी मनोवैज्ञानिक इतना मानते हैं कि सह स्मरण केवल कुंछ सेकण्ड तक ही ठहरता है और फिर समाप्त हो जाता है। शिफरिन के अनुसार अल्पकालीन स्मरण का सत्ताकाल 40 सेकण्ड तक होता है ।
- अल्पकालीन स्मरण की दूसरी मुख्य विशेषता सीमित स्मृति विस्तार है। चैपलिन के अनुसार अल्पकालीन स्मरण का स्मृति – विस्तार 5 से 9 एकांश तक होता है । मिलर के अनुसार तात्कालिक स्मरण का विस्तार 7 +2 इकाइयों अर्थात् 5 से 9 इकाइयों तक होता है। इकाई के रूप में अक्षर, शब्द या श्रेणी को रखा जा सकता है। उनके अनुसार स्मृति-विस्तार वास्तव में सामग्री के संगठन पर निर्भर करता है।
- अल्पकालीन स्मरण की सूचनाएँ अकूटवद्ध होती हैं। जब संवेदी सूचनाएँ अल्पकालीन स्मरण में प्रवेश करती हैं तो वे असम्बद्ध तथा अकूटवद्ध होती हैं। फिर वे कई गुच्छों में संगठित एवं सुसज्जित हो जाती है। संगठित सूचनाएँ दीर्घकालीन-संचयन में चली जाती है । कूटबद्ध के समय अल्पकालीन स्मरण की बहुत सी सूचनाएँ बाहर निकल जाती हैं और कुछ सूचनाएँ कूटवद्ध होकर अपेक्षाकृत स्थाई बन जाती हैं, जिसे दीर्घकालीन स्मरण कहते हैं । इस प्रकार जो सूचनाएँ अल्पकालीन स्मरण में आती हैं, वे वहाँ अधिक समय तक ठहरती नहीं हैं, बल्कि कुछ ही सेकण्ड बाद या तो बाहर निकल कर समाप्त हो जाती हैं या दीर्घकालीन संचयन में चली जाती हैं। अतः, अल्पकालीन स्मरण में नई सूचनाओं के आने तथा पुरानी सूचनाओं के समाप्त होने की क्रिया जारी रहती है । मुर्डोक ने अपने अध्ययन में देखा कि 18 सेकण्ड में ही प्रयोज्यों में 80% विस्मरण हुआ।
- अल्पकालीन स्मरण में विघटन की सम्भावना अधिक होती है। ब्रौडबेन्ट के अनुसार अल्पकालीन स्मरण की सूचनाएँ बहुत आसानी से भंग हो जाती है । प्रायः देखा जाता है कि टेलीफोन नम्बर डायल करने के क्रम में हल्की बाधा होने पर भी नम्बर भुला जाता है । ब्राउन के अनुसार अल्पकालीन स्मरण की थोड़ी सूचना तथा अधिक सूचना को भंग करने के लिए क्रमशः अधिक तथा थोड़ी मात्रा में बाधा की आवश्यकता होती है ।
- अल्पकालीन स्मरण में रिहर्सल का अभाव होता है। सूचनाओं के आने-जाने की क्रिया इतनी जल्दी होती है कि रिहर्सल सम्भव नहीं हो पाता है । अल्पकालीन स्मरण में सूचनाओं के विघटन का कारण भी रिहर्सल का अभाव समझा जाता है । जब रिहर्सल का समय मिल जाता है तो सूचनाएँ कूटबद्ध होकर दीर्घकालीन संचयन में चल जाती है ।
- अल्पकालीन स्मरण के विस्मरण के संरचन (Mechanisms of forgetting of STM) – अल्पकालीन स्मरण के विस्मरण के सम्बन्ध में किए गए अध्ययनों से तीन संरचनों का पता चला है— ह्रास, हस्तक्षेप तथा विस्थापन । हेव ने अपने अध्ययन में पाया कि अभ्यास के अभाव में किसी विषय की धारणा में ह्रास होने से अल्पकालीन स्मरण का विस्मरण हो जाता है। ब्राउन ने शाब्दिक सामग्री पर प्रयोग करके इस विचार की पुष्टि की। रीइटमैन के अध्ययन से भी इस विचार का समर्थन हुआ ।
केपिल एवं अंण्डरउड ने हस्तक्षेप को अल्पकालीन स्मृति के विस्मरण का संरचन माना । उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि पहली सामग्री तथा बाद वाली सामग्री के बीच प्रत्यावाह्न के समय हस्तक्षेप होने से अल्पकालीन स्मृति का विस्मरण होता है। हाउस्टोन के अध्ययन से भी इस विचार का समर्थन हुआ । वाफ एवं नॉरमैन ने विस्थापन को अल्पकालीन स्मृति के विस्मरण का संरचन माना। उनके अनुसार अल्पकालीन स्मृति में एक सूचना उस समय तक सुरक्षित रहती है जब तक कि कोई दूसरी सूचना उसे विस्थापित न कर दे । रीटमैन के अध्ययन से भी इस विचार की पुष्टि हुई ।
3. दीर्घकालीन स्मृति (Long Term Memory, LTM) – दीर्घकालीन स्मृति स्मरण का तात्पर्य ऐसी स्मृति से है, जो अधिक समय तक ठहरती है। मॉर्गन एवं किंग के अनुसार, “दीर्घकालीन स्मरण उसे कहते हैं, जिसमें सामग्री घंटों, दिनों, वर्षों या एक जीवन-काल के लिए संचित रहती है । ”
दीर्घकालीन स्मरण की विशेषताएँ (Characteristics of LTM) – दीर्घकालीन स्मरण की कई विशेषताएँ हैं, जिनके आधार पर इसे पहचाना जा सकता है तथा अल्पकालीन स्मरण से अलग किया जा सकता है –
- दीर्घकालीन स्मरण की एक मुख्य विशेषता यह है कि इसका सत्ताकाल अधिक होता है । इसकी सामग्री घंटों, दिनों या वर्षों ठहर सकती है। कुछ सामग्री या सूचना जीवन भर संचित जीवन भर संचित रह सकती है ।
- दीर्घकालीन स्मरण की सूचनाएँ कूटवद्ध होती है । चूँकि इसमें रिहर्सल का मिलता है, इसलिए सूचनाएँ संगठित तथा सुसज्जित हो जाती हैं। इसी कारण उनका सत्ताकाल बढ़ जाता है ।
- दीर्घकालीन स्मरण का विस्तार अधिक होता है। इस सम्बन्ध में अनेक प्रयोगात्मक अध्ययन किए गए हैं, जिससे पता चलता है कि स्मृति विस्तार वास्तव में सामग्री के स्वरूप पर निर्भर करता है। कूटवद्ध एवं संगठित सामग्रियों का स्मरण विस्तार अधिक होता है ।
- दीर्घकालीन स्मरण में विघटन की सम्भावना कम होती है। यहाँ सूचनाएँ कूटवद्ध होती हैं, इसलिए वे आसानी से भंग नहीं होती हैं । रिहर्सल जितना ही अधिक होता है, सूचनाएँ उतना ही अधिक स्थाई बन जाती हैं । अतः ऐसी सूचनाओं में वाधा के कारण विघटन की सम्भावना नहीं होती है, यह दूसरी बात है कि कई कारणों से कुछ सूचनाओं का विस्मरण समय विशेष पर हो जाता है ।
- दीर्घकालीन स्मरण में रिहर्सल का होना आवश्यक है। सच तो यह है कि रिहर्सल के कारण ही सूचनाएँ कूटवद्ध, संगठित एवं संचित हो पाती हैं ।
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