अब्दुर्रहमान द्वितीय (822-852 ) (Abdurehman II (822-852)
अब्दुर्रहमान द्वितीय (822-852 ) (Abdurehman II (822-852)
अब्दुर्रहमान द्वितीय का शासनकाल स्पेन के इतिहास में स्वयं में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। हकाम के इस उत्तराधिकारी पुत्र की अरब के इतिहासकारों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
शांति व्यवस्था की स्थापना – अब्दुर्रहमान ने स्वयं की योग्यता के बल पर सुव्यवस्थित समाज की स्थापना की जिसको सुरक्षित रखने के लिए पहले के अमीरों की तरह विद्रोह का दमन तथा बाह्य आक्रमण को भी रोकने की भी कोशिश की
ईसाइयों के प्रति अपनाई गयी नीति – सर्वप्रथम ईसाई लुटेरे तथा उनके विद्रोही का अमीर अब्दुर्रहमान द्वारा दमन किया गया। अरागान के मदीना-सलीम नामक क्षेत्र पर लियोन के शासक अलफोन्सो द्वितीय ने आक्रमण कर दिया। इसके बाद तो साम्राज्य के अन्य क्षेत्रों पर ईसाई आक्रमणों की झड़ी लग गयी । स्थिति की भयंकरता को देखते हुए अब्दुर्रहमान लियोन पर
जोरदार आक्रमण किया जिससे नियोन की सेना परास्त हो गयी और उसने शांति समझौता कर लिया। अमीर को वार्षिक कर देने का आश्वासन अलफोन्सो ने किया। इसी प्रकार इस क्षे. अन्य ईसाई विद्रोहों का दमन कर अब्दुर्रहमान ने शांति व्यवस्था बहाल की लेकिन यह स्थायी नहीं रह सकी। सबसे हैरानी की बात यह है कि अमीर ने ईसाइयों को पूरी स्वायत्तता तथा पूरे अधिकार दिये, फिर भी उनकी संतुष्टि करने में असफल रहा और विद्रोह कायम रहे।
संभवतः वे इस बात से बहुत नाराज थे कि उनके हाथों से राजनीतिक सत्ता मुसलमानों द्वारा । ही ली गई थी और वे उसे पुनः हस्तगत करना चाहते थे। वे अरबों से द्वेष रखते थे तथा उन्हें नास्तिक मानते थे। इसके अतिरिक्त अनेक ईसाइयों को मुसलमान बना लिया गया था और यह बात कट्टर ईसाइयों को काफी अखरती थी। अतः बदले की भावना से तथा राजनीतिक सत्ता को पुनः हस्तगत करने के उद्देश्य से स्पेन की ईसाई प्रजा ने जब कभी परिस्थिति को अनुकूल पाया अमीरों के विरुद्ध विद्रोह हमले किये और साम्राज्य को अशांत कर दिया ।
ईसाइयों ने अमीर अब्दुर्रहमान के शासन का जमकर विरोध किया। इस्लाम के मानने वालों के लिये पैगम्बर तथा धर्म की निंदा करना असहनीय होता है जिसे सबसे बड़ा पाप माना जाता है। अतः अब्दुर्रहमान ने धर्म-निंदक ईसाइयों को सजा देने के लिए काजी की अदालत में उन्हें पेश किया। ऐसे कई ईसाई विरोधियों को फाँसी की सजा दे दी गयी । इससे परिस्थिति काफी गंभीर हो गयी। अब्दुर्रहमान ने गोमेज नामक एक प्रभावशाली ईसाई की अध्यक्षता में परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए सभी ईसाइयों की एक सभा का आयोजन किया जिसमें निर्णय लिया गया कि पैगम्बर तथा इस्लाम की सार्वजनिक निंदा करना एक बहुत बड़ा पाप है, जो ऐसा करेगा, वह दंड का भागीदारी होगा। पर, अमीर की यह चाल असफल ही साबित हुई। सभा में इस निर्णय को भी ईसाइयों ने अस्वीकार कर दिया। और इससे संबद्ध ईसाइयों तथा गोमेज की कटु आलोचना की और मस्जिद में जाकर जोर-जोर से चिल्लाकर कहा कि, “धर्मावलंबियों के लिए स्वर्ग का राज्य और तुम्हारे जैसे विधर्मियों के लिए नर्क की आग है।” ईसाइयों की कटु बातें अमीर के लिए असह्य हो रही थीं। उसने विरोधी ईसाइयों का नाश करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। किंतु काजी के द्वारा समझाए जाने पर वह कुछ शांत हो गया। लेकिन उसने ईसाइयों की सारी सुविधाएं समाप्त कर दीं और उनको जेलों में बंदी बना दिया गया। फिर भी, ईसाइयों की राज्य विरोधी नीति में परिवर्तन नहीं आया। कोर्डोवा के कट्टर ईसाइयों की एक शाखा ने अमीर के शासनकाल के अन्तिम वर्षों में पुनः विद्रोह का झंडा गाड़ दिया। अमीर की मृत्यु तक विद्रोह चलता रहा।
ईसाइयों का यह विद्रोह स्पेन के मुस्लिमों हेतु घातक सिद्ध हुआ। इससे राज्य की प्रगति एवं प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा । आर्थिक एवं सैनिक दृष्टि से भी यह अहितकर साबित हुआ। जन-धन की अपार क्षति हुई और अमीर की सैनिक शक्ति का ह्रास हुआ। ईसाई विद्रोहों ने प्रत्यक्ष अथवा समाज के विघटनकारी तत्वों का भी ईसाई विद्रोही ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मदद की।
मासूसों का दमन : अब्दुर्रहमान के शासनकाल में उसके साम्राज्य में पहली बार मासूस जाति के जर्मनी द्वारा आक्रमण किया गया। लेकिन मासूस मुस्लिम सेना का मुकाबला करने में असफल रहे और वापस लौट गये। अमीर की सेना ने तोलेदो के ईसाई एवं यहूदी विद्रोहियों का भी नाश कर दिया। इससे स्पष्ट होता है कि अमीर द्वारा साम्राज्य में विद्रोहियों का दमन करके शांति व्यवस्था कायम की गई और बाहर के आक्रमण से भी सुरक्षित रखा। यद्यपि अपनी विरोधी ईसाई प्रजा के असंतोष को दूर करने में अमीर को विशेष सफलता नहीं मिली और उसकी मृत्यु तक ईसाइयों के विद्रोह होते रहे, फिर भी उसने परिस्थितियों को अनुकूल रखा और इस्लाम की मर्यादा पर आंच नहीं आने दी। सितम्बर, 852 ई. में अब्दुर्रहमान की मृत्यु हो गयी।
संगठन एवं लोकहित के कार्य : सैनिक क्षेत्र, संगठन एवं जनकल्याण संबंधी कार्यों में देखने को मिलती है। अब्दुर्रहमान प्रथम की भाँति उसने भी स्पेन को विश्व का सबसे प्रगतिशील एवं सभ्य देश बनाने का प्रयास किया। उसके प्रयत्नों से कोडर्डोवा सौंदर्य में दमिश्क और संपन्नता में बगदाद को चुनौती देने लगा। कोर्डोवा के सामने यूरोप के किसी भी नगर की कोई हस्ती नहीं रह गयी। पहले के महान विद्वानों तथा कलाकारों के द्वारा कोर्डोवा के दरबार की शोभा बढ़ाई जाती थी। इस काल में धार्मिक साहित्य तथा इस्लामी दर्शन की व्यापक प्रगति हुई। अब्दुर्रहमान का काल शांति एवं शान-शौकत का काल था। लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न थे और राज्यकोष भी समृद्ध था। अमीर कला के प्रति प्रेम रखता था और उसने कई विद्वानों को आश्रय दिया हुआ था। समाज में विद्वान एवं मेधावी लोगों को आदर का स्थान प्राप्त था। उसके शासनकाल में बगदाद के प्रसिद्ध संगीतज्ञ जिरयाब उसके दरबारी थे। जिरयाब विज्ञान एवं विभिन्न कलाओं का ज्ञाता भी था। फैशन के क्षेत्र में भी उसकी प्रसिद्धि थी तथा उन दिनों पूरे विश्व में उसके नाम का यश फैला हुआ था। उसने कोर्डोवा में अनेक नए पेड़ पौधे लगाये, नये व्यंजनों को चालू किया तथा नए वेश-भूषा की परम्परा चलायी। जिस्याब के प्रयासों के चलते ही मुस्लिम स्पेन में गान-विद्या एवं संगीत को प्रतिष्ठा मिली। अब समाज के प्रतिष्ठित लोग भी संगीत में अभिरुचि लेने लगे।
इतिहासकार सेडीलॉट के अनुसार, “ अरबों की उच्च सभ्यता, महान् वीरता, उनके सुसंस्कृत व्यवहार आदि का युग इसी काल में प्रारंभ हुआ।” स्पेन के ईसाइयों को अब्दुर्रहमान के शासनकाल ने ही इस्लामी सभ्यता से इतने गहरे रूप से प्रभावित किया कि भाषा, साहित्य, धर्म, हरम आदि की अरबी परंपरा को अपनाने में उन्होंने किसी तरह का हिचकिचाहट नहीं दिखाई। उन्हें इस बात की अनुभूति हुई कि विज्ञान, साहित्य, कविता, दर्शन, कला आदि के क्षेत्रों में वे अरबों से काफी पिछड़े हुए हैं। अतः उन्होंने जल्द ही अरबी सभ्यता संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को अपना लिया।
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