अमीर हिशाम (788-796 ई.) (Ameer Hisham (788-796AD)
अमीर हिशाम (788-796 ई.) (Ameer Hisham (788-796AD)
इतिहासकारों में अब्दुर्रहमान द्वारा ख्याति राजवंश को अल दाखिल का नाम दिया। यह राजवंश 750 से 1031 तक प्रभाव में रहा । इस वंश की प्रगति की पराकाष्ठा का काल आठवें अमीर अब्दुर्रहमान तृतीय (912-61 ई.) के शासनकाल को माना जाता है। अब्दुर्रहमान को इस वंश का पहला शासक कहा जाता है जिसने सर्वप्रथम खलीफा के रूप में पद ग्रहण किया था। संपूर्ण उमैयदकाल में कोर्डोवा स्पेन की राजधानी बनी रही। पश्चिमी इस्लामी जगत में कोडर्डोवा का महत्व पूर्व के बगदाद की भांति था ।
अब्दुर्रहमान प्रथम उत्तराधिकारी उसका पुत्र हिशाम था, जो एक सरल, सहज प्रकृति का विद्वान शासक था और उसके शासनकाल में तत्काल किसी तरह की समस्या नहीं थी ।
संगठन कार्य – हिशाम में सभी मानवीय गुण विद्यमान थे। वह एक सफल संगठनकर्ता था। उसने शासन को संगठित एवं सुचारू ढर्रे पर अनिवार्य सुधार लाकर किया। राज्य में उपद्रव एवं अशांति उत्पन्न करने वाले लोगों को कठोर दंड दिया जाता था। इस प्रकार हिशाम के साम्राज्य में शांति सुव्यवस्था कायम हो गई और स्पेन को प्रगतिशील बनाया। हिशाम ने निर्माण संबंधी कार्यों को पूरा करने में काफी रुचि दिखाई। उसने कोर्डोवा में अपने पिता द्वारा प्रारंभ की गयी मस्जिद के निर्माण कार्य को भी मूर्त रूप दिया और एक पुल का निर्माण करवाया । हिशाम ने अनेक सार्वजनिक भवनों इमारकों को बनाकर कोडर्डोवा की सुन्दरता में चार चाँद लगा दी।
विद्रोहों का दमन- यद्यपि हिशाम को अपने शासनकाल में व्यवस्था अथवा साम्राज्य की सुरक्षा संबंधी किसी प्रकार की कठिनाई से दो-चार नहीं होना पड़ा, फिर भी कतिपय विद्रोहों का दमन तथा फ्रैंकों के साथ उसे युद्ध करने पड़े। जागीरदारों तथा अमीरों के विद्रोह का सिलसिला जारी रहने के कारण स्पेन के नवजात इस्लामी साम्राज्य तथा उमैयद राजवंश के लिए खतरा पैदा हो गया था। राज्यारोहण के साथ हिशाम को अपने कपटी एवं विरोधी भाइयों के विद्रोह का सामना करना पड़ा। किंतु जल्द ही उसने इन विद्रोहों को कठोर हाथों से कुचल डाला। ठीक इसी समय मतरू ने विद्रोह कर दिया। मतरू एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसने प्रतापी फ्रैंक शासक शार्लमां के साथ भी अच्छे संबंध बना लिये थे। उसने शार्लमां को स्पेन पर हमला करने के लिए आमंत्रित भी किया। किन्तु, जल्द ही हिशाम ने मतरू का दमन कर सारगोसा और बारसेलोना के क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया।
फ्रैंको के साथ युद्ध – उक्त सफलता प्राप्त करने के उपरान्त हिशाम आत्मविश्वास के साथ अपने साम्राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्तरी क्षेत्र में बढ़ा। इन लुटेरों का दमन करने में हिशाम को कठिनाई नहीं हुई, परंतु विद्रोहियों को फ्रैंको का खुला सहयोग मिल रहा था। अंतः हिशाम की चिंता और समस्याएं और बढ़ती गयीं। चूँकि साम्राज्य को इन लुटेरों के कारण धन-जन की बहुत नुकसान झेलनी पड़ रही थी। इसको रोकने के लिए हिशाम ने दो सैनिक दल भेजे। एक दल ने कतालोमिया से होते हुए फ्रांस में प्रवेश किया। इस दल को वांछित सफलता मिली। इससे सरडाने (Cerdagne) को पूरी तरह नष्ट कर दिया और आगे बढ़ कर नरबोबे तथा कुछ अन्य क्षेत्रों का अपना अधिकार कर लिया। प्रसिद्ध फ्रैंक सेनापित काउन्ट ऑफ तौलोस को अरबों ने विलडेने (Villdaigne) में हराया और उस पर अपना झण्डा फहरा दिया।
शासक हिशाम के सैनिक अभियानों के समय गैलिशिया के रास्ते बरमूद के नेतृत्व में इस क्षेत्र में भयंकर विद्रोह हो गया था। इस्लामी सेना ने कठोर हाथों से इस विद्रोह का दमन किया । बड़ी संख्या में विद्रोही मार डाले गये अथवा बंदी बना लिये गये । अब हिशाम के साथ संधि कर लेने के अलावा विद्रोहियों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इस तरह से हिशाम अपने साम्राज्य में शांति व्यवस्था बनाने में सफल हुआ। मदीना का इमाम मलिक फ्रांकी सम्प्रदाय का जनक माना जाता था जिसका हिशाम शिष्य था । उसने अपने शासनकाल में स्पेन में फ्रांकी संप्रदाय को राजधर्म की मान्यता प्रदान की। यह सीधा-सादा लोकप्रिय संप्रदाय का रूप धारण कर लिया ।
मूल्यांकन – हिशाम चरित्रवान तथा धर्मपरायणता से पूर्ण होने के साथ-साथ वह एक प्रजापालक शासक था । सन् 796 में उसका देहान्त हो गया। वह राजधानी में भ्रमण कर अपनी प्रजा के कष्टों एवं समस्याओं की जानकारी प्राप्त करता तथा यथासंभव उनके निवारण का प्रयास करता था। रात-दिन बैठकर दरिद्रों और रोगग्रस्त व्यक्तियों की सेवा-सुश्रूषा करने में उसे ईश्वरीय सुख का आनंद प्राप्त होता था। वह एक महान दानी भी था शायद ही कोई ऐसी मस्जिद अथवा दरिद्र होगा जिसने हिशाम के हाथों से दान प्राप्त नहीं किया हो। इस प्रकार वह एक योग्य सेनापति, सफल शासक और प्रशंसनीय संगठनकर्ता था। अपने शासनकाल में हिशाम ने उमयद साम्राज्य के गौरव को धूमिल होने नहीं दिया।
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