असंगठित खुदरा व्यापार और कृषि जैसे विशेष क्षेत्रों पर विमुद्रीकरण के तत्काल और दीर्घकालिक प्रभावों का विश्लेषण करें।
विमुद्रीकरण एक ऐसी स्थिति है, जहां देश का केंद्रीय बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) आधिकारिक मूल्य भुगतान के रूप में कुछ मूल्यवर्ग के पुराने नोटों को वापस ले लेता है। 8 नवम्बर, 2016 को, प्रधान मंत्री ने एक आश्चर्यजनक घोषणा में कहा कि मौजूदा उच्च मूल्यवर्ग की मुद्राओं (500 रुपये और 1000 रुपये) की कानूनी निविदाएं समाप्त हो जाएंगी। पीएम ने कहा कि यह काले धन से लड़ने और भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सरकार का सबसे बड़ा कदम है। सरकार ने 500 रुपये और 2000 रुपये के नए नोट भी पेश किए और लोगों से नकदी-कम (cashless) अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने का आग्रह किया। 1978 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने काले धन का मुकाबला करने के लिए अपनी गहन चाल में, द हाई डिनोमिनेशन बैंक अधिनियम (डिमोनेटाइजेशन) की शुरुआत की और 500 रुपये, 1000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों को अवैध घोषित किया। तरलता की कमी के कारण विमुद्रीकरण ने खुदरा उद्योग को प्रभावित किया है। विदित कि खुदरा उद्योग बहुत अधिक नकद लेनदेन द्वारा संचालित होता है, बिक्री में कमी अल्पकालिक, यानी एक-दो तिमाहियों तक रह सकती है। इसका प्रभाव बड़े पैमाने पर छोटे और असंगठित खुदरा क्षेत्र में महसूस किया गया, जो संगठित खुदरा बाजार और मॉल की तुलना में समस्त देश में कई उच्च गली-सड़कों पर प्रचलित है। भारत नकदी मुद्रा के प्रसार या प्रचलन के मामले में अग्रणी देशों esa एक है और भारत के जीडीपी में 12.1% नकदी मुद्रा प्रचलन में हैं। भारत में घरेलू नकद परिसंपत्तियां, जो 220 बिलियन डॉलर के आसपास अनुमानित है, इक्विटी में निवेश से अधिक है, उस नकदी का 87% या लगभग 14 लाख करोड़ रुपये (+190 बिलियन) 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों के रूप में है। घरेलू नकदी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सामान्य आर्थिक लेनदेन से सम्बंधित है जो कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता है या भ्रष्टाचार उत्पन्न करता है। उच्च मूल्यवर्ग के नकदी को चलन से विरत कर देने के परिणामस्वरूप या तो पैसा इकनोमिक सिस्टम में लाया जाएगा या स्वतः गायब हो जाएगा।
व्यापार संघों के एक छत्रक, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के अनुसार, देश भर के बाजारों में व्यापार सामान्य दिनों की तुलना में विमुद्रीकरण के बाद कम हो गया है। डीलर या स्टोर स्तर पर, बिस्कुट और नमकीन स्नैक्स जैसे श्रेणियों में 40% और 35% की गिरावट आई, जबकि कुछ व्यक्ति श्रेणियों जैसे टॉयलेट साबुन, शैंपू और डिटर्जेंट का व्यापार 22-28% तक नीचे आ गए थे।
ग्राहक नकद प्राप्त करने में सफल रहे लेकिन 2,000 रुपये के मूल्यवर्ग में। लेकिन इन सामान्य दुकानों के दुकानदारों के लिए वापसी एक कठिन काम था। व्यापारियों का कहना है कि चावल, दाल और गेहूं जैसी आवश्यक वस्तुएं मामूली रूप से प्रभावित हुई हैं। संगठित थोक दुकानों में एफएमसीजी की बिक्री भी विमुद्रीकरण के कारण प्रभावित हुई है। डिमोनेटाइजेशन का मतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पुराने 500 और 1000 रुपये के नोटों के भुगतान को आधिकारिक तौर पर वापस ले लिया है। विमुद्रीकरण वैधानिक निविदा के रूप में अपनी एक मुद्रा इकाई को हटाने का कार्य है। भारतीय रिजर्व बैंक की 31 मार्च, 2016 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, बैंक के कुल प्रचलन का मूल्य 16.42 लाख करोड़ रुपये (US $ 240 बिलियन) था, जिसमें से लगभग 86% 14.18 लाख करोड़ ( US $ 210 billion) 500 और 1000 रुपए के नोट थे। वॉल्यूम के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 9,026.6 करोड़ नोटों में से 24% ( यानी 2,203 crore) प्रचलन में थे। एक महत्वपूर्ण कदम के तहत 8 नवम्बर, 2016 को भारत सरकार ने घोषणा की कि पांच सौ और एक हजार रुपये के नोट अब आधी रात से कानूनी निविदा के रूप में वैध नहीं होंगे। RBI दो हजार रुपये के नोट और पाँच सौ रुपये के नए नोट जारी करेगा जो 10 नवम्बर, 2016 से प्रचलन में रखे जाएंगे। एक सौ, पंच्चास, बीस, दस, पाँच, दो और एक रुपये के नोट कानूनी निविदा बने रहेंगे अर्थात् इस निर्णय से अप्रभावित रहेंगे। यह उपाय पीएम द्वारा भ्रष्टाचार, काले धन और जाली नोटों के खिलाफ संकल्प को संबोधित करने के लिए लिया गया है। इस कदम से औपचारिक आर्थिक प्रणाली को साफ करने और आर्थिक प्रणाली द्वारा काले धन के त्यागने की उम्मीद है।
कृषि इनपुट – आउटपुट चैनलों के साथ-साथ मूल्य और आउटपुट फीडबैक के माध्यम से प्रभावित हुई। थोक केंद्रों या मंडियों में तैयार उपज की बिक्री, परिवहन, विपणन और वितरण, प्रमुख रूप से नकदी पर निर्भर है। विखंडन, बिक्री में गिरावट के रूप में किसानों की आपूर्ति श्रृंखला प्रतिक्रिया । में व्यवधान, विकारी खाद्यों की अपव्यय में वृद्धि, कम राजस्व जो कि हाथ में नकदी के बजाय व्यापार बकाया के रूप में दिखाई देते हैं और जब बैंक खातों में सीमित पहुंच के साथ क्रेडिट होते हैं तो यह क्षेत्रक प्रभावित होता है। इनमें से कई नेटवर्क वर्तमान में अवस्थिति, बाजार लिंक और अन्य आइटम-विशिष्ट कारकों के आधार पर उप-इष्टतम या पूर्णतया में एक ठहराव की अवस्था में काम कर रहे हैं। आगत पक्ष (input side) समान रूप से प्रभावित होता है क्योंकि कई भुगतान / खरीद, जैसे बीज, उर्वरक, औजार और उपकरण, प्रत्यक्ष नकदी में होते हैं। बड़े किसानों और संगठित उत्पादकों के उधार-वित्तपोषण संचालन भी कटे हुए हैं या गंभीर रूप से कर्तित ( clipped) हैं।
इसका प्रभाव विभिन्न उप-खंडों में दिखाई देता है। एक पखवाड़े में बुवाई के लिए गेहूं, सरसों, छोले जैसी शीतकालीन फसलें होती हैं। 2015-16 में कम उत्पादन के कारण स्टॉक में प्रत्याशित कमी के कारण गेहूं की कीमतें पहले से ही ऊपर थीं और अधिक प्रभावकारी रूप में विमुद्रीकरण ने व्यापारियों को धक्का दिया है। वर्ष 2016-17 में उत्पादन कम हो सकता है यदि बुवाई के लिए पर्याप्त मात्रा में बीज (रेबी) कम हो जाए। देर से बुवाई और बाद के खराब मौसम के कारण व साथ ही उर्वरकों, कीटनाशकों आदि के पर्याप्त या समय पर उपयोग की कमी, उपज के लिए हानिकारक होगा क्योंकि किसानों के पास नकदी नहीं है।
रबड़, चाय, जूट, इलायची जैसी बागानी फसलों में देखा जा रहा कि श्रमिकों को कोई भुगतान नहीं दिया जा रहा है। छोटे-मध्यम चाय उत्पादकों के पास अब कुछ खरीदार हैं। दक्षिण में हाल की चाय नीलामी में एक तिहाई चाय बिना बिके हुए (unsold) थे। कच्चे जूट के व्यापार को रोक दिया गया है क्योंकि धन की कमी व्यापारियों द्वारा खरीद वितरण को प्रभावित कर रही है। आधिकारिक खरीद समर्थन के लिए अपील के साथ कमी के अनुमान प्रकट हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कपास की आवक में दैनिक वृद्धि देखी जा रही है, इस समय (फसल) सामान्य 1.5-2 लाख गांठों के मुकाबले 30,000-40,000 गांठ हो गई है और वैश्विक स्तर पर कीमतों में एक सप्ताह में 9% की वृद्धि हुई है।
सब्जियों और फलों को जो फसलों के साथ 2015-16 में जोड़े गए कृषि के सकल मूल्य का 61% था, दैनिक आपूर्ति नेटवर्क जो नकदी-तंगी वाले परिवहन क्षेत्र पर गंभीर रूप से निर्भर करता है, डंपिंग की घटनाओं के साथ बाजारों में बिक्री तेजी से ( 25-50% तक) घट गई है। वर्तमान में, मुद्रा इच्छित मांग को दबा दिया गया है, इसलिए कीमतें कम हुई हैं, लेकिन अंततः, आपूर्ति की कमी के कारण कीमतें बढ़ सकती हैं।
विमुद्रीकरण ने अपने उद्देश्यों को काफी हद तक हासिल किया। अब प्रणाली में मुद्रा 87 88 प्रतिशत है, अर्थात, अगर यह व्यवस्था पुराने तरीके से जारी रहती तो उसकी तुलना में लगभग 3-4 लाख करोड़ रुपये कम करेंसी की उपलब्धता । रिपोर्ट में कहा गया है कि नकली 500 रुपये और 1,000 रुपये का पता लगाने में विमुद्रीकरण के बाद 59.7 और 59.6 प्रतिशत की कमी आई है। काले धन पर, सरकार ने कहा कि बैंकिंग प्रणाली से बाहर रहने वाले लगभग 3 लाख करोड़ रुपये बैंकों में विमुद्रीकरण के पश्चात जमा कराये गए थे। इसने दावा किया कि काले धन का 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक बैंकों में पहुंच गया।
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