अस्थि अक्षमता से आप क्या समझते हैं ? अस्थि अक्षमता ग्रस्त बच्चों की पहचान पर प्रकाश डालें ।

प्रश्न – अस्थि अक्षमता से आप क्या समझते हैं ? अस्थि अक्षमता ग्रस्त बच्चों की पहचान पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – शारीरिक अंगों में असामान्यता या गामक क्रिया अथवा मुद्रा जिसमें गति की अवस्था हो, उनमें किसी प्रकार की कमी या उन्हें करने में किसी प्रकार की बाधा हो तो उसे ‘अस्थि अक्षमता’ कहते हैं ।
अस्थि अक्षमता को बोधगम्य बनाने के लिए अनेक परिभाषाएँ दी गई हैं उनमें से कुछ व्यापक परिभाषाओं का वर्णन नीचे दिया जा रहा है :
अस्थि विकलांग उन बालकों को कहते हैं जिनकी एक या अधिक अस्थियों में दोष आ गया हो या क्षतिग्रस्त हो गई हो जिससे वह सामान्य बालकों की मांसपेशियों तथा जोड़ों अथवा अस्थियों में किसी कारणवश दोष आ जाता है ।
वैधानिक तौर पर वैसे बालकों को अस्थि विकलांग कहा जाता है जो गंभीर रूप से अस्थि विकलांग हैं, और यह विकलांगता उनके शैक्षिक प्रदर्शन को गंभीर रूप से प्रभावित करती है ।
इसी परिभाषा को भारत के समाज कल्याण मंत्रालय ने भी अपनाया है। “अपंग बालकों को अस्थिबाधित बालक तब कहते हैं जब जन्म से बीमारी, दुर्घटना तथा जन्म से उनकी अस्थियों, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दोष व वक्रता आती है और सामान्य कार्य करने तथा चलने-फिरने में असमर्थ हैं । “
निःशक्त व्यक्ति अधिनियम (1995) में इसे चलन निःशक्तता के रूप में वर्णन किया गया है। अधिनियम की धारा 2 (ण) के अनुसार- “चलन निःशक्तता ” से हड्डियों, जोड़ों या मांसपेशियों की कोई ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निबंधन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क घात हो ।
व्यापकता (Prevalence) – राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (2002) के 58वें चक्र के सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार देश में चलन निःशक्त व्यक्तियों की अनुमानित संख्या 1.64 करोड़ है यानी कुल विकलांग आबादी का 58 प्रतिशत हिस्सा चलन निःशक्त व्यक्तियों की है । इसमें 66.34 लाख पुरुष और 40 लाख महिलाएँ शामिल हैं।
अस्थि अक्षमता ग्रस्त बच्चों की पहचान (Indentification of Orthopaedically Handicapped Children):
1. चलने में कठिनाई – कोई बच्चा चलते-चलते झुक जाता है, टेढ़ा चलता है या चलने में लड़खड़ाने लगता है अथवा चलते-चलते गिर जाता है ।
2. पकड़ने में कठिनाई – हाथ या अँगुलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी होने के कारण बच्चा पकड़ने में कठिनाई महसूस करे या पकड़ते समय अंग नहीं मुड़ता हो ।
3. मांसपेशियों में आपसी सामंजस्य की कमी – किसी हल्की वस्तु को बच्चा आसानी से उठा लेता है, लेकिन भारी वस्तु को उठाने में कठिनाई महसूस करता है ।
4. लिखने में कठिनाई – लिखने के समय हाथ हिलता या काँपता है, लिखते-लिखते रुक जाता है या अँगुली की मांसपेशियों के काम नहीं करने के कारण कलम या पेंसिल छूट जाती है ।
5. शरीर का पूर्णत: या आंशिक रूप से लकवाग्रस्त होना- लाकवाग्रस्त होने के कारण कई अंग कार्य करने में असमर्थ है, सूखा है, पतला हो गया है, या सुन्ना हो गया है।
6. शरीर का कोई अंग कट जाना- शरीर का कोई भी अंग किसी भी दुर्घटना से कट जाता है या किसी बीमारी से जब क्षतिग्रस्त हो जाता है तो ऐसी स्थिति में अंग को काटना पड़ता है ।
7. शारीरिक विकृति – किसी-किसी बच्चे को जन्म से ही शारीरिक विकृति होती है, जैसे कुबड़ापन, हाथ का टेढ़ा छोटा, बड़ा होना, पैर घुमा होना, पैर छोटा-बड़ा होना, गर्दन टेढ़ी होना आदि । इसके अतिरिक्त कुछ निम्न अन्य कारण हो सकते हैं :
(i) एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में कठिनाई । (ii) सीढ़ी पर चढ़ने या उतरने में कठिनाई । (iii) प्रायः जोड़ों में दर्द की शिकायत । (iv) लचक के साथ चलना । (v) शारीरिक व्यायाम के समय दर्द का अनुभव करना । (vi) वैशाखियों की सहायता से चलना ।
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