आधुनिक भारत की शैक्षिक आवश्यकताओं पर प्रकाश डालें ।

प्रश्न – आधुनिक भारत की शैक्षिक आवश्यकताओं पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – प्रत्येक समुदाय, समाज एवं राष्ट्र की अपनी-अपनी आवश्यकताएँ होती हैं तथा उनकी पूर्ति के लिए वह तदनुरूप शिक्षा की व्यवस्था करता है। आधुनिक लोकतांत्रिक भारत की भी अपनी कुछ विशिष्ट आवश्यकताएँ हैं। भारतीय शिक्षाविदों एवं पाठ्यक्रम आयोजकों को इन आवश्यकताओं को जानना और समझना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि आवश्यकताओं के सन्दर्भ में ही शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। वर्तमान समय में हमारे देश की विभिन्न शैक्षिक आवश्यकताएँ इस प्रकार की हैं –
(i) शिक्षा द्वारा नागरिकों का चारित्रिक विकास करने की आवश्यकता जिससे वे ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं परिश्रमी नागरिक बन सकें ।
(ii) व्यक्तियों में उन प्रवृत्तियों को समाप्त करने की आवश्यकता जो राष्ट्रीय एकता, धर्म-निरपेक्षता तथा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के विकास में बाधक है ।
(iii) आज विश्व के समस्त राष्ट्रों में वैज्ञानिक प्रगति की होड़ लगी है। भारत इस होड़ की पंक्ति में तभी खड़ा हो सकता है जब उसके नागरिकों में वैज्ञानिक चिन्तन एवं दृष्टिकोण विकसित किया जाये ।
(iv) भारत एक साधन-सम्पन्न देश है किन्तु फिर भी वह एक निर्धन राष्ट्र है। इसकी अधिकांश जनसंख्या दरिद्रता की स्थिति में रह रही है । अतः यह आवश्यक है कि शिक्षा द्वारा नागरिकों की कार्य-कुशलता में वृद्धि की जाये, उत्पादन क्षमता का विकास किया जाये तथा प्राकृतिक संसाधनों में अधिकतम उपयोग किया जाये ।
(v) शारीरिक दृष्टि से भारतीय नागरिक अन्य देशों से पिछड़े हुए हैं। इसका आभास अन्तर्राष्ट्रीय खेलों एवं प्रतियोगिताओं में हमारे नवयुवकों के प्रदर्शन से स्पष्ट रूप से होता है । आम नागरिक का स्वास्थ्य भी स्तरीय नहीं है । अतः भारतीय नागरिकों के स्वास्थ्य सुधार पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है ।
(vi) प्राचीन समय में भारत अपनी उच्च एवं महान् संस्कृति के लिए विख्यात था किन्तु आज उसमें निरंतर गिरावट आ रही है । अतः इस बात की आवश्यकता है कि भारतीय संस्कृति का संरक्षण, परिमार्जन एवं संवर्धन किया जाये तथा उसके सही रूप को विश्व के सम्मुख रखा जाये ।
(vii) हमारे देश में अभी भी जनता अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता एवं भाग्यवादिता से ग्रसित है जिससे उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षा द्वारा भारतीय नागरिकों को इन बुराइयों से दूर करके उनमें आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है।
(viii) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण शैक्षिक आवश्यकता, शिक्षा द्वारा स्वयं शिक्षा में परिमार्जन करने की है। वर्तमान शिक्षा अधिक सैद्धान्तिक, अव्यावहारिक तथा जीवन से असम्बन्धित है । अतः आज भारत में ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो व्यावहारिक ज्ञान प्रदान कर सके, जीवन से सम्बन्धित हो तथा नागरिकों की कार्य कुशलता में वृद्धि कर सके ।
विभिन्न शिक्षा आयोगों के अनुसार भारत की शैक्षिक आवश्यकताएँ (Educational needs of India according to different education commissions ) – स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में शैक्षिक विकास के उद्देश्य से कई शिक्षा आयोग नियुक्त किये गये हैं। इन आयोगों ने लोकतंत्रीय भारत में शिक्षा की आवश्यकताओं का उल्लेख करते हुए इसके उद्देश्य निर्धारित किये हैं। इनका संक्षिप्त उल्लेख नीचे किया गया है
1. विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948) के अनुसार, “स्वयं प्रजातंत्र का जीवन सामान्य, व्यावसायिक एवं जीविकोपार्जन सम्बन्धी शिक्षा के सर्वोच्च स्तर पर निर्भर है। अतः हमारे समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विश्वविद्यालयों का कार्य होना चाहिए – विवेक का विस्तार, नये ज्ञान के लिए अधिक इच्छा, जीवन के अर्थ को जानने के लिए अधिक प्रयास तथा व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था । “
2. माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53) के अनुसार, “शिक्षा व्यवस्था को आदतों, लोकतंत्रीय दृष्टिकोणों और चरित्र के गुणों के विकास में योग देना होगा जिससे नागरिक, नागरिकता के दायित्वों का योग्यता से निर्वाह कर सके तथा उन विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों का विरोध कर सकें जो व्यापक और राष्ट्रीय धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण के विकास में बाधक हों।” कोठारी आयोग ) 1964-66 के अनुसार, “लोकतंत्र में
3. भारतीय शिक्षा आयोग (व्यक्ति स्वयं साध्य है और इसलिए शिक्षा का प्रमुख कार्य- उसको अपनी शक्तियों के पूर्ण विकास के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान करना है । “
आधुनिक जनतंत्रीय भारत के शैक्षिक उद्देश्य (Education Objectives of Modern Democratic India)- पूर्व-उल्लिखित आवश्यकताओं, आकांक्षाओं एवं मान्यताओं को दृष्टि में रखते हुए भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों के निम्नांकित रूप में निर्धारित किया जा सकता है –
(i) व्यक्ति सम्बन्धी शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives Relating to Individual)
(ii) समाज सम्बन्धी शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives Relating to Society)
(iii) राष्ट्र सम्बन्धी शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives Relating to Nation)। इन उद्देश्यों के विभिन्न स्तर इस प्रकार के हो सकते हैं
1. व्यक्ति सम्बन्धी शैक्षिक उद्देश्य
(i) शारीरिक विकास (Physical Development)
(ii) चारित्रिक विकास (Character Development)
(iii) मानसिक विकास (Mental Development)
(iv) सांस्कृतिक विकास (Cultural Development)
(v) आधुनिकीकरण (Modernization)
(vi) उत्पादन का विकास (Development of Productivity) ।
2. समाज सम्बन्धी शैक्षिक उद्देश्य
(i) सामाजिक बुराइयों का निराकरण (Eradication of Social Evils)
(ii) समाजवादी समाज की स्थापना (Establishment of Socialistic Society)
(iii) लोकतंत्रीय नागरिकता का विकास (Development of Democratic Citizenship)
(iv) सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का समावेश ( Inculcation of Spirit of Social Responsibility) I
3. राष्ट्र सम्बन्धी शैक्षिक उद्देश्य
(i) राष्ट्रीय एकता का विकास (Development of National Integration)
(ii) भावात्मक एकता की प्राप्ति (Realization of Emotional Integration)
(iii) मानवीय मूल्यों का विकास (Development of Human Values)
(iv) आर्थिक उन्नति ( Economic Progress)
(v) आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को गति प्रदान करना ( To Accelerate the process of Modernization)
(vi) अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास ( Development of Internation Understanding) ।
अन्त में हुमायूँ कबीर के शब्दों में, “भारत में शिक्षा द्वारा लोकतंत्रीय चेतना, वैज्ञानिक खोज और दार्शनिक सहिष्णुता का निर्माण किया जाना चाहिए । केवल तभी हम उन परम्पराओं के सही उत्तराधिकारी होंगे जिनका निर्माण इस देश में अतीत में हुआ है। केवल तभी हम उस आधुनिक विरासत में अपना भाग पाने के अधिकारी होंगे, जो विश्व के समस्त राष्ट्रों की विरासतों को एक करने का प्रयत्न करती है ।’
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