एक सुनिश्चित एवं संगठित स्थानीय स्तर की शासन प्रणाली के अभाव में पंचायतें एवं समितियाँ, मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएं बनी रहती हैं और शासन का प्रभावशाली उपकरण नहीं बन पाती है। आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।

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प्रश्न – एक सुनिश्चित एवं संगठित स्थानीय स्तर की शासन प्रणाली के अभाव में पंचायतें एवं समितियाँ, मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएं बनी रहती हैं और शासन का प्रभावशाली उपकरण नहीं बन पाती है। आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर – 73वें /74वें संविधान संशोधन को 25 वर्ष पहले लागू किया गया था। लगभग सभी राज्यों ने इस त्रिस्तरीय शासन प्रणाली को अपने यहां लागू किया है। भारतीय जनतंत्र में पंचायती राज व्यवस्था शासन के तीसरे स्तंभ के रूप में स्थापित है।

73वें और 74वें संविधान संशोधन का मुख्य उद्देश्य है- लोकतांत्रिक मूल्यों एवं अधिकारों के प्रति जागृति का विकास तथा देश की शासन व्यवस्था, विकास नीतियों- कार्यक्रमों के क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन में आम जनता की अधिकतम भागीदारी। भारतीय शासन व्यवस्था में विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया  1935 के भारत सरकार अधिनियम से ही लागू हो गई थी जिसकी विधिवत शुरुआत 1950 में हुई। जब देश का संविधान लागू हुआ और केंद्र और राज्यों के दायित्वों को स्पष्ट किया गया।

बहुत सी संभावनाओं एवं उद्देश्यों के बावजूद आज भी भारत में पंचायती राज प्रणाली पूरी तरह से सफल नहीं है। इसकी कुछ कमियां निम्नवत हैं—

  • अवैज्ञानिक तरीके से कार्यों का बंटवारा – विभिन्न स्तरों पर पंचायती राज में जो कार्यों का बंटवारा किया गया है वह वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया गया है। यह पूरी तरह से विभेदकारी है। विकास कार्यों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है, इसकी स्थापना का उद्देश्य यह था कि यह एक स्वायत्त संस्था की तरह कार्य करे और ग्रामीण पंचायत स्तर पर विकास कार्यों को आगे बढ़ाए, लेकिन यह राज्य सरकार की एक एजेंसी के रूप में कार्य कर रही है। यहाँ तक कि पंचायत और पंचायत समितियों के कार्य भी आपस में एक दूसरे से मिल गए हैं। जिससे बहुत सारी उलझन पैदा हो जाती है।
  • शासन के तीनों स्तरों में तालमेल का अभाव –  शासन के तीनो स्तरों के बीच तालमेल का आभाव है। वे एक साथ कार्यात्मक इकाई के रूप में कार्य नहीं कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है कि शासन की ऊंची ईकाई निचले स्तर से आपसी तालमेल बनाने में उस स्तर पर सफल नहीं हो पा रही है, जिसकी आवश्यकता है।
  • धन की अनुपलब्धता- धन की अनुपलब्धता भी पंचायतों के कार्यों को प्रभावित कर रही है। पंचायतों को कर लगाने के मामले में सीमित अधिकार दिए गए हैं। उन्हें राज्य सरकार से बहुत कम धन प्राप्त होता है। वे राजस्व उगाही के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करते उन्हें सदा जनता के बीच छवि खराब होने का भय बना रहता है।
  • अवधारणा की कमी – पंचायत समितियों को वास्तविक रूप से पंचायती राज की अवधारणा ही नहीं पता है। उसके उद्देश्य क्या हैं, इसकी जानकारी नहीं है। कुछ इसे एक प्रशासनिक इकाई मानते हैं, तो कुछ स्थानीय स्तर पर राज्य सरकार का प्रतिनिधि मानते हैं। यह अवधारणा ग्रामीण विकास और पंचायत दोनों के लिए दुष्कर हैं।
  • विभिन्न पंचायतों में अलोकतांत्रिक प्रक्रिया का संचालन –  बहुत सारे पंचायतों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है। अप्रत्यक्ष रूप से जिला पंचायतों के अध्यक्ष का चुनाव होने के कारण भ्रष्टचार एवं घूसखोरी की समस्या बढ़ गई है। यहां तक कि जिला परिषद में कई बाहर के लोग भी होते हैं। ये सरकार से जुड़े लोग होते है। यह अलोकतांत्रिक प्रक्रिया है।
    प्रशासनिक समस्या – पंचयाती राज संस्थानों को प्रशासनिक अधिकार से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह एक सामान्य अवधारणा बन गई है कि पंचायत पर स्थानीय सरकारों का प्रभाव रहता है। उनके लोग ही उसकी शासन व्यवस्था का संचालन करते हैं। इस कारण पंचायतों के लिए तैयार की गई कई प्रमुख योजनाओं को लागू नहीं किया जा पाता है, जिसका नुकसान आम लोगों को होता है।
    अशिक्षा – अशिक्षित जनप्रतिनिधि को पंचायती व्यवस्था से संबंधित कार्यों के सम्पादन हेतु छद्म प्रतिनिधियों की सहायता लेनी पड़ती है, जो एक स्वस्थ एवं प्रतिनिधि लोकतंत्र के प्रतिकूल है। महिला प्रतिनिधियों में साक्षरता दर कम होने से प्रायः ऐसी समस्याएँ अधिक प्रदर्शित होती हैं जबकि पंचायती राज व्यवस्था का एक अहम लक्ष्य है- लैगिंक असमानता को समाप्त करना ।
  • वर्तमान समय में तकनीकी एवं आर्थिक गतिविधियों के बढ़ते महत्व की वजह से भी पंचायती व्यवस्था की प्रभावकारिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि मात्र शिक्षा का अभाव ही इसके विकास में बाधा नहीं है, बल्कि परिस्थितियां भी जिम्मेवार हैं, जिनमें सुधार आवश्यक है।
    पंचायती संस्थाओं में कार्य करने वाले कर्मचारियों एवं अधिकारियों पर पंचायती संस्थाओं का नियंत्रण होना चाहिए । साथ ही जिला नियोजन समिति को अधिक प्रभावशाली बनाकर इसका अध्यक्ष निर्वाचित सदस्य को ही नियुक्त किए जाने की आवश्यकता है। पंचायती संस्थाओं के विकास हेतु यह आवश्यक है कि संविधान द्वारा उन्हें सौंपे गए 29 विषय सहजता से व्यावहारिक स्तर पर प्राप्त होने चाहिए। तभी पंचायती राज की मूल सकंल्पना साकार होगी।

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