प्रश्न – एरिक्सन के सिद्धान्त की विवेचना करें।
(Discuss the theory of Erikson.)
उत्तर – फ्रायड के कैम्प में रहते हुए भी एरिक्सन (Erikson, 1902-1994) ने मनोलैंगिक विकास (psycho-sexual development) की प्रत्येक अवस्था में बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण पर जैविक कारकों (biological factors) के साथ-साथ सामाजिक कारकों के प्रभाव पर बल दिया। इसी कारण उनके सिद्धान्त को मनोसामाजिक सिद्धान्त (psychosocial theory) कहते हैं।
एरिक्सन का जन्म जर्मनी के फ्रैंकफर्ट (Frankfurt) में 1902 में हुआ। तीन वर्ष बाद उनकी माता ने तलाक (Divorce) लेकर एक यहूदी से विवाह कर लिया। एरिक्सन के लिए चिन्ता की स्थिति तब उत्पन्न हुई जब उन्होंने महसूस किया कि यहूदी समुदाय में उन्हें गैर-यहूदी तथा अपने समुदाय में यहूदी समझा जाने लगा। उन्होंने फ्रायडवादियों ( Freudians) के साथ वियना (Vienna) में मनोविश्लेषण (psychoanalysis) का अध्ययन किया और 1933 में वियना मनोविश्लेषण संस्थान से स्नातक की उपाधि लेने के बाद 1939 में अमरीकी नागरिकता प्राप्त की। कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के बाद मानव-विकास (human development) के प्रोफेसर नियुक्त हुए। इसी अवधि में उन्होंने बाल विकास के सम्बन्ध में व्यापक अध्ययन किया। उन्होंने फ्रायड के विभिन्न प्रत्ययों (concepts) ईड, ईगो, सुपर ईंगो तथा मनोलैंगिक विकास की अवस्थाओं को मानते हुए बच्चों के व्यक्तित्त्व विकास पर सामाजिक कारकों के प्रभावों पर बल दिया।
एरिक्सन ने व्यक्तित्व के विकास में ईड से अधिक इस पर बल दिया। इसलिए. उनके सिद्धान्त को ईगो-मनोविज्ञान (ego psychology) भी कहा जाता है। जहाँ फ्रायड ने व्यक्तित्व-विकास की पाँच अवस्थाओं का उल्लेख किया, वहाँ एरिक्सन ने अहम् व्यक्तित्व (ega identity) की आठ अवस्थाओं का वर्णन किया और कहा कि आठवीं अवस्था में व्यक्तित्व का विकास पूरा हो जाता है। ये अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) विश्वास – अविश्वास अवस्था (Stage of trust-mistrust)
यह अवस्था फ्रायड की मौखिक अवस्था (oral stage) के समान है। इस अवस्था में माता के अनुकूल या प्रतिकूल व्यवहार के कारण बच्चे में क्रमशः विश्वास या अविश्वास विकसित होता है। माता के अनुकूल व्यवहार के कारण बच्चे में विश्वास विकसित होता है और बच्चे की यही प्रथम सामाजिक उपलब्धि होती है।
(2) स्वतंत्रता-लज्जा एवं संदेह अवस्था (Autonomy-shame and doubi stage)
यह अवस्था फ्रायड की गुदा अवस्था (anal stage) के समान है। इस अवस्था में भी लैंगिक इच्छा से अधिक प्रवल सामाजिक प्रेरक होता है। इस अवस्था में धारण करने अथवा बहिष्कार करने की प्रवृत्ति का नियंत्रण माता-पिता द्वारा उचित ढंग से होता है तो बच्चे में स्वतंत्रता (autonomy) की चेतना विकसित होती है, जिससे उनमें आत्म नियंत्रण (self control) तथा आत्म-विश्वास (self confidence) विकसित होता है। ऐसा नहीं होने से उनमें लज्जा तथा संदेह विकसित होते हैं।
(3) अगुआई-दोष अवस्था (Initiative-guilt stage)
यह अवस्था फ्रायड की यौन प्रधान अवस्था (phaliic stage) के समान है। इस अवस्था में बच्चे मातृप्रेमसंघर्ष (Oedipal conflict) का समाधान करते हैं। एरिक्सन के अनुसार लड़के में माता के प्रति लैंगिक प्रवृत्ति नहीं होती है, बल्कि वह पिता से बिना मुकाबला (confrontraion) किए ही माता के साथ अधिक से अधिक रहना चाहता है। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने लिए वह पिता की आज्ञा मानने लगता है, जिससे सुपर ईगो का विकास होता है। इससे पहल करने की चेतना (Sense fo initiatiove) पाई जाती है। यदि वह भय के कारण अपने इस लक्ष्य को छोड़ देता है तो दोषभाव (guilt-feeling) विकसित हो जाता है। इस अवस्था में क्रूर (cruel) तथा कठोर सुपर ईगो के विकसित होने पर इसका पूरा प्रभाव उसके समस्त जीवन पर पड़ता है।
(4) व्यवसाय – हीनता अवस्था (Industry-inferiority stage)
यह अवस्था फ्रायड की अव्यक्त अवस्था (latency stage) के समान है। इस अवस्था में बालक अपने घर से बाहर निकल जाता है, शिक्षालय जाता है, तथा खेलकूद में भाग लेता है। अब वह किसी निश्चित उद्देश्य के साथ विशेष क्रियाओं को करके अपने व्यक्तित्व (self) के समरूपण (confirmation) का प्रयास करता है। इसमें असफल होने पर वह हीनता महसूस करता है तथा उसमें असमर्थ होने का स्थाई विश्वास विकसित हो जाता है।
(5) तादात्म्य भूमिका प्रसारण अवस्था (Identity role-disffusion stage)
यह अवस्था फ्रायड की प्रारंभिक जननेन्द्रिय अवस्था (early genital stage) के समान है। इस अवस्था में व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसका अपना अलग व्यक्तित्व है और उसे सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है अथवा यह महसूस करता है कि उसे समाज में कोई स्थान प्राप्त नहीं है। पहली स्थिति होने पर आत्म-विश्वास विकसित होता है और दूसरी स्थिति होने पर भय, अतिआत्मीकरण (over identification), आदि विकसित होते हैं। किशोरा अवस्था (adolescence) के इस प्रथम चरण में भूमिका प्रसारण (role diffusion) का आधार व्यावसायिक तथा लैंगिक तादात्म्य है।
(6) आत्मीयता – पृथकीकरण अवस्था (Intimacy-isolation stage)
यह अवस्था फ्रायड की विलंवित जननेन्द्रिय अवस्था (late genital stage) के समान है। इस अवस्था में आत्मीयता की इच्छा प्रवल हाती है। प्रेमा सम्बन्ध (love relationship) की आवश्यकता (need) सबल होती है। विपरीत लिंग (opposite sex) के प्रति आकर्षण होता है। इस आत्मीयता की प्राप्ति नहीं होने पर पृथकीकरण देखा जाता है।
(7) उत्पादकता- निश्चलता अवस्था (Generativity-stagnation stage)
फ्रायड के मनोलैंगिक विकास में इस अवस्था का उल्लेख नहीं मिलता है। एरिक्सन के अनुसार इस प्रौढ़ा-अवस्था में व्यक्ति अपने भावी जीवन के कई विकल्पों (alternatives) में से किसी विशेष विकल्प को चुनता है और निर्णय लेता है कि उसे केवल बच्चा पैदा करना (निश्चलता) है अथवा कोई रचनात्मक कार्य (उत्पादकता) करना है।
(8) अहम् सम्पूर्णता-निराशा अवस्था (Ego integrity-despair stage)
इस अंतिम अवस्था में व्यक्ति की मनोवृत्ति अपने जीवन के प्रति सकारात्मक (positive) या नकारात्मक (negative) होती है। सकारात्मक मनोवृत्ति होने पर वह अपने द्वारा किए गये अच्छे या बुरे कार्यों को स्वीकार करता है तथा सम्मान के साथ मरने के लिए तैयार होता है। नकारात्मक मनोवृत्ति होने पर वह निराशा से पीड़ित रहा करता है और चैन से मरता भी नहीं है।
मूल्यांकन (Evaluation)
स्पष्ट है कि फ्रायड के मनोविश्लेषण (psycho-analysis) का समर्थन करते हुए भी एरिक्सन ने फ्रायड के कई प्रत्ययों ( Concepts) में परिमार्जन लाया तथा व्यक्तित्त्व-निर्माण में सामाजिक कारकों के महत्त्व पर बल देते हुए मनोविश्लेषण के क्षेत्र को व्यापक बनाने का सफल प्रयास किया। उन्होंने स्वयं कहा कि उनका एक प्रधान योगदान तादात्म्य संकट (identity crisis) का प्रत्यय है। उन्होंने ईगो सम्बन्धी फ्रायड के विचार में परिमार्जन लाया और कहा कि ईगो वास्तव में ईड पर आश्रित (जैसा कि फ्रायड ने माना) नहीं है, बल्कि वह ईड के प्रभाव से मुक्त एवं स्वतंत्र है। इस प्रकार, एरिक्सन ने हार्टमैन (Hartman) की तरह अहम् मनोवैज्ञानिकों (ego psychologists) की पहली पंक्ति में अपना स्थान सुरक्षित कर लिया।
जेली तथा जिगलर (Hjelle &Ziegler, 1985) के अनुसार इस सिद्धान्त में ऐसे प्रत्ययों (concepts) का उल्लेख किया गया है, जिनके बिच पर्याप्त संगति (consistency) है। इसी प्रकार इस सिद्धान्त में मितव्ययिता (parsimony) का गुण उपलब्ध है। इन दोनों कसौटियों ( criteria) पर यह सिद्धान्त काफी संतोषजनक है।
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