कक्षा-कक्ष प्रबन्ध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
प्रश्न – कक्षा-कक्ष प्रबन्ध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें ।
उत्तर – भारतीय शिक्षा आयोग 1964-66 ने ठीक ही लिखा है कि भारत के भाग्य का निर्माण उस के कक्षा-कक्षों पर आधारित है। इस कथन का भाव यह है कि देश के भावी नागरिकों का विकास तथा निर्माण तभी भली प्रकार से हो सकेगा जब कक्षा-कक्षाओं की व्यवस्था उच्च कोटि की होगी। इस सन्दर्भ में यह स्मरण रहे कि स्कूल में छात्रों का अधि कांश समय कक्षा-कक्षाओं में ही व्यतीत होता है । अतः यह आवश्यक है कि अध्यापक कक्षा-कक्षा प्रबन्ध का स्तर इस प्रकार का स्थापित करें कि छात्र मन लगाकर तथा अनुशासन में रह कर कक्षा-कक्ष में अध्ययन करें कक्षा प्रबन्ध में एक अध्यापक स्वेच्छाचारी नहीं हो सकता । उसे अपने छात्रों को लोकतान्त्रिक व्यवहार में प्रशिक्षण देना है। अतः उसे कक्षा प्रबन्ध में स्वयं लोकतान्त्रिक व्यवहार करना चाहिए । उसका कार्य एक ‘पुलिस कर्मचारी’ का न होकर ‘मित्र’, ‘दार्शनिक’ और ‘मार्गदर्शक’ का है ।
विद्यालय में मुख्याध्यापक का कार्य तो कक्षा-कक्षों में की जाने वाली गतिविधियों के संचालन हेतु उपयुक्त भौतिक तथा संसाधनों को जुटाना होता है परन्तु कक्षा-कक्षा में उनका उचित नियोजन तथा प्रबन्ध करने का उत्तरदायित्व अध्यापक का रहता है। एक अनुभवी, कार्यकुशल तथा योग्य अध्यापक कक्षा-कक्ष का प्रबन्ध इस प्रकार से करेगा कि कक्षा का वातावरण प्रभावी हो ।
कक्षा-कक्षा प्रबन्ध की अवधारणा (Concept of Classroom Management) : कक्षा-कक्ष प्रबन्धन का अर्थ है कक्षा में इस प्रकार का वातावरण निर्माण करना जिसमें रहकर बच्चे शिक्षण-अधिगम क्रिया में दत्तचित हो कर भाग ले सकें। उन्हें काम करने में प्रेरणा मिले | वह एक प्रकार से ‘खेल-खेल में ही ‘ ज्ञान, कौशल तथा उचित व्यवहार अर्जित कर सकें । कक्षा का अनुशासन रचनात्मक तथा प्रजातान्त्रिक हो । ‘यह मत करो’ ‘वह मत करो’ इस प्रकार के निषेध बालक के विकास में बाधा डालते हैं। अनुशासन आत्मप्रेरित हो । इस प्रकार की व्यवस्था स्थापित करने के लिए अध्यापक में कुछ आवश्यक कौशल होने चाहिए ।
कक्षा-कक्षा में उपलब्ध भौतिक तथा मानवीय तत्वों उचित ढंग से उपयोग करना ही कक्षा प्रबन्ध कहलाता है ।
प्रभावपूर्ण कक्षा-कक्ष प्रबन्ध को आश्वस्त करना (Ensuring Effective Classroom Management) : प्रभावपूर्ण कक्षा-कक्ष प्रबन्ध को आश्वास्त करने के लिए आवश्यक है कि अध्यापक कक्षा-कक्ष में शिक्षण अधिगम के मुख्य कार्यों को समझे तथा प्रभावी शिक्षण-अधिगम तत्वों पर ध्यान दे । कक्षा-कक्ष प्रबन्ध में उपलब्ध भौतिक संसाध नों का उचित प्रयोग करना तो आवश्यक है ही परन्तु जहाँ पर मानवीय पक्षों तथा शिक्षण अधिगमों पक्षों पर विशेष चर्चा करना भी उचित प्रतीत होता है –
सशक्त तथा प्रभावी कक्षा-कक्ष वातावरण प्रदान करने के सिद्धान्त (Principles of Providing Forceful & Effective Classroom Environment) :
(i) आधारभूत दर्शन का सिद्धान्त ।
(ii) प्रजातान्त्रिक प्रबन्ध दर्शन का सिद्धान्त ।
(iii) छात्रों के व्यक्तिगत भेदों का समझने का सिद्धान्त ।
(iv) शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने का सिद्धान्त ।
(v) शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों को सहभागी बनाने का सिद्धान्त ।
(vi) शिक्षण प्रक्रिया में श्राव्यदृश्य साधनों के प्रयोग का सिद्धान्त ।
(vii) कक्षा-कक्ष में भौतिक तत्वों (प्रकाश-वायु) पर ध्यान देने का सिद्धान्त ।
(viii) कक्षा-कक्ष में छात्रों का कमरे में बैठने का सिद्धान्त ।
(ix) कक्षा-कक्ष में छात्रों के पास उपयुक्त सामग्री का सिद्धान्त ।
(x) कक्षा-कक्ष में अध्यापक का छात्रों के साथ उचित व्यवहार का सिद्धान्त ।
(xi) कक्षा-कक्ष में अनुशासन सम्बन्धी आधारों का सिद्धान्त ।
(xii) अध्यापक के आदर्श व्यक्तित्व का सिद्धान्त ।
कक्षा-कक्ष प्रबन्ध को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Classroom management) : कक्षा-कक्ष प्रबन्ध को प्रभावित करने वाले मुख्यतया निम्न कारण हैं :
(i) कक्षा-कक्षा का भौतिक वातावरण (Physical Environment of Classroom)
(ii) कक्षा-कक्षा का शैक्षिक वातावरण (Educational Environment of Classroom)
(iii) कक्षा – कक्षा का संवेगात्मक वातावरण (Emotional Environment of Classroom)
(iv) कक्षा-कक्षा का नैतिक वातावरण (Moral Environment of Classroom)
(v) कक्षा-कक्षा का सामाजिक वातावरण (Social Environment of Classroom)
(vi) कक्षा – कक्षा का आध्यात्मिक वातावरण ( Spiritual Environment of Classroom)
(vii) कक्षा-कक्षा का सौन्दर्यातमक वातावरण ( Aesthetic Environment of Classroom)
(viii) कक्षा-कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण (Pshychological Environment of Classroom)
विभिन्न प्रकार के वातावरण एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उनका आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है । एक-दूसरे को अलग से नहीं देखा जा सकता । ये सम्पूर्ण वातावरण के विभिन्न पक्ष हैं । इन सबका उत्तरदायित्व अध्यापक पर रहता है । अध्यापक की भूमिका अत्यन्त अहं है ।
प्रभावी कक्षा-कक्षा प्रबन्ध हेतु तकनीकें (Techniques for Effective Classroom Management)-मोटे तौर पर प्रभावी कक्षा-कक्ष को आश्वस्त करने के लिए निम्नलिखित बातों पर अध्यापक को ध्यान देना चाहिए :
(i) कक्षा-कक्ष में उचित दैनिक चर्या (Appropriate Classroom Routine)
(ii) कक्षा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया अथवा अनुदेशनात्मक प्रक्रिया को प्रयोजनपूर्ण तथा रोचक बनाना (Making Classroom Teaching-Learning Process purposeful and Interesting )
(iii) शिक्षण कौशल (Teaching skills)
(iv) कक्षा-कक्ष में उचित अनुशासन अथवा छात्र व्यवहार पर बल देना। (Emphasising Discipline and Appropriate Students Behaviour)
(v) अध्यापक का प्रभावी व्यक्तित्व तथा चरित्र (Impressive Personality of the Teacher Character)
(vi) कक्षा-कक्ष में उपलब्ध संसाधनों का उचित प्रयोग (Appropriate Use of Classroom Resources)
I. कक्षा-कक्ष में उचित दैनिकचर्या (अध्यापक का उत्तरदायित्व)
(i) हमेशा समय पर कक्षा में जाना चाहिए।
(ii) कक्षा अवधि में जहाँ तक सम्भव हो खड़े रहकर पढ़ाना चाहिए ।
(iii) छात्रों के नाम शीघ्रता से जान लेने चाहिए ।
(iv) छात्रों के बैठने की योजना को सावधानी से जानना चाहिए ।
(v) विलम्ब से आने वाले छात्रों का विवरण रखना चाहिए ।
(vi) कक्षा की स्वच्छता पर ध्यान दिया जाए।
(vii) कक्षा के भौतिक वातावरण अर्थात् प्रकाश, वायु आदि पर ध्यान दिया जाए ।
(viii) अनुपस्थित छात्रों के विषय में पूछताछ की जानी चाहिए ।
(ix) छात्रों के उचित रूप से बैठने के ढंग पर बल दिया जाए ।
(x) विद्यालय सामग्री के प्रति बच्चों में आदर उत्पन्न किया जाए।
(xi) सामग्री एकत्रित करने एवं बाँटने के लिए निश्चित नियमों का पालन किया जाए ।
II. कक्षा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया अथवा अनुदेशन प्रक्रिया को प्रभावी बनाना अलग से चर्चा की गई है ।
III. कक्षा अनुशासन : (i) अपने अनुशासन का आधार ‘न करो’ की अपेक्षा ‘करो’ बनाएँ ।
(ii) छात्रों को इधर-उधर मत घूमने दें ।
(iii) अच्छे आचरण और मापदण्ड स्तर के लिए प्रयत्नशील रहें ।
(iv) छात्रों से सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें ।
(v) छात्रों के साथ अपने व्यवहार में दृढ़ रहें ।
(vi) छात्रों से अन्तरंग होने की अपेक्षा मैत्रीपूर्ण रहे और कुछ निग्रह भी रखें ।
(vii) ‘मैं तुम्हें पसन्द करता हूँ, यद्यपि जो तुम करते हो उसे मैं पसन्द नहीं करता ‘ दर्शन का उपयोग करें । :
(viii) न्यायपूर्ण बने ।
(ix) दोषपूर्ण भाषा का उपयोग मत करें ।
(x) व्यंगपूर्ण बातें मत करें ।
(xi ) धमकी मत दें ।
(xii) छोटी समस्याओं को बड़ी बनने से पूर्व ही हल करें ।
(xiii) आदर और ईमानदारी को प्रोत्साहन दें ।
(xiv) अपनी अनुशासिक समस्याओं को हल करने का स्वयं प्रयत्न करें ।
(xv) अनुशासनहीनता की समस्याओं को हल करने के लिए आवश्यकतानुसार मुख्याध्यापक से वार्ता करें ।
(xvi) कक्षा में अपनी पारिवारिक समस्याओं की चर्चा मत करें।
(xvii) छात्रों से अपने सहयोगियों के विषय में बातें मत करें।
(xviii) अपने अनुभवों का अधिक विवरण न करें।
(xix) व्यर्थ की बातों में अपना समय नष्ट न करें ।
IV. शिक्षण कौशल (Teaching Skills) – शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तत्वों का समावेश है | शिक्षक पढ़ाते समय प्रश्न पूछते हैं। छात्रों के उत्तरों को स्वीकार अथवा अस्वीकार करते हैं। गूढ़ विषयों की व्याख्या कराते हैं, अध्यापक की प्रक्रिया में इन्हीं क्रियाओं को शिक्षण कौशल की संज्ञा दी जाती है। ये ऐसे व्यवहार हैं जिन्हें शिक्षण प्रक्रिया में देखा, सुना या अनुभव किया जा सकता है। विभिन्न लेखकों ने शिक्षण-कौशलों की अनेक सूचियाँ प्रस्तुत की हैं। निम्नलिखित 11 शिक्षण कौशल महत्वपूर्ण हैं- (i) उद्देश्य वर्णन कौशल । (ii) पाठ प्रस्तावना कौशल । (iii) अनुशीलन प्रश्न कौशल । (iv) व्याख्या कौशल । (v) दृष्टान्त व्याख्या कौशल । (vi) पुनर्बलन कौशल । (vii) उद्दीपन परिवर्तन कौशल | (viii) छात्र सहभागिता कौशल । (ix) श्यामपट्ट प्रयोग कौशल । (x) पाठ समापन कौशल । (xi) पाठ मूल्यांकन कौशल ।
V. अध्यापक का व्यक्तित्व तथा चारित्रिक गुण (Teacher’s Personality and Qualities of Character) – प्रभावी कक्षा प्रबन्ध में अध्यापक के व्यक्तित्व तथा चरित्र का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है ।
VI. कक्षा-कक्ष के संसाधनों का उचित उपयोग – कक्षा-कक्ष में उपलब्ध संसाधनों का उचित उपयोग किया जाना चाहिए; उदाहरणार्थ श्यामपट्ट का प्रयोग, फर्नीचर का प्रयोग आदि ।
छात्रों के व्यवहार का संहितकरण करना (Codifying Students’ Behaviour)प्रभावी कक्षा प्रबन्ध के लिए आवश्यक है कि कक्षा में जिस प्रकार के व्यवहार की छात्रों से अपेक्षा की जाती है उसका संहितकरण किया जाए । अर्थात् छात्रों को यह बता दिया जाए कि कक्षा में उनसे व्यवहार सम्बन्धी क्या आशा की जा रही है । यदि वे वांछित व्यवहार का प्रदर्शन नहीं करते हैं तो इसे अनुशासनहीनता मानी जाएगी ।
सामान्यतः कक्षा में छात्रों के व्यवहार सम्बन्धी निम्नलिखित मानदण्ड होते
(i) ईमानदारी का व्यवहार करना ।
(ii) कक्षा में प्रवेश तथा छोड़ने के समय अध्यापक की अनुमति लेना ।
(iii) छात्रों को उपयुक्त आसन (Postures) धारण करना – (a) कक्षा में खड़े होते समय । (b) कक्षा में बैठते समय । (c) कक्षा में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते समय ।
(iv) अध्यापक से बात चीत करने की उचित पद्धति अपनाना ।
(v) विनम्रता का वर्ताव करना ।
(vi) कक्षा में उसी समय बोलना जब कहा जाए ।
(vii) किसी अन्य छात्र की वस्तु उसकी अनुमति के बिना न लेना ।
(viii) कक्षा में सफाई रखना ।
(ix) समय सारणी के अनुसार पुस्तकें तथा कापियाँ लाना ।
(x) कक्षा में कार्य में व्यस्त रहना ।
(xi ) कक्षा में चीखना-चिल्लाना नहीं ।
(xii ) सहपाठियों से अच्छे सम्बन्ध रखना ।
(xiii) अध्यापक की अनुपस्थिति में भी अनुशासन में रहना ।
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