कल्पना चावला : सपनों को साकार करना था जिसका मूल उद्देश्य
कल्पना चावला : सपनों को साकार करना था जिसका मूल उद्देश्य
कल्पना चावला
“यदि जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हो तो हमेशा अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहो।” ये शब्द किसी और के नहीं बल्कि कल्पना चावला के थे। इसी को उन्होंने अपने जीवन का मूलमंत्र बनाया था। इसी पर वह दृढ़ रहीं और वहाँ पहुँचीं, जहाँ के बारे में सोचने में भी लोगों को डर लगता है।
कल्पना चावला हरियाणा में एक गरीब परिवार में पैदा हुई थीं। उनका जन्म 1 जुलाई, 1961 को पंजाब के करनाल जिले में हुआ था, जो अब हरियाणा में है। उनके पिता बनारसीलाल चावला और माता संज्योति थीं। कल्पना के दो बहनें और एक भाई था, जो उनसे बड़े थे। वह घर में सबसे छोटी थीं, इसलिए परिवार के लोग प्यार से उन्हें ‘मोंटू’ कहकर बुलाते थे।
उन्होंने करनाल के टैगोर बालनिकेतन स्कूल से अपनी पढ़ाई की। उसके बाद चंडीगढ़ में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। वह 1982 में बी.एस-सी. की डिग्री लेकर वहाँ से निकलीं। भारत के प्रख्यात पायलट जे.आर.डी. टाटा से प्रेरित होकर उनमें उड़ान भरने की रुचि पैदा हुई। नतीजतन उन्होंने चंडीगढ़ स्थित अपने कॉलेज में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया। उस जमाने में इंजीनियरिंग की पढ़ाई इक्का-दुक्का लड़कियाँ ही करती थीं। सच्चाई यह है कि एरोस्पेस इंजीनियरिंग क्लास करने वाली वही एकमात्र लड़की थीं। वह लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गईं।
कल्पना कभी कॉलेज हॉस्टल में नहीं रहीं। कॉलेज परिसर के बाहर मकान लेकर अकेली ही रहती थीं और इसके लिए उन्हें कोई डर भी नहीं था। जब कोई उनसे पूछता कि अकेले रहने में डर नहीं लगता तो जवाब देतीं – “मैं कराटे में ब्लैक बैल्ट होल्डर हूँ, कोई मुझे परेशान नहीं कर सकता।” यहाँ तक
कि कॉलेज के दिनों में भी उन्होंने कई बड़े फैसले लिये। जब वह कॉलेज में सेकंड ईयर में थीं, उन्होंने वहाँ एक सेमीनार का आयोजन किया था और इसमें हिस्सा लेने के लिए भारतीय वायु सेना के अधिकारियों को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया। इससे साफ पता चलता है कि एरोनॉटिक्स में अपना भविष्य बनाने के लिए वह कितना समर्पित थीं। पूरा सेमीनार व्यवस्थित तरीके से आयोजित किया गया और कल्पना ने सभी बिंदुओं पर ध्यान रखा । सेमीनार सफल रहा था। इसके लिए उन्हें सराहा गया। ये सारे उनके गुण थे, जिनकी वजह से एक सफल एस्टोनॉट बन सकीं। जब वह कॉलेज में अंतिम
वर्ष में थीं तो अपने घर पर 6-7 जूनियर स्टूडेंट्स को भोजन पर आमंत्रित किया था। उन दिनों अकेली लड़की को अपने दोस्तों का घर बुलाना सामान्य बात नहीं थी । इससे पता चलता है कि वह कितने खुले विचारों की थीं। कल्पना ने अपने हाथों से ही सारा भोजन तैयार किया था ।
एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद। वह संयुक्त राष्ट्र चली गईं। वहाँ अर्लिंगटन में टेक्सास यूनिवर्सिटी से 1984 में एरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए 1986 में मास्टर ऑफ साइंस की दूसरी डिग्री प्राप्त की। 1988 में उन्होंने कॉलोराडो यूनिवर्सिटी से एरोस्पेस इंजीनियरिंग में पी.एच.डी. की। उसी साल कुछ महीनों के बाद ही उन्हें नैशनल एरोनॉटिक्स ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के एक रिसर्च सेंटर में काम मिल गया। यहाँ नासा के वाइस प्रेसिडेंट सहित ओवर सेट मैथड्स के रिसर्च साइंटिस्ट के रूप में काम करना शुरू किया। यहाँ उन्होंने अन्य अनुसंधान कर्ताओं की टीम बनाकर उनके साथ काम किया। कल्पना को एयरप्लेन और ग्लाइडर्स के लिए सर्टिफिकेटेड फ्लाइट इंस्ट्रक्टर के निर्धारण का जिम्मा सौंपा गया था। यहाँ उन्हें विकास और तकनीकी प्रारूप से जुड़े विभिन्न प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनके प्रोजेक्ट्स को विभिन्न तकनीकी समारोहों में प्रस्तुत दिया गया ।
उनके पास एकल और बहुइंजन चालित हवाई जहाजों, समुद्री जहाजों और ग्लाइडर्स के व्यावसायिक पायलट के लाइसेंस भी थे। उनके पास फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन (एफसीसी) से जारी आमेचर रेडियो लाइसेंस भी था। उन्हें 1983 में जीन पियरे हैरिसन से मुलाकात का मौका मिला था, जो जाने-माने हवाई प्रशिक्षक और उड़ानों से संबंधित लेखक थे। उन्होंने उसी साल शादी कर ली और वह संयुक्त राज्य की नागरिक बन गईं।
दिसंबर 1994 में कल्पना का नासा में चयन हो गया और मार्च 1995 में जॉनसन स्पेस सेंटर में 15वें अंतरिक्ष समूह के सदस्य के रूप में शामिल हुई। एक साल बाद ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें तकनीकी मामलों में उड़ान दल के प्रतिनिधि का जिम्मा सौंपा गया। इसके साथ ही उन्हें रोबोटिक सिचुएशनल अवेयरनेस डिस्प्ले और अंतरिक्ष यान नियंत्रण सॉफ्टवेयर की जाँच का जिम्मा भी सौंपा गया।
नवंबर 1996 में कल्पना को अंतरिक्ष अभियान के विशेषज्ञ की जिम्मेदारी सौंपी गई। 1997 में वह पहली बार अंतरिक्ष में गईं। भारत के लोग तब उनके इस अभियान से अच्छी तरह से परिचित नहीं थे। इस सफलता को प्राप्त करने वाली वह दूसरी गैर-भारतीय महिला थीं, लेकिन उनके लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। बाद में उनकी अन्य उपलब्धियों पर इसका गहरा असर पड़ा।
हालाँकि उन्होंने 1995 में नासा जॉइन कर लिया था, उन्हें 1998 में वहाँ पहली उड़ान के लिए चुना गया। अपनी पहली उड़ान में उन्होंने पूरी पृथ्वी के 252 चक्कर लगाए थे। कल्पना के लिए यह पल यादगार रहा था। क्योंकि यह सौभाग्य प्राप्त करने वाली भारत में जनमी वह पहली महिला और दूसरी अंतरिक्ष यात्री थीं। राकेश शर्मा पहले भारतीय थे, जिन्होंने 1984 में अंतरिक्ष यात्रा की थी। अंतरिक्ष यात्रा के बाद कार्यालय में उन्हें तकनीकी पद की जिम्मेदारी दी गई। उस कार्यालय में अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर बेहतरीन काम करने के बदले उन्हें विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया। टेक्सास यूनिवर्सिटी, अलिंगटन (यूटीए), जहाँ से कल्पना ने ग्रैजुएशन किया था, वहाँ के प्रोफेसर ने पहली अंतरिक्ष यात्रा से लौटने के बाद बुलाया और कहा था, “एक महिला होने के बावजूद कल्पना ने अपनी अपार क्षमता का परिचय देते हुए जो उपलब्धि हासिल की, यूनिवर्सिटी का यही वास्तविक शुल्क है।” उन्होंने प्रथम अंतरिक्ष यात्रा से लौटने के बाद यूटीए के विद्यार्थियों और शिक्षकों के सामने इसकी प्रस्तुति दी थी ।
अंतरिक्ष यात्रियों के दल के सदस्य के रूप में दूसरी बार भी उनका चयन हुआ। लेकिन किन्हीं कारणों से यात्रा में विलंब होता गया। दल ने लगभग 80 बार प्रयोग करके आश्वस्त किया कि यह यात्रा अंतरिक्ष यात्रियों के लिए सुरक्षित और बेहतरीन है। इसमें उच्च तकनीकी स्तरों और पृथ्वी तथा अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञ भी शामिल थे। हर प्रकार से जाँच के बाद संतुष्टि मिलने पर ही अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी हुई। अंत में 1 फरवरी, 2003 को दोबारा अंतरिक्ष यात्रा शुरू हुई। लेकिन यात्रा के थोड़ी ही देर बाद अंतरिक्ष यान पृथ्वी की ओर लौटने लगा था। सभी सातों अंतरिक्ष यात्री अपनी अंतिम साँसें गिन चुके थे। अब लोग उनके धरती पर लौटने का इंतजार कर रहे थे ।
अब वह अंतरिक्ष यान धरती की तरफ लौट रहा था। धरती पर आने के ठीक 16 मिनट पहले आग की लपटों के साथ जोरदार धमाका हुआ और अंतरिक्ष में ही सबकुछ खत्म हो गया । वह एक बार तारों को स्पर्श करना चाहती थीं, लेकिन आग की इन्हीं लपटों में उनकी सारी कहानी सिमट गई। जो लोग उनकी अंतरिक्ष यात्रा पर शुभकामनाएँ दे रहे थे और उनकी सफलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे, वही अब उनकी आत्मा की शांति के लिए परमात्मा से प्रार्थना कर रहे थे। पूरा देश शोक के समंदर में डूब गया।
अपनी मृत्यु के बाद भी वह पूरी दुनिया के विद्यार्थियों को आज प्रेरित कर रही हैं। वह सपना देखने के लिए प्रेरित करती हैं। बड़ा सपना, और उसे साकार करने के लिए लगातार लगे रहने की भी प्रेरणा देती हैं। आज वह इस दुनिया में नहीं है, फिर भी उन्होंने जो कुछ कर दिखाया, उससे सतत प्रेरणा मिल रही है। उनकी तरह ऐसे बहुत हैं, जो बड़े सपने देखते हैं, लेकिन मंजिल तक विरले ही पहुँच पाते हैं। जो सपने देखते हैं और परिस्थितियों से घबराते नहीं, वे इसे सच कर दिखाते हैं ।
अधिकतर लोग फिल्मी सितारे की तरह चमकना ही अपनी मंजिल और लक्ष्य मानते हैं। लेकिन कल्पना सबसे अलग थीं, जो अंतरिक्ष के सितारों को देखती थीं, सितारों के चारों ओर चक्कर लगाती थीं। हरियाणा की इस बेटी ने बड़ा सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी। फिर उनकी उपलब्धियाँ हमें क्यों प्रेरित नहीं करेंगी ? जीवन बहुत ही छोटा है, उसे बरबाद नहीं करें। उन्होंने इसे बेहतर ढंग से समझाया है। वह हमेशा ऊँचाइयों की ओर लक्ष्य करती थीं। अगर कल्पना लक्ष्य हासिल कर सकती हैं तो हम क्यों नहीं? उनके जीवन से प्रेरित होने वाली भारत की हर महिला और लड़कियों के मन में यह प्रश्न उठता है। यदि एक छोटे से शहर की साधारण लड़की अंतरिक्ष में जा सकती है तो हम क्यों नहीं? आज दुनिया में करने के लिए बहुत कुछ है। माइक्रोबायोलॉजिस्ट, एस्ट्रोनॉट, एस्ट्रोफिजिस्ट जैसे अनेक नए क्षेत्रों में अपार संभावनाएँ हैं। वह बहुतों के लिए आदर्श बनीं ।
वह ऐसी महिला थीं, जो सिर्फ किसी को अपनी उपलब्धियों से प्रेरित नहीं करती थीं, बल्कि उन्हें मंजिल तक पहुँचाने में सहायता भी करती थीं। वह अपने स्कूल और कॉलेज के कई विद्यार्थियों की मदद करती थीं। कल्पना अंतरिक्ष की दुनिया से जुड़ना चाहती थीं और उन्होंने उसे करके दिखाया। हालाँकि यह कोई सामान्य बात नहीं है, लेकिन ऐसा सोचने वालों के लिए कल्पना प्रेरणा बन गई हैं।
उनके जीने का मूलमंत्र सभी कामों को करते हुए आगे बढ़ना था। वह उड़ान भरने, घूमने-फिरने, पुस्तकें पढ़ने और भ्रमण करने की शौकीन थीं। उड़ान भरना उन्हें बेहद पसंद था। एरोबेटिक्स और टेल-ह्विल हवाई जहाज में उड़ना उन्हें अच्छा लगता था ।
कल्पना चावला संगीत का आनंद उठाती थीं और तरह-तरह का संगीत सुनती थीं। भारत में उनका जन्म जरूर हुआ, लेकिन पढ़ाई और जीवन का अधिकांश समय अमेरिका में ही बीता। इस तरह से उन्हें भारतीय संगीत के साथ-साथ पाश्चात्य संगीत भी पसंद था। उन्हें हर तरह के संगीत पसंद थे। वह एक तरफ भक्ति संगीत पसंद करती थीं तो दूसरी तरफ नुसरत फतेह अली खान के सूफी संगीत को भी पसंद करती थीं, वहीं डीप पर्पल की तरह क्लासिक रॉक भी सुनती थीं।
वह हमेशा अपने स्कूल के संपर्क में रहती थीं। हालाँकि वह अमेरिका चली गईं, लेकिन इ-मेल आदि के माध्यम से कॉलेज के अपने साथियों के संपर्क में रहती थीं। वह कभी अपनी मंजिल से भटकीं नहीं, कल्पना करनाल (हरियाणा) के जिस स्कूल में पढ़ती थीं, वहाँ के पाँच बच्चों को हर साल नासा के अंतरिक्ष कार्यक्रम में हिस्सा लेने। की उन्होंने व्यवस्था कर दी थी। यहाँ तक कि उनके कॉलेज की छात्राएँ उन्हें अपना आदर्श मानती थीं। उन्हें भरोसा था, यदि एक मध्यम परिवार की वह कुछ हासिल कर सकती है तो दूसरी लड़कियाँ भी जरूर कुछ विशेष कर सकती हैं।
कल्पना के जाने से भारत को एक अपूरणीय क्षति हुई है। युवावस्था में ही उनका देहांत हो गया। मौत के साथ ही भविष्य की। उनकी सारी तैयारियाँ और योजनाएँ धरी रह गईं। वह अपने पति के लिए आज भी जीवित हैं। उन्होंने अपने नाम ‘कल्पना’, जिसका अर्थ विचार करना या सोचना है, लेकिन वह उतने तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने जिसकी कल्पना की, उसे हासिल किया। वह सिर्फ कल्पना नहीं करती थीं, बल्कि सपने को सच करती थीं। मरणोपरांत उन्हें कांग्रेस स्पेस मेडल, नासा स्पेस फ्लाइट मेडल और नासा अद्भुत सेवा मेडल के पुरस्कार प्रदान किए गए।
वह हमेशा उन अनगिनत लोगों को याद आती रहेंगी, जो उनकी तरह नई मंजिल हासिल करने, सीमाओं को लाँघने और अपने बनाए नियम के अनुसार जीवन जीना चाहते हैं। इंटरनैशनल स्पेस यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों ने उनकी याद में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष शिक्षा कार्यक्रम में भाग लेने वाले भारतीय विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए एक कोष बनाया है। इस कोष को उनके नाम से जोड़ते हुए इसे ‘कल्पना चावला इंटरनैशनल स्पेस यूनिवर्सिटी स्कॉलरशिप’ नाम दिया गया है। भारतीय छात्र संघ ने टेक्सास यूनिवर्सिटी में कल्पना चावला मेमोरियल स्कॉलरशिप नामक संस्था बनाई है। टेक्सास यूनिवर्सिटी, अरलिंगटन में एक डोरमेटरी बनाई गई है, जिसका नाम ‘कल्पना चावला हॉल’ है। उनकी जन्मभूमि करनाल में गाल हरियाणा सरकार ने कल्पना | चावला मेडिकल कॉलेज की स्थापना की है। उनके सम्मान में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) खड़गपुर में कल्पना चावला स्पेस टेक्नोलॉजी सेल की स्थापना की है। भारत के प्रधानमंत्री ने पहली उपग्रह श्रृंखला का नाम उनके ही नाम पर ‘कल्पना’ रखा है। कर्नाटक सरकार ने युवा महिला वैज्ञानिकों के लिए 2004 से ‘कल्पना चावला। पुरस्कार’ की व्यवस्था की है। इसके अलावा कई ऐसी चीजें हैं, जो आज भी कल्पना की यादें ताजा करती हैं।
उनके भाई मानते हैं कि उनकी बहन जीवित है। वह सितारा बनकर आज भी चमक रही है।
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