काव्य शिक्षण में किन-किन प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है ? वर्णन कीजिए।
प्रश्न – काव्य शिक्षण में किन-किन प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर – काव्य – शिक्षण प्रणालियाँ
काव्य – शिक्षण की निम्नलिखित आठ प्रणालियाँ –
1. गीत प्रणाली, 2. अभिनय प्रणाली, 3. अर्थबोध प्रणाली, 4. व्याख्या प्रणाली, 5. व्यास प्रणाली, 6. तुलना प्रणाली, 7. समीक्षा प्रणाली, 8. खण्डान्वय प्रणाली।
- गीत प्रणाली – छोटी आयु के बालकों के लिए गीत उपयुक्त होते हैं। ऐसे ही बालकों के लिए बाल-गीतों की रचना की जाती है। बाल-गीतों में बालक को आनन्द प्राप्त होता है। प्रथम, शिक्षक लय तथा ताल के साथ गीत गाता है, तत्पश्चात् बालक उसका अनुकरण करते हैं। शिक्षक अब बालकों के साथ गाता जाता है। इस प्रकार बालक अनेक गीत याद कर लेता है। बालकों को इन कविताओं का भाव भी समझ में आ जाता हैं, क्योंकि इन गीतों की भाषा बोधगम्य होती है।
- अभिनय प्रणाली अनेक गीत ऐसे भी होते हैं जिन्हें अभिनय करते हुए गाया जा सकता है। कविता में रुचि उत्पन्न कराने के लिए यह एक उत्तम साधन है। बालक हाथ-पैर तथा मुख चलाकर गीत के भावों को प्रकट करता है। इन गीतों में क्रियाशीलता रहती है। अतः बालकों को ये गीत अत्यन्त रोचक लगते हैं। खेल ही खेल में वे अनेक गीत याद कर लेते हैं। अभिनय कराते समय शिक्षक को दो बातों का ध्यान रखना चाहिए। प्रथम बालकों को अंग-संचालन आवश्यकता से अधिक न करने दिया जाय, अन्यथा कविता-पाठ की स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है। द्वितीय, बालकों को बहुत तेज स्वर से कविता पाठ नहीं करने देना चाहिए।
- अर्थबोध प्रणाली— अधिकांशतः शिक्षक इसी प्रणाली का प्रयोग करते हैं। शिक्षक कविता का पाठ या तो स्वयं कर देता है अथवा बालकों द्वारा करवा लेता है। इसके पश्चात् शिक्षक एक-एक पद का अर्थ स्वयं करता जाता है। यदि विधि दोषपूर्ण है। इसके द्वारा कविता का भाव-सौन्दर्य नष्ट हो जाता है, क्योंकि पग-पग पर शिक्षक अर्थ स्पष्ट करता है। परीक्षा में उत्तीर्ण कराने के दृष्टिकोण से यह प्रणाली भले ही उपयोगी हो, परन्तु इसके द्वारा काव्य-शिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं होती। खेद का विषय हैं कि आजकल स्कूलों में यही प्रणाली प्रचलित है।
- व्याख्या प्रणाली व्याख्या प्रणाली में शिक्षक कविता के पदों का अर्थ स्पष्ट करता है तथा आवश्यकतानुसार कथाओं की व्याख्या भी करता जाता है। प्राचीन कथा-काव्य इस प्रणाली द्वारा पढ़ाया जाता है। इस प्रणाली का प्रयोग करते समय शिक्षक को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
1. व्याख्या सरल तथा सुबोध भाषा में ही करनी चाहिए।2. व्याख्या आवश्यकतानुसार ही करनी चाहिए। व्यर्थ की व्याख्या करना अनुचित है।3. व्याख्या के समय शिक्षक को भावों के अनुसार वाणी को उतारना – चढ़ाना चाहिए।4. व्याख्या उपदेशपूर्ण ढंग से न की जाय। यह नीरसता उत्पन्न कर देती है।
- व्यास प्रणाली व्याख्या प्रणाली का वृहत् रूप ही व्यास प्रणाली है। इस प्रणाली का प्रयोग करते समय शिक्षक विस्तारपूर्वक उदाहरणों तथा दृष्टान्तों का भी प्रयोग करता है। वह कवि के दार्शनिक सिद्धान्तों को भी समझता है। उच्च कक्षाओं के लिए ही यह प्रणाली उपयुक्त है।
- तुलना प्रणाली – तुलना प्रणाली में एक ही पद की तुलना उसी भाषा के अन्य कवियों तथा विभिन्न भाषाओं की कविताओं से की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि शिक्षक तुलसी का बाल-वर्णन करता है तो वह सूरदास के बाल – वर्णन से तुलना कर सकता है। इस प्रणाली से छात्रों की विवेचना शक्ति का विकास होता है तथा उनके ज्ञान का विस्तार होता है।
- समीक्षा प्रणाली – समीक्षा प्रणाली में कविता का मूल्यांकन किया जाता है। कविता को भाषा, भाव, रस, अलंकार आदि के आधार पर परखा जाता है। शिक्षक विद्यार्थियों को पुस्तकों के नाम तथा तत्सम्बन्धित सन्दर्भ की पुस्तकों का नाम बता देता है। वह छात्रों की सहायता करता है। इस प्रणाली का प्रयोग उच्च कक्षाओं के बालकों के लिए किया जा सकता है, क्योंकि उनका मानसिक विकास पर्याप्त मात्रा में हो चुकता है।
- खण्डान्वय प्रणाली – इस प्रणाली में कविता का विश्लेषण प्रश्नों के आधार पर किया जाता है। इस प्रणाली में प्रश्नोत्तर की मुख्यता रहती है। अतः इसे प्रश्नोत्तर प्रणाली भी कहते हैं। इस प्रणाली का प्रयोग गद्य के लिए उपर्युक्त है।
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