किशोरावस्था की समस्याओं की विवेचना करें ।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
प्रश्न – किशोरावस्था की समस्याओं की विवेचना करें ।
(Discuss the problems of adolescence.)
उत्तर – अध्ययनों के आधार पर कहा गया है कि किशोरावस्था ‘समस्याओं की आयु’ (Age of Problems) है । किशोरों की समस्याएँ परिवार, विद्यालय, स्वास्थ्य, मनोरंजन, भविष्य, व्यवसाय, विपरीत लिंग के लोगों आदि से सम्बन्धित हो सकती हैं। ये समस्याएँ आर्थिक, व्यक्तिगत और सामाजिक आदि किसी भी स्तर की हो सकती हैं। किशोरावस्था को समस्याओं की आयु इसलिए कहा गया है कि बालक अपने माता-पिता, संरक्षकों और अध्यापकों आदि के लिए एक समस्या होता है तथा साथ ही साथ वह अपनी नई विकास अवस्था के नये रोल्स के साथ समायोजन नहीं कर पाता है अतः उसमें चिन्ता, उत्सुकता, अनिश्चितता और भ्रान्ति के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं, यह किसी न किसी रूप में उसके लिए समस्या ही है । इनकी समस्याओं में पर्याप्त मात्रा में वैयक्तिक भिन्नताएँ भी पायी जाती हैं।
किशोरावस्था में प्रारम्भ में किशोरों को अपेक्षाकृत अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि बाल्यावस्था में तो उसे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अपने से बड़ों और परिवारीजनों की सहायता प्राप्त हो जाती है, परन्तु इस अवस्था में यह सहायताएँ बन्द हो जाती हैं। इस अवस्था में वह यह समझने लग जाता है कि उसके संरक्षक और अध्यापक बूढ़े हो गये हैं, वे क्या मदद करेंगे ? ऊपर बताया जा चुका है कि किशोरों की समस्याएँ अनेक प्रकार और अनेक स्तर की हो सकती हैं फिर भी इन समस्याओं के गार्डनर (G. A. Gardner, 1947 ) ने मुख्य दो वर्ग बताये हैं- (1) सामान्य समस्याएँ (General Problems) तथा (2) विशिष्ट समस्याएँ (Particular Problems ) । परन्तु गार्डनर के इस वर्गीकरण से इन समस्याओं के अध्ययन में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती है। कुछ अध्ययनों (J. E. Adams, 1964; K. Anspach, 1961; D. P. Ausubel, 1955) के आधार पर हरलॉक (1974) ने निष्कर्ष निकाला कि किशोरावस्था की अधिकांश समस्याएँ मुख्यतः निम्न क्षेत्रों से सम्बन्धित होती हैं— शारीरिक दिखावट और स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याएँ, परिवार में सामाजिक सम्बन्ध, परिवार से बाहर के लोगों से सम्बन्ध, विपरीत सेक्स के लोगों से सम्बन्धित समस्याएँ, स्कूल-कॉलेज के कार्य, भविष्य की समस्याएँ-जैसे शिक्षा, व्यवसाय के चयन और भावी जीवनसाथी का चुनाव, सेक्स, नैतिक व्यवहार, धर्म और अर्थ से सम्बन्धित समस्याएँ हैं (Problems centre around physical appearance and health, social relationships in the home and with outsiders, relationships with members of the opposite sex, school work, plans for the future-sex and moral behaviour, religion and finances)। इन सभी समस्याओं में भविष्य के सम्बन्ध में जो समस्याएँ होती हैं वे किशोरों के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण और चिन्ताजनक होती हैं ।
अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि किशोरावस्था के प्रारम्भ में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की समस्याएँ अधिक और उनके लिए चिन्ताजनक होती हैं। एक अध्ययन (K. C. Garrison, 1966) में यह देखा गया कि जिन परिवारों में प्रजातान्त्रिक वातावरण रहता है, उन परिवारों में पले बच्चों की समस्याएँ कम जटिल होती हैं, तथा जिन परिवारों में वातावरण प्रभुत्वशाली (Authoritarian) प्रकार का होता है, उन परिवारों में पोषित बच्चों की समस्याएँ अपेक्षाकृत अधिक जटिल हुआ करती हैं। एक अन्य अध्ययन (H. C. Quary & L. C. Quary, 1965) में यह देखा गया कि जिन परिवारों में असंतोषजनक परिस्थितियाँ होती हैं अथवा परिवार में कोई मृत्यु आदि हो जाती है अथवा परिवार में कोई विवाह विच्छेद हो जाता है तो इन परिस्थितियों में भी किशोरों के लिए समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कुछ अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि जिन किशोरों में बुद्धि अधिक होती है, वे अपेक्षाकृत कम समस्याओं से ग्रस्त होते हैं तथा जिन बालकों में बुद्धि कम होती है, वे अपेक्षाकृत अधिक समस्याओं से ग्रस्त होते हैं ।
किशोरावस्था में आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे किशोरों की समस्याएँ जटिल और अधिक जटिल होती जाती हैं। अध्ययनों में यह देखा गया है कि यदि पूर्व के वर्षों में किशोर अपनी समस्याओं का समाधान करने में असफल रहता है तो आगे आने वाले वर्षों में भी वे अपनी समस्याओं का समाधान करने में असफल होता है । इस अवस्था में समस्याओं का समाधान वह अपने परिवार के वरिष्ठ सदस्यों, अध्यापकों और मित्रों आदि की सहायता से करता है । कई बार वह अपनी समस्याओं को परिवारजनों एवं गुरुजनों को को बताने में संकोच करता है । वह यह समझता है कि वे लोग उसकी समस्याएँ समझ नहीं पाएंगे अथवा उसकी सेक्स से सम्बन्धित समस्याएँ हो सकती हैं जिनको वह बताने में संकोच कर सकता है ।
कुछ अध्ययनों (K. G. Garrison, 1966) में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि समस्याएँ जितनी ही अधिक गम्भीर होती हैं, किशोर उन्हें दूसरों को बताने और उनका समाधान प्राप्त करने के लिए उतना ही कम प्रयास करता है । यह भी देखा गया है कि जब वे लोग अपनी समस्याओं का समाधान करने में असफल रहते हैं तो इनमें अनुपयुक्तता और हीनता की भावनाएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं। हरलॉक (1978) ने लिखा है कि “यदि किशोर इन समस्याओं का बिना किसी विशेष परेशानी के समाधान करने के योग्य है तो इसमें आत्म-विश्वास और उपयुक्तता की भावना विकसित होती है; यदि वह इनका समाधान नहीं कर सकता है तो उसमें कुण्ठा और अनुपयुक्तता की भावना का विकास होता है जो उस पर मनोवैज्ञानिक छाप छोड़ते हैं ।” ( If the adolescent is able to deal with these problems without too much inner turmoil, he will develop self-confidence and feelings of adequacy; if not; he will develop feelings of frustration and inadequacy which may level permanent psychological scars.–J. D. Teicher & J. Jacobs, 1966) ।
किशोरावस्था के अन्त तक अधिकांश समस्याएँ धन, सेक्स या शैक्षिक उपलब्धि के सम्बन्ध में ही होती हैं। अधिक आयु के किशोरों के लिए ये समस्याएँ अधिक गम्भीर होती हैं। कुछ अध्ययनों (J. F. Adams, 1964) में यह देखा गया है कि इस अवस्था की किशोरियों की कुछ गम्भीर समस्याएँ व्यक्तिगत आकर्षण, पारिवारिक सम्बन्ध और सामजिक सम्बन्धों से सम्बन्धित होती हैं । किशोरावस्था में आयु बढ़ने के साथ-साथ किशोर अपनी समस्याओं का समाधान करना स्वयं सीखते जाते हैं। फलस्वरूप वे समय व्यतीत होने के साथ-साथ समायोजन में अच्छे खुशहाल होते जाते हैं ।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..

  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *