क्षेत्रीय विकास से क्या तात्पर्य है? बिहार के आर्थिक विकास में क्षेत्रीय नियोजन कहां तक सफल रहा है। विवेचना कीजिए ।
स्वतंत्रता के बाद भारत में कई क्षेत्रों में आश्चर्यजनक रूप से प्रगति हुई तो कुछ ऐसे स्थान हैं जो विकास के निम्नस्तर को भी प्राप्त नहीं कर सके हैं। इस कारण देश में क्षेत्रीय असमानताएँ बढ़ती जा रही हैं।
यह आवश्यक नहीं है कि समान रूप से किए गए क्षेत्रीय विकास से देश के सभी क्षेत्रों का समान रूप से विकास हुआ हो। यह जरूरी नहीं सभी क्षेत्रों में समान रूप से औद्योगीकरण हुआ हो । सरकार द्वारा योजना आयोग एवं वित्त आयोग जैसी संस्थाओं को क्षेत्रगत असमानता को दूर करने का दायित्व सौंपा गया है। ये संस्थाएँ अपने उद्देश्यों में पूर्णत: सफल नहीं हुई हैं। सरकार ने इसके लिए पंचवर्षीय योजनाएं आरंभ की ताकि सभी क्षेत्रों का समान रूप से विकास हो सके।
बिहार में हुए क्षेत्रीय विकास में कई सारी विसंगतियाँ दिखती हैं।
- बिहार प्राकृतिक संसाधनों के दृष्टिकोण से एक गरीब राज्य रहा है।झारखंड के अलग हो जाने के बाद यह विपन्नता और बढ़ गई है। इस कारण संसाधनों के लिए इसे अन्य सम्पन्न राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- पिछड़े क्षेत्रों के लिए आरंभ किए गए कार्यक्रम का ठीक से संचालन न होना।
- संसाधनों के आभाव में कई केंद्रीय योजनाओं का पूरा न हो पाना।
आधारभूत संरचनाओं जैसे ऊर्जा, परिवहन, संचार आदि संसाधनों का आभाव है। और सरकार द्वारा भी आर्थिक रूप से इस दिशा में कोई सकारात्मक प्रयास नहीं किया जा रहा है।
- राज्य सरकार द्वारा सामाजिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों के लिए धन को उपलब्ध न कराना।
बी. आर. जी. एफ. के तहत पर्याप्त आवंटन के द्वारा दूर-दराज के इलाकों में सड़क योजना के तहत तहसील मुख्यालय से, गांवों को जोड़ा गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों द्वितीयक एवं तृतीय क्षेत्रों का विकास हुआ, तथा रोजगार के लिए पलायन करने वाले लोगों की संख्या में कमी दर्ज की गई। क्षेत्रीय नियोजन की समस्या से निपटने के लिए आवश्यक है कि इसके लिए ज्यादा से ज्यादा धन उपलब्ध कराया जाए। पंचायत समितियों जैसी संस्थाओं को मजबूत बनाया जाए, ताकि स्थानीय स्तर पर विकास को गति प्रदान किया जा सके।
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