खलीफा – अल-महदी (775 -786 ई.) : प्रशासनिक नीति एवं उपलब्धियाँ (Khalifa-Al-Mahdi (775 -786AD) : Administrative Policy and Achievements)
खलीफा – अल-महदी (775 -786 ई.) : प्रशासनिक नीति एवं उपलब्धियाँ (Khalifa-Al-Mahdi (775 -786AD) : Administrative Policy and Achievements)
महदी जो खलीफा मंसूर का पुत्र था, मंसूर की मृत्यु के पश्चात् नया अब्बासी खलीफा बनाया गया। महदी का शासनकाल मुख्य रूप से तीन बातों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। बरमक वजीरों के प्रभुत्व के लिए, सैनिक तथा लोकहितकारी कार्यों के लिए।
साम्राज्य विस्तार एवं सैनिक उपलब्धियाँ (Empire Extension and Warrior Achievements)
खलीफा का पद संभालते ही महदी ने खालिद के पुत्र यहया बरमक को अपना वजीर बना लिया । साथ ही अपने पुत्र हारून की शिक्षा का उत्तरदायित्व भी सौंपा। 785 ई. में यहया की मृत्यु हो गयी। इसके पश्चात् खलीफा ने बारी-बारी उसके दो पुत्र फजल तथा जाफर को अपने वजीर के रूप में चयन किया। सच्चे अर्थ में फजल और जाफर ने ही 786 से 803 ई. तक इस्लामी साम्राज्य पर शासन किया। बगदाद में पूर्वी क्षेत्र पर बरमक तजीरों में महत की स्थापना की गई थी। उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी। यहाँ जाफर ने अल-जाफरी महल का निर्माण करवाया था, जो बड़ा ही भव्य एवं आकर्षक था। बाद में अल-मामून के इस भवन को खलीफाओं के निवास-स्थान में बदल दिया था । टिग्रिस नदी के तट पर बना हुआ यह महल चारों ओर से घेरे से युक्त था और उस घेरे के भीतर अनेक छोटे भवनों का निर्माण किया गया था। बरमक वजीर, बड़े ही प्रभावशाली तथा संपन्न थे। वे बड़े ही उदार एवं दानी थे। अरबी भाषा में ‘बरमकी’ शब्द से अभिप्राय उदारता एवं दानशीलता से है।
महदी सैनिक उपलब्धियाँ भी चर्चा का विषय रही हैं । वस्तुतः उसके शासनकाल में भी साम्राज्य में यत्र-तत्र विद्रोह हुए। इन विद्रोहों का दमन में खलीफा की महत्वपूर्ण भूमिका थी और बाद में साम्राज्य में शांति-सुव्यवस्था को स्थापित किया गया।
सीरिया में विद्रोह का दमन – महदी के शासन का विद्रोह सर्वप्रथम मारवान द्वितीय के पुत्र द्वारा किया गया | जल्द ही इस विद्रोह को समाप्त कर दिया गया। विद्रोही नेता को बंदी लिया गया, किंतु उसे पेन्शन दे दी गयी और आजाद कर दिया गया। इतना ही नहीं, खलीफा की बेगम खजूरन ने मारवान द्वितीय की विधवा पत्नी माजूना को अपने राजभवन में बुलाकर काफी आदर-सत्कार किया।
खुरासान का विद्रोह – दूसरा विद्रोह मकना के नाम से भी प्रसिद्ध था, जिसे वे स्वयं कोई ईश्वर अथवा मसीहा का अवतार मानते थे। खुरासानियों का मत था कि उनका जन्म भलाई के लिए हुआ है। अतः खुरासानी उसके उपदेशों पर मर मिटने हेतु सदैव तत्पर रहा करते थे। खुरासानी विद्रोह का अंत-खुरासानी विद्रोह को दबाने के लिए महदी द्वारा राजधानी से एक बड़ी सेना भेजी गई जिसमें मकना तथा उसके समर्थकों की हत्या कर दी गई, फिर भी खुरासान के विद्रोह को शांति नहीं मिली। मकना के कुछ समर्थक मुवैज्ज अभी विद्रोह करने के लिए पूरी तरह तैयार थे। इसी बीच खुरासान के जरजान क्षेत्र में भी एक नए संप्रदाय मुहम्मीर का बीजारोपण हुआ। मुहम्मीरों ने भी अब्बासी खलीफा के विरुद्ध विद्रोह किये। इस बार खलीफा की सेना के कठोर हाथों से सदा के लिए ये विद्रोह समाप्त कर दिए गए।
बदुओं का विद्रोह–अरब के कुछ बदुओं के विरुद्ध 784 ई. में महदी को कदम उठाने पड़े। खलीफा की सेना ने बड़ी सहजता के साथ बदुओं का विद्रोह समाप्त करने में उदारता का व्यवहार किया।
जिन्दीकियों का पतन – जिन्दीकी संप्रदाय के लोगों ने भी महदी के शासनकाल में विद्रोहियों का रूप धारण कर लिया था, इस संप्रदाय का जनक मजदक नामक व्यक्ति था जिसने चौथी सदी में ही इस सम्प्रदाय की नींव रखी। भविष्य में मांनी नामक व्यक्ति ने इसे और अधिक सुदृढ़ तथा प्रसिद्ध बनाया। अब्बासी शासनकाल के प्रारंभ में जिन्दीकी सम्प्रदाय की लोकप्रियता खुरासान, पश्चिमी ईरान तथा इराक के क्षेत्रों में काफी बढ़ गई। साथ ही, इनके द्वारा कुछ ऐसे प्रयत्न किये गये, जिन्हें लोगों को अपने सम्प्रदाय को मानने के लिए जोर दिया जाता था तथा कभी-कभी अबोध बालकों का अपहरण कर लिया करते थे। महदी ने काफी संघर्ष के साथ जिन्दीकियों का अंत किया। अनेक जिन्दीकी अपने प्राणों की रक्षा के लिए अन्यत्र भाग खड़े हुए। इस क्षेत्र में इस तरह शांति सुव्यवस्था स्थापित की गई ।
धर्मयुद्ध की शुरुआत (Beginning of Religion War)
धर्मयद्ध को शुरुआत को महदी के खलीफा काल की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। धर्म के नाम पर सर्वप्रथम महदी ने ही बैजेन्टाइनों के विरुद्ध युद्ध किये तथा इस्लाम एवं ईसाई धर्म के बीच भविष्य में होने वाले धर्मयुद्ध की श्रृंखला की शुरुआत की।
इस्लाम धर्म तथा सम्राज्य का बैजेन्टाइन के शासक कड़ा विरोध करते थे। यद्यपि पूर्व के खलीफाओं ने अनेकों बार बैजेन्टाइन के क्षेत्रों पर हमला किया तथा उनकी शक्ति को बढ़ाया, फिर भी बैजेन्टाइन शासकों की महत्त्वाकांक्षा यथावत बनी रही। 780 ई. में इस्लामी साम्राज्य के सीमांत प्रदेशों पर बैजेन्टाइनों के भीषण संघर्ष हुए। इससे उस क्षेत्र में निवास करने वाली मुस्लिम प्रजा को काफी कष्टों का सामना करना पड़ा। मारस जर्मेनिसिया पर आक्रमण कर बैजेन्टाइनों ने शहर को नष्ट करके वहाँ रहने वाले नागरिकों की हत्या कर दी, जिससे रुष्ट होकर महदी ने अपने सेनापति हसन बिन कहतबा को बैजेन्टाइनों के विरुद्ध एक बड़ी एवं संगठित सेना तैयार की। इस सेना ने रोमन शहरों में अशांति फैला दी, किन्तु जब इस पर भी बैजेन्टाइन के लोग इससे प्रभावित नहीं हुए तो महदी ने स्वयं अपने नेतृत्व में रोमन साम्राज्य के विरुद्ध आक्रमण किया। बगदाद की रक्षा का भार उसने अपने पुत्र मूसा को सौंप दिया। वह अपनी सेना को लीकर मोसूल के मार्ग से बढ़ता हुआ अलेल्पों पहुंच गया। अल्लेपो से महदी ने अपने पुत्र हारून रशीद के नेतृत्व में एक सशक्त सेना को रोमन साम्राज्य के ऊपर आक्रमण करने का आदेश दिया और उसकी सहायता के लिये कई कुशल सेनानायक भेजे। याहिया बिन खलीद सेना का नेतृत्व कर रहा था। इस शक्तिशाली सेना के सामने सैनिक नहीं टिक सके। थोड़े समय में ही शत्रु के क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया। अपने बेटे हारून रशीद को आरमीनिया तथा अजरबैजान का गवर्नर तथा साहित बिन मूसा और याहिया बिन खालीद को क्रमशः अर्थ सचिव एवं वित्त मंत्री बना कर खलीफा महदी तीर्थयात्रा पर जेरूसलेम पहुंच गया।
785 ई. में मेगास्थनीज के नेतृत्व में संगठित होकर बैजेन्टाइनों ने इस्लामी साम्राज्य पर हमला कर दिया। इस बार हारून रशीद ने पूरी तरह रोमन शक्ति को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की। वह अपनी सेना के साथ वासफोरस के करीब पहुँच गया। शिशु रोमन सम्राट कौन्सटेनाइन की संरक्षिका माता ईरने अपनी सेना से साथ युद्धस्थल की तरफ बढ़ी किन्तु भाग्य ने रोमनों का साथ नहीं दिया और वह दो बार उमैयद सेना के हाथ से बुरी तरह हार गये। फिर उनको संधि करने के लिये विवश कर दिया । रोमन सत्तर हजार से नब्बे हजार दीनार क्षतिपूर्ति के रूप में अब्बासियों को सालाना देने के लिये तैयार हो गये । हारून रशीद की रोमनों के विरुद्ध यह सफलता महदी के खलीफा काल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है। वस्तुतः हारून रशीद की उपाधि इस सफलता पश्चात उसके पिता महदी द्वारा दी गई थी ।
जन-हित एवं निर्माण कार्य (Public Interest and Construction Work)
अल-महदी का कुशल अब्बासी खलीफाओं के बीच विशेष स्थान है। उसने युद्धों से कहीं अधिक लोकहिकारी एवं निर्माण कार्यों पर अधिक बल दिया । वस्तुतः इस दृष्टि से वह अपने पूर्व के उमैयद एवं अब्बासी खलीफाओं से सर्वथा अलग था । उसने उदारता और निर्माण कार्यों पर अधिक ध्यान दिया। मानवता का आदर कर महदी ने एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया। उसके आदर्शों का अनुकरण करके मामून तथा हारून ने श्रेष्ठता अर्जित की। वैसे महदी ह्रदय से एक उदार तथा प्रजा के हितों की ओर ध्यान देने वाला शासक कहा जा सकता था। परन्तु उसके इन गुणों को तात्कालिक परिस्थितियों ने भी व्यापक रूप से प्रभावित किया था। उसके शासनकाल में चारों तरफ शांति व्याप्त थी। मंसूर अपने बेटे को एक संगठित राज्य तथा समृद्ध राजकोष सौंप गया। अतः महदी को निर्माण एवं लोकहितकारी कार्यों को संपादित करने में कभी आर्थिक कठिनाइयों से नहीं गुजरना पड़ा। साथ ही उसने अपने दरबार में महान् साहित्यकारों, प्रतिष्ठित विद्वानों, लब्धप्रतिष्ठ कलाकारों आदि को संरक्षण प्रदान करके साहित्य एवं कला कौशल के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इस बात से ही खलीफा महदी के शासनकाल की महानता को समझा जा सकता है कि उसने अपने राज्यारोहण के बाद अपने पिता द्वारा कैद किए गये सभी बन्दियों को स्वतंत्र कर दिया। यह उसकी सहृदयता की पराकाष्ठा ही कही जा सकती है कि उसने अब्बासी वंश के महान् शत्रु इब्राहिम को न केवल कैद से आजाद कर दिया, बल्कि निश्चित पेन्शन देकर उसे सम्मानपूर्ण जीवन व्यतीत करने का अवसर भी प्रदान किया। मदीना आदि धार्मिक शहरों के निवासियों को सदाचारी जीवन व्यतीत करने का अवसर भी प्रदान किया। यद्यपि भ्रष्ट एवं बेईमान अधिकारियों के लिए कठोर सजा दी गयी, परन्तु खलीफा मंसूर द्वारा उन्हें जो आर्थिक सजा दी गयी, धार्मिक शहरों के निवासियों को पुनः वे सारी सुविधाएँ दी गयीं जिन्हें उनकी विद्रोही प्रवृत्ति के कारण उसने पिता ने समाप्त कर दिया था। उनकी धनराशि को उन्हें वापस करने का आदेश दिए। ऐसी धन-राशि की वापसी के लिए अतिरिक्त वित्त विभाग बैतुलमाल का गठन किया गया तथा हेज्ज़ाज की प्रजा के बीच तीन करोड़ दरहम और डेढ़ लाख पोशाकों का वितरण किया गया ।
निर्माण कार्य – अपने बरमक वजीरों के प्रोत्साहन से खलीफा ने लोगों के हित में कई कार्य किए। पूर्व के युद्धों में बर्बाद हुए शहरों तथा भवनों को फिर से बनाया गया और उन्हें भव्य एवं आकर्षक रूप दिया गया। साम्राज्य के मुख्य नगरों की मस्जिदों तथा शैक्षिक संस्थानों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी कर दी गयी। इसी प्रकार साम्राज्य में अनेक नगरों का निर्माण भी किया गया। विद्वानों का ऐसा विश्वास है कि बरमक वजीर अल-फजल इस्लाम का पहला व्यक्ति था जिसने रमजान के महीने में मस्जिदों में रोशनी हेतु चिराग को प्रयोग में लाया ।
लोकहितकारी कार्य – प्रजा मे भलाई के लिए कार्य करना खलीफा महदी का प्रमुख उद्देश्य था। उसने अनेक मस्जिदों तथा मखतबों का निर्माण करवाया। अंसारों को प्रसन्न करने के लिए पाँच सौ अंसारों को अपना अंगरक्षक नियुक्त किया । शारीरिक रूप से कमजोर तथा बीमार व्यक्तियों के लिये दवा तथा पेंशन की योजना लागू की। महदी एक धर्मपरायण व्यक्ति था और उसने तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए काफी व्यवस्थाएँ कीं। मक्का के हज पर आए मुसलमानों की सुविधा लिए सड़कें तैयार कीं, सड़क के दोनों ओर वृक्षारोपण किया गया तथा बड़ी संख्या में निश्चित दूरी पर सरायों का निर्माण किया गया। सड़कों पर यत्र-तत्र स्वतंत्र पेयजल की सुविधा के उद्देश्य से कुएँ खुदवाए गये तथा सरायों के पास बाजारों को स्थापित किया गया जिससे धर्म-यात्रियों को दैनिक जीवन से संबंधित वस्तुएँ सहज उपलब्ध हो जाएं। सड़कों की निगरानी के लिए पहरेदारों की व्यवस्था की गयी, ताकि राहगीरों को किसी प्रकार की मुश्किल का सामना न करना पड़े।
महदी के शासनकाल में बरमाकों की सहायता से शिक्षा – साहित्य, ज्ञान-विज्ञान आदि की भी समुचित व्यवस्था की गई। बरमक वज़ीर जाफर ने अपनी वाकपटुता, साहित्यिक योग्यता एवं विद्वत्ता के लिए काफी प्रसिद्धि पायी । बरमकों के वंश को प्रतिष्ठित करने में जफर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी । महदी के शासनकाल में बगदाद को वाणिज्य – व्यापार के श्रेष्ठ केंद्र के रूप में विकसित किया गया। भारत के साथ अब्बासियों के आर्थिक संबंधों में भी विकास हुआ। डाक-व्यवस्था और भी संगठित एवं उन्नतशील हो गयी। खलीफा ने अपनी प्रजा के आध्यात्मिक विकास के लिए भी बहुत कुछ किया ।
अरबी साहित्य के अतिरिक्त फारसी साहित्य को भी प्रोत्साहित किया गया। ईब्ब-अल-मुकफ्फा अरबी का महान विद्वान था। उसने फारसी ग्रन्थ खुदानामा तथा फारसी में अनूदित एक भारतीय ग्रंथ कालिया दमन का अरबी भाषा में रूपांतरण किया। फारसी शैली में उसने राजनीतिक विवेक से संबन्धित कुछ कविताओं की रचना भी की। सलीह इब्न- अबदल कुदूस भी फारसी एवं अरबी साहित्य का प्रतिष्ठित विद्वान था। महदी के साथ सैद्धान्तिक सामंजस्य न होने के कारण कुदूस को मौत की सजा दे दी गयी। बस्सार इब्न-बरद एक अंधा कवि था जिसे महदी ने मार दिया था क्योंकि वह इस्लाम धर्म के खिलाफ महदी के शासनकाल तक खान-पान, पोशाक, फैशन आदि पर फारसी प्रभाव काफी बढ़ गये। फैशन, पोशाक आदि में इस काल में पर्याप्त विकास हुआ। जफर विद्वत्ता के अतिरिक्त अपने फैशनपरस्ती के लिए भी काफी चर्चित था। ऊँचे गले की पोशाक का फैशन जफर ने ही शुरू किया था। अल महदी ने अपनी मृत्यु के पूर्व 10 वर्षों तक शासन किया जिसमें उसने कई कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वयन किया।
अल-हादी का शासनकाल (Administration Period of Al-hadi)
785 ई. में अल-हादी नाम से खलीफा महदी के 24 वर्षीय पुत्र मूसा को महदी की मृत्यु के पश्चात् अब्बासी-गद्दी सौंपी गई । यद्यपि हादी एक वीर पुरुष और स्वभाव से उदार एवं साहित्य तथा कला का पोषक था, परन्तु वह बड़ा ही कठोर, हठी एवं अदूरदर्शी शासक सिद्ध हुआ। उसने साम्राज्य में होने वाले विद्रोहों का सफलतापूर्वक अंत किया। परन्तु उसके दरबार में व्याप्त महत्वपूर्ण वातावरण के कारण उसका पतन हो गया ।
अलीदी विद्रोह का अंत (End of Alldi Revolt)
अलीदियों द्वारा हादी के प्रभुत्वकाल में अलींदियों ने अब्बासी सत्ता के विरुद्ध पुनः एक बार फिर प्रारंभ किया गया। इस विद्रोह का तात्कालिक कारण मदीना के अब्बासी गवर्नर के द्वारा हसन के परिवार के कुछ सदस्यों का मद्यपान का झूठा इल्जाम लगाकर उनके प्रति अभद्र व्यवहार करना कहा जा सकता है। परन्तु सच्चाई यह थी कि अलीदी सदा ही अब्बासियों के दुश्मन बने रहे और जब कभी भी उन्हें मौका मिला, उन्होंने विद्रोह करना नहीं छोड़ा। अलींदियों के विद्रोह का नेतृत्व हुसैन द्वारा हादी के शासनकाल में किया जिसका दमन उसने बड़े ही कठोरता के साथ किया और शान्ति व्यवस्था कायम की; किन्तु, इसी बीच हुसैन का भतीजा इद्रीस अपनी जान बचाकर मोरीतानिया भाग गया और भविष्य में बरबरों के सहयोग से वहाँ उसने इसी वंश की नींव रखी। इस समय मगरीब अल अक्सा अब्बासी प्रभुत्व से स्वतन्त्र होकर इद्रीसी के राज्य में जा मिला। स्पष्ट है कि यद्यपि हादी को अलीदी विद्रोह के दमन में सफलता मिली, परन्तु वह साम्राज्य का विकेंद्रीकरण होने से नहीं बचा सका। आगे चलकर इस प्रवृत्ति के कारण इस्लामी साम्राज्य को भारी क्षति सहन करनी पड़ी।
गृहयुद्ध की शुरुआत (Begining of Civil War)
यह कहना गलत नहीं होगा कि हादी का शासनकाल गृह कलह तथा मतभेद का काल था । महदी के पुत्रों में हारून अल-रशीद बड़ा ही योग्य एवं प्रभावशाली व्यक्ति था । अपने पिता के शासनकाल में भी विभिन्न युद्धों एवं प्रशासन सम्बन्धी कार्यों में भाग लेकर अपनी योग्यता का प्रमाण दिया था। परन्तु, मूसा उसका बड़ा भाई था, अतः महदी ने उसे ही अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। हारून ने कभी भी पिता की इस इच्छा का विरोध नहीं किया। लिहाजा, हादी के लिए यह न्याय संगत था कि वह हारून को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित करता । परन्तु स्वार्थ में पड़कर उसने न केवल हारून के स्थान पर अपने ज्येष्ठ पुत्र जफर को अपना उत्तराधिकारी बनाने का प्रयास किया, बल्कि हारून के मित्र तथा परामर्शदाता महिदा बिन-खालिद बरमक तथा उसके अनेक समर्थकों को बंदी बनवा दिया। एक स्थिति में हारून खलीदा का हादी का दुश्मन बनना स्वाभाविक था।
हादी की माता एक महत्वाकांक्षी महिला थी जिन्होंने अपने पति के शासनकाल में ही प्रशासन पर अपना अधिकार जमा लिया था लेकिन हादी का व्यवहार उसकी माता खजूरन के विपरीत था । अतः उसने अपने दरबारियों को खजूरन की बातों को मानने तथा उसका पक्ष लेने से साफ इंकार कर दिया। उन्हें चेतावनी दी गयी कि अगर उन्होंने खलीफा की आज्ञा का उल्लंघन किया तो उन्हें कठोर सजा देने का प्रावधान था। इस प्रकार अपनी नीति से हादी ने अपनी माता तथा अनुज को अपना विरोधी बना लिया। अब हारून एवं खजूरन एक-दूसरे के समर्थक और सहयोगी हो गये और उन्होंने मिलकर हादी की आलोचना का आलोचना करना शुरु कर दिया।
हादी का अंतिम समय एवं मौत (Last Moments and Death of Haadi)
हादी के मृत्यु स्वाभाविक रूप से किसी रोग के कारण हुई या हारून द्वारा उसे मार दिया गया, यह कहना अत्यंत कठिन है। यह आज भी विद्वानों के बीच मतभेद का कारण बना हुआ है। मृत्यु के समय उसकी माता खजूरन यहाँ मौजूद थी। कहते हैं हादी ने अपनी माँ से क्षमा याचना की और अपने दुर्बल हाथों से माँ के हाथों को पकड़ कर अपने सिर से लगा लिया। वहाँ उपस्थित लोगों में करुणा व्याप्त हो गयी। हादी ने मरते समय अपनी मां से हारून को खलीफा नियुक्त करने की प्रार्थना की थी।
हादी अब्बासी का जीवन दर्शन (Life Philosophy of Haadi Abbasi)
हादी अब्बासी एक ऐसा व्यक्ति था जिस पर गुस्सा भी आता है और प्यार भी। उसके द्वारा काफी त्रुटियाँ हुईं, परन्तु बाद में अपनी मृत्यु के समय उसने वह सब कुछ कर दिया, जो उसे करना चाहिए था। साथ ही, अलीदी विद्रोह का दमन कर उसने साम्राज्य में शान्ति-व्यवस्था कायम की। शिक्षा – साहित्य, ज्ञान-विज्ञान तथा कला-कौशल में काफी विकास किया, पर इनके विकास | के लिए उसे उचित समय नहीं मिल पाया । पुनः जिस गृहकलह का प्रारंभ उसके शासनकाल में हुआ तथा साम्राज्य में विकेंद्रीकरण की प्रवृत्तियों ने जन्म लिया, उनसे आगे चलकर उनका समापन भी हो गया ।
हारून- अल – रशीद (Haroon-al-Rashid)
महदी के दूसरे पुत्र हारून अल-रशीद को खलीफा हादी की मृत्यु के पश्चात् अब्बासी खलीफा बनाया गया। हारून की गणना विश्व के महान् शासकों में एक था । उसको केवल फ्रैंक शासक शार्लमा ही चुनौती दे सकता था। परन्तु इन दोनों में भी हारून ही महान् था । वस्तुतः हारून का शासनकाल न केवल इस्लामी इतिहास का, बल्कि विश्व इतिहास का एक सुनहरा पृष्ठ है, जो सदा विश्व को अपने प्रकाश से प्रज्ज्वलित करता रहेगा। उसका व्यक्तित्व महान् था और उसमें अपने युग के उन दुर्गुणों का अभाव था, जो उस काल के शासकों में सामान्य रूप से पाए जाते थे। वह भोग-विलास से हटकर जनता की भलाई के लिये सदैव प्रयासरत रहता था। उसकी धार्मिक उदारता ने गैर-मुसलामनों के बीच भी उसे काफी प्रसिद्ध बना दिया था। वह तलवार की कला में निपुण होने के साथ विद्रोहों का दमन करने में सक्षम था और इसके बल पर साघ्रामव में शांति व्यवस्था बनी रहती थी। विदेशों में काफी चर्चित था और शार्लमा जैसा प्रतापी शास भी उससे मित्रता करना चाहते थे।
हारून की प्रशासनिक कुशलता ने भी उसकी महान बनाया। विद्रोही का पता लगाने के लिए तथा प्रजा की स्थिति का अवलोकन करने के लिए उसे व्यक्तिगत रूप से सीमान्त प्रदेशों का भ्रमण करते हुए अथवा दरों का चक्कर लगाते हुए देखा जाता था। अन्याय का अंत करने तथा दलितों और अभागों के भाग्य-निर्माण के उद्देश्य से हारून रात्रि के अंधेरे में भी बगदाद की गलियों में घूमता रहता था। उसने शासन को बड़े ही अच्छे ढंग से संगठित किया। वह एक महान प्रजापालक शासक था और जनता की भलाई को ही सर्वाधिक महत्व देता था। उसने अपने शासनकाल में अनेक जन-कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण तथा उनका कार्यान्वयन किया। उसने स्कूल, मस्जिदें, चिकित्सालय, सराय, राजमार्ग, नहरें, पुल आदि बनवाए, जो उसकी महानता की चर्चा करते थे। उसने साहित्य, कला, विज्ञान, आदि में प्रगति लाकर इस्लाम के इतिहास में उस बौद्धिक तथा आध्यात्मिक क्रान्ति को जन्म दिया, जो भविष्य में सदियों तक इस्लामी तथा विश्व सभ्यता के मार्ग का विकासशील प्रतीक बने। धर्म-यात्री, व्यापारी, साहित्यकार, कलाकार आदि हारून रशीद के सुसंगठित शासन का गुणगान करते नहीं थकते थे ! इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उसका शासनकाल अब्बासी के ‘स्वर्णयुग’ की चरम सीमा थी।
सैनिक सफलताओं, जन-कल्याणकारी कार्यों तथा सांस्कृतिक उपलब्धियों के चलते हारून अल रशीद का शासनकाल चर्चित माना जाता है। अब हम एक-एक कर उसकी विभिन्न उपलब्धियों के बारे में ज्ञान प्राप्त करेंगे।
हारून की सैन्य व्यवस्था (Military System of Haroon)
हारून-अल-रशीद एक उच्चकोटि का सेनानायक था तथा उसकी सेना काफी शक्तिशाली थी। अपने पिता महदी के शासनकाल में ही हारून ने अपनी सैनिक योग्यता का परिचय देना शुरु कर दिया था। उसने अनेकानेक विद्रोहों का अंत किया था और बैजेन्यइनी शासन को धूल वटा दी। खलीफा अल-किया ने अरबी भाषा में फारसी, संस्कृत, यूनानी, सीरियाई भाषाओं के साहित्यिक, दार्शनिक ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक ग्रन्थों का बड़ी संख्या में रूपांतरण किया, जो | हारून के शासनकाल की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाती है। अरबों के ऊपर भारतीय साहित्यिक, गणित एवं विद्वता का प्रभाव देखने को मिलता है। किन्तु अब्बासी कालीन बौद्धिक नवजागरण की सर्वाधिक प्रेरणा फारस से मिली वस्तुतः इस काल में जिस इस्लामी सभ्यता-संस्कृति की नींव रखी गयी थी, यद्यपि उसकी आत्मा अरबी रही, परन्तु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उसका शरीर फारसी था | विज्ञान अथवा दर्शन के स्थान पर साहित्य, कला-कौशल तथा सामाजिक रहन-सहन के क्षेत्रों में इस्लामी सभ्यता के प्रति ईरान का महत्वपूर्ण योगदान कहा जा सकता है। यूनानी संस्कृति भी इस्लाम के लिए अमूल्य निधि प्रमाणित हुई। दर्शन, ज्ञान-विज्ञान आदि के क्षेत्रों में अरबों ने यूनानियों से बहुत कुछ सीखा। इस प्रकार हारून तथा उसके उत्तराधिकारियों और विशेष रूप से मामून के शासनकाल में इस्लामी सभ्यता-संस्कृति विश्व स्तरीय रूप से प्रभावी हुई।
साहित्य (Literature)
हमें ज्ञात है कि हारून-अल-रशीद के शासनकाल में साहित्य, इतिहास, दर्शन, कला, विज्ञान की अत्यधिक वृद्धि हुई । हारून का राजदरबार विश्व के महान् विद्वानों, साहित्यकारों तथा कलाकारों से भरा रहता था। साहित्य के क्षेत्र में उसके शासनकाल में काफी विकास हुआ था । स्वयं खलीफा हारून एक कुशल कवि था । अतः वह कवियों का बड़ा ही सम्मान किया करता था। उसके काव्य में ईरान का प्रभाव था। ईरानियों के चलते अरबी काव्य में कल्पना की उड़ान, ऊँचे विचारों का प्रदर्शन तथा कोमल भवनाओं का आकलन किया जाने लगा। अबूनुवाज, अबूल अताहित, मूतानब्जी आदि इस काल के चर्चित कवि थे। खलीफा हारून ने मंसूर द्वारा स्थापित वैज्ञानिक पुस्तकों के अनुवाद विभाग का विस्तार किया तथा अनुवादों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। विद्वानों ने विभिन्न भाषाओं की पुस्तकों का अनुवाद करके साहित्य एवं विज्ञान के कोष को समृद्ध बनाया। अनुवाद के कारण मानसिक विकास एवं जागृति की गति तेज हो गयी । अरबी भाषा में फारसी, संस्कृत, सीरियाई तथा यूनानी रचनाओं का बड़ी संख्या में अनुवाद किया गया । अरस्तू की रचनाओं पर काफी बल दिया गया। अनेक भारतीय ज्योतिष एवं चिकित्सा सम्बन्धी ग्रंथों का अनुवाद हुआ। इस युग में तुलनात्मक गद्य का निर्माण हुआ और कथा, नाटक, साहित्य का विकास हुआ। असमाई को अरबी व्याकरण का काफी ज्ञान था ।
आध्यात्मिक ग्रन्थ (Spiritual Volume)
अनेक धार्मिक ग्रन्थों को हारून के शासनकाल में लिखा गया । आध्यात्मिक और धर्म शास्त्र पर अनेक उत्कृष्ट रचनाएँ प्रकाश में आईं। इसी से सम्बन्धित आचार-शास्त्र का भी विकास हुआ। कानूनों को इस्लामी आधार पर लिखा गया। हुसैन ने किताब अल अखलाक के नाम से अरस्तू के दर्शन का अनुवाद किया ।
इतिहास (History)
हारून से पूर्व उमैयद शासनकाल में ही इतिहास लेखन का कार्य आरम्भ हो चुका था। धार्मिक रीति-रिवाजों को आधार बनाकर पहली बार मुहम्मद साहब की जीवनी लिखी गयी । इब्न ईशाक ने पैगम्बर की आत्मकथा की रचना की। कालांतर में महान् साहित्यकार हिशाम ने ईशाक की पुस्तक को संशोधित किया । हिशाम ने लगभग 129 पुस्तकें लिखीं जिसमें से आज केवल तीन ही मौजूद हैं। प्रसिद्ध इतिहासकारों में इन कुतैबा का नाम काफी उल्लेखनीय है। उसने रचना मुहम्मद इब्न-मुसलित अल-दीवानरी के आधार पर की थी। उसकी रचनाओं में किताब-अल-मारीफ काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इतिहासकारों मे हमजा, अल-इसफहानी तथा इब्न-वादी अल-याकूबी का नाम प्रमुख है।
चिकित्सा शास्त्र (Medicinal Study)
इस काल में चिकित्साशास्त्र, रसायन, प्रकृति-विज्ञान, गणित, भूगोल, ज्योतिषशास्त्र के क्षेत्र में भी पर्याप्त उन्नति देखने को मिली। चिकित्साशास्त्र के अनेक यूनानी एवं भारतीय ग्रन्थों का अरबी में रूपांतरण किया गया । औषधि निर्माण सम्बन्धी शिक्षा देने के लिए अनेक शैक्षिक संस्थान खोले गये। ईरानी आदर्शों के हारून के साम्राज्य में अनेक अस्पतालों का निर्माण करवाया । ॐ.. – राजी इस समय का सबसे प्रतिभाशाली चिकित्सक था। बगदाद के चिकित्सालय का वह प्रधान चिकित्सक था। उसने शल्य-शास्त्र में बत्ती का निर्माण किया था। उसके द्वारा अल हावी नामक पुस्तक की रचना की गई जो भविष्य में यूरोप में भी काफी चर्चित हुई ।
रसायन, ज्योतिष, गणित, भूगोल आदि – हारून के शासनकाल में चिकित्साशास्त्र के अलावा अन्य विज्ञानों को भी काफी प्रोत्साहन दिया गया। रसायन शास्त्र का काफी विकास हुआ। जल घड़ी और पारा से चलने वाली घड़ी का का सर्वप्रथम निर्माण किया गया। हय्यानं महान रसायन शास्त्री था। उसके शिष्यों में तुधारा तथा इरक्की कासिम काफी प्रसिद्ध हुए। गणित एवं ज्योषितशास्त्र की अनेक पुस्तकों का रूपांतरण अरबों ने यूनान तथा भारत से लाकर किया। अल-बहानी एक महान् ज्योतिष शास्त्री था। उसने चन्द्र एवं सूर्यग्रहण की सर्वप्रथम जानकारी दी। भूगोल सम्बन्धी ज्ञान की भी काफी प्रगति हुयी। इस काल के अरबों का सम्बन्ध विश्व के अनेक देशों के साथ हुआ। सांस्कृतिक आदान-प्रदान के अतिरिक्त इन देशों के साथ वाणिज्य व्यवसाय में भी पर्याप्त वृद्धि हुई। अतः भूगोल का ज्ञान अरबों के लिए महत्वपूर्ण हो गया। सुलेमान-अल-ताजीर ने चीन एवं भारत यात्रा का विवरण अरबी भाषा में दिया। याकूब इब्न- ईशाक अल-किन्दी ने टालेमी के भूगोल का अरबी भाषा में रूपांतरण किया। अल-बुलदान नामक किताब की रचना अल-याकूबी द्वारा की गई ।
शिक्षा के क्षेत्र में भी हारून द्वारा काफी ध्यान दिया गया। बगदाद, बसर, कूफा, काहिरा आदि इस्लामी शिक्षा के प्रधान केन्द्र थे । विद्यार्थी को अनेक धार्मिक तथा लौकिक विषयों की शिक्षा दी जाती थी। हारून ने शिक्षा को व्यापक बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किया। मस्जिदों की ओर से अध्यापकों और निर्धन छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती थी । शिक्षा के उच्च शिखर पर पहुँचने के लिए हारून ने मदरसों पुस्तकालयों तथा वेधशालाओं का निर्माण कराया और सफल भी हुआ।
कला एवं संगीत (Art and Music)
कला तथा संगीत दोनों क्षेत्रों में हारून के शासनकाल में पर्याप्त हारून संगीत का ज्ञाता था और वह संगीतकारों को अपने दरबार में काफी सम्मान की दृष्टि से देखता था । इब्राहिम, सियात और इब्ननाजमी जैसे प्रतिष्ठित संगीतकार उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। अब्दुल्ला बिन इद्रीस, ईसा बिन युनूस, सूफिया बिन सूरी, इब्राहिम, मोसूली आदि अन्य कुछ प्रभाव संगीतकार थे।
बगदाद का सुन्दरीकरण (Formulation of Baghdad)
हारून के शासनकाल में बगदाद आकर्षण, समृद्धि एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अब विश्व का सर्वश्रेष्ठ नगर कहा जा सकता है। राजमहल की शोभा अभूतपूर्व थी। यह अत्यन्ट विशाल एवं आकर्षक नगर था। इसका दर्शक कक्ष बहुमूल्य कालीनों, गलीचों, पदों तथा फर्नीचरों से सजा होता था। जुबैदा और उसकी बहन उलैमा, महलों को सजाने के लिए धन को पानी की भांति बहाया करती थी। दोनों अत्यन्त संभ्रांत एवं फैशनपरस्त महिलाएँ थीं। उलेमा ने नये ढंग के पोशाकों तथा गहने पहनने की शुरुआत की। राज्यारोहण, शादी-ब्याह, पुत्रोत्सव, जन्मदिन, विदेशी राजदूतों के स्वागत आदि के अवसरों पर महल की शोभा और अधिक बढ़ जाती है।
बगदाद के दरबार में विश्व के महान् साहित्यकार, कलाकार, संगीतज्ञ, विद्वान, दार्शनिक धर्मशास्त्र के पंडितों का काफी सम्मान किया जाता था। खलीफा और उसके परिवार के लोगों के जीवन बड़े ही तड़क-भड़क के थे। शासक वर्ग तथा धनियों का जीवन बड़ा भोग-विलासपूर्ण होता था। बगदाद के भवन, बाजार, मस्जिद, शैक्षिक संस्थान सभी आकर्षक थे। शहर की शोभा देखते ही बनती थी। शहर में व्यापारी लेखक वकील, चिकित्सक, शिक्षक आदि सभी वर्ग के लोग बड़े आराम के साथ अपना जीवन व्यतीत करते थे। सड़क तथा बाजार इत्र, फुलेल आदि से सुगंधित रहते थे और संगीत, नृत्य, एवं वाद्ययन्त्रों की ध्वनियों को दूर से ही सुना जा सकता था।
अतः हम कह सकते हैं कि हारून के शासनकाल में शिक्षा सहित, ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, नगर सौंदर्यीकरण, संगीत और स्थापत्य आदि के क्षेत्रों में काफी विकास हुआ। उसके उत्तराधिकारियों ने इस प्रगति को और भी आगे बढ़ाया। सचमुच ही हारून ने अब्बासी स्वर्णयुग की शुरुआत की।
अल-रशीद के जीवन के अन्तिम दिन (Last days of Al-Rashid’s Life)
बैजेन्टाइनों द्वारा 808 ई. में पुनः विद्रोह का बिगुल बजा दिया गया। इस विद्रोह को दबाने के लिए हारून अपनी सेना के साथ पूरब की तरफ बढ़ गया परन्तु इस शहर के सानाबाद नामक स्थान पर आकर वह गम्भीर रूप से बीमार पड़ गया। तब उसको मृत्यु का एहसास हुआ और उसने अपने प्रधान सेनापति अधिकारीगणों को बुला लिया। मृत्युशैय्या पर पड़े खलीफा ने अपने सामने खड़े हुए व्यक्तियों की तरफ इशारा करते हुए कहा था, जो युवक हैं वे वृद्ध होंगे, जन्म के साथ मृत्यु अनिवार्य है। मैं तुम्हें तीन मार्ग बतलाता हूँ। ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करो, खलीफा में विश्वास रखो, स्वयं को एकता के सूत्र में बाँधो, विद्रोह का दमन मिलकर करो और राजद्रोह की भावना को गर्म लोहे से दाग दो। हारून अल-रशीद की 2 दिन पश्चात् 24 मार्च, 809 ई. में मृत्यु हो गई।
साम्राज्य के उत्तराधिकारी का चयन (Selection of Empire Successor)
अपनी मृत्यु से काफी पहले ही खलीफा हारून अपने उत्तराधिकारी का चुनाव कर चुका था। हारून के जीवित पुत्रों की संख्या चार थी। उसके ये चार पुत्र थे – मुहम्मद अल-आमीन, अब्दुल्ला अलमामून, कासिम अल-मोसामिन तथा अबू ईसाक मुहम्मद अल-मुतासिम। इनमें से प्रथम तीन हारून के शासनकाल में साम्राज्य के विभिन्न प्रान्तों के गवर्नर के रूप में नियुक्त थे। अल-आमीन को पश्चिमी राज्य का, मामून को पूर्वी क्षेत्र का और कासिम को मेसेपोटामिया तथा एशिया के कच्छ क्षेत्र का गवर्नर पद सौंपा गया। इनमें से यद्यपि आमीन सबसे बड़ा था, परन्तु चरित्र तथा योग्यता की दृष्टि से मामून ही श्रेष्ठ था। मामून की न्यायप्रियता से स्वयं खलीफा हारून काफी प्रसन्न हुआ था। खलीफा ने अपने पुत्रों को बड़े ही अच्छे ढंग की शिक्षा तथा सैनिक एवं प्रशासनिक प्रशिक्षण दिलवाया जिसमें सबसे निपुणता हासिल की।
हारून ने अपने बड़े पुत्र मुहम्मद से 5 वर्ष की अवस्था में अपना उत्तराधिकारी तथा अपने सगे सम्बन्धियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों को सलाहकार नियुक्त कर दिया था। मुहम्मद को इस अवसर पर अल-आमीन की उपाधि से सम्मानित किया गया। सात वर्षों के पश्चात हारून ने अपने दूसरे पुत्र अब्दुल्ला को अल-आमीन का और बाद में कासिम को अब्दुल्ला का उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। अब्दुल्ला को अल-मामून की तथा कासिम को अल-मोसामिन की उपाधि देकर सम्मानित किया गया आगे चलकर अल-मामून के प्रभाव के कारण मामून की अपेक्षा अपना दूसरे उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार दे दिया। 805 ई. में हारून अपने पुत्रों से साथ मक्का की तीर्थ-यात्रा पर गया और काबा में आमीन तथा मामून को उत्तराधिकारी का निर्णय मानने की घोषणा करनी पड़ी। इस प्रकार हारून की मृत्यु के पश्चात अल-आमीन को अब्बासी खलीफा के पद पर बिठाया गया।
हारून अल – रशीद का चरित्र चित्रण (Character Sketch of Haroon-al-Raseed)
न केवल इस्लामी इतिहास का, अपितु हारून अल रशीद को विश्व इतिहास का एक अत्यंत आदर्श, श्रेष्ठ और महान पात्र कहा जा सकता है। वह विश्व के सर्वश्रेष्ठ शासकों में एक था। वह शासकीय गुणों के कारण योग्य शिक्षित दार्शनिक था। वह मनुष्य जाति का उच्चकोटि का पारखी था। वह कुशाग्र बुद्धि का व्यक्ति था तथा उसकी स्मरण शक्ति काफी तेज थी। वह एक कुशल कवि तथा विभिन्न कलाओं का अनन्य प्रेमी तथा साहित्य, ज्ञान-विज्ञान सम्बन्धी विषयों से काफी लगाव रखता था । साथ ही हारून अत्यंत दयालु और उदार शासक था । वह बुद्धि, व्यावहारिक निर्णय, धीरज, संतुलन आदि गुणों से भरपूर था । हारून के इन चारित्रिक गुणों ने उसकी नीतियों के साथ-साथ उसकी सफलताओं पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा।
हारून के भीतर एक आदर्श व्यक्ति योग्य पिता, आदर्श पति, एक आदर्श समाजसेवी के सभी गुण विद्यमान थे। उसके अधिकारीगण, सैनिक आदि सभी उसके व्यवहार से प्रसन्न रहते थे। यद्यपि बाद में उसने यहया बरमक तथा उसके पुत्रों के विरुद्ध कठोर नीति का पालन किया, लेकिन अपना अधिकार स्थापित करने के लिये हारून को उसकी शक्ति का क्षय करना आवश्यक हो गया था ।
सम्पूर्ण साम्राज्य में उसने अपनी सैनिक योग्यता के आधार पर शांति व्यवस्था कायम रखी। उसने लोगों की जान-माल की सुरक्षा हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाये और अब साम्राज्य में लोग निश्चित होकर एक जगह से दूसरी जगह अपने माल असबाबों के साथ भ्रमण करते थे। खलीफा हारून ने न केवल बाह्य आक्रमणों से साम्राज्य को सुरक्षित रखा, बल्कि अपने बाहुबल से साम्राज्य का व्यापक विस्तार भी किया। बैजेन्टाइनों के खिलाफ सफलता इसका परिणाम है कि हारून तलवार का धनी शासक था । वह इतना अधिक प्रसिद्ध हो चुका था कि महान् शार्लमा जैसे शासक भी उसे अपना मित्र बनाने की इच्छा रखने लगे थे।
एक महान सेनानायक तो था ही, साथ ही उसमें एक सुयोग्य शासक के सभी गुण विद्यमान थे। उसने खलीफा की शक्ति एवं अधिकारों का काफी प्रसार किया। साथ ही हारून ने प्रशासन को संगठित कर साम्राज्य को भी शक्तिशाली बनाया। वह स्वयं साम्राज्य की व्यवस्था को व्यक्तिगत रूप में निरीक्षण करता था। अन्याय का दमन करने तथा दलितों का उद्धार करने में उद्देश्य से खलीफा रात्रि को अँधेरे में भी भेष बदलकर लुकछिपकर बगदाद की गलियों में घूमता रहता था। हारून अब्बासियों के बीच काफी चर्चित तथा महान् प्रजापालक शासक था। उसकी नजर में एक शासक का प्रमुख कर्तव्य लोक कल्याण संबंधी कार्य करता था। उसने अपने शासनकाल में अनेक जन-कल्याणकारी योजनाओं का निरूपण एवं संपादन किया। उसके द्वारा निर्मित मस्जिद, स्कूल, अस्पताल, सराय, राजमार्ग, नहर, पुल आदि आज भी उसकी स्मृति के महान् चिह्न के रूप में खड़े है। उसने कला, विज्ञान, साहित्य आदि में प्रगति लाकर इस्लाम के इतिहास में उस बौद्धिक तथा आध्यात्मिक क्रान्ति की शुरुआत की, जो भविष्य में सदियों तक इस्लामी तथा विश्व – सभ्यता के मार्गों का मार्ग प्रशस्त करती रही।
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