गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करने वाले अंगों की विवेचना करें ।

प्रश्न – गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करने वाले अंगों की विवेचना करें ।
उत्तर – गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं: –
1. भोजन (Food) – गर्भावस्था में बच्चे का विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है। इस अवस्था में बच्चा भोजन हेतु पूर्णरूपेण माता पर निर्भर होता है। अतः गर्भावस्था में माता का भोजन संतुलित एवं पौष्टिक होना चाहिए। गर्भस्थ शिशु को कोशिका निर्माण एवं वृद्धि हेतु प्रोटिन (Protein), शक्ति के लिए कार्बोहाइड्रेट, वसा और जीवन रक्षक कार्यों के लिए विटामिन्स एवं लवण की जरूरत होती है। माता के भोजन में यदि इन सबकी कमी होती है, तो बच्चे का समुचित विकास नहीं हो पाता। कालान्तर में वह कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाता है। अतः बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए माता को अपने आहार पर काफी ध्यान देना जरूरी है।
2. बीमारी ( Diseases) माता का स्वास्थ्य भी गर्भस्थ शिशु की प्रभावित करने वाला एक कारक है। विशेष तौर पर संसर्गजनित एवं यौन रोग गर्भ को बहुत प्रभावित करते हैं।
जैसे- क्षयरोग, सिफलिस, गनोरियाँ, अंतःस्त्रावी ग्रंथियों की गड़बड़ियाँ, एड्स आदि गर्भस्थ शिशु पर भी प्रभाव डालते हैं। फलतः बच्चे का शारीरिक विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता।
3. मदिरा (Alchohol)—गर्भस्थ शिशु पर माता के मंदिरापान का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। यद्यपि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, किंतु पिता के मदिरापान का प्रभाव उसके शुक्राणु एवं पुरुष-बीजकोश (Male-cell) पर पड़ता है, और वे कमजोर हो जाते हैं। इस सम्बन्ध में आरलिट (Arlitt) ने चूहों एवं स्टाकर्ड (stockard) ने गिनी पिग पर प्रयोग कर पाया कि मदिरापन का गर्भ के विकास पर प्रभाव पाया जाता है।
4. तम्बाकू (Tabacco) – तम्बाकू से बनने वाले सिगरेट, बीड़ी एवं स्वयं तम्बाकू का प्रयोग करने वाली माताओं के गर्भस्थ शिशु पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वास्तव में तम्बाकू से निकोटीन (nicotine) नामक विषैला पदार्थ निकलता है जो रक्तचाप एवं हृदय गति (blood pressure and heart beat) में असंतुलन उत्पन्न करता है। सोनोटाग (Sontage) और रिचार्ड्स (Richards) ने अपने अध्ययनों में पाया कि धूम्रपान करने वाली माताओं के बच्चों की हृदय-गति बढ़ जाती है। बिल्ली, गाय आदि जानवरों में भी निकोटिन के प्रभाव दूध देने वाली क्रियाओं पर प्रभाव देखा गया है। किन्तु गर्भस्थ शिशु की माताओं के धूम्रपान करने के ऐसे असर के वैज्ञानिक प्रमाण अभी उपलब्ध नहीं हुए हैं।
5. माताओं का संवेगात्मक अनुभव (Emotional experiences of the mothers)— यद्यपि इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं कि माताओं के संवेगात्मक अनुभव गर्भस्थ शिशु के विकास को प्रभावित करते हैं क्योंकि माता एवं शिशु के बीच कोई तंत्रिका सम्बन्ध नहीं होता। किन्तु लोगों का ऐसे मानना है कि माँ के खुश रहने पर बालक हँसमुख होते हैं एवं चिंताग्रस्त या दुखी रहने पर बालक अन्तर्मुखी हो जाते हैं ।
6. माता-पिता की उम्र (Age of parents)— माता-पिता की उम्र का बच्चे के विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसके वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। परंतु माता-ि -पिता की उम्र एवं बच्चे की बुद्धि का अध्ययन करने पर पाया गया कि ज्यादा उम्र वाले माता- 1 -पिता के बच्चे कम उम्र वाले माता-पिता के बच्चों की अपेक्षा ज्यादा बुद्धिमान होते हैं। किन्तु ऐसा सामाजिक स्तर में भिन्नता के कारण भी हो सकता है। सामाजिक रूप से यह पाया. गया है कि उच्च सामाजिक वर्ग के लोग तबतक विवाह नहीं करते जबतक कि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न हो जाएँ इस कारण उनके बच्चे भी देर से पैदा होते हैं और बुद्धिमान होते हैं। इस सम्बन्ध में स्टेकेल (Steckl), टरमन, एलिस तथा गाल्टन, सभी का यही मत है कि कम उम्र वाले माता-पिता के बच्चे अधिक उम्र वाले माता-पिता के बच्चों की अपेक्षा कम बुद्धि वाले होते हैं। यह भी देखा गया है कि समान उम्र वाले माता पिता के बच्चे, उन बच्चों से जिनके माता-पिता की उम्र एक समान नहीं होती से अधिक बुद्धिमान होते हैं।
7. जन्म का महीना (Month of birth)– बच्चा किस महीने में जन्म लेता है, इसके विषय में बलान्सकी का कहना है कि बसंत ऋतु में जन्म लेनेवाले बच्चे जाड़े में जन्म लेनेवाले बच्चे की अपेक्षा ज्यादा तेज होते हैं। किन्तु इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। 8. कसरत (Exercise) — जब बच्चा गर्भ मे होता है, तो उस अवस्था में माँ को हल्के-फुल्के कसरत करनी चाहिए, जो चिकित्सक की सलाह से होना चाहिए। हल्के-फल्के कार्य भी करना श्रेयस्कर होता है।
9. चेक-अप (Check-up)—समय-समय पर गर्भवती माता की जाँच करना अत्यावश्यक है। इससे गर्भस्थ शिशु की अवस्था का अनुमान होता रहता है और किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर समय रहते उसका निदान किया जा सकता है।
यहाँ जितने भी कारकों का वर्णन किया गया है, उन सबके सम्बन्ध में कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता कि विकास पर किसका प्रभाव सर्वाधिक एवं कैसा पड़ता है।
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