जेंडर पहचान क्या है ? जेंडर भूमिकाओं के पुनरुत्पादन में पाठ्य-पुस्तकों • की भूमिकाओं की विवेचना करें ।
प्रश्न – जेंडर पहचान क्या है ? जेंडर भूमिकाओं के पुनरुत्पादन में पाठ्य-पुस्तकों • की भूमिकाओं की विवेचना करें ।
उत्तर — स्त्री और पुरुष की शारीरिक संरचना में ही भेद नहीं होता बल्कि दोनों की रुचियों, अभिवृत्तियों तथा क्रिया-कलापों में भी विभिन्नता पायी जाती है। जेंडर से तात्पर्य स्त्री और पुरुष के बीच विभेद से है । लिंग एक परिवर्तनशील धारणा है जिसमें एक ही संस्कृति, जाति वर्ग तथा आर्थिक परिस्थितियों और आयु में एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति तथा एक सामाजिक समूह से दूसरे सामाजिक समूह में भिन्नताएँ होती है। स्त्री-पुरुष के लिंग के निर्धारण में जैविक तथा शारीरिक के साथ-साथ सामाजिक तथा सांस्कृतिक तत्वों का हाथ होता है । बालक और बालिकाओं में विभेद उनके लिंग को लेकर किया जाता है । स्त्री को समाज में दोयम दर्जा दिया गया है। जब तक स्त्री और पुरुष को समाज में समान दर्जा प्राप्त नहीं होगा तब तक एक स्वस्थ्य व सबल समाज की स्थापना नहीं होगी । समाज में स्त्री को पुरुषों की अपेक्षा कमजोर प्राणी के रूप में स्वीकार किया जाता है जिस पर विचार करने के लिए ही लिंग की अवधारणा का विकास किया गया है ।
जेंडर भूमिकाओं के पुनरूत्पादन में पाठ्य पुस्तक की भूमिका – पाठ्य-पुस्तकों को वर्तमान शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । आज सुगम शिक्षण सामग्री है आज डिजिटल होती दुनिया में शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकें भी डिजिटल होती जा रही है। परंतु उसका महत्व कम नहीं हुआ है। पाठ्य पुस्तकों को वर्तमान शिक्षा में शिक्षण की मुख्य सामग्री के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। शिक्षण ही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी पुस्तकों का अपना विशिष्ट महत्व है । पाठ्य पुस्तक के अर्थ का स्पष्टीकरण शिक्षा शब्द कोष में इस प्रकार किया गया है- पाठ्य पुस्तक अध्ययन की निश्चित विषय-वस्तु से संबंधित पुस्तक है जो क्रमबद्ध ढंग से व्यवस्थित, शिक्षण के विशिष्ट स्तर पर उपयोग के लिए उदिष्ट एवं प्रदत्त पाठ्यक्रम के लिए अध्ययन की सामग्री के प्रमुख स्रोत के रूप में प्रयोग की जाती है ।
इस प्रकार पाठ्य-पुस्तकों के द्वारा शिक्षण हेतु सामग्री प्रदान की जाती है जिसमें विषय सूची की सामग्री, प्रश्न, समस्याएँ, विश्लेषण, समाधान आदि सभी पहलुओं पर चर्चा की जाती है। पाठ्य पुस्तकें लिंग की असमानता की समाप्ति और उनकी भावी भूमिका के निर्धारण का मार्ग प्रशस्त करता है ।
पाठ्यपुस्तकों की भूमिका को इस परिप्रेक्ष्य में निम्न रूप में देख सकते हैं –
- पाठ्य-पुस्तकें एक दर्पण की भाँति है जिसमें हम सब कुछ देख सकते हैं । इसमें जो सामग्री होती है वह अत्यधिक सावधानी के साथ निर्मित की जाती है जिससे शिक्षक के लिंग की समानता और सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण में सहायता मिलती है ।
- पाठ्य पुस्तकें गंभीर चिंतन और विद्वानों के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप तैयार की जाती है | अतः इसमें भेदभाव को बढ़ावा देने वाली सामग्री का अभाव होता है ।
- पाठ्य-पुस्तकों में लिंग की समानता और सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान को वर्णित किया जाता है ।
- समाज में लिंग के विषय में जो अंध – विश्वास और गलत धारणाएँ व्याप्त है उन्हें समाप्त करने की दृष्टि से पाठ्य पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं |
- लिंग की समानता और भूमिका के प्रस्तुतीकरण में पाठ्य पुस्तकें इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके द्वारा ही विवेकपूर्ण, वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी होती है । इनके द्वारा वास्तविकता का ज्ञान होता है ।
- पाठ्य पुस्तकों के द्वारा शिक्षक का शिक्षण न तो भटकता है और न ही आत्मगतता आती है जिससे भी लिंग की समानता और सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त होता है ।
- लिंग की समानता और सशक्त भूमिका के प्रस्तुतीकरण में पाठ्य पुस्तकें इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पाठ्य पुस्तकों में उनकी रूचियों, आवश्यकता तथा मनोविज्ञान का ध्यान रखा जाता है ।
- पाठ्य-पुस्तकें शिक्षण ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विद्यालयी वातावरण और क्रिया-कलापों को मार्ग-निर्देशित करती है । इस प्रकार लिंग के प्रति समुचित दृष्टिकोण का विकास होता है।
- पाठ्य पुस्तकों में स्त्रियों के अधिकार कानून संबंधी जानकारी, इससे संबंधित अधिकारों की माँग आदि से संबंधित जानकारी दी हुई होती है जो उसे समानता और सशक्त भूमिका के योगदान में सबल बनाता है ।
- पाठ्य पुस्तकों के द्वारा नवीन ज्ञान सूचनाओं आदि का प्रसार होता है जो लिंग असमानता के प्रति उसमें नई भावनाएँ एवं सोच को जन्म देती है । अतः इनकी समानता हेतु जागरूकता आने का कार्य पाठ्य पुस्तकें करती है ।
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