जेंडर समावेशी शिक्षाशास्त्र क्या है ? जेंडर असमानताओं की चुनौती देने में शिक्षकों / शिक्षिकाओं की क्या भूमिकाएँ हैं ?

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प्रश्न – जेंडर समावेशी शिक्षाशास्त्र क्या है ? जेंडर असमानताओं की चुनौती देने में शिक्षकों / शिक्षिकाओं की क्या भूमिकाएँ हैं ? 
उत्तर — एन.सी. एफ. 2005 के अनुसार, “समावेशन शब्द का अपने आप में कोई खास अर्थ नहीं होता है । समावेशन का चारों ओर जो वैचारिक, दार्शनिक, सामाजिक और शैक्षिक ढाँचा होता है, वही समावेशन के परिभाषित करता है । समावेशन की प्रक्रिया में बच्चे को न केवल लोकतंत्र की भागीदारी को लिए सक्षम बनाया जा सकता है बल्कि यह सीखने एवं ‘ विश्वास करने के लिए भी बनाता है जो कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।”
ज़ेंडर समावेशी शिक्षाशास्त्र से तात्पर्य ऐसी शिक्षा प्रणाली से है जिसमें प्रत्येक बालक को चाहे वह विशिष्ट हो या सामान्य, बिना किसी भेदभाव के एक साथ एक ही विद्यालय में सभी आवश्यक तकनीकों व सामग्रियों के साथ उनकी सीखनेसीखाने की जरूरतों को . पूरा किया जाता है । लिंग असमानता से संबंधित सभी जानकारियाँ बच्चों को दी जाती है। समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधता को स्वीकार करने की एक मनोवृत्ति है जिसके अन्तर्गत विविध क्षमताओं वाले बालक सामान्य शिक्षा प्रणाली में एक साथ अध्ययन करते हैं ।
जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किए जानेवाले भेदभाव का निषेध करता है, उसी प्रकार समावेशी शिक्षा विभिन्न ज्ञानेन्द्रिय, शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक आर्थिक आदि कारणों से उत्पन्न किसी बालक की विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकताओं के बावजूद उस बालक को भिन्न न देखकर उसे एक स्वतंत्र अधिवास के रूप में देखता है ।
जेंडर असमानता की चुनौती देने में शिक्षकों की भूमिका – शिक्षक चुनौतीपूर्ण लिंग की असमानता और उनकी भूमिका के सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण है। शिक्षक, शिक्षण प्रक्रिया का महत्वपूर्ण कारक है । प्रभावी शिक्षण का आधार उसी के कंधों पर निर्भर है । शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक, पाठ्यक्रम और छात्र सम्मिलित है। शिक्षा प्रदान करने में शिक्षक का सर्वोपरि स्थान है क्योंकि यदि शिक्षक नहीं होगा तो पाठ्यक्रम चाहे जितना भी प्रभावी हो वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करने में कदापि सफल नहीं हो सकता है। चुनौतीपूर्ण लिंग के प्रति असमानतापूर्ण व्यवहार वर्षों से चला आ रहा है ।
गर्दा लरनर लिखती है कि स्त्री को पण्या – उपभोक्ता वस्तु नहीं बनाया गया वरन् उसकी योनि (Sexuality) तथा प्रजनन क्षमता को व्यवस्था ने क्रय-विक्रय की वस्तु बर्ना दिया । अपनी योनि जो उनके शरीर का एक हिस्सा है पर गहरी नियंत्रण होने के कारण स्त्री पर मनोवैज्ञानिक दबाव बने । इतिहास के हर काल में हर वर्ग दो उपवर्गों स्त्रियों और पुरुषों में विभाजित रहा है। स्त्रियाँ हमेशा असमानता व यौन शोषण की शिकार रही है । यह असमानता इतिहास के हर काल में देखा जा सकता है।
अतः एक शिक्षक का यह दायित्व बनता है कि इस असमानता को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए । शिक्षक की इन भूमिकाओं को हम निम्न रूप में देख सकते हैं –
  1. शिक्षक का दृष्टिकोण व्यापक व उदार होना चाहिए । तभी वह मजबूती से चुनौतीपूर्ण लिंग की असमानता को दूर कर सकेंगे ।
  2. शिक्षक को स्त्रियों के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखने वाला होना चाहिए तभी वह छात्र के समक्ष अपना आदर्श प्रस्तुत कर सकते हैं।
  3. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और सकारात्मक भूमिका के प्रस्तुतीकरण के लिए जागरूकता लानी होगी । “
  4. शिक्षकों को बालकों की भाँति बालिकाओं में भी नेतृत्व क्षमता का विकास करना चाहिए ।
  5. शिक्षकों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास होना चाहिए जिससे किसी भी प्रकार का भेदभाव व असमानता नहीं होगी ।
  6. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता और सशक्त भूमिका की सुनिश्चितता की आवश्यकता और सरकारी कानूनी प्रावधानों से भी कक्षा में परिचित कराना चाहिए ।
  7. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की समानता में प्रभावी भूमिका के निर्वहन हेतु समाज से सहयोग प्राप्त करना चाहिए ।
  8. शिक्षक को पाठ्य सहगामी क्रियाओं के आयोजन और सामूहिक क्रिया-कलापों पर अत्यधिक ध्यान देना चाहिए जिससे बालक-बालिकाएँ साथ-साथ कार्य करेंगे और एक-दूसरे के गुणों से परिचित होंगे और इन दोनों के बीच असमानता में कमी आएगी ।
  9. शिक्षक को चुनौतीपूर्ण लिंग की असमानता से होने वाली हानियों से छात्रों को चाहिए ताकि वे इन दोषों से अपने को मुक्त कर सकें ।
  10. शिक्षक को छात्रों में लिंग- समानता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण की रचना करनी होगी ।
उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि लिंग असमानता की चुनौती देने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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