झारखण्ड : उद्योग-धन्धे

झारखण्ड : उद्योग-धन्धे

> झारखण्ड में उद्योग-धन्धे
भारत में अति प्राचीनकाल से उद्योग-धन्धे जिनका लोहा, यूरोप तक माना जाता रहा है, किन्तु ऊर्जा के नये स्रोत की खोज के बाद उद्योग के क्षेत्र में एक क्रान्ति हुई जिसे यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति कहते हैं. यूरोप में ये क्रान्ति 18वीं शदी में ही हो गयी थी, किन्तु भारत में इस क्रान्ति की मजबूत नींव टाटा आइरन एण्ड स्टील कम्पनी की स्थापना कर 20वीं शताब्दी के प्रथम दशक (1907) में वर्तमान झारखण्ड के औद्योगिक हृदयस्थली जमशेदपुर में एक साहसी उद्यमी जमशेदजी टाटा द्वारा डाली गई. इन्हीं के नाम पर इस जगह (साकची) का नाम जमशेदपुर या टाटानगर पड़ा. स्वतन्त्रता के बाद इस प्रान्त में अनेक प्रकार के उद्योगों की स्थापना की गई. जिनमें ताप विद्युत् केन्द्र, जल विद्युत् केन्द्र, लोहा एवं इस्पात उद्योग बोकारो, एल्यूमीनियम के कारखाने, ताँबा उद्योग, भारी अभियन्त्रण उद्योग, उर्वरक उद्योग, सीमेण्ट उद्योग, काँच उद्योग, रिफ्रेक्टरी उद्योग, अभ्रक उद्योग आदि महत्वपूर्ण हैं. इन उद्योगों के लिए तमाम आवश्यक सुविधाएँ; जैसे – कच्चा माल, कुशल एवं पर्याप्त मात्रा में सस्ता श्रमिक, जल, ऊर्जा एवं भूमि का विशाल भूखण्ड उपलब्ध हैं. उद्योगों के विकास हेतु कोलकाता एवं मुम्बई के मुख्य बन्दरगाह एवं बाजार तक पहुँच बनाने हेतु रेल एवं सड़क का विकास किया गया है. इसे भारत का रूर प्रदेश कहा जाता है. भारत के लगभग 36 प्रतिशत खनिज यहाँ मिलते हैं. यहाँ उद्योगों की अभी भी अपार सम्भावनाएँ हैं. इसी बात को मद्देनजर रखते हुए 1980 की योजना में जमशेदपुर में औद्योगिक संकुल स्थापित किया गया एवं दामोदर घाटी औद्योगिक प्रदेश के विकास पर ध्यान दिया गया. उद्योगों की स्थापना के इस क्षेत्र में समृद्धि एवं विकास का कारक जरूर बना है, किन्तु इस प्रक्रिया से अनेक सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय समस्याएं खड़ी हो गई हैं. औद्योगीकरण के कारण स्थानीय एवं मूल वासी अपनी संस्कृति से विमुख हो गये हैं. मानवशास्त्रियों के अनुसार ये न तो आधुनिक संस्कृति में पूर्णतः घुले मिले और न ही मूल संस्कृति से लगाव रख पाये जिससे इनमें मानसिक संत्रास उत्पन्न हुआ. ये अपनी मूल आदिकालीन संस्कृति से विमुख हो गये. आज पर्यावरण इस क्षेत्र के औद्योगिक शहरों एवं नदियों की बड़ी समस्या है. दामोदर नदी भारत की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से है. उद्योगों के विकास ने विस्थापन की एक नई समस्या खड़ी की है. विस्थापन से सम्बन्धित एक आँकड़ा निम्नलिखित है, जो समस्या से अवगत कराने में सहायक होगा.
> औद्योगिक क्षेत्र के विभिन्न उपक्षेत्रों की भागीदारी
इन समस्याओं के अतिरिक्त एक अन्य समस्या औद्योगिक रुग्णता की है. इस प्रान्त के अनेक उद्योग बन्दी के कगार पर हैं; जैसे – बिहार एलाय स्टील लिमिटेड पतरातु, हैवी इन्जीनियरिंग कॉर्पोरेशन राँची आदि. झारखण्ड में नई सरकार का गठन हो गया है. इस सरकार को उद्योग के सन्तुलित विकास एवं उद्योग जनित समस्याओं के निवारणार्थ ईमानदारी से प्रयास करना होगा. झारखण्ड के उद्योगों का अध्ययन अग्रलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है
(क) धात्विक उद्योग 
1. लौह इस्पात उद्योग,
2. एल्यूमीनियम उद्योग,
3. ताँबा उद्योग,
4. निर्माण उद्योग.
(ख) अधात्विक उद्योग
1. सीमेण्ट उद्योग,
2. कोयला धोवन उद्योग,
3. कोक युक्त कोयला उद्योग,
4. काँच उद्योग,
5. रिफ्रेक्टरी उद्योग,
6. अभ्रक उद्योग.
(ग) कृषि एवं वन आधारित उद्योग
1. रेशम उद्योग,
2. तम्बाकू उद्योग,
3. माचिस उद्योग.
(घ) रासायनिक उद्योग
1. रासायनिक उर्वरक उद्योग,
2. विस्फोटक उद्योग.
(ङ) अन्य उद्योग
(क) धात्विक उद्योग
(1) लौह इस्पात उद्योग
एशिया का प्रथम लौह इस्पात उद्योग वर्तमान झारखण्ड के जमशेदपुर शहर में स्थापित किया गया था. स्वतन्त्रता के बाद बोकारो में भारत सरकार द्वारा लौह-इस्पात का एक कारखाना स्थापित किया गया. इस प्रकार यहाँ इस उद्योग के दो कारखाने हैं. एक निजी क्षेत्र में और एक सार्वजनिक क्षेत्र में है. लौह इस्पात के उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड का स्थान देश में प्रथम है. इस उद्योग के कुल श्रमिकों का 50 प्रतिशत झारखण्ड के दो कारखाने में कार्यरत् है.
टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी लिमिटेड – यह भारत में सबसे बड़ा कारखाना है. जहाँ भारत का 2/3 इस्पात बनता है. यह कारखाना कोयले की अपेक्षा लोहे की खानों के अधिक निकट है. इसकी स्थापना साकची नामक स्थान पर 1907 में निजी तौर पर किया गया था. इस उद्योग की अवस्थिति इतनी उत्तम है कि लगभग 100 वर्ष बाद भी विकास कर रही है. इस कारखाने की स्थापना जमशेदजी टाटा ने की थी. जमशेदपुर पूर्वी सिंहभूम जिले में अवस्थित है. उत्तर में स्वर्ण रेखा और पश्चिम में खरकई नदी बहती है. इस स्थान पर इस कारखाने के स्थापित करने के निम्नलिखित कारण हैं
1. लोहा 75 से 100 किमी दूरी के भीतर सिंहभूम एवं क्योंझर की खानों से प्राप्त होता है.
2. कोयला की प्राप्ति झरिया की खानों से होती है, जो 240 किमी की दूरी पर स्थित हैं. धुला हुआ कोयला जामदोवा, पश्चिम बोकारो, बोझुडीह तथा मिश्रण के योग्य कोयला दिशेरगढ़ तहों से प्राप्त होता है. चूना बिरमित्रापुर, हाथीबारी, बिसरा करनी एवं बारादुआर से प्राप्त होता है जो जमशेदपुर से लगभग 320 किमी दूर है. डोलोमाइट 180 किमी दूर स्थित पागपोश की खान से मिलती है. लौह एवं इस्पात उद्योग में प्रयुक्त मैंगनीज और रासायनिक पदार्थ निकट ही प्राप्त होते हैं, क्रोमाइट वाली शैलें सिंहभूम से मिल जाती हैं, टंग्स्टन मिदनापुर एवं जोधपुर से, टाइटेनियम दक्षिण भारत से लाया जाता है.
3. स्वर्ण रेखा एवं खरकई नदी द्वारा जलापूर्ति होती है.
4. यह शहर रेलमार्ग द्वारा कोलकाता से एवं सड़क मार्ग द्वारा मुम्बई से जुड़ा है.
5. सस्ता श्रमिक,
इस कारखाने में उत्पादन 1911 में प्रारम्भ हुआ जिसे 1921 में संरक्षण प्रदान किया गया, जिससे इसका तीव्र विकास हुआ. इस कारखाने की वार्षिक क्षमता 20 लाख टन की है जिसे बढ़ाकर 40 लाख टन किये जाने का प्रस्ताव है.
बोकारो इस्पात संयन्त्र – इसे चतुर्थ योजनाकाल के अन्तर्गत पूर्व सोवियत संघ के सहयोग से स्थापित किया गया था. इस कारखाने की स्थापना दामोदर एवं बोकारो नदी के संगम पर की गई थी. इसका निर्माण 1967 में आरम्भ हुआ और 3 अक्टूबर, 1972 को पहली झोंका भट्टी का यथाविधि श्रीगणेश हुआ.
कोयला और प्रचुर जल की समीपता का लाभ वोकारो को प्राप्त है. लौह अयस्क, चूना पत्थर एवं डोलोमाइट भी अधिक दूर नहीं है. कोयला बोकारो और झरिया कोयला क्षेत्रों से आता है. बोकारो कोयला क्षेत्र की कुल परतें बहुत मोटी हैं. उदाहरणार्थ- करगली परत की मोटाई 12-2 से 36.6 मीटर तक है. यहाँ कोककारी कोयला भी उपलब्ध है. लोहा ऊंझर जिले के उत्तरी भाग में स्थित किरिबुरू खान से आता है. बोलानी, नोआमुण्डी और बरसुआ से भी लोहा प्राप्त होता है, चूना पत्थर विरमित्रापुर एवं भवनाथपुर से और डोलोमाइट पलामू जिले में तुलासिदामर की खानों से मँगाया जाता है. यहाँ पर इस्पात के ढाँचे, नट और वोल्ट, जंगरोधी इस्पात के वाल्व और ऑटो केविल भी बनते हैं. आज 45 हजार मजदूर कारखाने में कार्यरत् हैं.
(2) एल्यूमीनियम उद्योग
भारत में एल्यूमीनियम उद्योग का विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के आसपास से शुरू हुआ. प्रथम कारखाना सन् 1937 में जे. के. नगर में एल्यूमीनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया की स्थापना की गई. दूसरा कारखाना इण्डियन एल्यूमीनियम लिमिटेड के नाम से 1938 में स्थापित किया गया. इसकी इकाइयाँ मुरी (झारखण्ड), अलवाये (कर्नाटक) बेलुर (पश्चिम बंगाल) और हीराकुड (ओडिशा) में है. झारखण्ड में स्थित एल्यूमीनियम उद्योग का कारखाना, जो मुरी में है, पूर्ण रूप से स्वावलम्बी है, क्योंकि वहाँ बॉक्साइट से अल्यूमीना, अल्यूमीना से एल्यूमीनियम धातु और इसकी चादर आदि बनाने का कार्य सभी किये जाते हैं. बॉक्साइट की प्राप्ति लोहरदगा खानों से की जाती है, कारखाने से ( मुरी) इसकी दूरी 32 किमी पड़ती है. मुरी (कारखाना) में इस बॉक्साइट से अल्यूमीना तैयार किया जाता है. दामोदर घाटी मुरी कोयला प्राप्त होता है. यहाँ से अल्यूमीना अलूपुरम (केरल) को भेजा जाता है. जो यहाँ से लगभग 2400 किमी दूर है. इस कारखाने में अल्यूमीना उत्पादन की क्षमता 1,60,000 टन है.
(3) ताँबा उद्योग
1924 ई. में इण्डियन कॉपर कॉर्पोरेशन का एक कारखाना घाटशिला में स्थापित किया गया है. जो सिंहभूम जिले में स्थित है. इस क्षेत्र में ताँबे की अधिक लाभदायक प्रसिद्ध खानें मोसाबनी धोवानी, केंदाडीह, सुरदा, पाथरगोड़ा और राखा है. ताँबा अयस्क शुद्ध करने हेतु राखा में ताँबा परियोजना लगायी गयी. घाटशिला के निकट ही मऊ भण्डार में कम्पनी का ताँबे के खनिजों को शोधन हेतु 1930 ई. में एक कारखाना स्थापित किया गया.
(4) निर्माण उद्योग
भारी इंजीनियरिंग निगम लिमिटेड, राँची-भारी मशीनों उपकरणों के उत्पादन हेतु इस कारखाने की स्थापना 1958 ई. में की गई. स्वतन्त्रता के बाद इंजीनियरिंग उद्योग की यह पहली इकाई थी. इसके अधीन तीन इंजीनियरिंग कारखाने हैं
(i) भारी मशीन बनाने का कारखाना – इसे पूर्व सोवियत संघ के सहयोग से स्थापित किया गया है. इस कारखाने की वार्षिक उत्पादन क्षमता 80 हजार मीट्रिक टन संरचनाएँ तैयार करने की है. इस कारखाने में 10 मीट्रिक टन भार की 278 पूर्ण मशीनें प्रतिवर्ष तैयार की जा सकती हैं.
(ii) फाउण्ड्री फोर्ज का कारखाना – इसकी स्थापना पूर्व चेकोस्लोवाकिया के सहयोग से की गई है. इस प्लाण्ट की वार्षिक उत्पादन क्षमता 1-40 लाख मीट्रिक टन है.
(iii) भारी मशीनी औजार बनाने का कारखाना – यह प्लाण्ट बोकारो स्टील प्लाण्ट को मशीनरी उपकरण, इस्पाती संरचनाएँ तथा मशीनी औजार की पूर्ति करता है. यह मशीनों का निर्यात भी करता है.
इन प्लाण्टों को कच्चा माल पड़ोसी स्टील प्लाण्ट से ( दुर्गापुर, बोकारो, राउरकेला, जमशेदपुर) पूर्ति होता है तथा कोयला एवं जल शक्ति दामोदर घाटी से प्राप्त होता है. रेल मार्ग एवं सड़क मार्ग से कोलकाता के बन्दरगाह से जुड़ा है. इस कारखाने पर अनेक छोटेछोटे कारखाने हैं, किन्तु आज यह उद्योग बन्दी के कगार पर है.
(ख) अधात्विक उद्योग
(1) सीमेन्ट उद्योग
सीमेन्ट उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल एवं साधन झारखण्ड में उपलब्ध है. अतः यहाँ इस उद्योग की सम्भावनाएँ हैं. यहाँ कुल 6 सीमेन्ट कारखाने हैं— जो सिंदरी, बंजारी, कुमारधुबी, चाईबासा, खेलारी और जपला में हैं. जपला एवं खेलारी की उत्पादन क्षमता क्रमशः 3.30 लाख टन और 1.49 लाख टन है. सीमेन्ट निर्माण में धवन भट्टी का कचरा एवं पोत्सवालानिक मसाले का प्रयोग होने से स्टील प्लाण्ट के बगल में स्थित सिंदरी को कच्चे माल की प्राप्ति बोकारो स्टील प्लाण्ट से हो जाती है.
(2) कोयला धोवन उद्योग
धोवन कोयले का प्रयोग विभिन्न प्रकार के उद्योगों में होता है. सर्वाधिक उपयोग इस्पात उद्योग में होता है. इस हेतु झारखण्ड के कोयला क्षेत्र में 8 कोयला धोवन केन्द्र स्थापित किये गये हैं- स्वांग, कथारा, करगली, दुग्धा, लोदना, जामा-डोबा, भोजुडुही एवं पाथरडीह में कोल वाशरी है. इनमें करगली वाशरी का भारत में एक मुख्य स्थान है. यहाँ वार्षिक क्षमता 22 लाख मीट्रिक टन कोयला धोवन की क्षमता है.
(3) कोकयुक्त कोयला उद्योग
इसके मुख्य कारखाने जमशेदपुर, सिंदरी, बोकारो, बनियाडीह, एवं लोदना में हैं.
(4) सीसा उद्योग
सीसा उद्योग के मुख्य कच्चे माल में बालूशोर और उत्तम किस्म का कोयला है. ये दोनों पदार्थ भारी हैं. अतः इनका कारखाना के नजदीक होना अनिवार्य है. इस दृष्टि से झारखण्ड में शीशा उद्योग की अपार सम्भावनाएँ हैं. यहाँ 12 कारखाने हैं, जिनमें से 6 कारखाने का संकेन्द्रण रामगढ़ ( हजारीबाग जिले ) के निकट है. इसमें से एक कारखाना जो जापान सरकार के सहयोग से भुरकुंडा (गोमो-बरकाकाना लुप लाइन में हजारीबाग जिले में स्थापित किया गया है.
(5) रिफ्रेक्टरी उद्योग
इस उद्योग के अन्तर्गत धमनी भट्टी का निर्माण किया जाता है, जो उच्च ताप सह्य होती हैं एवं इसका प्रयोग (ब्लॉस्ट फरनेन्स) लोहा एवं इस्पात उद्योग तथा अन्य उद्योगों में किया जाता है. इस उद्योग में प्रयुक्त मिट्टी दामोदर घाटी क्षेत्र में मिलती है, जिसके कारण यहाँ इसके अनेक कारखाने हैं. मोग्मा, कुमारधुबी, चिरकुंडा (सभी धनबाद जिले में) धनबाद, झरिया, भंडारीदह, राँची रोड इत्यादि जगहों पर इसके कारखाने हैं.
(6) अभ्रक उद्योग
झारखण्ड में 100 से ऊपर इस उद्योग के कारखाने हैं जो कोडरमा, हजारीबाग तथा गिरिडीह जिले में केन्द्रित हैं.
(ग) वन आधारित उद्योग
(1) रेशम उद्योग
झारखण्ड में तस्सर रेशम का कच्चा पदार्थ पूरे देश का 50 प्रतिशत से अधिक पाया जाता है. तस्सर रेशम का मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में चाईबासा, टाटानगर, राजखरसांवा, हटगमरिया, डाल्टेनगंज, गोविन्दपुर, हजारीबाग, गिरीडीह, लोहरदग्गा, दुमका उल्लेखनीय हैं. झारखण्ड के कच्चे रेशम का 40 प्रतिशत सिंहभूम में और 25 प्रतिशत दुमका में तथा 13 प्रतिशत हजारीबाग में उत्पादित होता है.
(2) तम्बाकू उद्योग
झारखण्ड में स्थानीय सामग्री से यहाँ के आदिवासी बीड़ी निर्माण करते हैं. इस कार्य में सिंहभूम अग्रणी है. दुमका में भी इस उद्योग में स्थानीय लोग लगे हैं. बीड़ी का निर्माण तेंदु के पत्ते एवं तम्बाकू से होता है.
(3) माचिस उद्योग
वनों पर आधारित उद्योग में माचिस उद्योग भी आता है. झारखण्ड में कोडरमा में इस उद्योग की एक इकाई स्थापित की गई है.
(घ) रासायनिक उद्योग
(1) उर्वरक उद्योग
रासायनिक उर्वरक  का झारखण्ड में प्रथम कारखाना धनबाद के निकट सिन्दरी में 1951 में स्थापित किया गया. इस कारखाने में अमोनियम सल्फेट, नाइट्रेट और यूरिया बनाया जाता है. फर्टीलाइजर्स कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया द्वारा इसका संचालन किया जाता था. इस कारखाने में 5 प्लाण्ट हैं-
1. अमोनिया प्लाण्ट,
2. सल्फेट प्लाण्ट,
3. शक्ति प्लाण्ट,
4. गैस प्लाण्ट, और
5. कोक प्लाण्ट.
बिहार सरकार द्वारा सुपर फॉस्फेट का कारखाना स्थापित किया गया है. इस कारखाने को बिजली तथा प्रोसेस स्टीम देने हेतु 80 हजार के. डब्ल्यू. (K.W.) का एक शक्ति प्लाण्ट लगाया गया है. सल्फेट संयन्त्र द्वारा अमोनिया सल्फेट बनाया जाता है. इस प्लाण्ट के स्लग का प्रयोग सीमेन्ट उद्योग में किया जाता है. इस कारखाने को कोक की आपूर्ति कोक ओवन प्लाण्ट द्वारा किया जाता है, जो प्रतिदिन 600 टन कोक का उत्पादन करता है. इस कारखाने में 3.5 लाख टन अमोनिया सल्फेट और 23470 टन यूरिया वार्षिक का उत्पादन किया जाता है. यह कारखाना एशिया का सबसे बड़ा उर्वरक कारखाना है.
(2) विस्फोटक उद्योग
यह विदेशी कम्पनी आई. सी. आई. द्वारा गोमिया में स्थापित किया गया है. यह बोकारो जिला में अवस्थित है. इसे इण्डियन एक्सप्लोसिव लिमिटेड के नाम से जाना जाता है.
(ङ) अन्य उद्योग
(1) देशी शराब उद्योग
यह उद्योग महुआ, चावल, गन्ने के रस पर आधारित है. शराब का उद्योग मुख्यतः राँची में है और आदिवासियों द्वारा अपने घरों में चावल सड़ाकर देशी शराब बनायी जाती है.
(2) हस्तकरघा
खादी एवं ग्रामोद्योग द्वारा हस्तकरघा उद्योग को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसके मुख्य केन्द्र राँची, डाल्टेनगंज एवं हजारीबाग में हैं.
झारखण्ड में इन मुख्य उद्योगों के अतिरिक्त स्थानीय नागरिकों द्वारा लघु एवं घरेलू स्तर पर अनेक वस्तुओं का निर्माण किया जाता है.
> मुख्य बातें 
> झारखण्ड में सर्वप्रथम आधुनिक उद्योग की स्थापना जमशेदजी नटवरजी टाटा द्वारा 1907 में साकची नामक स्थान पर किया गया.
> ‘साकची’ आधुनिक जमशेदपुर को कहते हैं.
> झारखण्ड का एकमात्र औद्योगिक संकूल जमशेदपुर में है. यह 1980 की पंचवर्षीय योजनान्तर्गत स्थापित किया गया.
> झारखण्ड में उद्योग के विकास के लिए सभी सम्बन्धित वस्तुएँ उपस्थित हैं. कोलकाता का बन्दरगाह नजदीक होने के कारण समुद्र मार्ग से जुड़ा हुआ है, पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल की घनी आबादी सस्ते श्रम का स्रोत है, खनिजों की प्रचुरता है, जल तथा जमीन की कमी नहीं रही. अतः उद्योगों का विकास स्वाभाविक है.
> झारखण्ड भारत का रूर प्रदेश हैं
> औद्योगीकरण अनेक समस्याओं की जड़ है – पर्यावरण प्रदूषण, विस्थापन, आदिवासियों का संस्कृति, विक्षोभ एवं मानसिक संत्रास आदि.
> दामोदर भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से है.
> झारखण्ड में विभिन्न परियोजनाओं एवं उद्योग स्थापना से कुल 1,39,00,000 लोग विस्थापित हुए, इनमें से 1,04,00,000 लोगों का अभी भी पुनर्वास नहीं हुआ है.
> झारखण्ड के उद्योग अपने खराब प्रदर्शन के दौर से गुजर रहे हैं. अनेक उद्योग रुग्णता के शिकार हैं. मसलन हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन, राँची, बिहार एलॉय स्टील लिमिटेड, पतरातु ( हजारीबाग) आदि.
> एशिया का प्रथम लोहा इस्पात उद्योग ( वृहत पैमाने एवं आधुनिक तकनीकी पर आधारित) झारखण्ड के जमशेदपुर शहर में स्थापित किया था.
> जमशेदपुर झारखण्ड की आर्थिक राजधानी के रूप में जानी जाती है.
> झारखण्ड में लोहा इस्पात के दो कारखाने हैं, एक निजी क्षेत्र में जमशेदपुर में तथा दूसरा बोकारो में स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड, भारत सरकार के एक इकाई रूप में कार्यरत् है.
> लोहा – इस्पात उद्योग रोजगार के दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है. इस उद्योग (सम्पूर्ण भारत के परिप्रेक्ष्य में), में कार्यरत् कुल श्रमिकों का 50 प्रतिशत झारखण्ड के दो कारखाने में कार्यरत् है.
> झारखण्ड में स्थित टाटा आवरन एण्ड स्टील कम्पनी लिमिटेड, जमशेदपुर भारत का सबसे बड़ा, लौह-इस्पात कारखाना है.
> इस कारखाने के स्थानीयकरण में कोयले की अपेक्षा लोहे पर अधिक ध्यान दिया है. अतः कारखाना लोहे के खानों के अधिक निकट है.
> जमशेदपुर पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है.
> जमशोदपुर दो नदियों – स्वर्ण रेखा एवं खरकई नदी के संगम पर स्थित है. जमशेदपुर के लौह-इस्पात कारखाने को सिंहभूम एवं क्योंझर की खानों से लौह अयस्क प्राप्त होता है.
> इस कारखाने को कोयला झरिया, पश्चिमी बोकारो, जामदोबा आदि कोलियरी से प्राप्त होता है.
> यह कारखाना लगभग 95 वर्ष से लाभ की स्थिति में है, इसका मुख्य कारण है लोहा-इस्पात उद्योग के लिए सभी अनिवार्य चीजें 320 किमी के त्रिज्या में उपलब्ध हैं.
> इस कारखाने में 1911 से उत्पादन प्रारम्भ हुआ
> प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार की संरक्षणवादी नीति के तहतु 1921 में संरक्षण दिया गया.
> झारखण्ड का दूसरा लोहा-इस्पात का कारखाना बोकारो में है, जो चतुर्थ योजनाकाल के अन्तर्गत 1967 में नींव रखी गई.
> वह कारखाना पूर्व में संयुक्त राज्य अमरीका के सहयोग से बनाया जाना तय हुआ, किन्तु संयुक्त राज्य अमरीका के मुकर जाने के कारण भारत को तत्कालीन यू. एस. एस. आर. सरकार से सहयोग लेना पड़ा.
> बोकारो स्टील प्लाण्ट का उत्पादन कार्य 1978 में शुरू हुआ.
> बोकारो स्टील प्लाण्ट के स्थानीयकरण में स्थानीय कोयले की प्रचुरता सहायक रही हैं.
> लौह अयस्क केऊंझर जिले के उत्तरी भाग में स्थित किरिबुरू खान से आता है. बोलानी, नोआमुण्डी और बरसुआ अन्य स्थल हैं जहाँ से इस कारखाने में लौह अयस्क लाया जाता है.
> बोकारो इस्पात संयन्त्र के लिए चूना पत्थर बिरमित्रापुर से प्राप्त होता है
> झारखण्ड में इण्डियन एल्यूमीनियम लिमिटेड के एक इकाई के रूप में एक कारखाना राँची के निकट मुरी में स्थापित किया है.
> इस कारखाने को बॉक्साइट की प्राप्ति लोहरदग्गा से होता है तथा कोयला की प्राप्ति दामोदर घाटी की खानों से होती है.
> झारखण्ड में ताँबा का एक कारखाना पूर्व सिंहभूम के घाटशिला में कारखाना पूर्व सिंहभूम के घा स्थापित किया गया.
> इस कारखाना को ताँबा स्थानीय खानों से मिलता है, जैसे- मोसावनी, धोवानी, चाथर गोड़ा तथा राखा.
> राखा में ( पूर्व सिंहभूम) एवं मऊभण्डार में ताम्र अयस्क के शोधन हेतु एक कारखाना स्थापित किया गया है.
> भारी मशीनों एवं उपकरणों के उत्पादन हेतु भारत सरकार द्वारा 1958 में राँची में भारी इन्जीनियरिंग निगम लिमिटेड की स्थापना की.
> इस कारखाने के अधीन तीन कारखाने हैं – 
1. भारी मशीन बनाने का कारखाना,
2. फाउण्ड्री फोर्ज कारखाना,
3. भारी मशीनी औजार बनाने का कारखाना.
एच..ई. सी. राँची को कच्चा माल पड़ोसी स्टील प्लाण्टों से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड में कुल 6 सीमेन्ट के कारखाने हैं, जो सिन्दरी, कुमारधुबी, चाईबासा, खेलारी तथा जपला में स्थित हैं.
> खेलारी में स्थित सीमेन्ट के कारखाने की उत्पादन क्षमता (3-30 लाख टन) सर्वाधिक है.
> सिन्दरी के कारखाने को कच्चे माल की प्राप्ति, स्टील प्लाण्ट से निकली धमन भट्टी का कचरा एवं पोत्सबालानिक मसाला, बोकारो स्टील प्लाण्ट से प्राप्त होता है.
> झारखण्ड कोयला के उत्पादन, भण्डारण एवं गुणवत्ता में सर्वोच्च स्थान रखता है. अतः यहाँ से कोयला दूर-दराज के स्टील प्लाण्टों को धोवन कोयला भेजा जाता है.
> झारखण्ड में 8 (आठ) कोयला धोवन (Coal करगाली, कथारा, स्वांग, दुग्धा, जामाडोभा, पाथरडीह में हैं. Washery ) केन्द्र हैं, जो लोदना, भोजूडीह एवं
> झारखण्ड में सीसा उद्योग के 12 कारखाने हैं, 6 (छः) कारखाने रामगढ़ के निकट (हजारीबाग जिला) में हैं.
> भुरकुण्डा में जापान के सहयोग से सीसे का एक कारखाना लगाया गया है.
> धमन भट्टी के निर्माण हेतु रिफ्रेक्टरी उद्योग की स्थापना की गई है.
> मुख्य रिफ्रेक्टरी उद्योग के कारखाने- मोग्मा, कुमार डुबी, चिरकुण्डा, धनबाद, झरिया, भण्डारीदह एवं राँची रोड में हैं.
> अभ्रक पर आधारित उद्योगों का संकेन्द्रण कोडरमा, हजारीबाग तथा गिरिडीह जिले में है.
> झारखण्ड में रासायनिक उर्वरक का प्रथम कारखाना 1951 में सिन्दरी में स्थापित किया गया.
> यह फर्टीलाइजर्स कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया, भारत सरकार की एक इकाई है.
> सिन्दरी के उर्वरक कारखाने में मुख्य रूप से अमोनियम सल्फेट, नाइट्रेट और यूरिया का उत्पादन होता है.
> झारखण्ड में गोमिया नामक स्थान पर विस्फोटक उद्योग का एकमात्र कारखाना है.
> भारत में सर्वोत्तम चीनी मिट्टी सिंहभूम जिले में तथा राजमहल की पहाड़ियों में मिलती है.
> अग्नि-सह-मृतिका की उत्पत्ति अवसादी शैलों से होती है.
> इसका प्रयोग तापरोधी ईंटें बनाने एवं विभिन्न उद्योगों में प्रयुक्त भट्टियों को पोतने में होता है.
> धनबाद के निकट ‘कुमारधूबी फायर ब्रिक्स एण्ड सिलिका वर्क्स’ नामक अग्नि- सह – मृतिका का एक कारखाना है.
> कोयला ऊर्जा प्राप्ति का एक मुख्य स्रोत है, जो कार्बन का अपरूप है.
> झारखण्ड में कोयला गोण्डवाना क्रम की शैल क्रम में पाया जाता है.
> कोयला की गुणवत्ता का निर्धारण उसमें उपस्थित कार्बन की मात्रा पर निर्भर करता है. उत्तम प्रकार के कोयले में कार्बन की मात्रा अधिक होती है.
> ऐन्थ्रेसाइट कोयला सर्वोत्तम प्रकार का कोयला है.
> बिटुमिनस, लिग्नाइट एवं पीट प्रकार के कोयले की अन्य किस्म हैं.
> झारखण्ड में कोयला मध्य झारखण्ड के दामोदर घाटी क्षेत्र से प्राप्त होता है.
> यहाँ बिटुमिनस प्रकार के कोयले की प्रधानता है. इस प्रकार के कोयले में कार्बन का अंश 75-80 प्रतिशत तक होता है.
> झारखण्ड कोयले के उत्पादन एवं भण्डार दोनों दृष्टि से देश का अग्रणी राज्य है. यहाँ देश के कुल संचित भण्डार का 43 प्रतिशत है तथा देश के कुल उत्पादन का लगभग 34 प्रतिशत है.
> झारखण्ड के मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र
– दामोदर घाटी क्षेत्र,
– अजय घाटी क्षेत्र,
– राजमहल कोयला क्षेत्र,
– उत्तरी कोयल घाटी कोयला क्षेत्र.
> दामोदर घाटी कोयला क्षेत्र से झारखण्ड का लगभग 95 प्रतिशत सामान्य कोयला एवं 100 प्रतिशत कोकयुक्त कोयला प्राप्त होता है.
> झारखण्ड में कोयला उत्खनन का काम कोल इण्डिया की सहायक कम्पनी इस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड, भारत कोकिंग कोल फील्ड्स लिमिटेड तथा सेन्ट्रल कोल फील्ड्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है.
> झरिया (धनबाद) क्षेत्र दामोदर घाटी क्षेत्र का मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र है.
> यूरेनियम का उत्पादन मुख्य तौर पर सिंहभूम से होता है.
> जादुगोड़ा में एक यूरेनियम कारखाना लगाया गया है.
>  इसका मुख्य खनिज पिचब्लैण्ड है.
> थोरियम एवं जिरकोनियम का उत्खनन राँची एवं हजारीबाग जिले में होता है.
> झारखण्ड में बोरिलियम अभ्रक पट्टी के साथ पाया जाता है.
> जिरकन की प्राप्ति राँची एवं हजारीबाग जिलों में होती है.
> वैनेडियम का प्रयोग वैनेडियम-इस्पात बनाने में होता है. यह सिंहभूम • दूबल बेराग्राम के निकट मिलता है. के
> मोलिब्डेनम का प्रयोग विशेष किस्म के इस्पात बनाने में होता है. यह हजारीबाग जिले में पायी जाती है.
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