झारखण्ड की अर्थव्यवस्था

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झारखण्ड की अर्थव्यवस्था

‘झारखण्ड की अर्थव्यवस्था’ के अन्तर्गत अर्थव्यवस्था के उम मूलभूत अभिलक्षणों की चर्चा लेखकद्वय द्वारा की गई है, जो अर्थव्यवस्था की प्रकृति के सूचक हैं. किसी राज्य या देश में गरीबी एवं बेरोजगारी की मात्रा की कमीवेशी उसकी अर्थव्यवस्था की अवस्था का संकेतक होता है. इस अध्याय में ‘झारखण्ड में निर्धनता’ उपशीर्षक के तहत् गरीबी की सामान्य व्याख्या कर झारखण्ड में गरीबी की स्थिति की चर्चा की गई है. इसके लिए जिलेवार आँकड़ों की सहायता ली गई है. ‘झारखण्ड में निर्धनता के कारण’ उपशीर्षक एवं निर्धनता निवारण के | उपाय एवं सुझाव’ उपशीर्षक के तहत् सिर्फ मुख्य बिन्दुओं को उठाया गया है. पाठकों की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए निर्धनता निवारण कार्यक्रम, योजनाओं, उपयोजनाओं तथा इस राज्य में आर्थिक प्रगति की सम्भावनाओं पर चर्चा की गई है.
> झारखण्ड की अर्थव्यवस्था
झारखण्ड भारत का रूर प्रदेश हैं. यहाँ भारत के खनिज उत्पादन का एक-तिहाई से अधिक उत्पादन होता है. कुछ खनिजों के उत्पादन के दृष्टिकोण से यह सर्वोच्च स्थान पर है। यहाँ उद्योग स्थापना की सारी परिस्थितियाँ उपस्थित रही हैं. फिर भी यह आर्थिक दृष्टि से अविकसित राज्य है. झारखण्ड की आर्थिक समीक्षा 2017-18 के अनुसार स्थिर मूल्यों पर राज्य में प्रति व्यक्ति आय 2017-18 के मूल्य के आधार पर ₹ 57,038 रही है, किन्तु आय में व्यक्तिगत तौर पर काफी असमानता है, जो निर्धनता की व्यापकता का सूचक है.
> झारखण्ड में निर्धनता
निर्धनता का अर्थ उस सामाजिक क्रिया से है जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को भी पूरी नहीं कर सकता.
सभी समाजों में निर्धनता को परिभाषित करने के प्रयास किये गये हैं, परन्तु उन सबका आधार न्यूनतम या उत्तम जीवन स्तर कल्पना है यथा—यू.एस.ए. में निर्धनता की धारणा भारत से बिलकुल ही भिन्न होगी, क्योंकि यू.एस.ए. में आम नागरिक कहीं अधिक उच्च जीवन स्तर पर रह रहा है, निर्धनता की सभी परिभाषाओं में यह चेष्टा की जाती है कि वे समाज के औसत जीवन-स्तर के निकट हो और इस कारण ये परिभाषा समाज में विद्यमान असमानताओं को दर्शाती है और उस सीमा का बोध कराती है, जिस तक कोई समाज इन्हें करने के लिए तैयार है; यथा – भारत में निर्धनता की सामान्यतः स्वीकृत परिभाषा में उचित जीवन स्तर की अपेक्षा न्यूनतम जीवन स्तर पर बल देती है. सारे तर्क का सार यह है कि – ‘निर्धनता के परम स्तर’ जिन्हें अनाज, दाल, दूध, सब्जियों, कपड़ा या कैलोरी प्राप्ति के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है, जो किसी देश में वर्तमान जीवन के सापेक्ष स्तर से मिश्रित हो जाते हैं. उच्च वर्गों के विलासपूर्ण जीवन की तुलना में समाज का एक वर्ग जीवन की मूलभूत एवं मानवीय जीवन के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं से भी वंचित है, जिसे निर्धन माना जाता है. वर्ष 2011-12 में झारखण्ड में ग्रामीण क्षेत्र में 45-9 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्र में 31-3 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीच जीवन यापन कर रहे हैं.
> गरीबी का प्रकार-गरीबी को दो वर्गों में बाँटते हैं
ग्रामीण गरीबी एवं शहरी गरीबी. गरीबी की समस्या के गरीब कौन है अर्थात् गरीबों का वर्ग आधार क्या है? परन्तु समाधान के लिए नीति बनाने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि दुर्भाग्यवश सरकार ने इस दिशा में कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया है. राष्ट्रीय सेंपिल सर्वेक्षण के आँकड़ों का सहारा लेकर बी. एस. मिन्हास, पी. के. वर्द्धन., बी. एम. दाण्डेकर एवं नीलकण्ठ रथ तथा कुछ अर्थशास्त्रियों ने इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने की कोशिश की है. उनके अनुसार गरीबों में अधिकतर भाग निम्न वर्ग का है
(1) भूमिहीन खेतिहर मजदूर- कुल खेतिहर मजदूरों के परिवार का लगभग 60 प्रतिशत भाग.
(2) अल्प भूमिधर खेतिहर मजदूर- कुल खेतिहर मजदूर का 40 प्रतिशत भूमिहीन ग्रामीण मजदूर जो खेतिहर मजदूर नहीं है.
(3) अल्प भूमिधर – जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है पर खेती पर करने वाले लोग 2
जहाँ तक शहरी क्षेत्र के गरीबों का प्रश्न है, बी. एवं नीलकण्ठ रथ के अनुसार ये लोग भी ग्रामीण क्षेत्र से ही आये और इनकी जड़े गाँवों में हैं. इसलिए ये भी उस वर्ग विशेष का हिस्सा है, जिनका हिस्सा ग्रामीण गरीब लोग हैं, लेकिन लम्बे अरसे तक शहर में रहने के कारण इन लोगों की कुछ स्पष्ट विशेषताएँ बन जाती हैं.
> गरीबी रेखा एवं गरीबों की मात्रा
भारत में गरीबी के अनुमान लगाने के लिए कोई सीधे एवं उपयुक्त आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि अभी तक आय वितरण से सम्बन्धित जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश नहीं की गई है. विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने राष्ट्रीय सेंपिल सर्वेक्षण में उपभोग व्यय से सम्बन्धित. जो जानकारी उपलब्ध है उसके आधार पर शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का अनुमान लगाने का प्रयास किया है.
1. मिश्र एवं पूरी – Indian Economy.
2. वी. एस. मिन्हास – Planning and Poor.
3. वी. एम. दाण्डेकर एवं नीलकण्ठ रथ – Poverty in India.
2014-15 में रंगराजन विशेष समूह द्वारा विकसित निर्धनता मापन विधि के आधार पर झारखण्ड ने अपने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि 2014-15 में 142.5 लाख करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे थे, जो कुल ग्रामीण आबादी का 45.9 प्रतिशत तथा शहरी आबादी का 31.3 प्रतिशत था.
बी. एम. दाण्डेकर एवं नीलकण्ठ रथ ने स्वयं निर्धनता रेखा निर्धारित की जिसके तहत् 180 रुपया प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष ग्रामीण क्षेत्र के लिए एवं 270 रुपये प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष शहरी क्षेत्र के लिए (1960-61) के आधार वर्ष पर था.
पी. के. वर्द्धन के अनुसार 1960-61 की कीमतों पर गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों में 15 रुपया प्रति व्यक्ति प्रति माह एवं गरीबी रेखा शहरी क्षेत्रों में 18 रुपया प्रति व्यक्ति प्रति माह ली है.
योजना आयोग के भूतपूर्व सदस्य एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री बी. एस. मिन्हास ने भी 1960-61 की कीमतों पर 200 रुपया प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष के आधार पर निर्धनता रेखा निर्धारित की.
> झारखण्ड में निर्धनता के कारण
1. विकास की धीमी गति.
2. भ्रष्टाचार की व्यापकता.
3. आय का असमान वितरण.
4. राजनीतिक एवं प्रशासनिक इच्छा शक्ति का अभाव.
5. व्यापक स्तर पर बेरोजगारी.
6. धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यों के चलते आदिवासियों में फिजूलखर्ची है.
7. परिवार नियोजन के असफलता के कारण.
8. प्रजनन दर काफी ऊँची है, जो निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट होती है
> भारत एवं झारखण्ड के स्वास्थ्य संकेतक
> निर्धनता निवारण के उपाय एवं सुझाव
1. जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावी नियन्त्रण.
2. आय के वितरण में सुधार.
3. आर्थिक विकास की गति में तेजी लाना. 4. ग्रामीण विकास पर जोर.
5. रोजगार के अवसर का विस्तार.
6. सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था.
7. भ्रष्टाचार का उन्मूलन.
8. सामाजिक कुप्रथाओं की समाप्ति.
9. उपयोगी शिक्षा एवं प्रशिक्षण.
10. न्यूनतम मजदूरी की व्यवस्था.
11. प्राकृतिक प्रकोपों से समुचित रक्षा.
> राज्य में निर्धनता एवं बेरोजगारी निवारण कार्यक्रम 
(1) जवाहर रोजगार योजना
इस योजना की शुरूआत 1 अप्रैल, 1999 को जवाहर रोजगार योजना में सुधार किया गया है. यह योजना पंचायत स्तर पर लागू होती है, जिसे धन जिला परिषद् से सीधे जिला ग्राम्य विकास अभिकरण को प्राप्त होता है. इस योजना के अन्तर्गत ग्राम पंचायत ग्राम सभा की अनुमति से वार्षिक कार्य योजना बनाता है. इस योजना में सामुदायिक सहभागिता को संस्थागत रूप देना, माँग के आधार पर योजना निर्धारण का लचीला दृष्टिकोण, उपयोगकर्ता एवं समुदाय को अधिकार सम्पन्न बनाना एवं सरकार की भूमि का उपलब्ध कराने वाली संस्था की जगह सहयोग करने वाली संस्था पर जोर दिया गया है.
इस योजना के अन्तर्गत 22.5 प्रतिशत राशि हरिजन एवं आदिवासियों के निजी लाभ के परिसम्पत्ति के निर्माण पर व्यय की जाती है. इस योजना के अन्तर्गत ग्रामीण सड़क योजना, हरिजनों के लिए सिंचाई, कूप, सामुदायिक भवन निर्माण इत्यादि कार्य किए जा रहे हैं.
(2) स्वर्ण जयन्ती ग्राम रोजगार योजना
केन्द्र सरकार द्वारा पूर्व के कार्यान्वित छः योजनाएँ समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम आई. आर. डी. पी. (ड्वाकरा, ट्राईसेम±, टूलकीट्स, गंगा कल्याण योजना एवं जल धारा को एकीकृत कर स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्व रोजगार योजना बनायी गयी है. इस एकीकृत योजना में इन सभी सात योजनाओं के कार्य को निष्पादित किया जा रहा है.
(3) इन्दिरा आवास (अपग्रेडेशन) योजना
इस योजना के तहत् लाभकों को दस हजार रुपये अर्द्ध पक्का घर को पक्का घर में परिवर्तित करने हेतु दिया जाता है.
(4) बुनियादी न्यूनतम सेवा के अन्तर्गत इन्दिरा आवास योजना
यह राज्य प्रायोजित योजना है. यह योजना राज्य सरकार द्वारा अब बन्द कर दी गयी है.
(5) प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना के अन्तर्गत ग्रामीण आवास
भारत सरकार द्वारा इस वर्ष 2000 में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों के लिए एक नई आवास योजना प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (ग्रामीण आवास) प्रारम्भ की गई है. इस योजना के तहत् इन्दिरा आवास के समतुल्य ही कमसे-कम 60 प्रतिशत की राशि अनुसूचित जाति एवं जनजाति परिवारों एवं अधिकतम 40 प्रतिशत की राशि अन्य परिवारों पर व्यय करनी है. इस योजना के तहत् भी प्रति लाभुक को गृह निर्माण हेतु बीस हजार रुपये दी जाएगी.
(6) जल छाजन योजना
इस योजना का कार्यान्वयन भारत सरकार के सहयोग से स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा कराया जा रहा है.
(7) सुनिश्चित रोजगार योजना
यह योजना केन्द्र द्वारा प्रायोजित है. सुनिश्चित रोजगार योजना का उद्देश्य गाँवों में रहने वाले गरीबों को सौ दिन तक निश्चित रोजगार दिलाना है.
> नई उप – योजनाएँ
नई सरकार द्वारा कुछेक योजना एवं उपयोजना शुरू की गई हैं, जो इस प्रकार हैं –
> विधान सभा के सदस्यों की अनुशंसा से क्रियान्वित की जाने वाली योजनाओं के निर्मित तैतीस करोड़ रुपये की स्वीकृति.
1. गाँवों में महिलाओं व बच्चों का विकास कार्यक्रम (DWCRA).
2. The Scheme of Training to Rural Youth for Self-Employment.
> करीब पचास हजार इन्दिरा आवास निर्माण हेतु ₹90 करोड़ की विमुक्ति.
> ग्रामीण विकास योजना अन्तर्गत जवाहर रोजगार से ग्राम सम्बद्ध योजना के अन्तर्गत ₹4,038-88 लाख की स्वीकृति
> सुनिश्चित रोजगार योजना के तहत् ₹ 1938-03 लाख की स्वीकृति
जनजातीय क्षेत्रीय योजनान्तर्गत अनुसूचित जनजाति छात्र छात्राओं की छात्रवृत्ति के निमित्त करीब एक करोड़ तीस लाख रुपये की स्वीकृति.
> सभी जिलों में आदिवासी दलित छात्राओं के लिए छात्रावास बनाने का निर्णय.
> जल छाजन योजना के प्रसार की पहल . सभी पंचायतों की सिंचाई सम्भावनाओं का पता लगाने के लिए सर्वे कार्य प्रारम्भ.
> झारखण्ड में आर्थिक प्रगति की सम्भावनाएँ
झारखण्ड भारत का रूर प्रदेश है. भारत के खनिज कुल उत्पादन का लगभग 36 प्रतिशत इस प्रदेश में होता है. यही कारण है कि इसे रत्नगर्भा भूमि भी कहते हैं. यहाँ की भूमि अति उपजाऊ नहीं है, किन्तु तिलहन, दलहन एवं मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए उत्तम है. झारखण्ड वन संसाधनों से भी युक्त है. प्रकृति ने अनेक नदियाँ भी प्रदत्त की हैं, जिनमें कुछ सदावाहिनी भी हैं. जहाँ तक मानव संसाधन का प्रश्न है, तो यहाँ के लोग हरियाणा, पंजाब, असम, गुजरात, दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपनी श्रम कौशलता का प्रदर्शन कर रहे हैं. ऐसे में यह प्रश्न पूछना स्वाभाविक है कि फिर यहाँ के प्रदेशवासी सम्पन्न क्यों नहीं हैं? अर्थात् यह प्रदेश सम्पन्न है, किन्तु प्रदेशवासी नहीं. पृथक् झारखण्ड सम्बन्धी आर्थिक आँकड़े; जैसे- जी. डी. पी. औद्योगिक वृद्धि दर आदि सुस्पष्ट नहीं है. फिर भी निम्न शिक्षा स्तर, प्रति व्यक्ति निम्न आय, स्वास्थ्य एवं पेयजल की बुरी स्थिति, यातायात के साधनों का अभाव, ऊर्जा खपत में विषमता, कृषि उत्पादकता की निम्न दर आदि कुछेक मुद्दे यहाँ की आर्थिक प्रगति की खराब स्थिति की दासता बयान करती हैं.
प्रकृति ने इस प्रदेश के प्रति दया दृष्टि दिखाई है. आर्थिक सबलता के सारे साधन मुहैया कराए. फिर भी यह आर्थिक दृष्टि से कमजोर हो गया. झारखण्ड के इस पिछड़ेपन में मानवीय कारण का योगदान ज्यादा रहा. इनमें पूर्व की सरकार की उपेक्षापूर्ण एवं अव्यावहारिक नीति, कृषि एवं सिंचाई पर विशेष ध्यान नहीं देना. यहाँ से प्राप्त राजस्व का सही प्रयोग नहीं किया जाना, मूलभूत संसाधनों के विकास पर ध्यान नहीं दिया जाना, राजनीतिक नेतृत्व की प्रशासनिक एवं राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव, सरकार तथा प्रबन्धन द्वारा विभिन्न संसाधनों के उत्तम उपयोग की कमी, विभिन्न आर्थिक आयोजन जन भागीदारी का अभाव जैसे मानवीय कारक रहे हैं जिसमें इस रत्नगर्भा प्रदेश को गरीब बनाए रखा. अन्ततः डॉ. राम दयाल मुण्डा के शब्दों में कहें तो – “झारखण्ड को बिहारी राजनेताओं ने उपनिवेश मान लिया था. “
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की प्रचुरता के साथ यदि मानवीय कारक भी सही दिशा में क्रियाशील हों, तो ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता है जो इस प्रदेश को भारत के अग्रणी राज्यों में शामिल नहीं कर दे. नवनिर्मित सरकार को इस हेतु राजनीतिक एवं प्रशासनिक दृढ़ता का एवं साहसिक निर्णय लेने की क्षमता का प्रदर्शन करना होगा.
पूँजी निवेश के लिए यह आवश्यक है कि उद्योगपतियों को कुछ विशेष सुविधा दी जाये. टेनेन्सी एक्ट में उन्हें रियायत दी जाये तथा उद्योगपतियों को आकर्षित करने हेतु मूलभूत सुविधाओं को सड़क, ऊर्जा विकसित किया जाय. कानून व्यवस्था, सूचना, संचार, आदि की उत्तम व्यवस्था करना अनिवार्य है, क्योंकि नवनिर्मित राज्य सरकार का यह प्रयास ही उद्योग स्थापना एवं संसाधनों के अधिकतम प्रयोग हेतु वातावरण तैयार करेगा.
>मुख्य बातें
> झारखण्ड संसाधनों की दृष्टि से भारत का रूर प्रदेश’ है.
> झारखण्ड में भारत में उत्पादित कुल खनिज का एक-तिहाई से अधिक उत्पादन होता है.
> वर्ष 2015-16 में स्थिर मूल्य के आधार पर झारखण्ड में प्रति व्यक्ति आय ₹54,140 प्रतिवर्ष थी.
> झारखण्ड में प्रति व्यक्ति आय में काफी असमानता है.
> झारखण्ड में कर के रूप में सर्वाधिक प्राप्ति वाणिज्य – कर से होती है.
> गरीबी रेखा निर्धारण हेतु भारत सरकार ने समय-समय पर अनेक आयोग एवं कमेटी का गठन किया है.
> भारत सरकार द्वारा प्रो. डी. टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में सितम्बर 1989 में निर्धनता रेखा निर्धारण हेतु एक कमेटी का गठन किया.
> इस कमेटी ने निर्धनता रेखा निर्धारण हेतु वर्ष 1973-74 को आधार वर्ष बनाया था.
> इस कमेटी ने ग्रामीण क्षेत्रों में ₹49-09 प्रतिमास तथा 56-64 प्रतिमास शहरी क्षेत्र में कुल व्यय करने वालों को निर्धन माना गया है.
> झारखण्ड की लगभग 70 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं जनजातीय आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करती है.
> झारखण्ड में गरीबी का कारण उच्च प्रजनन क्षमता है.

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