झारखण्ड की जलवायु
झारखण्ड की जलवायु
> जलवायु
समुद्र से दूरी, अक्षांशीय स्थिति, विविध उच्चावचीय स्वरूप आदि भौगालिक तत्वों के कारण, झारखण्ड की जलवायु प्रभावित होती है. कर्क रेखा झारखण्ड से होकर गुजरने एवं पूर्वी सीमा बंगाल की खाड़ी के निकट होने के कारण यहाँ उष्णार्द्र प्रकार की जलवायु होती है. पश्चिमी भाग, शुष्क जलवायु होने के कारण उपोष्ण है. दक्षिण में दलमा एवं कोल्हन-धनजोरी का उच्च प्रदेश खाड़ी से आने वाली मानसून हवाओं के पूर्वी प्रवाह के लिए प्राकृतिक मार्ग प्रदान करता है. इसी प्रकार दामोदर घाटी से होकर प्रवाहित होने वाली मानसून हवाएँ पंचेत, लूगोडुमरा पहाड़ तथा खमार प्रपात का पूर्वी भाग द्वारा अवरोधित किया जाता है, जो इस ओर वर्षा करती है.
झारखण्ड की जलवायु भी भारतीय जलवायु की तरह मानसून के आगमन एवं वापसी से प्रभावित होती है. इसका आगमन प्रायः 10 जून (झारखण्ड में) के आसपास होता है एवं इसकी वापसी अक्टूबर के प्रथम सप्ताह के बाद होने लगती है. राजस्थान से शुरू होने वाली ‘लू’ का विस्तार झारखण्ड तक हो जाता है.
> ऋतुएँ
> झारखण्ड में तीन ऋतुएँ होती हैं
(i) ग्रीष्म ऋतु मार्च के आरम्भ से 15 जून तक.
(ii) वर्षा ऋतु 16 जून से सितम्बर के अन्त तक और
(iii) शीत ऋतु अक्टूबर के आरम्भ से फरवरी के अन्त तक, किन्तु वर्ष में सभी ऋतुओं पर मानसूनी प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ते हैं. अतः वर्षा को शीतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन मानसूनों के अनुसार विभाजित किया जाता है. इस आधार पर झारखण्ड की जलवायु को 4 वर्गों में विभाजित किया जाता है –
(1) उत्तरी – पूर्वी मानसूनी पवनों का मौसम
(क) शीत ऋतु, जो 15 दिसम्बर से 15 मार्च तक रहती है. यह भूमि से चलने वाली मानसून का मौसम होता है.
(ख) शुष्क ग्रीष्म ऋतु, जो लगभग 15 मार्च से जून के आरम्भ होने तक रहती है. यह संक्रामक ऋतु है.
(2) दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनों का मौसम
(क) वर्षा ऋतु, जो लगभग 15 जून से 15 सितम्बर तक रहती है. यह सामुद्रिक मानसून का मौसम होता है.
(ख) शरद ऋतु या दक्षिण-पश्चिम मानसून के वापसी के काल की ऋतु, जो मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक रहती है. इस अध्याय में हम झारखण्ड की ऋतुओं का अध्ययन तीन वर्गों में करेंगे –
(1) शीत ऋतु, (2) ग्रीष्म ऋतु, (3) वर्षा ऋतु.
(1) शीत ऋतु
समस्त उत्तरी भारत की तरह झारखण्ड में भी अक्टूबर से ही आकाश में बादल रहित होने लगता है और सितम्बर तक सम्पूर्ण झारखण्ड बादल विहीन हो जाता है. केवल लौटती मानसून से कुछ वर्षा होती है जिससे कहीं-कहीं बादल छा जाते हैं. झारखण्ड में शीत ऋतु नवम्बर से फरवरी तक बनी रहती है. कैण्ड्रयू के अनुसार, “स्वच्छ आकाश, सुहावना मौसम, निम्न तापमान एवं आर्द्रता, सर्वोत्तम दैनिक तापान्तर तथा धीमी चलने वाली उत्तरी पवनें” इस ऋतु की विशेषताएँ हैं.
दिसम्बर के मध्य से एशिया में उच्च वायुदाब होने के कारण पछुआ पवनों की शाखाएँ दक्षिण की ओर मुड़ जाती हैं तथा वे फारस, उत्तरी भारत तथा दक्षिणी चीन की ओर बढ़ने लगती हैं. इसी चक्रवात से जब सारे उत्तरी भारत में वर्षा होती है, तो झारखण्ड में भी कभी-कभी वर्षा होती है.
झारखण्ड में नवम्बर के महीने का औसत तापमान 19.6 डिग्री सेल्सियस से लेकर 22.2 डिग्री सेल्सियस के मध्य में रहता है. दिसम्बर में तापमान और कम हो जाता है. राँची एवं हजारीबाग का औसत तापमान 16.2 डिग्री सेल्सियस रहता है. जनवरी में नेतरहाट
जैसे उच्च स्थानों का तापमान 7-2 डिग्री सेल्सियस के भी नीचे चला जाता है. झारखण्ड में दिसम्बर में तापमान सबसे कम रहता है.
(2) ग्रीष्म ऋतु
झारखण्ड में ग्रीष्म ऋतु मार्च से आरम्भ होती है. इस समय सूर्य उत्तरायण रहता है. मार्च में सूर्य की स्थिति कर्क रेखा के निकट होती है एवं कर्क रेखा झारखण्ड के प्रायः मध्य से, दामोदर नदी के दक्षिण में स्थित राँची के पठार के निकट से गुजरती है. इस कारण झारखण्ड में इस समय तापमान में वृद्धि और वायुदाब में कमी होने लगती है. यह स्थिति मार्च से मई तक पाई जाती है.
मार्च से मई तक जब तापमान बढ़ते हैं तथा निम्न वायुदाब की दशाएँ बनी रहती हैं, हवाओं की दिशा एवं मार्ग में बहुत महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है. इस समय तक शीतकालीन मानसूनी पवनों की दिशाएँ परिवर्तित हो जाती हैं एवं उनके निकटवर्ती स्थानों एवं समुद्रों में स्थानीय हवाएँ चलने लगती हैं. पश्चिमी भारत में दिन में असाधारण गर्मी पड़ने के कारण गर्म हवा ‘लू’ के रूप में पूर्व की ओर बहती हैं, जिसका पूर्वी सीमा छोटा नागपुर पठार की पश्चिमी सीमा होती है. यह शुष्क हवा होती है. जब इन शुष्क हवाओं से आर्द्र हवाएँ मिलती हैं, तो भीषण तूफान तथा आँधियाँ आती हैं. इस समय झारखण्ड के पूर्वी छोर पर शाम के समय गरज के साथ कभीकभी वर्षा हो जाती है, जिसको काल वैशाखी (नारवेस्टर) कहते हैं.
सामान्यतः मार्च से मई तक सूर्य के उत्तरायण होने के कारण एवं कर्क रेखा का झारखण्ड के मध्य से गुजरने के कारण तापमान उच्च रहता है, किन्तु समुद्र के निकटवर्ती भाग एवं पहाड़ी स्थान औसतन कम गर्म रहते हैं. यह मौसम प्रायः शुष्क रहता है, किन्तु काल वैशाखी से थोड़ा-बहुत वर्षा होती है.
(3) वर्षा ऋतु
इस मौसम का समय सामान्यतः आधे जून से लेकर आधे सितम्बर तक होता है. इस समय सूर्य कर्क रेखा पर सीधा चमकता है, जिससे पश्चिमी भारत में निम्न दाब का क्षेत्र बनता है, जो विषुवत् रेखा के समीप के न्यून दाब से भी तीव्र होता है. इसके फलस्वरूप दक्षिणी-पूर्वी सन्मार्गी हवाएँ इन वायुदाब केन्द्र तक आने का प्रयास करती हैं. ज्योंही हवाएँ विषुवत् रेखा को पार करती हैं फैरेल के नियम के अनुसार अपनी दिशा बदल देती हैं और दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के नाम से भारत की ओर बढ़ने लगती हैं. इस मानसून का प्रवेश छोटा नागपुर में जून के प्रथम सप्ताह में होता है जो आ अक्टूबर तक रहता है. छोटा नागपुर के पठार में बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसून से तीव्र वर्षा होती है, क्योंकि ये हवाएँ अपने साथ आर्द्र हवाएँ भी लेकर चलती हैं. इस समय सापेक्षिक आर्द्रता काफी बढ़ जाती है. अरब सागरीय दक्षिणी-पश्चिमी मानसून का विस्तार झारखण्ड तक होता है, जो इस क्षेत्र में वर्षा का कारण बनता है.
15 अक्टूबर से दक्षिणी पश्चिमी मानसून की वापसी होने लगती है, क्योंकि सूर्य दक्षिणायण होने लगता है जिससे निम्न वायुदाब की पट्टी का विस्तार सिमटने लगता है और अक्टूबर के अन्त में यह प्रायः समाप्त हो जाता है.
वर्षा की मात्रा सम्पूर्ण झारखण्ड में प्रायः एकसमान होती है. सिवाय पश्चिमी-दक्षिणी झारखण्ड एवं दक्षिण का वह भाग जो बंगाल की खाड़ी के निकट है. झारखण्ड में औसत वार्षिक वर्षा 120-160 सेमी के मध्य होती है.
> वर्षा
झारखण्ड में वर्षा प्रायः दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होती है, जो बंगाल की खाड़ी से आता है. इन हवाओं से यहाँ की कुल वार्षिक वर्षा का लगभग 80 प्रतिशत वर्षा उपलब्ध होती है. इस राज्य में जून से सितम्बर के बाद का मौसम सूखा रहता है. अल्प मात्रा में शुष्क ग्रीष्म एवं शरद ऋतु में वर्षा हो जाती है. अधिकांश वर्षा चार माह में ही हो जाने एवं सिंचाई की उत्तम व्यवस्था नहीं होने के कारण धान की खेती के बाद खेत अधिकांशतः परती रहती है. झारखण्ड में मानसून का आगमन 10 जून के आसपास होता है. इस समय भारत के पश्चिमी हिस्से एवं छोटा नागपुर के पठार के पास निम्न वायुभार क्षेत्र का निर्माण होता है. ये निम्न वायुभार क्षेत्र बंगाल की खाड़ी से आने वाली उष्णार्द्र हवाओं को खींचते हैं.
झारखण्ड में वर्षा की मात्रा में असमानता पाई जाती है. छोटा नागपुर के पठार के उच्च भाग जैसे 900 मीटर ऊँचे पात प्रदेश तथा राँची- हजारीबाग के 600 मीटर ऊँचे पठारों पर वर्षा की मात्रा ऊँचाई के कारण अधिक होती है. दामोदर तथा स्वर्ण रेखा नदी घाटियों के मार्ग से चलने वाली हवाओं के कारण झारखण्ड के कुछ भीतरी भाग में वर्षा की मात्रा ऊँची पाई जाती है.
झारखण्ड से मानसून की वापसी अक्टूबर के प्रथम सप्ताह के बाद होने लगती है. वापसी मानसून से मात्र 5-10 सेमी ही वर्षा होती है.
ग्रीष्मकाल एवं शीतकाल में भी झारखण्ड में अत्यल्प वर्षा होती है. ग्रीष्मकाल में पूर्व में पश्चिमी हिस्से से ज्यादा वर्षा होती है. इस समय प्रायः 5 से 20 सेमी वर्षा होती है.
> वर्षा का वितरण
झारखण्ड में भारत की तरह वर्षा के वितरण में सादृश्यता नहीं है. छोटा नागपुर पठार की उच्च भूमि औसत उच्च वर्षा का प्रदेश है. नेतरहाट का पठार झारखण्ड का सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान है. झारखण्ड के अन्य दो उच्च वर्षा वाले क्षेत्र पाट प्रदेश एवं राँची- हजारीबाग के 600 मीटर ऊँचे पठार हैं. इन क्षेत्रों में औसत वर्षा 1600 मिमी से 1800 मिमी तक होती है. 1400 मिमी की समवृष्टि रेखा गढ़वा से प्रारम्भ होकर डाल्टेनगंज, हजारीबाग के पश्चिमी सीमा होते हुए दक्षिण की ओर दक्षिणी कोयल के पूर्वी छोर के समान्तर बढ़ते हुए झारखण्ड के दक्षिणी सीमा को स्पर्श कर उत्तर की ओर मुड़कर पूर्वी सिंहभूम को घेरती हुई झारखण्ड के पूर्वी सीमा को स्पर्श करती है. 1400 मिमी की एक अन्य समवृष्टि रेखा बोकारो जिला से होते हुए झारखण्ड के पूर्वी सीमा का स्पर्श करते हुए बिहार के अररिया जिला होते हुए उत्तरी-पूर्वी सीमा को स्पर्श करती है. इस समवृष्टि रेखा के अन्तर्गत बोकारो, धनबाद के उत्तरी-पश्चिमी भाग को छोड़कर सम्पूर्ण धनबाद, दूमका के दक्षिणी-पश्चिमी कोना एवं उत्तरी-पश्चिमी हिस्सा के अतिरिक्त सम्पूर्ण दूमका, पाकूड़ एवं साहेबगंज का जिला आता है. 1200 मिमी की समवृष्टि रेखा गंगा के दक्षिणी हिस्से से शुरू होते हैं जिसका विस्तार झारखण्ड के प्रायः सम्पूर्ण उत्तरी सीमा तक विस्तृत है. झारखण्ड में वर्षा की प्रकृति सामयिक है, जो एक मौसम विशेष में ही अधिक होती है. वर्षा ऋतु में लगभग कुल वर्षा का 80 प्रतिशत वर्षा हो जाती है. शेष 8 माह में मात्र 20 प्रतिशत वर्षा होती है. वर्षा की अनिश्चितता इसकी एक अन्य प्रकृति है, जिससे यहाँ की कृषि भी काफी अनिश्चितता की स्थिति में रहती है.
झारखण्ड में गर्मी में सर्वाधिक तापमान जमशेदपुर में पाया जाता है एवं कम तापमान हजारीबाग जिला में तापमान में कमज्यादा असमानता के बावजूद यहाँ की जलवायु मृदुल होती है. यह प्रदेश ‘लू’ के प्रभाव से प्रायः मुक्त होता है एवं वर्षा के उपरान्त यहाँ की जलवायु शीतल हो जाती है.
> जलवायु प्रदेश
तापमान तथा वर्षा के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ की जलवायु, क्षेत्रीय स्थलाकृति से प्रभावित हैं झारखण्ड जलवायु प्रदेशों में विभाजन, यहाँ के वर्षा का वितरण, क्षेत्रीय विशेषताओं के आधार पर करना उत्तम होगा, क्योंकि तापमान प्रायः सम्पूर्ण झारखण्ड का कमोवेशी एकसमान है. ट्रेवार्था ने झारखण्ड के जलवायु प्रदेश को उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाला जलवायु माना है. उनके अनुसार यहाँ की जलवायु प्रदेश उष्ण कटिबन्धीय नम एवं शुष्क जलवायु का मानसूनी सवाना या भारतीय पठार के उत्तर-पूर्वी भाग टाइप का है, किन्तु सामान्य विभाजन के अन्तर्गत इसे निम्नलिखित जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया जाता है
(1) पूर्वी सीमान्त प्रदेश –
– इसके अन्तर्गत झारखण्ड का पूर्वी हिस्सा शामिल है.
– ग्रीष्मकालीन लू से सुरक्षित है.
– आर्द्रता ऊँची होती है.
– तापान्तर कम होता है.
– सम ऊँचाई तथा पथरीले धरातल के कारण मई महीने का औसत तापमान ऊँचा हो जाता है.
(2) झारखण्ड का मुख्य पठारी प्रदेश
– सभी ऋतुओं में तापमान सन्तुलित, ऐसा 600 मीटर से ऊँचे पठारों में ही होता है.
– वर्ष में वर्षा रहित दिनों की संख्या अधिक – नेतरहाट इसी प्रदेश में स्थित है जो सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान है.
(3) दक्षिणी-पूर्वी सागरीय प्रभाव के प्रदेश
– इस जलवायु प्रदेश में दक्षिणी-पूर्वी सिंहभूम तथा दक्षिणी राँची का क्षेत्र शामिल किया जाता है.
– यहाँ तापान्तर सीमित होते हैं, क्योंकि यह बंगाल की खाड़ी के निकट है.
(4) पलामू का निम्न पठारी प्रदेश
– वर्षा की मात्रा 1150-1250 मिमी तक होती है.
– यह प्रदेश अरब सागरीय शाखा से प्रभावित है.
– लू का प्रवेश सम्भव होने के कारण मई में तीव्र गर्मी पड़ती है.
(5) उत्तरी-पूर्वी छोटा नागपुर प्रदेश
– उच्चावच सीमित होने के कारण यह जलवायविक प्रदेश भी ‘लू’ से प्रभावित है.
– इस जलवायु प्रदेश में 1150-1250 मिमी वर्षा होती है.
> मुख्य बातें
> झारखण्ड की जलवायु को स्थानीय कारक भी प्रभावित करते हैं; जैसे – कर्क रेखा का राज्य से होकर गुजरना, दक्षिणी झारखण्ड में दालमा एवं कोल्हण – धनजोरी उच्च श्रेणी की उपस्थिति तथा दामोदर घाटी के निकट स्थित उच्च पहाड़ी एवं पाट क्षेत्र आदि.
> झारखण्ड में मानसून का प्रवेश 10 जून के आसपास होता है.
> झारखण्ड के वर्षभर के जलवायु को मानसून प्रभावित करती है.
> यहाँ शीत ऋतु का समय नवम्बर से फरवरी तक रहता है.
> जनवरी में झारखण्ड में तापमान 7° सेन्टीग्रेड तक पहुँच जाता है.
> झारखण्ड में दिसम्बर में तापमान सबसे कम रहता है.
> झारखण्ड में ग्रीष्म ऋतु का काल मार्च से मई तक का है.
> काल वैशाखी से गर्मी के मध्य में भी झारखण्ड में वर्षा होती है.
> इस प्रदेश में वर्षा के वितरण में सादृश्यता नहीं है.
> नेतरहाट के पठार में सर्वाधिक वर्षा होती है. ★
> नेतरहाट के अतिरिक्त अन्य उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में राँची का पठार एवं हजारीबाग भी सम्मिलित है.
> झारखण्ड में कुल वर्षा की 80 प्रतिशत वर्षा, दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से, जून से सितम्बर के मध्य में हो जाती है.
> जमशेदपुर झारखण्ड का सर्वाधिक गर्म स्थल है.
> देवार्था के अनुसार झारखण्ड की जलवायु उष्ण कटिबन्धीय नम एवं शुष्क जलवायु का मानसूनी सवाना या भारतीय पठार का उत्तरी-पूर्वी भाग टाइप है.
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