झारखण्ड की राजनीतिक व्यवस्था
झारखण्ड की राजनीतिक व्यवस्था
झारखण्ड का वर्तमान राजनीति स्वरूप वर्षों के संघर्ष एवं बलिदान की देन है. 15 नवम्बर, 2000 को भारत के मानचित्र पर 28वें राज्य के रूप में इस प्रदेश का उदय हुआ, किन्तु यह प्राचीनकाल से ही भौगोलिक दृष्टिकोण से एक पृथक् अस्तित्व रखता है. जहाँ आदिवासियों की बहुलता थी जो आधुनिक सभ्यता एवं संस्कृति से 20 वीं सदी में अवगत हुए. इसके बावजूद आदिम समाज, अराजक समाज नहीं था. अति प्राचीनकाल से ही इन जनजातियों में समाज को सुचारू संचालन हेतु कानून थे. मुण्डा जैसी जनजातियों में तो प्रारम्भ से ही गणतन्त्रीय शासन प्रणाली के प्रमाण मिले हैं. आज भी झारखण्ड की जनजातियों में अपनी राजनीतिक व्यवस्था है, जिसके लिए इन्होंने प्रशासनिक इकाइयों का गठन कर रखा है। इनका अपना स्वायत्तशासी जनजातीय प्रशासन, शुरू में ब्रिटिश शासन एवं | स्वतन्त्रता के बाद भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था से प्रभावित हुआ.
इस अध्याय में पाठकों के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए लेखकद्वय ने राजनीतिक व्यवस्थाओं के ऐसे पहलुओं की चर्चा की है जिनमें पाठकों को अध्ययन सम्बन्धी सुविधा हो. इस अध्याय में बिहार पुनर्गठन विधेयक एवं अन्य सांविधानिक संस्थाओं का सुरुचिपूर्ण एवं सरल विवरण दिया गया है.
> बिहार पुनर्गठन विधेयक 2000
15 नवम्बर, 2000 को बिहार पुनर्गठन विधेयक 2000 के द्वारा बिहार को चौथी बार विभाजित कर झारखण्ड का निर्माण किया गया. इस विधेयक में कुल 91 अनुच्छेद हैं, जो 10 भाग एवं 10 अनुसूचियों में विभाजित हैं. इसके विधेयक के द्वारा बिहार के 4 प्रमण्डलों को 18 जिलों ( वर्तमान में 24 ), 38 अनुमण्डल तथा 260 प्रखण्डों में पृथक् कर झारखण्ड का गठन किया गया. इस विधेयक में वर्णित प्रमण्डल एवं जिले इस प्रकार हैं
(1) संथाल परगना प्रमण्डल – साहेबगंज, दुमका, गोड्डा, देवघर, पाकुड़ एवं जामताड़ा.*
(2) उत्तरी छोटा नागपुर प्रमण्डल – हजारीबाग, कोडरमा, चतरा, धनबाद, गिरीडीह, बोकारो एवं रामगढ़ *
(3) दक्षिणी छोटा नागपुर प्रमण्डल – राँची, गुमला, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, लोहरदगा, सिमडेगा*, सरायकेला* एवं खूँटी
(4) पलामू प्रमण्डल – पलामू, गढ़वा, लातेहार*.
बिहार पुनर्गठन विधेयक, 2000 के अनुसार प्रस्तावित राज्य में लोक सभा के 14 सदस्य एवं राज्य सभा के लिए 6 सदस्य होंगे. एक सदनीय सभा होगी जिसे विधान सभा कहा जायेगा. विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 82 होगी, जिसमें 81 सदस्य निर्वाचित एवं एक सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होगा. मनोनीत सदस्य आंग्ल- भारतीय समुदाय का सदस्य होगा. इस विधेयक के अनुसार अनुसूचित
* चिह्नित छः नए जिले हैं.
जनजातियों के लिए लोक सभा में 6 एवं विधान सभा में 29 सीटें आरक्षित हैं. अनुसूचित जातियों के लिए विधान सभा में 8 (आठ) तथा लोक सभा की एक सीट आरक्षित की गई है. लोक सभा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित एकमात्र सीट पलामू की है. इस विधेयक द्वारा राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है, जो राँची में अवस्थित है.
> राज्य में संविधानिक इकाइयाँ
भारतीय संविधान के तहत् राज्य के लिए जिन इकाइयों का प्रावधान है, वह इस प्रकार हैं –
> कार्यपालिका एवं विधायिका सम्बन्धी इकाइयाँ
1. राज्यपाल.
2. मुख्यमंत्री.
3. मंत्रिपरिषद्
4. विधान सभा एवं विधान सभा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष.
5. महाधिवक्ता.
6. राज्य के विधानमण्डल का सचिवालय.
> न्यायपालिका सम्बन्धी इकाइयाँ
1. उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालय.
2. जनजाति सलाहकार परिषद् आदि.
उपर्युक्त प्रशासनिक एवं न्यायिक इकाइयों द्वारा ही इन नवनिर्मित राज्य (झारखण्ड) का भी शासन संचालन होता है. जिसके अधिकार, कर्तव्य सम्बन्धी एवं अन्य विवरण निम्नलिखित हैं –
राज्यपाल – झारखण्ड के प्रथम राज्यपाल के रूप में श्री प्रभात कुमार की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 15 नवम्बर को की गयी. भारतीय संविधान में राज्यपाल की नियुक्ति, अधिकार एवं कर्तव्य के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान हैं
अनुच्छेद 153 – प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा.
अनुच्छेद 154 – राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा.
अनुच्छेद 155 – राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा.
अनुच्छेद 156 – 1. राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा.
2. राज्यपाल इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपेगा.
3. राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्षों का होगा.
अनुच्छेद 157 – कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है और 35 वर्ष की अवस्था पूरी कर चुका है.
अनुच्छेद 158 – राज्यपाल के पद के लिए शर्तें–
1. संसद के किसी सदन का या विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं होना चाहिए.
2. सदस्य होने पर भी राज्यपाल के रूप में पद ग्रहण से पूर्व इस्तीफा देना होगा.
3. राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा.
अनुच्छेद 174 – राज्यपाल को विधानमण्डल का सत्र आहूत करने का, सत्रावसान का एवं विधान सभा का विघटन करने का अधिकार होगा.
अनुच्छेद 175 – सदन या सदनों अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने को राज्यपाल का अधिकार.
अनुच्छेद 176 – राज्यपाल प्रत्येक विधान सभा के प्रथम सत्र एवं प्रतिवर्ष के प्रथम सत्र में विशेष अभिभाषण करने का अधिकार होगा.
अनुच्छेद 161 – राज्यपाल को कुछ न्यायिक अधिकार प्राप्त होंगे. मुख्यमंत्री – झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री ( वाजपेयी सरकार) श्री बाबूलाल मराण्डी को 15 नवम्बर, 2000 को राज्यपाल महामहिम श्री प्रभात कुमार ने नियुक्त किया. मुख्यमंत्री के अधिकार एवं कर्तव्य इस प्रकार हैं
अनुच्छेद 163 – राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद् होगी. जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा.
अनुच्छेद 163 – मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा, किन्तु मुख्यमंत्री बहुमत दल का नेता नहीं हो, तो राज्यपाल अपने स्वविवेक नियुक्त करता है. मुख्यमंत्री की कार्यपालिका एवं विधायिका सम्बन्धी अधिकार लगभग भारत के प्रधानमंत्री के जैसा ही है. व्यवहार में वह कार्यपालिका का मुखिया होता है.
मंत्रिपरिषद् – मंत्रिपरिषद् के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण तत्व निम्नलिखित हैं –
अनुच्छेद 163 – राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद् होगा.
अनुच्छेद 164 – मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करेगा, जो राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करेंगे.
अनुच्छेद 164 (1) – मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल अन्य मंत्रियों को नियुक्त करेगा, जो राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करेंगे.
अनुच्छेद 164 (2) – मंत्रिपरिषद् राज्य की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी.
अनुच्छेद 164 (4) – मंत्री को सदन का सदस्य पद ग्रहण के छः माह के भीतर सदस्य बनना अनिवार्य होगा.
विधान सभा – झारखण्ड में विधानमण्डल एकसदनात्मक है अर्थात् यहाँ विधान परिषद् नहीं है. विधान सभा में कुल 82 सदस्य निर्वाचित तथा एक सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होगा. बिहार पुनर्गठन विधेयक, 2000 के तहत् विधान सभा गठन के सम्बन्ध में निम्नलिखित व्यवस्था की गयी है –
विधान सभा अध्यक्ष – झारखण्ड में प्रथम विधान सभा अध्यक्ष के पद पर श्री इन्दर सिंह नामधारी आसीन हुए. भारत के संविधान के अनुसार विधान सभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष सम्बन्धी विवरण इस प्रकार हैं.
अनुच्छेद 178 – प्रत्येक राज्य को विधान सभा, यथाशीघ्र अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तब विधान सभा किसी अन्य सदस्यों को यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी.
अनुच्छेद 179 – अध्यक्ष या उपाध्यक्ष (विधान सभा) निम्नलिखित परिस्थितियों में अपना पद त्याग दे –
(क) यदि विधान सभा का सदस्य नहीं रहता है, तो अपना पद रिक्त कर देगा:
(ख) किसी भी समय यदि वह सदस्य अध्यक्ष है तो उपाध्यक्ष को सम्बोधित और यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है, तो अध्यक्ष को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा.
(ग) विधान सभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित
संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा. परन्तु खण्ड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब प्रस्तावित किया जाएगा, जबकि उस संकल्प को प्रस्तावित करने का आशय की कम-से-कम 14 दिन की पूर्व सूचना दे दी गई हो, परन्तु यह और जब कभी विधान सभा का विघटन किया जाता है, तो विघटन के पश्चात् होने वाले विधान सभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा.
अनुच्छेद 180 (1) – जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तब उपाध्यक्ष या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है, तो विधान सभा का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा.
अनुच्छेद 180 (2) – विधान सभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थित में उपाध्यक्ष; या यदि वह भी अनुपस्थित है, तो ऐसा व्यक्ति, जो विधान सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाएगा यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है, तो ऐसा अन्य व्यक्ति जो विधान सभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा.
अनुच्छेद 181 – जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है, तब उसका पीठासीन क्रमशः अध्यक्ष या उपाध्यक्ष स्वयं नहीं होगा.
अनुच्छेद 182 – जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विधान सभा में विचाराधीन है तब उसको विधान सभा में बोलने और उसकी कार्यवाही में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमतः ही मत देने का अधिकार होगा, किन्तु होने की दशा में मत देने का हकदार नहीं होगा. विधान सभा के अध्यक्ष के मुख्य कार्य-सभा-संचालन, गणपूर्ति के अभाव में सभा स्थगित करना, गैर सदस्यों के सदन में प्रवेश को रोकना, राज्य के धन विधेयक के सम्बन्ध में सहमति आदि होगा.
राज्य के विधानमण्डल का सचिवालय – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 187 द्वारा सचिवालय एवं इसके कर्मचारी के भर्ती एवं इनके सेवा पूर्ति के सम्बन्ध में चर्चा की गई है.
राज्य का महाधिवक्ता – संविधान के अनुच्छेद 165 के तहत् राज्यपाल को एक महाधिवक्ता नियुक्त करने का अधिकार दिया है, जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए अर्हता रखता हो.
अनुच्छेद 165 (1) – के अनुसार इसका मुख्य कर्तव्य राज्य का सरकार को विधि सम्बन्धी ऐसे विषयों पर सलाह देना है और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करना है जो राज्यपाल समय-समय पर निर्देशित करेगा या सौंपेगा.
अनुच्छेद 165 (3) – के अनुसार महाधिवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पदधारण करता है एवं राज्यपाल द्वारा तय पारिश्रमिक प्राप्त करेगा.
अनुच्छेद 177 – के तहत् महाधिवक्ता को अधिकार होगा कि वह राज्य विधान सभा में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेगा, किन्तु उसे सदन में मत देने का अधिकार नहीं होगा.
> उच्च न्यायालय
अनुच्छेद 214 – के तहत् उल्लेखित प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा को ध्यान में रखते हुए बिहार पुनर्गठन विधेयक, 2000 के द्वारा झारखण्ड प्रान्त के लिए एक उच्च न्यायालय का गठन किया गया, जो राँची में स्थित है. राँची उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायाधीश है. झारखण्ड के प्रथम मुख्य न्यायाधीश श्री वी. के. गुप्ता हैं.
> उच्च न्यायालय सम्बन्धी मुख्य संवैधानिक प्रावधान निम्नलिखित हैं
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और उसके पद पर शर्तें
अनुच्छेद 217 – के तहत् राष्ट्रपति, राज्य के न्यायाधीश मुख्य की दशा में भारत के मुख्य न्यायाधीश से, उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर एवं राज्य के उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के सम्बन्ध में उक्त राज्य के उच्च न्यायालय के परामर्श से क्रमशः मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा.
वह न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त हो जायेगा बशर्ते वह –
1. वह राष्ट्रपति को सम्बोधित करते हुए इस्तीफा नहीं दे दे, या
2. अनुच्छेद 124 (4) के तहत् राष्ट्रपति द्वारा उसे पद विमुक्त नहीं किया गया हो, या
3. वह राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया गया हो या अन्य राज्यक्षेत्र में स्थानान्तरित नहीं किया गया हो.
> मुख्य बातें
> 15 नवम्बर, 2000 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त कर बिहार पुनर्गठन ★ विधेयक 2000 अस्तित्व में आ गया.
> झारखण्ड भारत का 28वाँ राज्य है.
> नवम्बर 2000 में तीन नए राज्य बने – छत्तीसगढ़, उत्तरांचल एवं झारखण्ड, इनका निर्माण क्रमशः मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार से पृथक् कर किया गया है.
> झारखण्ड में कुल 24 जिले, 4 प्रमण्डल, 38 अनुमण्डल एवं 260 प्रखण्ड हैं.
> दक्षिणी छोटा नागपुर प्रमण्डल झारखण्ड का सबसे बड़ा प्रमण्डल है (क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से).
> क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से सबसे छोटा प्रमण्डल पलामू है.
> बिहार पुनर्गठन विधेयक 2000 के अन्तर्गत झारखण्ड राज्य हेतु विधान सभा के लिए 81 + 1 82 ( एक एंग्लो इंडियन मनोनीत ) सीट तथा – लोक सभा में 14 सीट तथा राज्य सभा के लिए 6 सीट का प्रावधान है.
> बिहार पुनर्गठन विधेयक 2000 के तहत् शेष बिहार के लिए विधान सभा के लिए 243 सीट, विधान परिषद् हेतु 75 सीट लोक सभा हेतु 40 सीट तथा राज्य सभा हेतु 16 सीट का प्रावधान है.
> झारखण्ड विधानमण्डल एक सदनात्मक है.
> झारखण्ड विधान सभा में एक सीट एंग्लो इंडियन, (8) आठ सीट अनुसूचित जाति एवं बीस (20) सीट अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित हैं. }
> झारखण्ड में कुल 82 सीट में 29 सीट आरक्षित हैं तथा 53 सीट सामान्य वर्ग हेतु हैं.
> झारखण्ड में लोक संघ के लिए कुल 14 सीट में 5 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए तथा एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
> झारखण्ड के प्रथम राज्यपाल श्री प्रभात कुमार थे.
> झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मरांडी थे.
> झारखण्ड विधान सभा के प्रथम स्पीकर श्री इन्दर सिंह नामधारी हैं.
> श्री बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री बनने से पूर्व श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठित राजग सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री थे.
> झारखण्ड के राज्यपाल को पाँचवीं अनुसूची के तहत् विशेष अधिकार दिये गये हैं, जिसके तहत् राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्र के प्रशासन के सम्बन्ध में विशेषाधिकार प्राप्त होगा.
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