झारखण्ड : कृषि एवं भूमि संसाधन

झारखण्ड : कृषि एवं भूमि संसाधन

झारखण्ड का इतिहास - inp24

> कृषि एवं भूमि संसाधन
झारखण्ड एक कृषि प्रधान प्रदेश है. यहाँ के आदिवासी वनोत्पाद एवं कृषि पर लम्बे समय तक पूर्णरूपेण आश्रित रहे हैं. झारखण्ड की लगभग 75 प्रतिशत आबादी अर्थात् तीन-चौथाई जनसंख्या का मुख्य व्यवसाय कृषि है. यहाँ की कृषि को स्थायी जीवन निर्वाहक कृषि कहा जाता है, क्योंकि कृषि का मुख्य मकसद जीविकोपार्जन होता है. कृषि प्रधान राज्य होने के कारण यहाँ की अर्थव्यवस्था में भूमि संसाधन का स्थान सर्वोपरि है. राज्य की कुल भूमि का लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र शुद्ध कृषि क्षेत्र है. कृषि एवं वनों का क्षेत्रफल लगभग बराबर है. वन स्थिति रिपोर्ट 2017 के अनुसार झारखण्ड में वनों का विस्तार लगभग 23,553 वर्ग किलोमीटर है जो कुल भूमि संसाधन का 29.55 प्रतिशत है. झारखण्ड का अधिकांश भूमि वन एवं कृषि के अन्तर्गत यह निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट होता है —
स्रोत : वार्षिक योजना (2016-17), झारखण्ड सरकार
झारखण्ड के भूमि उपयोग प्रतिरूप की उपर्युक्त तालिका स्थायित्व का सूचक नहीं है. इस प्रतिरूप में मौसम एवं वर्षा के अनुरूप परिवर्तन होता रहता है. अनावृष्टि तथा अल्पवृष्टि के वर्षों में चालू-परती के अन्तर्गत आने वाली भूमि के प्रतिशत में वृद्धि की सम्भावना बनी रहती है.
> 2016-17 में राज्य में कृषि और सम्बन्धित गतिविधियाँ
झारखण्ड सरकार के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय के मुताबिक वित्तीय आधार वर्ष 2011-12 के मुताबिक सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में कृषि और पशुपालन सेक्टर की हिस्सेदारी 2015-16 (ए) में 12.50 प्रतिशत और 2016-17 (पीआर) में 12-75 प्रतिशत रही. राज्य की कृषि मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है. साल 2017 में अप्रैल से अक्टूबर के बीच मानसून सामान्य रहा था. इस दौरान जुलाई और अक्टूबर में सामान्य से अधिक बारिश हुई, जबकि अप्रैल, जून और सितम्बर में सामान्य से कम बारिश हुई थी. 2014-15 और 2016-17 के दौरान कुल खाद्य पदार्थ दाल और तेल पैदा करने वाले बीजों के उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई. इस दौरान 35 प्रतिशत अधिक भूमि पर दाल की फसल उगायी गयी. इस कारण दाल के उत्पादन में 41 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी. खाद्य पदार्थों की पैदावार के लिए 19.64 प्रतिशत अधिक भूमि का उपयोग किया गया. इससे इनके उत्पादन में 17.25 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसी तरह ऑयल सीड्स की खेती 34.8 प्रतिशत अधिक भूमि पर की गयी. इस कारण इसके उत्पादन और प्राप्ति में क्रमशः 46.3 प्रतिशत और 8.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2014-15 से 201617 के बीच रबी और खरीफ सीजन के आधार पर खाद के उपयोग में 10 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.
फलों और सब्जियों के उत्पादन के क्षेत्र में 2015-16 और 2016-17 में क्रमशः 4.4 और 11.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है. उत्पादन के नजरिए से 2015-16 में 9 प्रतिशत की वृद्धि और 2016-17 में 0.1 प्रतिशत की कमी देखी गई. 2014 से 2017 के बीच दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 201516 और 2016-17 में मांस और अंडा के उत्पादन में राज्य में क्रमशः 15 प्रतिशत और 9.22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2014 से 2017 के बीच मछली उत्पादन में राज्य में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसी दौरान मछली उत्पादन में लगे लोगों की संख्या में 48 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
कृषि आधारित गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से झारखण्ड सरकार के पशुपालन व मत्स्य पालन विभाग ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं. इसके तहत् कई योजनाएं लागू की गई हैं. मसलन, बंजर भूमि को खेती योग्य भूमि में तब्दील करना, द्विफसलीय चावल उत्पादन योजना, स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं के लिए कृषि तकनीक प्रोमोशनल योजना, जलनिधि, हार्टिकल्चर विकास योजना, आर्गेनिक, सर्टिफिकेशन और जैविक खाद उत्पादन जैसी योजनाओं पर काम किया जा रहा है. इसके अलावा केन्द्र प्रायोजित योजनाएं मसलन, नेशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, नेशनल हार्टिकल्चर मिशन और स्वायल हेल्थ कार्ड आदि पर काम किया गया है. इससे जीएसडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान बढ़ा है. इसके साथ ही कृषि कार्य में लगे लोगों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई है.
> शुद्ध कृषि क्षेत्र
बिहार राज्य सांख्यिकी निदेशालय के रिकॉर्ड के अनुसार झारखण्ड राज्य में कुल मिलाकर 79.71 लाख हेक्टेयर भूमि है. इस जमीन का 28.8 प्रतिशत भाग शुद्ध कृषि क्षेत्र है. झारखण्ड के सभी जिलों में शुद्ध कृषि का प्रतिशतता 50 प्रतिशत से कम ही है. पलामू एवं हजारीबाग में इसका प्रतिशत क्रमशः 17 एवं 15 है.
> चालू परती भूमि
झारखण्ड में कुल क्षेत्र का 11-12 प्रतिशत भूमि परती है. ये परती भूमि कृषि कार्य के लिए उपयुक्त होते हुए भी प्रतिवर्ष कृषि के अन्तर्गत सम्मिलित नहीं हो पाती है. इस तरह की भूमि के क्षेत्र में वर्षा की कमी, उत्तम बीज का अभाव, श्रमिकों की कमी या संस्थागत सुविधाओं में कमी से परिवर्तन होता रहता है.
> अन्य परती भूमि
यह सीमान्त भूमि है, जिसे अनुकूल मौसम वाले वर्षों में आवश्यकतानुसार कृषि के अन्तर्गत ले जाया जाता है. समुचित सिंचाई की सुविधा एवं उर्वरक के प्रयोग से इस भूमि को स्थायी कृषि भूमि के अन्तर्गत ले जाया जाता है. झारखण्ड की लगभग 8-46 प्रतिशत भूमि अन्य परती भूमि के अन्तर्गत आती है. इस राज्य के शुद्ध कृषि क्षेत्र, चालू परती एवं अन्य परती के मध्य गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि प्रतिकूल या अनुकूल मौसम के प्रभाव में इनके मध्य परिवर्तन होता रहता है.
> वन-क्षेत्र
राज्य वन स्थिति रिपोर्ट 2017 के अनुसार राज्य के लगभग 23.55 लाख हेक्टेयर जमीन या कुल क्षेत्रफल का 29.55 प्रतिशत भूमि पर वन हैं. ऐसे बगीचों में प्रायः रसदार फल लगे होते हैं. कृषक ऐसे भूमि को अब खेती के कार्य में लाने लगे हैं.
> कृषि योग्य बंजर भूमि
ऐसी भूमि को मृदा संरक्षण, सिंचाई एवं उचित उर्वरक का प्रयोग कर कृषिगत कार्यों में लाया जा सकता है. झारखण्ड की कुल 5.74 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर भूमि है जिसमें कृषि कार्य सम्भव है. यह कुल क्षेत्रफल का 7-20 प्रतिशत है. हजारीबाग, राँची एवं संथाल परगना के 70 प्रतिशत भूमि बंजर है.
> गैर-कृषिगत भूमि
अखण्ड बिहार का 20.97 प्रतिशत भूमि इस वर्ग के अन्तर्गत था, किन्तु झारखण्ड में मात्र 3-44 प्रतिशत भूमि गैर-कृषिगत कार्यों में लगी है. झारखण्ड के धनबाद जिले में 20 प्रतिशत भूमि परिवहन तथा
खनन जैसे गैर-कृषि कार्यों में लगी है. झारखण्ड के जिलों में ऐसी भूमि का निम्न प्रतिशत विरल जनसंख्या, अधिवासों एवं जलाशयों की कमी का परिणाम है.
> चरागाह
मात्र 2.48 प्रतिशत भूमि इस वर्ग के अन्तर्गत आती है. चरागाह का क्षेत्र कम एवं पशुधन अधिक होने के कारण इसका दुष्प्रभाव वनों पर पड़ता है.
> ऊसर भूमि
कृषि की दृष्टि से अनुपयुक्त पथरीली, पहाड़ी या रेहवाली ऊसर भूमि राज्य के लगभग 7 प्रतिशत भाग पर पायी जाती है. राज्य के अधिकांश ऊसर भूमि संथाल परगना, राँची, हजारीबाग एवं सिंहभूम जिलों में विस्तृत है.
> फसल एवं उत्पादन
धान
ये के में या धान यहाँ की मुख्य फसल है. खेती योग्य कुल जमीन में से 61 प्रतिशत जमीन में धान की खेती होती है. औसतन 34 लाख 54 हजार एकड़ जमीन में धान की खेती की जाती है. झारखण्ड में धान की तीन फसलें अगहनी, गरमा एवं भदई फसलों के रूप में उत्पन्न की जाती हैं, इनमें अगहनी धान की खेती में सबसे अधिक भूमि लगती है. धान की फसल मानसून पर आधारित होने के कारण उत्तम वृष्टि, अनावृष्टि एवं अतिवृष्टि से धान की खेती प्रभावित होती है. अगहनी धान की सफलता अदरा (मध्य जून) तथा हथिया नक्षत्र ( अक्टूबर) की वर्षा पर निर्भर है.
झारखण्ड में दामोदर, उत्तरी कोयल एवं स्वर्ण रेखा नदियों की घाटियों एवं पठार के निम्न भूमि वाले क्षेत्रों में धान की अगहनी फसल उत्पन्न की जाती है. केवल पलामू को छोड़कर यहाँ के सभी जिलों में 70 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि अगहनी धान की कृषि में लगी है.
भदई धान का उत्पादन यूँ तो सभी जिलों में कुछ न कुछ होता है, परन्तु राँची, सिंहभूम एवं पलामू के पठारी भाग में भदई धान विशेष रूप से उत्पादन किया जाता है. सिंचित क्षेत्रों में ही इसकी खेती केन्द्रित है. झारखण्ड में इस समय धान की उत्पादन दर औसतन 2055 किलो प्रति एकड़ है.
> मक्का
झारखण्ड की एक मुख्य खाद्य फसल है. क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से मक्का उत्पादन का क्षेत्रफल धान के बाद दूसरा है. 3 लाख 38 हजार एकड़ में मक्का का उत्पादन होता है, जो राज्य के कुल बोये गये क्षेत्र के 5.97 प्रतिशत है. मक्का के मुख्य उत्पादक जिले हजारीबाग, राँची, पलामू एवं संथाल परगना हैं.
यहाँ मक्का का प्रति एकड़ उत्पादन दर 1407 किलो प्रति एकड़ है.
> गेहूँ
झारखण्ड का यह तृतीय मुख्य खाद्य फसल है. झारखण्ड में गेहूँ की खेती 1 लाख 78 हजार एकड़ भूमि में होती है. गेहूँ का उत्पादन सिंचित क्षेत्र में ही सम्भव है. झारखण्ड के किसी भी जिले में गेहूँ के अन्तर्गत 10 प्रतिशत कृषि भूमि नहीं आती है, जो राज्य के कुल बोये गये क्षेत्र के 3.0 प्रतिशत है. ऐसा सिंचाई की उत्तम व्यवस्था नहीं रहने के कारण है. यहाँ गेहूँ का प्रति एकड़ उत्पादन दर 1541 किलो प्रति एकड़ है.
> मडुआ (रागी)
झारखण्ड में 1 लाख 60 हजार एकड़ भूमि में महुआ की खेती होती है. यह कम समय में तैयार होने वाली फसल है, जिसकी बुवाई अप्रैल-मई में की जाती है एवं कटाई जून-जुलाई में कर ली जाती है. इस फसल को काटकर खेत में अगहनी धान या अन्य दूसरी फसलें उगायी जाती हैं. यों तो इसकी खेती झारखण्ड के प्रायः सभी जिलों में कमोवेशी होती है, परन्तु इसके मुख्य उत्पादक जिले राँची, हजारीबाग एवं गिरिडीह हैं.
> चना
दलहन फसलों में चने का प्रमुख स्थान है. झारखण्ड में प्रायः 30 हजार एकड़ भूमि में चने की खेती की जाती है. चना का मुख्य उत्पादक जिला पलामू है. अन्य जिलों में चना का उत्पादन नगण्य है.
> जौ
कम सिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती सम्भव है. अतः जहाँ गेहूँ की खेती नहीं की जाती है, वहाँ जौ की खेती होती है. पलामू जौ का मुख्य उत्पादक जिला है.
> ज्वार
यह एक मोटा अनाज है. इसकी खेती निर्धन एवं अपने खाद्यान्न एवं पशुओं के चारे के लिए करते हैं. इसकी खेती शुष्क इलाके एवं उच्च भूमि पर की जाती है. लगभग 5 हजार एकड़ भूमि पर ज्वार की खेती की जाती है. मुख्य उत्पादक जिले हजारीबाग, राँची, सिंहभूम एवं संथाल परगना हैं.
> बाजरा
यह एक मोटा खाद्यान्न है, जिसका प्रयोग गरीबों द्वारा खाद्यान्न में एवं पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है. इसकी खेती कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सम्भव है. राज्य के कुल 22 हजार एकड़ भूमि में बाजरा की खेती की जाती है. झारखण्ड के बाजरा उत्पादक मुख्य जिले हजारीबाग, राँची, सिंहभूम एवं संथाल परगना हैं.
> अरहर
अरहर दलहन की एक मुख्य फसल है. झारखण्ड में चना ( दलहन ) के बाद इसकी खेती सबसे ज्यादा क्षेत्र में की जाती है. इसकी खेती कम उपजाऊ मृदा में भी सम्भव है. झारखण्ड में 61.5 हजार एकड़ भूमि पर अरहर की खेती की जाती है. इस राज्य में अरहर की उत्पादन दर 270 किलो प्रति एकड़ है. राज्य के अरहर उत्पादक मुख्य जिला पलामू है.
> अन्य दलहन
चना एवं अरहर के साथ मसूर, खेसारी, उड़द, कुल्थी, मटर, मूँग, बोदी इत्यादि दलहन की फसलें रबी या खरीफ के साथ मिश्रित फसलों के रूप में उपजाई जाती हैं. झारखण्ड में दलहन की ये फसल थोड़ी मात्रा में सभी जिले में उत्पन्न की जाती हैं. मसूर का सर्वाधिक उत्पादन संथाल परगना में किया जाता है.
> तिलहन
तिलहन सम्प्रदाय की मुख्य फसलें तिल, राई, सरसों इत्यादि जो झारखण्ड में पैदा की जाती हैं. इनकी खेती थोड़ी मात्रा में प्रायः सभी जिले में की जाती है. 4 हजार एकड़ भूमि में तिल की खेती की जाती है, जो अधिकांश पलामू में है. तिल की खेती हजारीबाग एवं संथाल परगना जिले में भी होती है.
> गरीबी निवारण एवं कृषि कार्यक्रम
राष्ट्रीय कृषि आयोग एवं पूसा कृषि विश्वविद्यालय की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार पूरे झारखण्ड की 3/4 आबादी कृषि कार्य में संलग्न है. झारखण्ड के गरीब आदिवासी एवं पिछड़े-दलित समुदाय का 86-2 प्रतिशत आबादी का जीवन खेती-बारी एवं उससे सम्बन्धित क्षेत्रों पर निर्भर हैं. इस सच्चाई को देखते हुए राष्ट्रीय कृषि आयोग एवं कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने झारखण्ड की प्रचण्ड गरीबी दूर करने हेतु वहाँ कृषि विकास का विशेष रचनात्मक कार्यक्रम युद्धस्तर पर कार्यान्वित करने की सिफारिश वर्षों पहले से प्रस्तुत कर रखी है. उन सृजनात्मक सिफारिशों को युद्धस्तर पर साकार करने के लिए सन् 1999 तक भारत सरकार ने करीब 36 अरब रुपये बिहार राजव्यवस्था को दे चुकी थी. इस सिफारिश पर किये गये कार्यों की उपलब्धि का विवरण इस प्रकार
 है –
1. सन् 2000 तक झारखण्ड की उस आठ लाख एकड़ कृषि योग्य बंजर भूमि को हर दृष्टि से उपजाऊ खेत बना देने की सिफारिश एवं फैसला भी था. जो भूमि बेकार पड़ी हुई है उसे उपजाऊ खेत बनाने के साथ-साथ उसमें निश्चित सिंचाई की पक्की व्यवस्था, पक्के कुएँ, लिफ्ट सिंचाई आदि की व्यवस्था – अनिवार्य रूप से करनी थी. ये दोनों काम अभी तक 2 प्रतिशत भी नहीं हुए, जबकि इसमें अरबों रुपये खर्च हो चुके हैं.
2. पलामू, धनबाद, गिरीडीह, हजारीबाग एवं संथाल परगना के कुछ क्षेत्रों में सूखा खेती ( अर्थात् कम वर्षा से भी फसल उपज सकती है) की व्यवस्था कराने की सिफारिश की. यह 1.5 प्रतिशत भी कार्यान्वित नहीं हुआ.
3. पठारी पहाड़ी इलाकों के टाड़-टीकारो, ढलानों की सदा परती भूमि को आंशिक तौर पर अरहर, तिल, कोदो, ज्वार आदि की खेती एवं फलदार वृक्षों के लिए (बागवानी के लिए) विकसित करने की सिफारिश की गई थी. इस सिफारिश पर उपलब्धि एक प्रतिशत से भी कम रही. तिल एवं बागवानी से गरीबों को नकद आय की पूरी सम्भावना है. पलामू एवं संथाल परगना में बहुत से लघु किसानों ने अपने बूते पर यह लाभदायक प्रयोग किया भी है. कई लघु किसान तो अपने बल पर यहाँ ऐसी भूमि में सोयाबीन, काजू, पपीता, सरीफा आदि की खेती करने लगे हैं. उसमें वे पूरा लाभ भी कमा रहे हैं. इसमें यहाँ की सरकार ) को कोई रुचि नहीं रही.
4. झारखण्ड में गरीबी उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय कृषि आयोग ने वहाँ धान, मकई, अरहर एवं तिल का उत्पादन क्षेत्र और उत्पादन दर (उत्पादकता) बढ़ाने की जोरदार सिफारिश की थी. धान की उत्पादन दर में 42 प्रतिशत, मकई की उत्पादन दर में 34.6 प्रतिशत, अरहर की उत्पादन दर में 30-4 प्रतिशत बढ़ोतरी करने का निर्देश था (पलामू एवं संथाल परगना के कुछ पठारी इलाकों में तिल खेती होती है) इस विशेष कार्यक्रम को कार्यान्वित करने का भार एवं उत्तरदायित्व बिहार सरकार का था. भारत सरकार ने इसके लिए विपुल धनराशि दी. इस विशेष कार्यक्रम के अन्तर्गत उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन गरीब आदिवासी एवं दलित किसानों को मुफ्त में आधुनिकतम उन्नत बीज, खाद, पानी मुहैया कराने और अनुदान के तौर पर प्रति किसान 500 रुपये देने का फैसला किया. इस विशेष कार्यक्रम में शामिल होने वाले को प्रशिक्षण भी देना था. सन् 1999 के प्रारम्भ में केन्द्र सरकार के विशेषज्ञों ने जब इस विशेष योजना की प्रगति का सर्वेक्षण एवं सत्यापन किया, तो करीब पूरा कार्यक्रम उन्होंने सिर्फ कागजों पर ही पड़ा पाया. झारखण्ड के सिर्फ, गोड्डा इलाके में कहीं-कहीं धान की उत्पादन दर में मुश्किल से एक प्रतिशत की वृद्धि हो सकी है. झारखण्ड के अन्य सभी क्षेत्रों में यह कार्यक्रम असफल साबित हुआ. पैसे का दुरुपयोग हुआ. कार्यक्रम भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गया.
> पठारी विकास परियोजना
यह परियोजना विश्व बैंक द्वारा सम्पोषित है. इस परियोजना के अन्तर्गत गरीब आदिवासी एवं दलित किसानों के विकास के लिए विश्व बैंक से प्राप्त धनराशि से झारखण्ड के पठारी इलाके में 42 स्कीम क्रियान्वित की जानी थी, इसके अन्तर्गत खेती-बारी का विकास, खेती की सभी बुनियादी ढाँचे की संरचना को मजबूतीकरण, वनों के आस-पास परती जमीन को उपजाऊ बनाने का प्रबन्ध था, किन्तु इस परियोजना की भी अन्य परियोजनाओं की तरह दुर्गति हो गई.
झारखण्ड की नूतन सरकार के लिए कृषि विकास एक कठिन चुनौती है. झारखण्ड का विकास, कृषि के विकास से जुड़ा है. राज्य की आर्थिक संवृद्धि एवं सकल घरेलू उत्पाद दर में वृद्धि के लिए सरकार को कृषि पर विशेष ध्यान देना होगा.
> मुख्य बातें
> झारखण्ड में कुल आबादी का लगभग 75 प्रतिशत आबादी कृषि पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आश्रित है.
> झारखण्ड की कृषि स्थायी जीवन निर्वाहक कृषि है.
>  स्थायी जीवन निर्वाहक कृषि ऐसे कृषि – जीवन को कहते हैं, जब कृषक के पास सामान्यतः अपने उपभोग के बाद अतिरिक्त अनाज (Surplus) शेष नहीं बचता.
> झारखण्ड में शुद्ध कृषि का क्षेत्र कुल क्षेत्र का 29-8 प्रतिशत है.
> झारखण्ड के कुल क्षेत्रफल का मात्र 29.55 प्रतिशत क्षेत्र में ही वन हैं जो पर्यावरणीय एवं आर्थिक दृष्टिकोण से उचित नहीं हैं.
> झारखण्ड में बाग-बगीचा एवं चरागाह के अन्तर्गत क्रमशः 0.14 लाख एकड़ एवं 2-39 लाख एकड़ भूमि आती है. चरागाह का विस्तार कम एवं पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण, वन पर दबाव बढ़ता है.
> झारखण्ड की मुख्य फसलों में धान, मक्का, गेहूँ, महुआ (रागी), चना, जौ, ज्वार, बाजरा, अरहर, तिलहन आदि हैं.
> झारखण्ड की सर्वाधिक मुख्य फसल धान है. यह क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों दृष्टिकोण से प्रमुख फसल है. यहाँ खेती योग्य कुल जमीन के 61 प्रतिशत भाग पर धान की खेती होती है. धान की खेती लगभग 34 लाख 54 हजार एकड़ भूमि में की जाती है.
> यहाँ  धान की तीन फसलें उगायी जाती हैं – अगहनी, गरमा तथा भदई.
> अगहनी धान की खेती सबसे बड़े क्षेत्र में की जाती है.
> अगहनी धान जून में रोपा जाता है तथा अक्टूबर के अन्तिम या नवम्बर के प्रथम सप्ताह में काटा जाता है.
> इस फसल का मुख्य क्षेत्र – दामोदर, उत्तरी कोयल एवं स्वर्ण रेखा नदियों की घाटियों एवं पठार के निम्न भूमि वाले क्षेत्र हैं.
> क्षेत्रफल की दृष्टि से मक्का का स्थान धान के बाद दूसरा है.
> मक्का के मुख्य उत्पादक जिले – हजारीबाग, पलामू एवं संथाल परगना हैं.
> अन्य प्रमुख खाद्य फसलों में गेहूँ का स्थान आता है. इसका उत्पादन 1 लाख 78 हजार एकड़ भूमि में होता है.
> झारखण्ड के उपर्युक्त तीन मुख्य फसलों के अतिरिक्त अन्य फसलें – हैं- – मडुआ (1 लाख 60 हजार एकड़ भूमि पर), चना (30 हजार एकड़ भूमि पर), ज्वार-बाजरा, अरहर एवं तिलहन (तिल, राई, सरसों, सरगुजा) इत्यादि हैं.
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