झारखण्ड : भौतिक स्वरूप तथा भूगर्भिक संरचना

झारखण्ड : भौतिक स्वरूप तथा भूगर्भिक संरचना

झारखण्ड का इतिहास - inp24

भौतिक स्वरूप तथा भूगर्भिक संरचना

> झारखण्ड का धरातल सभी भागों में भौतिक दृष्टि से एकसमान है. कहीं पारसनाथ जैसी शिखर है तो कहीं दामोदर जैसी घांटी. किन्हीं भागों में शुष्क पतझड़ वन हैं, तो कहीं आर्द्र पतझड़ वन ऐसे में भू-भागों के विभिन्न भागों के भौतिक स्वरूप का अध्ययन लाभदायक होता है. झारखण्ड के भौगालिक अध्ययन हेतु उसकी भूगर्भिक संरचना का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि विभिन्न भागों में पाई जाने वाली चट्टानों के स्वरूप को जाने बिना उनकी उपयोगिता का पता लगाना प्रायः सम्भव नहीं होता. कृषि का सम्बन्ध मिट्टी से होता है और मिट्टी का निर्माण उस देश में पायी जाने वाली चट्टानों से होता है. चट्टान, खनिज पदार्थों का क्षेत्र होता है, जो देश के
आर्थिक एवं औद्योगिक विकास में अति महत्वपूर्ण हैं. अतः इस राज्य की आर्थिक क्षमता की जानकारी यहाँ के चट्टानों के स्वरूप एवं उनसे सम्बन्धित भूगर्भिक संरचना के ज्ञान के बिना अधूरी है.
झारखण्ड की भौतिक एवं भूगर्भिक स्वरूप काफी जटिल नहीं है. सम्पूर्ण झारखण्ड प्रायः छोटा नागपुर का पठार के विस्तार सीमा में पड़ता है. छोटा नागपुर का पठार भारत के पठार का उत्तर-पूर्वी भाग है, जो रिहन्द नदी के पूर्व में स्थित है. इसका विस्तार न केवल झारखण्ड वरन् मध्य प्रदेश का पूर्वी कोना जो अब छत्तीसगढ़ राज्य में है एवं पश्चिमी बंगाल का पुरुलिया जिले तक में है. इसके मुख्यतः तीन भाग हैंJ –
(1) दक्षिण में राँची का पठार (दामोदर नदी के दक्षिण में).
(2) उत्तर में हजारीबाग का पठार ( दामोदर नदी के उत्तर में स्थित है).
(3) उत्तर पूर्व में राजमहल की पहाड़ियाँ –
(1) राँची का पठार
यह दामोदर नदी के दक्षिण अवस्थित है जो विभिन्न ऊँचाइयों वाले कई पठारों का समूह है. इसके पश्चिमी भाग में सबसे अधिक ऊँचे स्थान मिलते हैं, जहाँ पर लैटेराइट से ढँके ऊँचे मेसाओं को Pat कहते हैं. ये पाट पठार के तल में खड़े ढाल पर उठे हुए हैं और इनकी ऊँचाई लगभग 1100 मीटर है. इसमें नेतरहाट पात समुद्र तल से 1119 मीटर ऊँचा है. पश्चिम के अतिरिक्त अन्य भागों की ऊँचाई लगभग 600 मीटर है. राँची 661 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. पठारों का तल उर्मिल है और जहाँ-तहाँ मानेडनॉक और शंकु के आकार की पहाड़ियाँ पायी जाती हैं.
राँची पठार का पश्चिमी उच्च प्रदेश (पाट प्रदेश) उत्थित समप्राय मैदान का प्रमुख उदाहरण है. यह प्रदेश मध्य राँची पठार (610 मीटर) से 305 मीटर [पश्चिमी उच्च प्रदेश की 915 मीटर सतह के ऊपर भी 154 मीटर मोटी क्रिटैसियस युशीन लावा की परत है] ऊँचा है. क्रिटैसियस लावा प्रवाह के पूर्व समस्त राँची पठार एक विस्तृत समतल सतह के रूप में परिवर्तित हो गया. तदन्तर टर्शियरी युग में इस पश्चिमी पाट प्रदेश का 305 मीटर तक उत्थान हो गया. इस पश्चिमी प्रदेश की 915 मीटर की सतह उपस्थित समप्राय मैदान का उदाहरण है. उत्तरी कोयल नदी तथा उसकी सहायक नदियाँ इस प्रदेश को निम्नवर्ती अपरदन द्वारा कई सपाट आकृति वाले लघु भागों में विभक्त कर दिया है, जिन्हें स्थानीय भाषा में पाट कहते हैं; जैसे – नेतरहाट पाट, खमार पाट, रूडनी पाट, जमीरा पाट, रल्डामी पाट, बांगारू पाट आदि. इनमें मेसा या पाट के किनारे का ढाल तीव्र होता है.
(2) हजारीबाग का पठार
यह दामोदर नदी एवं राँची पठार के उत्तर में स्थित है. इसकी ऊँचाई लगभग 600 मीटर है जो करीब 300 मीटर ऊँचे पठारों से घिरा हुआ है. राँची पठार के समान इसमें भी विलग पहाड़ियाँ पायी जाती हैं. ऐसी ही विलग पहाड़ी, हजारीबाग पठार के पूर्वी भाग में, पारसनाथ पहाड़ी है जिसकी ऊँचाई 1365 मीटर है. यह झारखण्ड की सर्वोच्च पहाड़ी है.
(3) राजमहल पहाड़ियाँ
यह पहाड़ी छोटा नागपुर पठार के उत्तर पूर्वी सिरे पर स्थित है. इसकी ऊँचाई लगभग 400 मीटर है और सर्वोच्च स्थान की ऊँचाई 567 मीटर है. मुख्यतः बेसाल्ट से बनी ये पहाड़ियाँ बहुत कटी-फटी हैं और कटाव ने इनको अलग-अलग पठारों के रूप में बदल दिया है.
छोटा नागापुर का प्रत्येक पठार कगारों से अलग है. इन कगारों से होकर प्रवाहित होने वाली नदियों के मार्गों में जल प्रपात तथा गहरी घाटियाँ विकसित हैं. राँची पठार के स्वर्ण रेखा नदी पर हुण्डरूघाघ प्रपात (76-67 मीटर), जोन्हा एवं रारू नदी के संगम पर जोन्हा या गौतम-धारा प्रपात (25-9 मीटर) काँची नदी पर दशम प्रपात (दो प्रपात 39-62 तथा 15-24 मीटर) संख नदी पर सदनी प्रपात (61 मीटर), बूढ़ा नदी (उत्तरी कोयल की सहायक नदी) पर बुढ़ा घाघ प्रपात (14-2 मीटर) एवं इसी नदी पर दूसरा प्रपात सुगावनी प्रपात है. रामगढ़ के निकट भेड़ा नदी (दामोदर नदी के सहायक नदी) पर रजरप्पा प्रपात है. ये सभी प्रपातें निक प्वांइट के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं.
पठारों का वर्तमान भूदृश्य समप्राय धरातल तथा अवशिष्ट स्थलाकृतियों से निर्मित है. इसकी उल्लेखनीय प्रादेशिक स्थलाकृतियाँ जैसे – राजमहल तथा पश्चिमी राँची का पाट क्षेत्र, सिंहभूम का दलमा क्षेत्र, चाईबासा का मैदानी भाग, दामोदर नदी की संरचनात्मक घाटी कैमूर तथा रोहतास के पठार, क्षेत्रीय संरचना के प्रभावों को अभिव्यक्त करते हैं.

छोटा नागपुर पठार की उत्पत्ति

छोटा नागपुर का पठार भारतीय प्रायद्वीप का उत्तरी हिस्सा है. यह अवलम्बित खण्ड है, जिसकी चट्टानों क्रिस्टली एवं कायांतरित हैं. छोटा नागपुर पठार की उत्पत्ति भारत के यद्वीपीय पठार की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है. प्रायद्वीपीय पठार गोंडवाना लैण्ड का एक भाग रहा है, जो हिमालय से लाखों वर्षों पूर्व से अस्तित्व में है. परमो
कार्बन युग में पैन्जिया दो भाग में विखण्डित हो गया. गोंडवाना लैण्ड दक्षिणी हिस्सा) एवं अंगारा लैण्ड (उत्तरी हिस्सा) के बीच में स्थित्व महासागर सृजित हुई. मध्य जीव युग में (लगभग 20-22 करोड़ पूर्व) इस उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका, एशिया, आस्ट्रेलिया एवं अंटार्कटिका महाद्वीप एक दूसरे से पृथक् हुए एवं यूरोप उत्तरी अमरीका के मध्य में अन्धमहासागर बना तथा भारत एवं अफ्रीका के मध्य में अरब सागर बना. इयोसिन युग में प्लेट टैक्टोनिक के कारण गोण्डवाना लैण्ड का पुनः विभाजन हुआ. इस प्रकार छोटा नागपुर का पठार राजमहल तथा ढ़ालभूम के दक्षिण-पूर्वी हिस्से को छोड़कर कैम्ब्रियन कल्प से ही सागर तल से ऊँचा रहा है.
क्रिटैशिसय युग (13-5 करोड़ वर्ष पूर्व) में जब भारतीय प्लेट एवं एशियाटिक प्लेट एक-दूसरे के नजदीक आ रहे थे एवं भारतीय प्लेट का घनत्व अधिक रहने के कारण यह एशियाटिक प्लेट के नीचे क्षेपित हो रहा था, जिससे भारतीय प्लेट के दक्षिण हिस्से में दरार उद्भेदन हुआ, जिसके कारण बेसाल्ट लावा का निःसंकरण हुआ एवं यह भारतीय प्रायद्वीप के विशाल क्षेत्र को अनावरित कर दिया, जिससे अनावृत क्षेत्र पठार के समान दृष्टिगोचर होने लगी. इस प्रकार भारतीय प्रायद्वीप के आर्कयिन युग की ग्रेनाइट नीस स्थलाकृति बैसाल्टिक लावा से अनावृत हो गई, जिसे पाट भी कहते हैं.
राजमहल के पहाड़ी लावा निम्ररण की क्रिया द्वारा निर्मित हुई है. मध्यजीव युग लगभग करोड़ वर्ष पूर्व ज्वालामुखी के उद्गार राजमहल की पहाड़ियों में हुए. यहाँ लावा का जमाव 3200 मीटर की गहराई तक पाया जाता है.
दालमा श्रेणी
सबसे पहले भारत में दक्षिणी पठार पर आर्कियन युग से धारबाड़ काल में ज्वालामुखी का उद्गार 1 अरब वर्ष पूर्व हुआ था, जिससे दालमा श्रेणी का निर्माण हुआ.
दामोदर घाटी
इसका विस्तार झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल में है. परिमियन काल में लगभग 27 करोड़ वर्ष पूर्व हजारीबाग पठार एवं राँची पठार के स्थित रहने एवं बीच के भाग के अवतलन से दामोदर घाटी की उत्पत्ति हुई. यह एक रिफ्ट घाटी है.

छोटा नागपुर की भूगर्भिक संरचना

भू-वैज्ञानिक संरचना की दृष्टि से झारखण्ड को 5 इकाइयों किया गया है. ये 5 इकाई हैं
(1) आक्रियन काल (सिंहभूम, धनबाद, गिरिडीह, संथाल परगना एवं पलामू प्रमण्डल)
(2) विंध्यकाल (उत्तरी पलामू)
(3) राजमहल ट्रैप (साहेबगंज, दुमका, गोड्डा)
(4) गोंडवाना काल (पलामू, हजारीबाग, कोडरमा, धनबाद तथा संथाल परगना)
(5) तृतीय कल्प ( द. पू. सिंहभूम )
(1) आर्कियन काल-झारखण्ड का प्रायः 90 प्रतिशत भाग आक्रियन शैल समूहों से निर्मित है. आर्कियन शैलों का वितरण दो वर्गों में किया जाता है.
(क) धारवारकालीन– कायान्तरित शिष्ट, क्वार्ट्जाइट, नीस तथा ग्रेनाइट शैल है, जो मुख्यतः सिंहभूम तथा कोडरमा में पायी जाती है.
(ख) अवसादी एवं आग्नेय वर्ग शैल- शिष्ट फिलाइट, लौह अयस्क क्रम, स्लेट आदि जैसे अवसादी शैल एवं ग्रेनाइट तथा लावा जैसी आग्नेय शैल की प्रधानता रहती है जो मुख्यतः राँची जिला एवं सिंहभूम में पायी जाती है. –
– छोटा नागपुर के वर्तमान धरातल के लिए ग्रेनाइट-नीस उत्तरदायी है.
– आक्रियन वर्ग के शैलों में दक्षिणी सिंहभूम में कोलहन क्रम के अकायांतरित चूना पत्थर तथा कांग्लोमेरेट शैल झारखण्ड के कैम्ब्रियन पूर्व शैलों में सबसे नवीन माने जाते हैं.
– आक्रियन शैल एवं निक्षेपित धारवारकालीन शैल स्तर काफी कायांतरित हो चुके हैं.
– झारखण्ड के आक्रियन शैल खनिज पदार्थों के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन शैलों में लौह-अयस्क क्रोमियम, मैंगनीज, ताँबा, एस्बेस्टस, टिटैनियम आदि जैसे अधिक महत्व के खनिज उपलब्ध हैं.
(2) विंध्यकाल- झारखण्ड के उत्तर-पश्चिमी भाग में अपरदित महास्कंध के ग्रेनाइट धरातल पर पुनः विध्यन अवसादों का निर्माण हुआ है. यह कैम्ब्रियन कल्प की घटना है. इसके अवशेष पलामू जिले के उत्तरी भाग में स्थित है. विध्यन शैल समूह सिमरी तथा कैमूर क्रम के अवसादी ग्रिटी से लेकर वालुकाश्म, शैल, फल्गस्टोन, बलुआही गाद शैल, चूना पत्थर शैलों से तथा क्वार्ट्जाइट ब्रेख्यिा परसेलेनाइट्स शैलों से निर्मित हैं.
(3) राजमहल ट्रैप – जुरैसिक कल्प की व्यापक आग्नेय प्रक्रिया का प्रतिफल है. लावा के परतों में बिछी होने के कारण इसे राजमहल ट्रैप कहते हैं, जिसका विस्तार साहेबगंज, गोंडा एवं दुमका जिले तक है.
(4) गोंडवाना काल-परमियन कल्प में व्यापक विवर्तनिकी घटनाओं से दामोदर भ्रंश घाटी एवं नदी बेसिनों की रचना हुई, जिसमें गोंडवाना काल में अवसादन की एक लम्बी प्रक्रिया चली है. अवसादन की क्रिया एवं मीठे जल के अपवाह से वनस्पतियों का विकास हुआ. जो हिमावरण के कारण भूमिस्थ हो गई. जो कालान्तर में कोयला के संस्तर के रूप में प्रकट हुई. इसका विस्तार पलामू, हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा, धनबाद तथा संथाल परगना तक है.
(5) तृतीय कल्प – तृतीय कल्पकालीन हिमालय अर्थात् प्लयोसिन से इयोसिन युग तक का प्रभाव किसी न किसी रूप में झारखण्ड की संरचना में दृष्टिगोचर होता है. हिमालय के निर्माण के दौरान टेक्टोनिकस बल के कारण, उसके दक्षिणी के प्रायः सभी सम्पर्कित भाग कमोवेशी प्रभावित हुई. इस दौरान छोटा नागपुर पठार का ऊपरी उपांत तथा स्वर्ण रेखा घाटी संबलन से प्रभावित हुआ एवं पठार में उत्थान भी हुआ.

मुख्य बातें

> झारखण्ड की उच्चावच (Relief) में काफी असमानता है.
> असमान उच्चावच का कारण झारखण्ड के विभिन्न भागों में उत्पत्ति सम्बन्धी भिन्नता के कारण हैं.
> झारखण्ड का सर्वोच्च स्थल पारसनाथ की पहाड़ी है. यह समुद्र तल से 1365 मीटर ऊँचा है.
> झारखण्ड की मृदा, को यहाँ की चट्टानी संरचना प्रभावित करती है.
> राँची का पठार छोटा नागपुर का पठार है.
> राँची का पठार, विभिन्न ऊँचाइयों वाले कई पठारों का समूह है.
> इस पठार की मुख्य विशेषता ‘पाट’ है.
> पठार के सबसे अधिक ऊँचे स्थान पर ‘ऊँचे मेसाओं’ जो लैटेराइट से ढके होते हैं, ‘पाट’ कहते हैं.
> ‘पाट’ राँची के पठार के पश्चिमी भाग में पाया जाता है.
> ‘राँची का पठार’ का सर्वाधिक ऊँचा स्थल नेतरहाट (1119 मीटर) है.
> राँची शहर समुद्र तल से 661 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित है.
> राँची का पठार पाट प्रदेश ‘टार्शियरी युग’ में उत्थित हुआ.
> हजारीबाग का पठार के पूर्वी भाग में पारसनाथ की पहाड़ी है. यह झारखण्ड का सर्वोच्च शिखर है.
> ‘पारसनाथ की पहाड़ी’ अवशिष्ट पर्वत का सुन्दर उदाहरण है.
> राजमहल की पहाड़ी की औसत ऊँचाई लगभग 400 मीटर है, जबकि सर्वोच्च शिखर 567 मीटर है. यह बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है.
> छोटा नागपुर का पठार ‘समप्राय धरातल एवं अवशिष्ट स्थलाकृतियों द्वारा निर्मित हुआ है. *
> छोटा नागपुर के पठार की चट्टानें क्रिस्टली एवं कायांतरित प्रकार की हैं.
> छोटा नागपुर का पठार प्रायद्वीपीय भारत का हिस्सा होने के कारण, गोण्डवानालैण्ड का भी हिस्सा था.
> छोटा नागपुर का पठार कैम्ब्रियन कल्प से ही अस्तित्व में है.
> क्रिटैशियस काल में लगभग 13-5 करोड़ वर्ष पूर्व प्रायद्वीपीय भारत में दरार होने के कारण लावा एवं मैग्मा का उद्भेदन हुआ, जिससे प्रायद्वीपीय भारत का उत्थित भाग लावा से अनावृत्त हो गया एवं वर्तमान रूप को प्राप्त हुआ.
> राजमहल की पहाड़ी का निर्माण मध्यजीव युग लगभग 1/2 करोड़ वर्ष पूर्व, में लावा निस्सरण से हुआ है.
> दालमा श्रेणी का निर्माण 1 अरब वर्ष पूर्व हुए धारवारकालीन ज्वालामुखी उद्गार से हुआ है.
> दामोदर घाटी एक रिफ्ट घाटी है, जो हजारीबाग पठार एवं राँची पठार के मध्य के भाग के धँसान प्रक्रिया से बना है.
> दामोदर घाटी छोटा नागपुर की पठार की नवीनतम स्थलाकृति है.
> छोटा नागपुर पठार की भूगर्भिक संरचना में आर्कियन शैल समूहों की प्रधानता है.
> झारखण्ड का लगभग 90 प्रतिशत भाग आर्कियन शैल समूहों से निर्मित है.
> झारखण्ड में ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों की प्रधानता है.
> झारखण्ड एक खनिज प्रधान राज्य है. यहाँ खनिजों की प्रधानता आर्कियन शैल समूहों में पायी जाती है.
> आर्कियन शैल समूह में पाये जाने वाले मुख्य खनिजों में लौह अयस्क, क्रोमियम, मैंगनीज, ताँबा, एस्बेस्टस आदि हैं.
> झारखण्ड से प्राप्त कोयला गोंडवानाकालीन अवसादन क्रिया का परिणाम है.
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